अतिपिछड़ों के नेतृत्व में हो सामाजिक न्याय 

रिपोर्ट : साकिब 

 

पटना, 18 अप्रैल — राष्ट्रीय अति पिछड़ा संघर्ष मोर्चा के तत्वावधान में पटना स्थित जगजीवन राम शोध संस्थान में “अति पिछड़ा वर्ग के नेतृत्व में सामाजिक न्याय” विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री विजय कुमार चौधरी ने की और संचालन प्रो. दिलीप कुमार पाल ने किया। सेमिनार के मुख्य वक्ताओं में संजीव चंदन (संपादक, स्त्रीकाल), अली अनवर (पूर्व सांसद), प्रो. कामेश्वर पंडित, प्रो. नागेन्द्र प्रसाद वर्मा, ललन भक्त, तथा ई. अजय कुमार आज़ाद शामिल थे।

 अध्यक्षीय वक्तव्य:
संस्थान के अध्यक्ष श्री विजय कुमार चौधरी ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि बिहार में अति पिछड़ा वर्ग सबसे बड़ा जनसमूह है, और सामाजिक न्याय आंदोलन से सर्वाधिक लाभ भी इसी वर्ग को मिलना है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि यह वर्ग स्वयं नेतृत्व करते हुए आंदोलन को आगे बढ़ाए। वर्तमान में यह आंदोलन जाति, धर्म और व्यक्तिगत स्वार्थों में सिमट गया है और केवल आरक्षण तक सीमित रह गया है। उन्होंने आंदोलन के उद्देश्यों को व्यापक बनाने की आवश्यकता पर बल दिया —
जातिविहीन समाज की परिकल्पना, समान शिक्षा एवं चिकित्सा व्यवस्था, न्यायिक प्रणाली में आमूलचूल सुधारअंधाधुंध निजीकरण का विरोध, और हर प्रकार के शोषण के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करना। उन्होंने संविधान की रक्षा को इस समय की सबसे बड़ी प्राथमिकता बताया।

 वक्ताओं के विचार:
अली अनवर ने सभी सात मुद्दों का समर्थन करते हुए कहा कि अति पिछड़ा वर्ग अब तक एक संगठित वर्ग के रूप में उभर नहीं पाया है, क्योंकि जातिगत प्राथमिकता के कारण वर्गीय एकता नहीं बन पाई है। उन्होंने संगठित संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया। संजीव चंदन ने पैक्स चुनाव का उदाहरण देते हुए बताया कि जहां आरक्षण नहीं है, वहां पिछड़े, अति पिछड़े, दलित और आदिवासी समुदायों का प्रतिनिधित्व लगभग शून्य है। इसलिए आंदोलन को अब उन क्षेत्रों पर केंद्रित करना चाहिए जहां आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। ललन भक्त ने शिक्षा के निजीकरण पर चिंता जताई और शिक्षा को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का आह्वान किया।अन्य वक्ताओं—प्रो. नागेन्द्र प्रसाद वर्मा, प्रो. कामेश्वर पंडित, ई. अजय कुमार आज़ाद, सुरेश शर्मा, प्रो. अनिल कुमार सहनी, डॉ. बिनोद पाल, कर्नल डॉ. ज़ेड अंसारी, प्रभुनाथ ठाकुर और प्रत्युष—ने मिलकर सुझाव दिया कि अति पिछड़ा वर्ग समाज के अन्य शोषित वर्गों के साथ मिलकर आंदोलन को नए नेतृत्व में आगे ले जाए। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन ललन भक्त द्वारा किया गया।

राष्ट्रीय अति पिछड़ा संघर्ष मोर्चा का प्रस्ताव
मंडल आयोग की रिपोर्ट के पेश होने और उसकी कुछ सिफारिशों के लागू होने के दशकों बाद सामाजिक न्याय के एजेंडे की क्या स्थिति है? बेशक, इसके ज़्यादातर एजेंडे आधे-अधूरे हैं। एक ओर वर्चस्ववादी ताकतों द्वारा इस पर हमले बढ़े हैं, वहीं कुछ नई बहसों ने ज़ोर पकड़ा है। जाति जनगणना, आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा में वृद्धि और निजी क्षेत्र में विस्तार तथा राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर उपवर्गीकरण जैसे मुद्दों ने नया आवेग पकड़ा है।

बिहार की जाति आधारित गणना से यह उद्घाटित हुआ कि अति पिछड़ा वर्ग आबादी का सबसे बड़ा तबका है और वास्तव में यह “किंगमेकर” नहीं, बल्कि “किंग” बनने की राह पर निकल पड़ा है।
सामाजिक न्याय की वैचारिकी एवं उन्हें धरातल पर उतारने का कार्य हमारे पूर्वजों — जैसे महात्मा बुद्ध, कबीर, रैदास, नानक, महात्मा फुले, डॉ. भीमराव अंबेडकर, पेरियार, जननायक कर्पूरी ठाकुर एवं जगदेव प्रसाद आदि महापुरुषों — ने भरपूर किया था। उनका बहुत सारा परिणाम समाज को मिला भी, तो दूसरी ओर वर्चस्ववादी (मनुवादी) ताकतें इस आंदोलन को ख़त्म या कमज़ोर करने की हमेशा कोशिश और साज़िश करती रही हैं। अतः हम बहुजनों का कर्तव्य है कि सामाजिक न्याय आंदोलन को मज़बूत करें।
अभी सामाजिक न्याय आंदोलन जाति, धर्म एवं क्षणिक लाभ व स्वार्थ के चलते मंद पड़ गया है। हम जाति और धर्म से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं। सामाजिक न्याय को शत-प्रतिशत ज़मीन पर उतारने के लिए हमें एक शोषित-वंचित वर्ग के रूप में संगठित होना होगा, क्योंकि हम सब एक ही तरह की शोषक व्यवस्था से ग्रस्त हैं।सामाजिक न्याय आंदोलन को अभी सिर्फ आरक्षण तक ही सीमित कर दिया गया है।

इस आंदोलन का उद्देश्य यह होना चाहिए कि भारत के सभी नागरिकों में समानता, बंधुता, स्वतंत्रता एवं न्याय की व्यवस्था कैसे कायम की जाए। सामाजिक न्याय आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए हमें समग्र रूप से निम्न मुद्दों पर अपना आंदोलन खड़ा करना होगा:
जातिविहीन समाज बनाने का संकल्प
एक समान शिक्षा व्यवस्था
एक समान चिकित्सा व्यवस्था
न्याय प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन
शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, पानी, सड़क एवं अन्य जन उपयोगी संस्थाओं के निजीकरण को रोकना
ऐतिहासिक कारणों से पिछड़े गए तबकों को विशेष अवसर देने की प्रतिबद्धता, यथा —
शिक्षा (सरकारी एवं गैरसरकारी),
नौकरी (सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाओं में),
ठेका, पट्टा, लीज एवं अन्य आर्थिक संसाधनों पर जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण

समाज के किसी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, अमीर हो या ग़रीब, यदि वह शोषण या दमन का शिकार हो रहा हो, तो उसके साथ खड़े रहकर मिलकर संघर्ष करना।
चूंकि अति पिछड़ा वर्ग बहुजन समाज का सबसे अधिक आबादी वाला वर्ग है, इसलिए इस वर्ग का दायित्व है कि समाज के सभी वंचित वर्गों का साथ लेकर इस आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे। दूसरी तरफ, इस आंदोलन की सफलता का सबसे अधिक लाभ इसी वर्ग को होगा। इसलिए हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम इस आंदोलन में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभाएं। अब तक इस आंदोलन में अति पिछड़ा वर्ग की भूमिका सहयोगी के रूप में रही है।

इतिहास गवाह है कि इस वर्ग से आए अनेकों महापुरुषों ने सामाजिक न्याय एवं वैचारिक आंदोलन को न्यायप्रिय ढंग से मज़बूती प्रदान की थी। उन्होंने सामाजिक न्याय की वैचारिकी को उच्चतम शिखर तक पहुँचाया था। अभी 21वीं सदी में अति पिछड़ा वर्ग में भी संविधान एवं शिक्षा के चलते एक निम्न मध्यम वर्ग पैदा हो गया है। यह वर्ग स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व एवं न्याय के आदर्शों को समझने लगा है। इसलिए इस वर्ग में एक हलचल पैदा हो गई है — वह भी अपना मान-सम्मान खोजने लगा है।

यदि अति पिछड़ा वर्ग के सामाजिक एवं राजनीतिक समझ रखने वाले लोग एकजुट होकर इस आंदोलन में अपनी महती भूमिका निभाते हैं, तो यह आंदोलन निश्चित ही सफल होगा। इसी आशा और विश्वास के साथ इस सेमिनार का आयोजन किया गया है। आप सभी से अनुरोध है कि हज़ारों-हज़ार की संख्या में आकर इस आंदोलन को सफल बनाएं।

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles