आप बदतमीजी किसे कहते हैं? अशिष्ट वाक्य बोलना, बड़ों के सामने बैठ जाना, ऊलजलूल हरकतें करना? प्रत्येक व्यक्ति के लिए बदतमीजी की अलग परिभाषा हो सकती है। किसी के लिए बनियान गमछा में बाहर आना बदतमीजी है, तो किसी के लिए घर आए मेहमान को चाय शरबत इत्यादि पूछ कर पिलाना बदतमीजी है। शिष्टाचार के विरुद्ध किसी कार्य को हम अपनी सुविधा के लिए बदतमीजी कह देते हैं। पर अधिकांश लड़कियों से पूछिए, तो सड़कों पर, बसों में, सिनेमाहॉल में, शॉपिंग मॉल में, मेलों में, यहां तक की पूजा स्थलों पर भी वह मानसिक शारीरिक प्रताड़ना झेलती हैं। “बदतमीजी कर रहा था” इस वाक्य के नीचे सारी प्रताड़ना दबा देती हैं। जब तक मामला बलात्कार का नहीं होता तब तक बदतमीजी या छेड़खानी का ही रहता है। लड़कियों के जीवन में ऐसा एक न एक क्षण जरूर आता है, जब वह यौन शोषण को सार्वजनिक जीवन में सहती है। परंतु सब उसे बदतमीजी या छेड़खानी का नाम दे देते हैं। विभिन्न स्थानों पर महिलाओं को यौन शोषण का सामना करना पड़ता है।
शहरों में:- शहरों में आप किसी खास बंधन में नहीं होते, इसलिए यौन शोषण की घटनाएं बढ़ जाती हैं। महिलाओं की चुप्पी इसमें खाद पानी का काम करती है। मोहल्ले के लोग ही, होली, न्यू ईयर पार्टी, शादी, इत्यादि मौकों पर फायदा उठाते हैं। भाभी या साली का रिश्ता जोड़कर छेड़छाड़ करते हैं। हालांकि मुखर लड़कियों से यह मनचले नहीं उलझते।खडूस, झांसी की रानी, हिटलर, इत्यादि खिताब देकर अलग हो जाते हैं। परंतु दब्बू लड़कियां उनसे भागी भागी फिरती हैं, और वह मौके की तलाश में रहते हैं। ‘तेरा पीछा ना मैं छोड़ूंगा सोनिये’ की तर्ज पर। हिंदी फिल्मों ने यौन शोषण को बढ़ाने का काम किया है। पीछा करना, घूरना, हाथ पकड़ना, जबरदस्ती चुंबन लेना, नायक के कृत्य बताए गए हैं। खलनायक के नहीं। फिल्में नौजवानों को बताती हैं, खलनायक केवल बलात्कार करने पर ही माना जाएगा। छेड़खानी, बदतमीजी, शाब्दिक हिंसा, अश्लील इशारों तक आप नायक हैं। केवल बलात्कार न करें। बलात्कार की सारी स्थिति बरकरार होने पर भी अगर आप जबरदस्ती नहीं करते, उसे छोड़ देते हैं, तब तो आप महान हैं। छेड़खानी को लेकर जितने चुटकुले बने हैं, क्या हम उन सब से अनजान हैं। महानगरों की बात करें तो महिलाओं के लिए दिल्ली सबसे असुरक्षित है। मुंबई, चेन्नई, कोलकाता के मुकाबले। इसकी जड़े सल्तनत से जा जुड़ती हैं।
गाँव में :- गाँव में चुंकि सब एक दूसरे से परिचित होते हैं, और रिश्तो में बंधे होते हैं। ऐसे में जातिगत आधार पर शोषण होता है। कथित निम्न जाति की महिला से भौजाई का नाता जोड़कर, अश्लील शब्दों और इशारों के बौछार की जाती है। आपत्ति दर्ज पर करने पर कहा जाता है मैं तो मजाक कर रहा था। कहावत भी है “गरीब की लुगाई गाँव की भौजाई ” परंतु शहरों की तुलना में गांव के निम्न वर्गीय लड़कियां और महिलाएं मुखर होती हैं। यही कारण है कि वहां शाब्दिक शोषण ज्यादा होता है। हालांकि दलित लड़कियों के बलात्कार होते हैं, परंतु छेड़छाड़, हाथ पकड़ना, जबरदस्ती गले लगाना, छूने की कोशिश करना, यह घटनाएं न के बराबर हैं। होली पर जरूर छेड़छाड़ की कोशिश होती है। परंतु महिलाएं भी कम नहीं होती, वह कीचड़, गोबर के रूप में हथियार रखे रहती हैं। खेतों में काम करते समय, घास काटते समय, मिट्टी खोदते समय, या मवेशियों को लाते ले जाते समय, महिलाओं के हाथों में हथियार अवश्य होते हैं। हंसिया, लाठी, डंडा, खुरपी इत्यादि। इसलिए वहां इनके शारीरिक शोषण का ज्यादा स्थान नहीं है। दलित महिलाओं पर अत्याचार होते हैं परंतु वह अपना विरोध जाहिर करती हैं। कर्ज, जमीन, अनाज या किसी और एहसान तले दबी ना हो, तो वार करने से भी गुरेज नहीं करती।
घर में:- घर में अधिकतर यौन शोषण रिश्तेदारों द्वारा किया जाता है। रिश्ते में जीजा, देवर, ननदोई, समधि इत्यादि छेड़छाड़ का प्रयास करते हैं। कुछ कहने पर लड़कियों को यह कह कर चुप कर दिया जाता है कि, वह मजाक कर रहा होगा। मामी भांजा में भी मजाक का रिवाज है। ऐसा प्रतीत होता है कि, एक लड़की के ब्याह देने से, वरपक्ष के सारे पुरुषों का वधुपक्ष की महिलाओं पर मालिकाना हक मिल जाता है। घर की औरतें क्या, वह पूरे मोहल्ले, आसपड़ोस की लड़कियों से मजाक (बदतमीजी) कर सकते हैं। विरोध करने पर रूठ भी सकते हैं, उन्हें मनाने के लिए पुनः खातिरदारी की जाती है। इस तरह सामाजिक सुरक्षा का आवरण बदतमीजी करने वाले पुरुषों को मिला है। महिलाएं डर के मारे कुछ कहती नहीं हैं, और कहें भी तो घर के बड़े सुनते नहीं हैं।
स्कूल कॉलेज:- स्कूल कॉलेज में छेड़छाड़ आमतौर पर सहपाठी या शिक्षकों द्वारा होती है। जो लड़कियां खुले विचारों की होती हैं, उन्हें आसानी से उपलब्ध मान लिया जाता है। कई बार खेल शिक्षकों द्वारा पीठ, कमर, गले को अनावश्यक रूप से छूने की कोशिश की जाती है। कुछ लड़कियां इसका विरोध करती हैं, तो कुछ खेल प्रशिक्षण का एक हिस्सा समझकर चुप रह जाती हैं।
कार्य स्थल:- कार्य स्थल पर शोषण इतना आम हो गया है कि इसकी स्वीकृति पूरे समाज में मिल गई लगती है। तभी तो इस विषय पर इतने सारे चुटकुले मौजूद हैं। सेक्रेटरी और बाॅस, कामवाली बाई और मालिक, शिक्षिका और प्रिंसिपल, नर्स और डॉक्टर, एयर होस्टेस और पायलट, महिला वकील और जज, महिला सिपाही और इंस्पेक्टर, कौन सा क्षेत्र बाकी है जिस पर यौन शोषण के चुटकुले ना बने हों। समाज की यह मानसिकता ही उन सभी बाॅस पुरुषों को अपने अधीन कार्यरत महिलाओं का शोषण करने के लिए हिम्मत देती है।
सार्वजनिक स्थल:- जब दिन रात साथ रहने वाले परिचित लोगों के साथ महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर सार्वजनिक स्थल और यात्राओं में मिलने वाले अंजान पुरुषों का कहना ही क्या। निहायत शरीफ समझा जाने वाला व्यक्ति भी, अकेले सार्वजनिक स्थानों पर छेड़खानी कर बैठता है। कारण स्पष्ट है कि वहां उसे कोई जानता नहीं, उसकी रेपुटेशन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।
कुछ घटनाएँ (गोपनीयता के लिए नाम बदल दिए गए हैं)
1. आकृति बैंक में काम करती है। उसका 50 वर्षीय नया मैनेजर जब से आया है, उसे घूरते हुए मुस्कुराते हुए निकलता है। जब तब अपने चेंबर में बुलाकर बैठा लेता है। लंच पर बाहर चलने को बोलता है, जबकि आकृति जानती है कि उसके बच्चे आकृति के ही हम उम्र हैं। आकृति पूरे दिन असहज महसूस करती है। अब आकृति अपना तबादला करवाने के प्रयास में है।
2. माला की सहेली शादी के बाद पहली होली पर मायके आई। उसके पति सोनू ने माला को रंग लगाते हुए बुरी तरह दबोच लिया। माला ने सोनू को धक्का दिया, वो गिर गया। माला की सहेली, उसके घरवाले माफी मांगने का दबाव बनाने लगे। माला ने माफी नही मांगी, उल्टे सोनू को भला-बुरा कहा। अब माला की उसकी सहेली से बोलचाल बंद है।
3. स्वीटी को स्कूल जाने के रास्ते में कुछ लड़के पीछा करते थे। सुनसान पुलिया पर अश्लील भोजपुरी गीत गाने लगते थे। अब वो अकेले कहीं बाहर जाने से घबराने लगी है।
क्या कहता है कानून
“निर्भया कांड के बाद वर्मा कमीशन की सिफारिश पर तत्कालीन मौजूद मौजूदा कानून में बदलाव किए गए, और इसी के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 354 509 को अधिक गंभीर बनाया गया। तथा धारा 354 ए धारा 354 बी धारा 354 सी तथा धारा 354 दी को जोड़ा गया। मौजूदा प्रावधान के तहत भारतीय दंड संहिता धारा 354 के तहत छेड़छाड़ मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 5 साल तथा कम से कम 1 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। तथा इसे गैर जमानती अपराध बनाया गया है। यदि कोई पुरुष किसी महिला को यौन नेचर का शारीरिक टच करता है, या अशोभनीय यौन नेचर का कोई कार्य करता है, जिससे लैंगिक संबंध बनाने का प्रस्ताव स्पष्ट होता है, तो ऐसे मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 344 पार्ट 1 के तहत दर्ज के दर्ज किया जाएगा। महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में आईपीसी की धारा 354A लागू होती है। इस धारा के तहत, किसी महिला को अनुचित रूप से छूना, थप्पड़ मारना, गले या कमर में हाथ डालना, या किसी तरह से शर्मिंदा करना शामिल है। अगर कोई व्यक्ति किसी महिला का पीछा करता है, तो आईपीसी की धारा 354D के तहत केस दर्ज होता है। आरोप साबित होने पर दोषी को तीन साल तक की जेल हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति किसी महिला को गंदी गालियां देता है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 294 लागू होती है।”01
निष्कर्ष:- वास्तव में बदतमीजी जैसे हल्के शब्द के नीचे हम बहुत बड़े अपराध को दबा रहे हैं। जिस कारण यौन शोषण की घटनाएं आम हो चली हैं। अब इस विषय पर महिलाओं को मुखर होना होगा। कोई शख्स आपको बिना इजाजत छूता है, गलत तरीके से घूरता है, अश्लील बातें करता है, तो यह अपराध है। तुरंत एक्शन लीजिए, शोर मचाइए , आसपास के लोगों को बताइए, उसका विरोध कीजिए। आजकल बाल यौन शोषण से बच्चों को बचाने के लिए, गुड टच बैड टच सिखाने की मुहिम चली है। इस कारण यह मुद्दा आम जनता में आ गया है। बच्चे इस पर बात कर रहे हैं। मुखर हैं। निश्चय ही सफेदपोश लोग अब बच्चों को टारगेट बनाने से बचेंगे। इसी प्रकार महिलाओं के यौन शोषण(छेड़खानी) पर खुलकर बात करने की आवश्यकता है। लड़कियों को चुप रहने के बजाय कहना होगा। आम जनता को भी जागरुक होने की आवश्यकता है। यही छोटी-छोटी छेड़-छाड़ की घटनाएँ, नज़रअंदाज करने पर बलात्कार को जन्म देती हैं।