‘स्त्री स्वास्थ्य और जेंडर : प्रसूति रोग से परे 

पटना, ‘स्त्री स्वास्थ्य और जेंडर : प्रसूति रोग से परे विषय पर संवाद

स्त्रियों के एक ही शारीरिक तंत्र /सिस्टम ने उनकी समूची ज़िन्दगी का दायरा तय कर रखा है: और वह है उनका प्रजनन तंत्र।उनका पालन पोषण,सुरक्षा,शिक्षा,व्यवसाय,संपत्ति,शौक,घर-समाज में जगह,उनकी खुशियों और चिंताओं की वजहें, वंचनाएँ,शोषण सब इसी के इर्द-गिर्द घूमते हैं। खासकर उनके लिए स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा भी इसी एक तंत्र में सिमट जाता है: मातृ-शिशु विभाग।’ उपर्युक्त बातें महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज, वर्धा, महाराष्ट्र  की प्रोफेसर डा. अनुपमा गुप्ता ने कही।  डा. गुप्ता पटना के आरा गार्डन में  ‘स्त्रीकाल की ड्योढ़ी’ में आयोजित एक ‘संवाद कार्यक्रम’ में   ‘स्त्री स्वास्थ्य और जेंडर : प्रसूति रोग से परे ‘ विषय पर बोल रही थीं।  वे स्त्रीकाल पत्रिका और डिजिटल प्लेटफॉर्म के संस्थापक सम्पादकों में हैं । 
उन्होंने कहा कि ‘नीतियों, शोध, बजट और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच, में इन दूसरे स्वास्थ्य आयाम से, जो प्रजनन से इतर हैं, नज़र हटा ली जाती है. ये सही है कि स्त्री हॉर्मोन उसे  50 वर्ष की उम्र तक कुछ हद तक कई अन्य शारीरिक रोगों से बचाये रहते हैं। और इस उम्र में स्त्रियों के प्रजनन सम्बन्धी रोग ही परिवार-समाज-दुनिया के सरोकारों में सबसे बड़ी जगह घेरे रहते हैं. लेकिन यह देखा ही जाना चाहिए कि स्त्री देह-मन दूसरी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पुरुषों की तरह ही जूझते हैं. ‘ उन्होंने विस्तार से बात करते हुए स्त्री स्वास्थ्य से गहरे जुड़े कुछ विरोधाभाषों के बारे में बताया:

 1. desmenorrhea/पीरियड पेन (60-80% महिलाओं में) पर गहन शोध तथा सुचारु उपचार की कमी इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि प्रजनन से इतर स्त्री-रोग भी बड़ी लापरवाही के  शिकार हैं. 

2. एक और बड़ा विरोधाभास सुंदरता के क्षेत्र में निवेश है:  एक पुरुष में 1500 स्पर्म प्रति सेकंड बनते हैं, जबकि स्त्रियों में अंडाणु एक महीने में एक।  पूरी जिंदगी में 500 अंडाणु बनते हैं।  लेकिन सामाजिक संरचना में मांग पुरुषों की ज्यादा है।  पुरुषों के लिए एक झूठी मांग बनाई गई है।  यहाँ तक कि  प्राणियों की अन्य जातियों में ‘रिझाना’  नर का काम होता है. सिर्फ इंसानों में ही रिझाना स्त्री का काम बना दिया गया। इसीलिए शरीर के प्रति अतिरिक्त आग्रह  body image issues अक्सर लड़कियों में अवसाद का पहला कारण बन जाते हैं, और ज़िंदगी भर बने रहते हैं।  दुनिया में महज चार प्रतिशत महिलाएं खुद को खूबसूरत मानती हैं। 

  1. लैंगिक हिंसा से बचाने के लिए लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है, और जिसके बाद फिर उन्हें अलग तरह की तमाम हिंसा का शिकार बनना पड़ता है. स्वास्थ्य के तमाम मुद्दे उठ खडे होते हैं. 
  2. धारणा है कि  स्त्रियाँ पहली वैद्य होती हैं।  किताबें भी दादी-नानी के नुस्खे के नाम से छपती हैं। स्वास्थय सेवा में सबसे अधिक श्रम और कम वेतन के मामले में स्त्रियां काम करती है।  100 प्रतिशत आशा वर्कर, 80 % नर्स और 28 % डाक्टर स्त्रियां हैं।  लेकिन चिकित्सा क्षेत्र में नेतृत्व पुरुषों के हाथ में है।  
  3. हमारा विज्ञान उतना ही तटस्थ हो पाता है, जितनी हमारी समझ है. तो सारी दवाओं के प्रयोग पुरुषों पर किये जाते हैं, और उनके परिणाम स्त्रियों पर थोप दिये जाते हैं. जबकि शरीर तो कम से कम पितृसत्ता में भी अलग ही माना गया है.
  4. स्त्रियां अन्नपूर्णा कहलाती है।  विरोधाभाष यह कि अन्नपूर्णाओं में एनीमिया करीब 40- 50% है. और शारीरिक श्रम ज्यादा होने पर भी उन्हें कैलरी  कम मिल रही है. 
    डा. अनुपमा ने कहा कि ”स्वास्थ्य के शोध के संदर्भ में अभी तो हम  दो ही लिंगों पर बात करते हैं -स्त्री और पुरुष। ट्रांसजेंडर की तो बात भी नहीं होती।  हम स्वास्थ्य बजट के मामले में बहुत गरीब देशों से भी गरीब हैं. 25-26 के बजट में GDP के मात्र 1.9% तक पहुंच सके हैं (इसमें से करीब 33% बच्चों और माओं के स्वस्थ्य के लिए आवंटित होता है।  सपष्ट है  प्रजनन से संबंधित स्वास्थ्य सेवा के लिए।  2025 तक के लक्ष्यों में बजट 2.5% और TB मुक्त भारत था, जिसे 2017 में निर्धारित किया गया था और  जो लक्ष्य पूरा नहीं हो सका ।  अब भी  हमारे यहाँ जरूरत के हिसाब से 50 % स्वास्थ्य कर्मी कम हैं।  अभी तक माताओं और बच्चों की संक्रामक रोगों से मौतें दुनिया के स्तर तक कम नहीं हो पाई हैं और गैर-संक्रामक, जीवनशैली रोग दुनिया के स्तर से ज्यादा बढ़ चुके हैं। ‘
    विषय और विशेषज्ञ से परिचित कराते हुए स्त्रीकाल के संस्थापक संपादक संजीव चंदन ने कहा कि डा. अनुपमा आज बिहार में स्त्री स्वास्थ्य और जेंडर पर बोल रही हैं जहां देश में पहली बार लालू प्रसाद के समय में स्त्रियों को दो दिनों का ‘ माहवारी छुट्टी ‘ जिसे स्पेशल लीव कहा जाता है, मिला था। इसके लिए वाम संगठनों से जुड़ी महिलाओं की मांग काफी समय से थी ।
    उपस्थित सभी साथियों ने स्त्री स्वास्थ्य के विविध पहलुओं पर बात की।  गुंजन उपाध्याय पाठक, प्रतिमा दास, लीना, कृष्ण समिध, श्वेता सागर, साकिब अशरफी ने कविताएं भी सुनाई। उपस्थित लोगों में सेवाग्राम मेडिकल कॉलेज में ही  प्रोफेसर एवं सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डा. दिलीप गुप्ता, अरुण नारायण, अंशुमान, अनिकेत, अरविंद, दिव्या गौतम आदि भी उपस्थित थे। स्त्रीकाल का एक अंक और संजीव चंदन की किताब ‘ गांधी लाठी पर हिंदी, हिंदी साहित्य और समाज की एक षड्यंत्र कथा ‘ सभी भागीदारों को भेंट की गई।

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ISSN 2394-093X
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