‘दिल्ली की नागरिक’ जिसने 15 सालों में दिल्ली को बदल दिया

एक संयोग यह भी है कि जिस इलाक़े में शीला दीक्षित रहती थीं वह निज़ामुद्दीन नाम से दिल्ली में पहचाना जाता है. निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बहुत से लोग हर रोज़ अपनी मिन्नतों को माथा टेकने को कहते हैं और कुछ उनकी दरगाह को मिन्नतों के पुरी होने पर ख़ुशी से चूमने आते हैं. लेकिन यह बात भी दीगर है कि शाहजहाँ की बड़ी बेटी और मुग़ल शहजादी, पादशाह बेग़म जहाँआरा, निज़ामुद्दीन की दरगाह के अंदर ही आराम फरमा रही हैं.

फासीवाद की ओट में जातिवाद में गर्क होता लेनिनग्राद

इन प्रवृतियों के पीछे दरअसल एक जातिवादी अपर कास्ट उतेजना काम कर रही है, जो ‘जय भीम, साल सलाम, और सामंतवाद से आजादी’ के स्लोगन के रूप में इतेफाकन दिल्ली से शुरू हुई थी और जल्द ही वामपंथ के बेगूसराय मॉडल में फिट होती हुई संघी भोला सिंह के माल्यार्पण तक आकर खत्म हो गई। लेकिन हिन्दी की एकेडमिया,मीडिया इसे अभी भी जीवित रखना चाहती है ताकि सामाजिक न्याय को उसकी पटरी से उतारकर वहां एक नए किस्म का ब्राहणवाद को स्थापित किया जा सके। यहां अंतर बस इतना ही है कि इस बार वह भाजपा के उग्र राष्ट्रवाद के रूप में नहीं, अपितु उसके काउंटर पार्ट के रूप में खुद को स्थापित करने की अपनी अंतिम लड़ाई की आजमाईश कर रही है।

एक बहुजन नेत्री की संभावनाएं : मनीषा बांगर

इर्शादुल हक़ मायावती को कांशी राम ने अवसर दिया तो उन्होंने अपनी लीडरशिप साबित करके दिखाई. वह...

अम्बेडकर की प्रासंगिकता के समकालीन बयान

महितोश मंडल का कहना है कि विश्वविद्यालयों में दुनिया भर के तमाम चिन्तक पढ़ाए जाते हैं पर अम्बेडकर की सतत अनुपस्थिति और बहिष्करण की राजनीति के पीछे अम्बेडकर के प्रति ब्राह्मणवाद की घृणा है, और यह घृणा दुश्चिंता से उपजी है. दरअसल अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म और ब्राह्मण सभ्यता के विरुद्ध कोई आधारहीन शोर-गुल नहीं किया है, बल्कि वे कानून के विद्यार्थी थे और बहुत ही तर्कपूर्ण व प्रासंगिक ढ़ंग से उन्होंने ब्राह्मणवाद की आलोचना प्रस्तुत की है. यदि युवा विद्यार्थी अम्बेडकर के आमूल परिवर्तनवादी विचारों को गंभीरता से पढ़ना शुरू करें, तो अकादमिक जगत से लेकर राजनीति, अर्थव्यवस्था, मीडिया, साहित्य, सिनेमा, और इत्यादि तक फैले राष्ट्र-व्यापी ब्राह्मणवादी साम्राज्य को भयंकर चुनौती मिलेगी.

बेगूसराय की बिसात पर किसकी होगी शह और किसकी होगी मात?

वहाँ यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि भूमिहार मतदाता ने अपना मत तय कर लिया है और उनका वोट थोक में भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह को मिलेगा। मेरे इस आकलन को और भी मजबूत पुष्टि मिली जब अगली सुबह मैं गिरिराज सिंह के रोड शो को सिमरिया घाट से विभिन्न इलाकों में फॉलो कर रहा था। सिमरिया में हर 10 घर में से 8 घरों की मुंडेर पर भाजपा के बड़े - बड़े झंडे लहरा रहे थे।

भारतीय वामपंथियों का ‘कन्हैया सिन्ड्रोम.’!

बहरहाल, ये सवाल बाद के हैं। फिलहाल सबसे पहले यही देखने की जरूरत है कि जिस कन्हैया और बेगूसराय की सीट के जरिए भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां और उनसे जुड़े लोग या उनके समर्थक सीधे क्रांति का हो जाना घोषित कर रहे हैं, क्या वहां कन्हैया का दावा बन रहा है?

महिला राजनीतिज्ञों से दुनिया के कई देशों में सेक्सिस्ट व्यवहार

अगर उनके पूरे कार्यकाल की घटनाओं पर गौर करें तो समझ में आएगा कि उनकी इन टिप्पणियों का क्या अर्थ है और स्त्री द्वेष की जड़ें कितनी गहरी हैं, जहाँ एक विकसित, प्रगतिशील संपन्न देश की प्रधानमंत्री भी अगर महिला है तो कितनी वल्नरेबल हो जाती हैं। उनके लिए जानबूझकर बांझ और शासन करने के लिए अनफ़िट, मोटी, लाइंग काऊ , बिच , मेनोपॉजल मॉन्सटर जैसे शब्द इस्तेमाल किए गए।

सुषमा स्वराज: प्रभावी व्यक्तिगत छवि एवं भाजपा की विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध महिला...

राजनीति में सबकुछ स्थायी भाव की तरह नहीं होता. 2014 में वे नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में विदेश मंत्री बनी. वे इंदिरा गांधी के बाद विदेश मंत्री बनने वाली देश की दूसरी महिला थीं. हालांकि उनके पूरे कार्यकाल में विदेश नीति के मामले में उनकी कोई प्रभावी भूमिका नहीं रही और वे आप्रवासी भारतीयों की मदद कर सुर्खियाँ बटोरती रहीं. 2014 से मनो उनकी आभा पर ग्रहण लग गया था. उनके प्रभावी वक्तृत्व और भूमिका को भाजपा के नए नेतृत्व ने स्मृति ईरानी से रिप्लेस कर दिया था.

सीपीआई-विधायक दल के पूर्व नेता ने पार्टी को कहा था लालू प्रसाद का...

इसी तरह से सोनबरसा (सहरसा जिला) में जहाँ हमारी पार्टी के एक उम्मीदवार खड़े हो गए थे जिन्हें पार्टी समझाने-बुझाने में लगी हुई थी, के विषय में वहां की एक रैली में लालूजी ने कहा ‘‘आज शाम तक इस उम्मीदवार को सीपीआई से निकाल दिया जाएगा।’’

जाने क्या कुछ है महिलाओं के लिए कांग्रेस के पिटारे में: कांग्रेस का घोषणापत्र

समाज के श्रमशील वर्ग की महिलाओं के लिए भी महत्वपूर्ण घोषणा है जिसमे प्रवासी महिला श्रमिकों के लिए पर्याप्त रैन बसेरों, कसबों और शहरों में महिलाओं के लिए स्वच्छ एवं सुरक्षित शौचालयों की संख्या बढ़ाने, सार्वजनिक स्थलों, स्कूलों और कॉलेजों में सेनेटरी नेपकिन वेंडिंग मशीने लगाने की बात है.

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