हे प्रभु !
दयानिधान,
दया के सागर,
मुझ पर कृपा करें!
विषय: ‘खतरे में अस्तित्व’ के सन्दर्भ में
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं बहुत ही आशा के साथ आपके पास एक प्रार्थना लेकर आया हूँ , भारतीय ज्ञान परंपरा के समय से मैं इस देश का अभिन्न अंग रहा हूँ लेकिन अज्ञानता अथवा अहंकार के वशीभूत आपके कुछ भक्तलोग मुझे ‘देश-निकाला’ देने का उपक्रम आरम्भ कर चुके हैं। अत: मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ कि इसी देश की उत्पति होकर भी, मुझ पर विदेशी होने का आरोप लगाया जा रहा है, मुझे हिकारत की नज़रों से देखा जा रहा है ।आपको बताते हुए अत्यंत कष्ट हो रहा है कि आज मेरा अस्तित्व खतरे में है। जी जानता हूँ , अस्तित्व तो बहुत लोगों का खतरे में है, लेकिन मैं अपनी बात कहता हूँ कि मेरा दोष क्या है ? मुझ निर्दोष को बचा लिया गया तो इसमें आपका भी लाभ ही है क्योंकि ‘मैं’ नहीं रहा तो आपके ‘भक्त’ लोग भूखों मर जाएंगे। क्योंकि जो ‘छप्पन भोग पकवान’आपको अर्पित किये जाते हैं प्रसाद स्वरुप को आपके भक्त ही ग्रहण करते हैं ना । पाककला ने तो हमेशा से ‘भारतीय रसोईघर’ की कलात्मकता में बढ़ोत्तरी ही की है फिर ये देश निकाला की सज़ा क्यों?
अब मैं आपको अपना परिचय देता हूँ, जी मैं हूँ ‘पाक’ भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग । आपसे क्या ही छिपा है कि भारत की ‘पाक विरासत’ हज़ारो वर्ष पुरानी है इसे आप भारतीय संस्कृति की वेबसाइट पर जाकर पुख्ता कर सकते हैं जहाँ पाकशास्त्र के कई महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त हो सकेगे । मेरे कई जोड़ीदार जो मुझसे भारतीय ज्ञान परंपरा के समय से जुड़े हुए हैं, अब मुझसे बिछड़ने का सोच कर भी हैरान परेशान है। जी कला, शास्त्र,और शाला तीनों स्तब्ध हैं कि इतने वर्षों का साथ एक अज्ञान के कारण झटके में कैसे छूट सकता है! उन्होंने जब से खबर सुनी कि मेरे नाम ‘पाक’ पर झाड़ू फेर कर कुछ श्रीशास्त्री (पाकशास्त्री) वहाँ पर ‘श्री’ को स्थापित कर रहे हैं, वह भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम पर? रो-रो कर उनका बुरा हाल है । जी, आपकी जानकारी हेतु मैं बता देना चाहता हूँ कि एक खबर के अनुसार जयपुर शहर की मिठाइयों के नाम से दुकानदारों ने ‘पाक’ शब्द हटाया। ‘मोती पाक बना अब मोती श्री’ दुकानों पर मोती पाक, आम पाक, गोंद पाक, मैसूर पाक, जैसे नाम लिखे होते थे वहीं अब कई शॉप्स में बदलाव किया जा रहा है, मोती श्री आम श्री गोंदश्री मैसूर श्री नाम दिए जा रहे हैं। आप ही बताएं कि क्या यह विडंबनापूर्ण ( बल्कि हास्यास्पद या बचकाना) नहीं कि मीडिया इसे ऑपरेशन सिंदूर का असर बता रही हैं। बतलाइए (तथाकथित)’युद्ध’ जीतने के बाद लोग मिठाईयाँ खाएंगे या मिठाइयाँ पढ़ेंगे ? कृपया इसका संज्ञान अवश्य लें कि मीडिया ने इस प्रकार का भ्रम क्यों फैलाया।
आशा करता हूँ कि मेरे इस हृदय विदारक कष्ट को समझते हुए आप अब यह कहकर मुझे फुसलाने की कोशिश नहीं करेगें कि छोड़ो भई ‘नाम में क्या रखा है’ वैसे अगर आप कहेंगे भी तो कौन ही रोक सकता है आपको? लेकिन ‘नाम में क्या रखा है?’ यह तो किसी अंग्रेज का कहना था ना! वह क्या जाने भारत में ‘नाम-नाम’ की महिमा यहाँ तो नाम, उपनाम, जाति, उपजाति, और धर्म सभी मायने रखते हैं। प्रभु आप तो विश्व गुरु हैं और अधिकतर विश्व भ्रमण में इतने व्यस्त रहते हैं, कहाँ ही याद रहती होंगी हम जैसो की छोटी-छोटी बातें। तो मैं आपको पुन: याद दिलाने का प्रयास करता हूँ कि मैं ‘पाक’ पूर्णतया शुद्ध भारतीय हूँ यहीं मेरा जन्म हुआ यही मेरा जन्मस्थल है। मैं म्लेच्छ कदापि नहीं हूं। संस्कृत में विद्यमान ‘पाक’ शब्द पच् धातु से बना है, पच् धातु का अर्थ है, पकाना या सिद्ध करना इसी से ‘पाक’ शब्द बना है जिसका अर्थ है पकाने की क्रिया या भोजन संस्कृत में पच् धातु से कई शब्द बने जिसमें पाक, पाचन , पक्का आदि शामिल है। मैं आपको विशवास दिलाता हूँ कि पड़ोसी देश से मेरा कुछ लेना देना नहीं मुझे फँसाया जा रहा है। इसी कारण ‘पाक’ से जुड़ा हमारा भरा-पूरा परिवार भी खतरे में है जैसे कि ‘पकवान’ ये भी तो हमारे ही परिवार का है। कम से कम पकवानों के सांस्कृतिक महत्त्व को समझते हुए तो आपको एक बार पुनर्विचार करना ही होगा अन्यथा ‘छप्पनभोग के अंतर्गत सभी ‘पकवान’ भी हवा हो जाएंगे ?

हे ईश्वर! आपकी सत्ता को प्रणाम करते हुए ये सभी ‘पकवान’ भी आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि हमारा बहिष्कार न किया जाए। आप ही भूखे रहेंगे तो भक्तगण को तो कहने का मौका ही मिल जाएगा ‘भूखे भजन न होय गोपाला’ और ये पकवान न रहेंगे तो क्या आपको कच्ची रसोई का भोग लगाया जाएगा प्रभु! हे दया के सागर आखिर आपके भक्त इतनी मूर्खता कैसे कर सकते हैं कि प्राचीन ज्ञान परंपरा के अंतर्गत आने वाले ‘पाकशास्त्र’ जैसा ज्ञान का पेटेंट बैठे-बिठाए अपने पड़ोसी के नाम से जोड़ दिया, मने काहे को दुश्मन के आगे सरेंडर कर दिया।
हम जानते हैं कि बहिष्कार, बायकॉट या बैन आपके भक्तों की आदत बन चुकी है लेकिन किसी की ख़राब आदत का भुगतान पाकशास्त्र क्यों भुगते ? ‘पाकशास्त्र’ तो भोजन बनाने या पकाने की कला और विज्ञान है लेकिन आस्था के पुजारी ये भक्त तो विज्ञान और तर्क से कोसों दूर भागते हैं । और हाँ, “पाकशास्त्र” वो तो 1947 की देन तो नहीं है! इसलिए कह रहा हूँ , प्रभुता और सत्ता का सही उपयोग करते हुए अखंडता के नाम पर मेरी इतनी प्राचीन परंपरा और अस्तित्व को खंडित न होने दें। जानता हूँ, कोई सुनने वाला नहीं पर आस्था के युग में आपसे आशा लगाए बैठा हूँ कि मेरे पाक नाम का अनर्थ न किया जाये। हां,अगर ‘श्री’ लगाने भर से हम ‘पकवानों’ को नकली खोये,केमिकल्स या जहरीले रंगों से अगर छुटकारा मिलने वाला है तो मन मारकर नए नाम की मंजूरी के लिए मेरे जोड़ीदार तैयार हैं।
पुनश्च: वैसे कुछ 5 -6 सालों पहले भी इस तरह की कोशिश हुई थी एक खाद्य प्रेमी ने ट्वीट किया और कहा कि कर्नाटक की मुख्य मिठाई ‘मैसूर पाक’ का नाम बदलकर ‘मैसूर इंडिया’ कर दो लेकिन तब तक रौशनी थोड़ी बाकी थी शायद इसलिए उनको ट्रोल करते हुए लताड़ा गया कि मिठाई में ‘पाक’ शब्द कन्नड़ शब्द ‘पाका’ से संबंधित है जिसका अर्थ ‘चीनी की चाशनी होता है’ न कि पाकिस्तान देश से इसका कोई संबंध है। तब बहस रुक गई थी। लेकिन अब स्थितियाँ जटिल हैं कुछ (पाकशास्त्री) हलवाई स्वयं आगे आ गए हैं। आशा करता हूँ कि इस सन्दर्भ में कुछ कार्यवाई कर मुझ पर अवश्य कृपा करेंगे।
धन्यवाद
सादर
आपका ही “अपना”
स्वीट-स्ट्राइक में शहीद होने की प्रक्रिया में
‘कला’, ‘शास्त्र’ और ‘शाला’ का गाढ़ा मित्रसभी चित्र साभार गूगल
शिवानी सिद्धि
स्वतंत्र लेखिका