महाश्वेता देवी की जंग का फ़ैसला , 25 साल बाद
महाश्वेता देवी की जंग का फ़ैसला , 25 साल बाद बुधन सबर को इंसापस थाने में टॉर्चर कर मारने वाले पुलिस कर्मी को 8...
पारसनाथ का सम्मेद शिखर,बादशाह अकबर के फ़र्ज़ी फरमान से लेकर आदिवासियों की ज़मीन दबोचने...
'''उसका मन टूट गया । उसके मिट्टी खोदने पर कोयला या अबरख क्यों निकलता है और साथ ही साथ आ पहुंचते हैं अंग्रेज-बंगाली-बिहार लोग...
पारसनाथ! जहां मांस मदिरा खाने वाले कंधे तो मंज़ूर मगर कंधे पर रखा सिर’...
“ जिन कंधों पर यात्री 27 किलोमीटर की यात्रा करते हैं वे कंधे मांस-मदिरा का सेवन करने वाले हमेशा से ही रहे हैं अब उन्हें अब हिंसक नजर आने लगे हैं ।” स्थानीय लोग कह रहे हैं कि उन्हें हमारे कंधे तो चाहिए मगर हमारी संस्कृति, हमारा समाज नहीं चाहिए । ये दर्द एक का नहीं है । घूमने आने वाले स्थानीय पर्यटकों,स्कूली बच्चों को भी अब भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। आरोप तो ये भी लग रहा है कि उनसे सम्मेद शिखर पर धर्म भी पूछा जा रहा है । स्थानीय आदिवासियों और तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के बीच की समरसता खत्म होती नजर आ रही है ।
खरसावां गोलीकांड, जब मशीनगन से भून दिए गए थे एक हजार आदिवासी
खरसावां नरसंहार, देश के इतिहास के पन्नों का वो काला अध्याय है जिसे ग़ैर आदिवासियों द्वारा साज़िशन मिटाने की कोशिश की जाती रही लेकिन झारखंड के निर्माण के लिए दी गई सबसे बड़ी शहादत को कोई भी झारखंडी भूल नहीं सकता ।
छाया कोरेगाँवकर की कविताएं
कविता- छाया कोरेगाँवकर
अनुवाद- हेमलता महिश्वर
‘वह’ मुक्त ‘वह’ मुख़्तार -
‘वह’ सावित्री सत्यवान की,
साक्षात यम का आह्वान करनेवाली;
‘वह’ सावित्री ज्योतिबा की,
स्त्रियों के अस्तित्व को
अस्मिता की...
नागरिकता, समता और अधिकार के संघर्ष अभी जारी हैं
आधुनिक भारत के निर्माण में आज़ादी से पहले और आजादी के बाद के तमाम जनांदोलनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इन आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी और ज्यादा महत्वपूर्ण है। साथ...
एनी अर्नो का काम प्रशंसनीय और उसका स्थायी महत्व
रमण कुमार सिंह
फ्रेंच लेखिका एनी एरनॉक्स को इस वर्ष का साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया है, जिनके बारे में कहा जा रहा है...
बहुरिया रामस्वरूप देवी
प्रियंका प्रियदर्शिनी
बिहार बलिदान की वह ऐतिहासिक धरती है जिसने जंग-ए-आज़ादी में ईंट का जबाब पत्थर से दिया है। आज़ादी के दीवानों ने गांधी के...
एपवा ने योगी सरकार के खिलाफ राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन
(एपवा) ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को प्रदेश में महिलाओं , बच्चियों , दलितों , आदिवासियों व अल्पसंख्यकों पर हिंसा और भीड़ द्वारा बढती हिंसात्मक घटनाओं को लेकर जिलाधिकारी के माध्यम से ज्ञापन सौंपा.
एपवा ने आरोप लगाया कि इन घटनाओं को रोकने में योगी सरकार नाकाम ही नहीं हो रही है बल्कि जो भी लोग इन घटनाओं के खिलाफ बोल रहे है उनके साथ तानाशाही भरा रवैया अपनाते हुए उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है. एपवा ने मांग किया कि बढ़ते दमन और हिंसा की घटनाओं पर तत्काल रोक लगाई जाय. ऐपवा ने पूरे उत्तर प्रदेश में 20 अगस्त को इन मुद्दों पर एक साथ विरोध प्रदर्शन किया.
बीबीसी में जातिगत भेदभाव (आरोप)
"आप ही मीना हो?"
"हां, क्यों क्या हुआ?"
"नहीं कुछ नहीं, बस ऐसे ही."
"आपने इस तरह अचानक पूछा..? आप बताइए न किसी ने कुछ कहा क्या?"
"नहीं, नहीं कुछ ख़ास नहीं."
(थोड़ी देर बात कर उन्हें विश्वास में लेने के बाद)
"बताइए न मैं किसी को नहीं बताऊंगी."
"मुझसे किसी ने कहा था कि अब तो आपके लोग भी हमारे साथ बैठ कर काम करेंगे."
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यह सुन मैं थोड़ी देर शांत बैठ गई. मैंने उनसे जब पूछा कि आपको ये किसने कहा तो उन्होंने बताने से मना कर दिया.
बीबीसी में मेरी नौकरी करने के ऊपर की गई यह टिप्पणी किसने बताई, मैं उनका नाम जगजाहिर नहीं करना चाहती क्योंकि मैं नहीं चाहती मेरी वज़ह से किसी की नौकरी ख़तरे में पड़ जाए. लेकिन बताना चाहूंगी वो व्यक्ति दलित समुदाय से आते हैं और वे पत्रकार नहीं हैं. वो बीबीसी के दफ़्तर में एक साधारण कर्मी हैं.