महाश्वेता देवी की जंग का फ़ैसला , 25 साल बाद

महाश्वेता देवी की जंग का फ़ैसला , 25 साल बाद बुधन सबर को इंसापस थाने में टॉर्चर कर मारने वाले पुलिस कर्मी को 8...

नदियों की उदासी का छन्द रचती कविताएँ

  नदियों की उदासी का छन्द रचती कविताएँ नदी हमारी चेतना का अभिन्न अंग है | इतिहास साक्षी है कि मानव सभ्यता और संस्कृति का उत्स...

सिक्स पैक सीता

सिक्स पैक सीता विप्लव रचयिता संघम (विरसम) के दो दिवसीय सम्मेलन में कई किताबों का लोकार्पण हुआ, जिसमें एक किताब के नाम ने अपनी ओर...

पारसनाथ का सम्मेद शिखर,बादशाह अकबर के फ़र्ज़ी फरमान से लेकर आदिवासियों की ज़मीन दबोचने...

'''उसका मन टूट गया । उसके मिट्टी खोदने पर कोयला या अबरख क्यों निकलता है और साथ ही साथ आ पहुंचते हैं अंग्रेज-बंगाली-बिहार लोग...

पारसनाथ! जहां मांस मदिरा खाने वाले कंधे तो मंज़ूर मगर कंधे पर रखा सिर’...

“ जिन कंधों पर यात्री 27 किलोमीटर की यात्रा करते हैं वे कंधे मांस-मदिरा का सेवन करने वाले हमेशा से ही रहे हैं अब उन्हें अब हिंसक नजर आने लगे हैं ।” स्थानीय लोग कह रहे हैं कि उन्हें हमारे कंधे तो चाहिए मगर हमारी संस्कृति, हमारा समाज नहीं चाहिए । ये दर्द एक का नहीं है । घूमने आने वाले स्थानीय पर्यटकों,स्कूली बच्चों को भी अब भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। आरोप तो ये भी लग रहा है कि उनसे सम्मेद शिखर पर धर्म भी पूछा जा रहा है । स्थानीय आदिवासियों और तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के बीच की समरसता खत्म होती नजर आ रही है ।

राहुल की यात्रा क्या राजनीति का स्त्रीकरण कर रही है?

संजीव चंदन महात्मा गांधी ने भारत में पहली बार राजनीति का स्त्रीकरण किया।  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गांधी के 2015 में भारत लौटने से  पहले भी स्त्रियां थीं, लेकिन उनकी संख्या बेहद नगण्य थी और उनमें से ज्यादातर उच्च वर्ग की महिलायें थीं।  ऐसा भी नहीं था कि उच्च वर्ग की इन महिलाओं कोई योगदान नहीं किया अपने बाद की पीढ़ी के लिए राजनीतिक स्पेस तैयार करने में। वे बेहद प्रतिभा सम्पन्न महिलाएं थीं।  उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के पक्ष में प्रयास किये और  महिलाओं का मताधिकार पाने में इन्होने सफलता पायी थी। मताधिकार और चुनाव लड़ने का अधिकार। राजनीति में महिलाओं के लिए व्यापक स्पेस, माहौल बनाने में महात्मा गांधी के राजनीतिक सिद्धांत ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।  गांधी जब भारत में सक्रिय नहीं हुए थे तभी रवींद्रनाथ टैगोर का उपन्यास 1916 में आया था ‘घरे/ बाइयरे’। उपन्यास की नायिका बिमला घर के चौखटे से बाहर आकर स्वदेशी आंदोलन में हिस्सा लेती है। बंगाली महिलाओं ने उपनिवेश विरोधी सशस्त्र आंदोलनों में हिस्सा लिया था, लेकिन बिमला ने अहिंसक प्रतिरोध का रास्ता चुना। राजनीति का अहिंसक वातावरण महिलाओं के अनुकूल होता है। गांधी ने अहिंसा, सत्याग्रह को राजनीतिक मूल्य बनाकर राजनीति को घरेलू  महिलाओं के लिए भी अनुकूल किया। जिसके बाद सामान्य घरों से भी महिलाएं  राजनीति में भागीदार हुईं। घर के चौखटे से बाहर निकलीं।  इसे राजनीति के स्त्रीकरण की तरह देखा गया। लगभग सौ साल बाद फिर से महिलाएं, युवा, बुजुर्ग, हर समूह से राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हैं। यह उस वक्त हो रहा है जब लोकसभा में आज अधिकतम 14 % महिलाएं हैं।।  यह उस वक्त हो रहा है जब लोकसभा में आज अधिकतम 14 % महिलाएं हैं।  कई राज्यों की विधानसभाओं में वह प्रतिशत और भी कम है। यह ऐसे समय में भी हो रहा है जब राजनीति को घिनौना, हिंसक, भ्रष्ट रूप में देखा जा रहा है। इसलिए, महिलाओं के लिए भारत जोड़ो यात्रा में चलने वाले ज्यादातर पुरुषों के साथ शामिल होना महत्वपूर्ण है, हालांकि 30 प्रतिशत महिलाएं इस यात्रा में शामिल बतायी जाती हैं। राहुल गांधी के बारे में जो ख़बरें यात्रा से आ रही हैं या जो तस्वीरें बाहर आ रही हैं, उनका असर भारतीय राजनीति पर व्यापक होने वाला है।  बशर्ते राहुल एक राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ इस दिशा में काम करते हैं।  फिलहाल तो इन तस्वीरों से राजनीतिक स्पेस और भाषा के स्त्रीकरण की दूसरी परिघटना घट रही है भारतीय राजनीति में...

नागरिकता, समता और अधिकार के संघर्ष अभी जारी हैं

आधुनिक भारत के  निर्माण में  आज़ादी से पहले  और आजादी के बाद के तमाम जनांदोलनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इन आंदोलनों में  महिलाओं  की  भागीदारी  और ज्यादा  महत्वपूर्ण  है। साथ...

बहुरिया रामस्वरूप देवी

प्रियंका प्रियदर्शिनी बिहार बलिदान की वह ऐतिहासिक धरती है जिसने जंग-ए-आज़ादी में ईंट का जबाब पत्थर से दिया है। आज़ादी के दीवानों ने गांधी के...

प्रोफ़ेसर रतनलाल की रिहाई!

यह आंबेडकरवाद और एकजुट लड़ाई की जीत है एच. एल. दुसाध  सत्ता का रवैया देखते हुए...

एपवा ने योगी सरकार के खिलाफ राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन

(एपवा) ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को प्रदेश में महिलाओं , बच्चियों , दलितों , आदिवासियों व अल्पसंख्यकों पर हिंसा और भीड़ द्वारा बढती हिंसात्मक घटनाओं को लेकर जिलाधिकारी के माध्यम से ज्ञापन सौंपा. एपवा ने आरोप लगाया कि इन घटनाओं को रोकने में योगी सरकार नाकाम ही नहीं हो रही है बल्कि जो भी लोग इन घटनाओं के खिलाफ बोल रहे है उनके साथ तानाशाही भरा रवैया अपनाते हुए उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है. एपवा ने मांग किया कि बढ़ते दमन और हिंसा की घटनाओं पर तत्काल रोक लगाई जाय. ऐपवा ने पूरे उत्तर प्रदेश में 20 अगस्त को इन मुद्दों पर एक साथ विरोध प्रदर्शन किया.

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