महिला आरक्षण को लेकर संसद में बहस :पहली क़िस्त

महिला आरक्षण को लेकर संसद के दोनो सदनों में कई बार प्रस्ताव लाये गये. 1996 से 2016 तक, 20 सालों में महिला आरक्षण बिल पास होना संभव नहीं हो पाया है. एक बार तो यह राज्यसभा में पास भी हो गया, लेकिन लोकसभा में नहीं हो सका. सदन के पटल पर बिल की प्रतियां फाड़ी गई, इस या उस प्रकार से बिल रोका गया. संसद के दोनो सदनों में इस बिल को लेकर हुई बहसों को हम स्त्रीकाल के पाठकों के लिए क्रमशः प्रकाशित करेंगे. पहली क़िस्त  में  संयुक्त  मोर्चा सरकार  के  द्वारा  1996 में   पहली बार प्रस्तुत  विधेयक  के  दौरान  हुई  बहस . पहली ही  बहस  से  संसद  में  विधेयक  की  प्रतियां  छीने  जाने  , फाड़े  जाने  की  शुरुआत  हो  गई थी . इसके  तुरत  बाद  1997 में  शरद  यादव  ने  ‘कोटा  विद  इन  कोटा’  की   सबसे  खराब  पैरवी  की . उन्होंने  कहा  कि ‘ क्या  आपको  लगता  है  कि ये  पर -कटी , बाल -कटी  महिलायें  हमारी  महिलाओं  की  बात  कर  सकेंगी ! ‘ हालांकि  पहली   ही  बार  उमा भारती  ने  इस  स्टैंड  की  बेहतरीन  पैरवी  की  थी.  अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद पूजा सिंह और श्रीप्रकाश ने किया है. 
संपादक

11वीं लोकसभा की बहस, सत्र 2 (बजट)
गुरुवार, 12 सितंबर 1996
बहस का प्रकार: सरकारी विधेयक की प्रस्तुति
शीर्षक : संविधान (81वां संशोधन) विधेयक, 1996

पीठासीन अध्यक्ष : डॉ. के पी रामालिंगम, कृपया सुनिए. मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री का यह कहना सही है कि हमारे पास और कुछ निपटाने को नहीं है.  यह विधेयक पारित करना है. उ.प्र. का बजट पारित करना है. पत्रकार विधेयक पारित करना है. जाहिर है समय की कमी है लेकिन प्रधानमंत्री आज इस विधेयक को पेश करने पर सहमत हैं और इसे बिना चर्चा के पारित करना चाहते हैं. मुझे भी लगता है कि सदन की भावना यही है कि इस विधेयक को आज ही पारित कर दिया जाए. यह बहुत ऐतिहासिक निर्णय होने जा रहा है.

डॉ. मुरली मनोहर जोशी (इलाहाबाद) : समूचा सदन आपके साथ है. आप नियमों को शिथिल कर सकते हैं
श्री एस बंगारप्पा (शिमोगा): अध्यक्ष मोहदय, मैं एक बात पर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं. हम विधेयक की विषयवस्तु के खिलाफ नहीं जा रहे. विधेयक को पेश किया जाना चाहिए और बिना चर्चा के सर्वसम्मति से पारित भी. मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं, लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूं. इन तमाम चीजों से गुजरने के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था होगी. मुझे यह बात समझ नहीं आ रही. आखिर राज्यसभा में आरक्षण का क्या होगा ?

श्रीमती सुषमा स्वराज (दक्षिणी दिल्ली):  यह बिल आप पारित कीजिए.

श्री सोमनाथ चटर्जी (बोलपुर): श्री एस बंगारप्पा, आपकी बात सुन ली गई है. कृपया विधेयक को पास होने दें. मुझे लगता है कि यह सदन विधेयक को पारित करने को लेकर प्रतिबद्घ है.

18 जुलाई ,2016 को जंतर मंतर, नई दिल्ली ,पर महिला आरक्षण की मांग करते महिला कार्यकर्ता

पीठासीन अध्यक्ष : कृपया औरों को भी सुनें.

श्री एस बंगारप्पा: अध्यक्ष महोदय, आप मेरी बात क्यों नहीं सुन रहे ? मैं यह बात समझ नहीं पा रहा हूं. मैं केवल एक बात कहना चाहता हूं. मैं निवेदन करना चाहता हूं. मैं एक बात एकदम स्पष्ट  करना चाहता हूं.

पीठासीन अध्यक्ष : श्री सारपोतदार, मैं आपको बाद में बुलाऊंगा. अभी कृपया बैठ जाइए.

श्री एस बंगारप्पा: मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं. मैं इस विधेयक का पूर्ण समर्थन करता हूं. कि ना किसी चर्चा के हम इस विधेयक को पास करेंगे. मैं महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व प्रदान करने के पक्ष में हूं. मुझे बात समझ में आ रही है. मैं खुले दिल से इसका समर्थन करता हूं, लेकिन इकलौती चिंतित करने वाली बात यह है कि इस विधेयक में राज्य सभा में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है. न ही विधान परिषद और संघ लोक सेवा आयोग व राज्य लोक सेवा में उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है. ये सभी संवैधानिक संस्थान हैं. आपको यह बात क्यों नहीं नजर आती ? यह बात खुद आपके हित में कही जा रही है और आप मेरी बात नहीं सुन रही हैं ? महिलाओं का राज्य सभा, राज्य विधान परिषद, संघ लोक सेवा आयोग और राज्यों के लोक सेवा आयोग में भी आरक्षण दिया जाए. अगर सरकार इसे लेकर कोई आश्वासन देती है तो मैं बहुत खुश होऊंगा. ऐसा करने से उद्देश्य पूर्ति हो जाएगी.

कुमारी उमा भारती (खजुराहो) : अध्यक्ष जी, इसके बाद मुझे एक बहुत जरूरी बात कहनी है.

श्री मधुकर सारपोतदारकर (मुंबई उत्तर-पूर्व): आदरणीय अध्यक्ष मोहदय, मेरी एकमात्र जिज्ञासा यह है कि क्या इस विधेयक के प्रावधान समूचे देश में बिना किसी अपवाद के लागू किए जाएंगे? यह मेरा पहला सवाल है.
दूसरा, इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को लेकर चाहे जो प्रावधान हों क्या इसमें उन दलों के लिए कोई व्यवस्था है, जो चुनावों में महिला प्रत्याशी नहीं उतारते ? अगर ऐसा नहीं है तो फिर विशेष प्रावधान बनाने की आवश्यकता ही क्या है ? यह मेरा दूसरा प्रश्न है. तीसरी बात, मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या आप देश के किसी राज्य को कोई रियायत देने जा रहे हैं ? अगर ऐसी कोई रियायत दी जा रही है तो ऐसा नहीं होना चाहिए और यह प्रावधान देश भर के सभी राज्यों पर लागू होना चाहिए. इन खास मुद्दों पर अगर प्रधानमंत्री आगे आकर कुछ स्पष्ट करना चाहते हैं तो हमें कोई दिक्कत नहीं है. मैं यही कहना चाहता था.

श्रीमती सुषमा स्वराज ( दक्षिण दिल्ली) : अध्यक्ष जी, यह अवरोध करने का नया तरीका है.

श्री पीसी चाको (मुकुंदपुरम): महोदय, आपने प्रश्न काल को निलंबित कर दिया और हम इस कानून को सर्वसम्मति से ग्रहण करने जा रहे हैं, क्योंकि आपने कहा है कि हम इस कानून को बिना किसी चर्चा के पारित करने जा रहे हैं. मुझे इजाजत दी जाए कि मैं एक मिनट में अपनी बात रख सकूं.  इस कानून को पढऩे के बाद मुझे लगा कि यह पर्याप्त प्रगतिशील नहीं है. मैं इसे पुरातनपंथी कानून नहीं कहना चाहता,  लेकिन मेरे केरल में 51.5 प्रतिशत आबादी स्त्रियों की है. मुझे नहीं पता कि स्त्री सदस्यों में से कितनी 30 प्रतिशत आरक्षण से संतुष्ट हैं.  मैं अपना विचार महिलाओं के पक्ष में ही जता रहा हूं…. मैं चाहता हूं कि आप एक मिनट के लिए मेरी बात सुनें. केरल में महिलाओं की आबादी 51.5 प्रतिशत है. ऐेसे  में उनको 51.5 प्रतिशत आरक्षण देना ही ठीक होगा. ऐसा करने से ही महिला उम्मीदवारों के साथ न्याय हो सकेगा.


पीठासीन अध्यक्ष : ठीक है. आपने अपनी बात कह दी. अगर हम इसी प्रकार आगे बढ़ते रहे तो यह बहस समाप्त नहीं होगी.

18 जुलाई ,2016 को जंतर मंतर, नई दिल्ली,पर महिला संगठन का प्रदर्शन

कुमारी उमा भारती: मैं प्रधानमंत्री से कुछ कह रही हूं… (अवरोध)
अध्यक्ष महोदय: नीतीश जी कृपया बैठ जाइए. मुद्दा मत उछालिए.

कुमारी उमा भारती: अध्यक्ष महोदय, मैं प्रधानमंत्री से कुछ कह रही हूं. प्रधानमंत्री जी, क्या आप मुझे सुनेंगे ?  मैं जानना चाहती हूं कि इस आरक्षण में क्या अनुसूचित जाति एवं जनजाति की महिलाओं के लिए भी आरक्षण होगा ?  मेरी मांग है कि पंचायती राज व्यवस्था के तर्ज पर पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए भी आरक्षण होना चाहिए. इस बात को विधेयक में शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि पिछड़ा वर्ग की महिलाएं भी पीडि़त हैं.  उनको कुछ नहीं मिलता है. उनको न घर में कोई सम्मान मिलता है न बाहर कोई सुविधा. ऐसे में आपके जरिए प्रधानमंत्री से मेरी मांग है कि यदि वह सहमत हों तो सदन के समक्ष यह वादा करें कि इस पर विचार करेंगे. जब आप अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण पर विचार करें तो कृपया पिछड़ा वर्ग के आरक्षण पर भी विचार करें.
पीठासीन अध्यक्ष : ठीक है..


श्री ई अहमद: महोदय हम महिलाओं के आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं लेकिन मैं सदन के समक्ष एक बात कहना चाहूंगा.  यह बहुत महत्त्वपूर्ण दिन है जब हम एक ऐतिहासिक कानून बनाने जा रहे हैं. लेकिन ऐसा कानून ऐसे नहीं बनाया जा सकता है, मानो डोसा बनाया जा रहा हो. हमें इस मसले पर चर्चा करनी होगी. विधेयक में कुछ कमियां भी हैं (बाधा) … मुझे बोलने की इजाजत दी जाए (बाधा)… इस बार भी ये लोग ऐसा ही कर रहे हैं. मुझे बोलने का मौका मिलना चाहिए (बाधा) … आपने मुझे बोलने की इजाजत दी है मुझे अपनी बात रखने का अधिकार है.

पीठासीन अध्यक्ष : हां, मेरी तरफ से आपको इजाजत है. मुझे पता नहीं अनावश्यक रूप से इतना शोर क्यों मचाया जा रहा है.(बाधा)

कुमारी उमा भारती: महोदय, कृपया प्रधानमंत्री से उत्तर देने को कहें… (बाधा)… यह बहुत महत्वपूर्ण विधेयक है. (बाधा)

पीठासीन अध्यक्ष : ममता जी, आप दूसरों को मौका क्यों नहीं दे रही हैं ? उन्हें अपनी बात कहने दीजिए.

श्री ई अहमद: महोदय हम आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं. यह दिया जाना चाहिए लेकिन प्रश्न यह है कि यह कैसे और किस तरीके से दिया जाए ? राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषद की बात करें तो अब तक क्या प्रावधान किए गए हैं ? क्या इनका निर्णय सदन में होगा ? राज्य सभा का क्या होगा ? सदन को इसका अनुमोदन करना है. यह बहुत अहम विधेयक है. यह विधेयक बिना चर्चा के पारित नहीं हो सकता. हमें इस पर चर्चा करनी होगी. हमें पुरातन विचार वाला नहीं कहा जाना चाहिए. इसलिए मैं कहता हूं कि विधेयक को पारित करने के पहले इस पर चर्चा हो.

महिला आरक्षण

पीठासीन अध्यक्ष : ठीक है मैंने हर किसी को सुन लिया है. हां, प्रधानमंत्री महोदय.
प्रधानमंत्री (श्री एचडी देवेगौड़ा): माननीय अध्यक्ष महोदय, आपकी अनुमति से मैं विधेयक पेश करना चाहूंगा
(बाधा)…
पीठासीन अध्यक्ष : विधेयक पेश होने दीजिए.


श्री एच डी देवेगौड़ा: कृपया मेरी बात सुनिए महोदय, मैं विधेयक पेश करने की इजाजत चाहता हूं ताकि भारतीय संविधान में संशोधन किया जा सके.

प्रधानमंत्री (श्री एच डी देवेगौड़ा): मैं विधेयक पेश करता हूं. विचारार्थ. मैं आप सभी से अनुरोध करूंगा कि हम आज सभी दलों के नेताओं की बैठक बुलाएंगे क्योंकि माननीय सदस्यों द्वारा कुछ अत्यंत अहम मुद्दे उठाए गए हैं. कुमारी उमा भारती ने पिछड़े वर्ग की स्त्रियों के आरक्षण को लेकर एक उपयुक्त प्रश्न किया है (बाधा) इनमें से कुछ को टाला नहीं जा सकता है. इसलिए हम आज ही सभी दलों के नेताओं की बैठक बुला रहे हैं (बाधा)

जस्टिस गुमान मल लोढ़ा : राज्य सभा का क्या ?… (बाधा)


पीठासीन अध्यक्ष : जस्टिल लोढ़ा जी, आप प्रधानमंत्री को क्यों टोक रहे हैं?


श्री एच डी देवेगौड़ा: उसके बाद जो भी निर्णय सभी दलों के नेताओं की बैठक में होग, उसे स्वीकार कर लिया जाएगा (बाधा)
पीठासीन अध्यक्ष : श्री मेहता, कृपया मेरी बात सुनिए. यह संविधान संशोधन है इसलिए विधेयक को मत विभाजन के जरिए पारित करना होगा. यह संवैधानिक अनिवार्यता है इसलिए सारी व्यवस्था करने में कुछ वक्त लगेगा.  दूसरा, प्रधानमंत्री ने सही कहा कि चूंकि कुछ बातें यहां-वहां हो रही हैं इसलिए वांछित यही है कि विधेयक पर विचार शुरू होने के पहले हम सभी दलों के नेताओं की एक बैठक करें. मैं एक घंटे के लिए सदन स्थगित कर रही हूं. सदन दोपहर 12.40 बजे पुन: शुरू होगा.
(बाधा)
पीठासीन अध्यक्ष : दोपहर 12 बजे सभी राजनीतिक दलों के नेता कृपया मेरे कक्ष में आए.

क्रमशः

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ISSN 2394-093X
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