एक बहुजन नेत्री की संभावनाएं : मनीषा बांगर
इर्शादुल हक़
मायावती को कांशी राम ने अवसर दिया तो उन्होंने अपनी लीडरशिप साबित करके दिखाई. वह...
चुनाव आयोग से महिला संगठनों ने जेंडर आधारित टिप्पणियों पर की कार्रवाई की मांग
हम सभी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्षों से अनुरोध करते हैं कि वे अपने उम्मीदवारों को अपने भाषणों और सभाओं में ऐसी असंसदीय भाषा का उपयोग करने से परहेज करने की सलाह दें। अपने विरोधियों की माँ को गालियाँ उम्मीदवार, पार्टी की छवि के खिलाफ तो है ही वे हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए एक बहुत बुरा उदाहरण पेश करती हैं।
आरएसएस की विचारधारा विभाजनकारी और फासीवादी: डी. राजा
यह सिर्फ वाम के लिए चुनौतीपूर्ण समय नहीं है, अपितु यह लोगों के लिए और संपूर्ण देश के लिए ही चुनौतीपूर्ण है क्योंकि दक्षिणपंथी ताकतों ने राजनीतिक सत्ता हथिया ली है। भाजपा उस आरएसएस की राजनीतिक भुजा है जिसकी विचारधारा विभाजनकारी, सांप्रदायिक, कट्टरतावादी और फासीवादी है। वे अपने कार्यक्रम को आक्रमणकारी ढंग से लादने की कोशिश करते हैं। यह संविधान और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक खतरा पेश करता है। इसका लक्ष्य है - दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर होने वाली भीड़ की हिंसा और हमलों को बढ़ावा देना। अगर कोई सरकार पर सवाल उठाता है या इसकी नीतियों की आलोचना करता है तो उस पर राष्ट्र विरोधी और अर्बन नक्सली होने का ठप्पा लगा दिया जाता है।
महिला विरोधी बयान और मर्दवादी राजनीति
ये कहना गलत नहीं होगा क़ि पिछले पांच साल में शीर्ष से "मिसोजिनि" या स्त्री विरोधी संस्कृति मुख्यधारा का स्वीकृत हिस्सा बन चुकी है, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा किसी और प्रधानमंत्री की ऐसी जबान कभी नहीं थी जब विपक्ष की सबसे बड़ी नेता जो महिला हैं उनका जिक्र तमाम मंचों से उन्होंने शालीनता की हद से बाहर जाकर किया
राहुल की यात्रा क्या राजनीति का स्त्रीकरण कर रही है?
संजीव चंदन
महात्मा गांधी ने भारत में पहली बार राजनीति का स्त्रीकरण किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गांधी के 2015 में भारत लौटने से पहले भी स्त्रियां थीं, लेकिन उनकी संख्या बेहद नगण्य थी और उनमें से ज्यादातर उच्च वर्ग की महिलायें थीं। ऐसा भी नहीं था कि उच्च वर्ग की इन महिलाओं कोई योगदान नहीं किया अपने बाद की पीढ़ी के लिए राजनीतिक स्पेस तैयार करने में। वे बेहद प्रतिभा सम्पन्न महिलाएं थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के पक्ष में प्रयास किये और महिलाओं का मताधिकार पाने में इन्होने सफलता पायी थी। मताधिकार और चुनाव लड़ने का अधिकार।
राजनीति में महिलाओं के लिए व्यापक स्पेस, माहौल बनाने में महात्मा गांधी के राजनीतिक सिद्धांत ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। गांधी जब भारत में सक्रिय नहीं हुए थे तभी रवींद्रनाथ टैगोर का उपन्यास 1916 में आया था ‘घरे/ बाइयरे’।
उपन्यास की नायिका बिमला घर के चौखटे से बाहर आकर स्वदेशी आंदोलन में हिस्सा लेती है। बंगाली महिलाओं ने उपनिवेश विरोधी सशस्त्र आंदोलनों में हिस्सा लिया था, लेकिन बिमला ने अहिंसक प्रतिरोध का रास्ता चुना। राजनीति का अहिंसक वातावरण महिलाओं के अनुकूल होता है। गांधी ने अहिंसा, सत्याग्रह को राजनीतिक मूल्य बनाकर राजनीति को घरेलू महिलाओं के लिए भी अनुकूल किया। जिसके बाद सामान्य घरों से भी महिलाएं राजनीति में भागीदार हुईं। घर के चौखटे से बाहर निकलीं। इसे राजनीति के स्त्रीकरण की तरह देखा गया।
लगभग सौ साल बाद फिर से महिलाएं, युवा, बुजुर्ग, हर समूह से राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हैं। यह उस वक्त हो रहा है जब लोकसभा में आज अधिकतम 14 % महिलाएं हैं।। यह उस वक्त हो रहा है जब लोकसभा में आज अधिकतम 14 % महिलाएं हैं। कई राज्यों की विधानसभाओं में वह प्रतिशत और भी कम है। यह ऐसे समय में भी हो रहा है जब राजनीति को घिनौना, हिंसक, भ्रष्ट रूप में देखा जा रहा है। इसलिए, महिलाओं के लिए भारत जोड़ो यात्रा में चलने वाले ज्यादातर पुरुषों के साथ शामिल होना महत्वपूर्ण है, हालांकि 30 प्रतिशत महिलाएं इस यात्रा में शामिल बतायी जाती हैं।
राहुल गांधी के बारे में जो ख़बरें यात्रा से आ रही हैं या जो तस्वीरें बाहर आ रही हैं, उनका असर भारतीय राजनीति पर व्यापक होने वाला है। बशर्ते राहुल एक राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ इस दिशा में काम करते हैं। फिलहाल तो इन तस्वीरों से राजनीतिक स्पेस और भाषा के स्त्रीकरण की दूसरी परिघटना घट रही है भारतीय राजनीति में...
बेगूसराय की बिसात पर किसकी होगी शह और किसकी होगी मात?
वहाँ यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि भूमिहार मतदाता ने अपना मत तय कर लिया है और उनका वोट थोक में भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह को मिलेगा। मेरे इस आकलन को और भी मजबूत पुष्टि मिली जब अगली सुबह मैं गिरिराज सिंह के रोड शो को सिमरिया घाट से विभिन्न इलाकों में फॉलो कर रहा था। सिमरिया में हर 10 घर में से 8 घरों की मुंडेर पर भाजपा के बड़े - बड़े झंडे लहरा रहे थे।
महाश्वेता देवी की जंग का फ़ैसला , 25 साल बाद
महाश्वेता देवी की जंग का फ़ैसला , 25 साल बाद बुधन सबर को इंसापस थाने में टॉर्चर कर मारने वाले पुलिस कर्मी को 8...
फासीवाद की ओट में जातिवाद में गर्क होता लेनिनग्राद
इन प्रवृतियों के पीछे दरअसल एक जातिवादी अपर कास्ट उतेजना काम कर रही है, जो ‘जय भीम, साल सलाम, और सामंतवाद से आजादी’ के स्लोगन के रूप में इतेफाकन दिल्ली से शुरू हुई थी और जल्द ही वामपंथ के बेगूसराय मॉडल में फिट होती हुई संघी भोला सिंह के माल्यार्पण तक आकर खत्म हो गई। लेकिन हिन्दी की एकेडमिया,मीडिया इसे अभी भी जीवित रखना चाहती है ताकि सामाजिक न्याय को उसकी पटरी से उतारकर वहां एक नए किस्म का ब्राहणवाद को स्थापित किया जा सके। यहां अंतर बस इतना ही है कि इस बार वह भाजपा के उग्र राष्ट्रवाद के रूप में नहीं, अपितु उसके काउंटर पार्ट के रूप में खुद को स्थापित करने की अपनी अंतिम लड़ाई की आजमाईश कर रही है।
Same Sex Marriage | समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध | कपिल...
Same Sex Marriages: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ सेम सेक्स मैरिज को...
अम्बेडकर की प्रासंगिकता के समकालीन बयान
महितोश मंडल का कहना है कि विश्वविद्यालयों में दुनिया भर के तमाम चिन्तक पढ़ाए जाते हैं पर अम्बेडकर की सतत अनुपस्थिति और बहिष्करण की राजनीति के पीछे अम्बेडकर के प्रति ब्राह्मणवाद की घृणा है, और यह घृणा दुश्चिंता से उपजी है. दरअसल अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म और ब्राह्मण सभ्यता के विरुद्ध कोई आधारहीन शोर-गुल नहीं किया है, बल्कि वे कानून के विद्यार्थी थे और बहुत ही तर्कपूर्ण व प्रासंगिक ढ़ंग से उन्होंने ब्राह्मणवाद की आलोचना प्रस्तुत की है. यदि युवा विद्यार्थी अम्बेडकर के आमूल परिवर्तनवादी विचारों को गंभीरता से पढ़ना शुरू करें, तो अकादमिक जगत से लेकर राजनीति, अर्थव्यवस्था, मीडिया, साहित्य, सिनेमा, और इत्यादि तक फैले राष्ट्र-व्यापी ब्राह्मणवादी साम्राज्य को भयंकर चुनौती मिलेगी.