स्त्री -पुरुष समानता के अग्रदूत डा.आम्बेडकर
अनंत
अनंत स्वतंत्र पत्रकार एवं शोधार्थी हैं. fanishwarnathrenu.com का संचालन एवं संपादन करते हैं. संपर्क newface.2011@rediffmail.com और 09304734694
डा. आम्बेडकर दलितों -पिछड़ों के मुक्तिदाता...
महाराणा प्रताप भील थे,राजपूत नहीं: बताने वाली लेखिका असुरक्षित, मिल रही धमकियां
स्त्रीकाल डेस्क
राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य और दलित लेखिका डॉ. कुसुम मेघवाल द्वारा महाराणा प्रताप पर लिखी किताब पर विवाद बढ़ता जा रहा...
90 प्रतिशत ग्रामीण अब्राह्मणों को भूल जाना पतन का कारण : डा. आंबेडकर
बाबा साहब डा. आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर उनका एक जरूरी व्याख्यान
"मित्रों ,जहाँ तक मैंने अध्ययन किया है , मैं कह सकता हूँ कि...
सत्ता में भारतीय महिलाओं की उपस्थिति: सामर्थ्य, सीमाएँ एवं संभावनाएँ
अन्तरराष्ट्रीय मंचो पर महिला प्रश्न पर चली आ रही बहस और आन्दोलन का अपना एक लम्बा इतिहास रहा है। पूरे विश्व में विधायिकाओं में सिर्फ 10.5 प्रतिशत महिलाएँ हैं और मंत्री पद पर सिर्फ 6 प्रतिशत महिलाएँ है। हमारे देश की स्थिति हमारे पड़ोसी देशों से भी बदतर है। हमारे देश में भी महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण का प्रश्न अचानक ही उत्पन्न नहीं हुआ। 1947 में महिलाओं की स्थिति के संबंध में तैयार हुई रिपोर्ट में एक पूरा अध्याय ही महिलाओं की राजनीतिक स्थिति के बारे में था और इसमें विशेष रूप से इस बात का उल्लेख किया गया था कि महिलाओं की खराब स्थिति के लिए उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के साथ ही उनकी राजनीतिक स्थिति भी जिम्मेदार है और इससे उबरने के लिए विधायक निकायों में आरक्षण के बारे में कहा गया था.
बिहार की सावित्रीबाई फुले कुन्ती देवी की कहानी
इस किताब में कुन्ती देवी-केशव दयाल मेहता की पुत्री पुष्पा कुमारी मेहता ने अपने माता-पिता की जीवनचर्या के बहाने भारत के निर्माण की जटिल प्रक्रिया को अनायास तरीके से दर्ज किया है. यह एक ऐसी कहानी है, जो अपनी ओर से कुछ भी आरोपित नहीं करती
हम क्रूर और कामातुर पूर्वजों की संतानें हैं:क्रूरता की विरासत वाले देश में विधवाओं...
किन्तु, एक बार मैंने भी यह बात एक हिंदू के मुंह से सुनी थी। उसने खुलकर कहा था-‘हम अपनी पत्नियों को अक्सर इसलिए, दुःखी रखते हैं, क्योंकि हमें यह डर रहता है कि कहीं वे हमें जहर न दे दें। इसलिए हमारे ज्ञानी पुरखों ने विधवाओं को भयानक रूप से दंडनीय बनाया था, ताकि कोई भी स्त्री जहर देने का साहस न कर सके।’
सामाजिक परिवर्तन के अगुआ शाहूजी महाराज
ललिता धारा
आम्बेडकर कालेज आॅफ कामर्स एण्ड इकानामिक्स, पुणे के गणित व सांख्यिकी विभाग की अध्यक्ष और संस्थान की उपप्राचार्या. ‘फुलेज एण्ड वीमेन्स क्वश्चन...
‘राष्ट्रवादी’ इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल: एक स्त्रीवादी अवलोकन
रतन लाल
एसोसिएट प्रोफेसर हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, 'रोहित के बहाने' सहित 5 किताबें प्रकाशित.संपर्क : 9818426159
राष्ट्रवादी आंदोलन और राष्ट्रवादी इतिहास लेखन के दौर...
अतीत और वर्तमान को समझने की दिशा में एक प्रयास : रोमिला थापर के...
" 1961 में ‘अशोका एंड द डिक्लाइन ऑफ द मौर्यास’ (अशोक और मौर्यों का पतन) के प्रकाशन के साथ ही, रोमिला थापर प्राचीन भारत...
इतिहास से अदृश्य स्त्रियाँ
कुसुम त्रिपाठी
स्त्रीवादी आलोचक. एक दर्जन से अधिक किताबेंप्रकाशित हैं , जिनमें ' औरत इतिहास रचा है तुमने',' स्त्री संघर्ष के सौवर्ष ' आदि चर्चित...