झारखंड की शान सलीमा टेटे को हॉकी इंडिया ने इस साल की शुरुआत में 2023 की सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी चुना। इसके बाद मई 2024 में उन्हें भारतीय महिला हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया। उन्होंने सविता पुनिया की जगह ली।
सलीमा, झारखंड के एक दूरदराज़ गांव से आती हैं,उन्होंने एक साधारण जीवन से भारतीय महिला हॉकी टीम की एक स्टार खिलाड़ी बनने तक का सफर तय किया है। बचपन में,वह अपने परिवार के लिए भोजन जीतने की उम्मीद से बांस की छड़ी से हॉकी खेलती थीं।सलीमा के परिवार ने अपने आर्थिक संघर्षों के बावजूद उनके हॉकी खेलने के सपने का समर्थन किया-अपनी पास की थोड़ी से भी संपत्ति बेचकर, कर्ज लेकर। टूर्नामेंट में जाने में मदद करने के लिए पैसा उधर लिया। सलीमा के दृढ़ संकल्प और उनके परिवार के अटूट समर्थन का फल तब मिला, जब उन्होंने 2019 में युवा ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम को रजत पदक दिलाया। इसके साथ ही वे देश की महिला खिलाडियों की प्रेरणा बन गयीं। वह भारत की एक सच्ची युवा आइकन बन गई।
राजधानी रांची से 165 किलोमीटर दूर सिमडेगा जिले के उनके छापर गांव में पानी की मुकम्मल सुविधा तक नहीं है| सलीमा टेटे की माँ पीने के पानी के लिए घर से 4 किलोमीटर दूर कुएं तक जाती हैं। सलीमा के घर वाले बताते हैं कि ‘गांव में हैंड पंप है, पानी की सरकारी टंकी भी है, लेकिन उसका पानी कोई पी नहीं सकता , उस पानी से दाल तक नहीं गलती है| गांव के दूसरे छोर पर एक पुराना कुआं है, पीने और खाना बनाने के लिए उसी कुएं से पानी लाया जाता है। छापर गांव में मुंडा और खरिया जनजाति के 65 आदिवासी परिवार में से महज चार के घर पीएम आवास योजना के तहत बने हैं, बाकी सारे घर खपरैल हैं| पूरा गांव खेती पर निर्भर है, लेकिन बरसात के अलावा सिंचाई का कोई दूसरा साधन नहीं है| पक्की सड़क गांव तक पहुंचती है, लेकिन गांव में घुसने के बाद कच्ची सड़क से वास्ता पड़ता है, जिस पर बारिश के दिनों में चलना दूभर हो जाता है |’107 इंटरनेशनल मैच खेल चुकी सलीमा की ज़िंदगी बादल गयी है ,जिंदगी तो परिवार और उनके समाज की भी बदली है, लेकिन नहीं बदले हैं हालत पानी पीने के लिए दूर कुएं तक जाने के ।
2023 में दिए एक इंटरव्यू में खुद सलीमा गांव के हालात बताती हैं, ” गांव जाती हूं तो मैं भी कभी-कभी पानी लाने जाती हूं। पानी लाना एक संघर्ष है। मतलब अगर यहां पर कुछ चापाकल हो जाते , कुछ आवास मिल जाते तो बहुत अच्छा होता, पर मैं भी क्या कर सकती हूं ? ‘ झारखंड सरकार ने कई सारे वादे किए थे। आवास देने को कहा था, 4-5 साल हो गये अभी तक नहीं हुआ है कुछ भी ।’ आज भी 2024 में सरकार की संस्थाएं घोषणा कर रही हैं। झारखंड राज्य आवास बोर्ड ने पिछले अगस्त में झारखंड की दो खिलाडियों निक्की प्रधान और सलीमा टेटे को हरमू में आवास देने की घोषणा की।
सलीमा अपने गांव के बारे में बताती हैं, ‘ यहाँ पानी की बहुत दिक्कत होती है, बिजली की भी। यहाँ कोई नेटवर्क भी नहीं है।कभी- कभी मैं गांव जाती हूं तो नेटवर्क का प्रॉब्लम बहुत ज्यादा होता है। मेल या कुछ भी मैसेज आया तो मैं देख नहीं पाती। बाहर रहने पर मम्मी-पापा से भी अच्छे से बात नहीं हो पाती ‘
वे सरकारी योजनाओं के तहत बनने वाले घर का मुद्दा भी उठाती हैं। उनके अनुसार इसमें धर्म का एंगल भी दिखता है, जैसे क्रिश्चियन परिवारों के साथ भेदभाव होता है।
खिलाडियों को वादे और वादों को धरातल पर उतारने में काफी फर्क है। सीनियर टीम में ही डिफेंडर पोजीशन पर खेलने वाली रोपनी कुमारी इसी जिले के जाम बहार मांझी टोली गांव की हैं, उन्हें अभी तक पीएम आवास नहीं मिला है। उनका परिवार दो कमरों वाले खपरैल घर में रहता है झारखंड का सिमडेगा जिला हॉकी के खिलाड़ियों की खान है। फिलहाल इस जिले के चार खिलाड़ी, सीनियर और तीन जूनियर नेशनल टीम में हैं-झारखंड से पांच-पांच खिलाड़ी सीनियर और जूनियर टीम में हैं। इस राज्य से अब तक 100 से ज्यादा खिलाड़ी नेशनल टीम के लिए खेल चुके हैं, सात खिलाड़ी ओलंपिक भी खेल चुके हैं। राज्य की तीन खिलाड़ी भारतीय महिला टीम की कप्तानी भी कर चुकी है, लेकिन हॉकी टीम को समृद्ध बनाने वाली खिलाड़ियों का गांव खस्ताहाल है। वैसे सरकार सलीमा के गांव में कुछ कुछ काम कर रही है । उसने वहां पर एक मैदान भी बनाया है और अभी उपायुक्त महोदय खुद उस गांव को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत दिखे लेकिन सवाल है कि सिर्फ बिजली या पानी पहुंचा देने से ही आसान नहीं होंगी राहें, सलीमा का हो या कोई भी गांव उसे ऐसा बनाया जाए कि वहां सारी सुविधा उपलब्ध हो। खिलाडियों के लिए यह प्राथमिकता से करना चाहिए।
गांव के अंदर सड़क हो, नाली हो, पीसीसी पथ हो और सजावट हो। यदि जगह हो तो आसपास पार्क ही बना दिया जाए। हॉकी इंडिया के उपाध्यक्ष भोलानाथ सिंह कहते हैं कि ‘छापर गांव के हालात बेहद खराब थे, लेकिन प्रशासन ने उसे ठीक करने की पहल की है। सिमडेगा के डीएम अजय कुमार भी इसे स्वीकार करते हैं कि ‘मोबाइल नेटवर्क की समस्या बड़की छापर ही नहीं पूरे सिमडेगा में है, बीएसएनएल अभी तक ४जी है, प्राइवेट कंपनियां कहती हैं कि क्लाइंट ज्यादा होने पर ही टावर लगा पाएंगे। पानी की समस्या भूजल स्तर के ऊपर नीचे होने से आती है। बिजली की समस्या के स्थायी समाधान के लिए पूरे गांव में सोलर लाइट लगवाने के लिए एक प्राइवेट कंपनी को बजट बनाकर भेजा गया है।
हॉकी स्टिक पकड़कर बॉल को विरोधी खेमे के गोल पोस्ट तक पहुंचाने वाली ये लड़कियां और इनके परिजन असुविधा की मार झेल रहे हैं | डिजिटल इंडिया का शोर है लेकिन गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं है, हर घर नल से जल पहुंचाने की योजना पर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन यहां पीने के पानी के लिए कुएं का मुंह ताकना पड़ता है, सिर पर छत से लेकर पैर तले अच्छी सड़क खस्ता हाल है। खिलाड़ियों को उम्मीद है कि इन मुश्किलों के खिलाफ किसी दिन जीत दर्ज होगी, जैसे हॉकी के ग्राउंड में होती है। इसी तरह की तसल्ली से भरी हुई |