औरतें अपने दु:ख की विरासत किसको देंगी
माँ-बेटी के आपसी संवाद एक दूसरे के पूरक नजर आते हैं। जिन्दगी के सारे रंग खासकर स्त्री जीवन के सारे रंग हर्ष, ख़ुशी, उत्साह, दुःख, शोक, वियोग, अकेलापन आदि एक दूसरे से गूंथे हैं। “ऐ लड़की अँधेरा क्यों कर रखा है! बिजली पर कटौती! क्या सचमुच ऐसी नौबत आ गई है”
भवसागर के उस पार मिलना पियारे हरिचंद ज्यू
इस उपन्यास को लिखते हुए मनीषा को बार—बार यह डर सताता रहा कि कभी मैं मल्लिका के बहाने हरिचंद ज्यू का जीवन ही न दोहरा दूं। निश्चित रूप से इस उपन्यास का लेखन मनीषा कुलश्रेष्ठ के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था लेकिन उन्होंने जिस तरह इस उपन्यास में संतुलन कायम किया है, वह पाठकों के लिए हैरानी की बात है। मल्लिका बालविधवा थी और काशी अपनी मुक्ति की खोज में आई थी। उसे क्या मालूम था कि बनारस में न केवल भारतेंदु से उसका परिचय होगा बल्कि उनके प्रेम में वह डूब जाएगी।
“केदारनाथ सिंह की कविताओं में स्त्री”
यह सर्वविदित है कि गया वक्त पुनः लौटकर नहीं आता . फिर भी कवि का यह प्रयास है कि उस उधड़े हुए समय को फिर से सिलने का प्रयत्न किया जाए ! यहाँ हमें कवि के आशावादी होने का परिचय मिलता है . जीवंतता का परिचय मिलता है . सुई और तागे की बात करते हुए करघे की बात करना, इस बात का संकेत है कि केदारनाथ जी कहीं-न-कहीं महात्मा गांधी के लघु-कुटीर उद्योग से प्रभावित थे और हथकरघा पद्धति में भी विश्वास करते थे .
अपराधी हूँ मैं और अन्य कविताएँ
कसूर बस इतना सा,
मेरा जन्म लेना,
जो अधिकार क्षेत्र नहीं हैं मेरा,
स्त्री- पुरुष से भिन्न, किन्नर हूँ मैं,
अपराध बस इतना सा,
मैं अमर बेल को गाली नहीं देता और अन्य कविताएं (कवि:एस एस पंवार)
कितनी ही बार वो मर्लिन मुनरो होते-होते बची और उसने
अपनी दीवार पर नए कैलेंडर टांगे,
एक अस्तित्वहीन मुल्क का समाजशास्त्र
उसे काटता रहा बार-बार
‘कागज पर लगाए गए पेड़’ सी जीवंत कविताएँ
स्त्री के मौन में उसके उत्पीड़न का इतिहास छिपा है . शारीरिक अत्याचार, शोषण, हिंसा, क्रूरता की कथाएँ स्त्री उत्पीड़न की स्थिति बयान करती हैं. स्त्री की सहनशीलता ने उत्पीड़कों को सर्वदा बल दिया है. इसलिए संध्या कहती हैं- ‘‘ अतीत ठीक नहीं था औरत का /परंतु भविष्य / मैंने ठान लिया है कि मैं अपनी बेटी को बोलना सिखाउंगी.’
दलित आंदोलन के भीतरी चरित्र पर प्रश्नचिह्न खड़ा करते हुए वे अपनी कलम की ताकत को दर्शाती हैं- ‘‘कर क्या रहे हैं हम/ धरना, मोर्चा, निर्देशन, निवेदन / अथवा / सबकी नजर बचाकर भीतर ही भीतर / किया गया सेटलमेंट.’’
‘लिखो इसलिए’ व श्रीदेवी की अन्य कविताएं
भाषाकितना अच्छा होता कि तुम्हारा भी अस्तित्व होता
श्रीदेवी छत्तीसगढ़ रायपुर में रहती हैं. पिछले एक...
ट्रोजन की औरतें’ एवं ‘स्त्री विलाप पर्व
‘द ट्रोजन विमेन’/ ‘ट्रोजन की औरतें’ नाटक यूरिपिडीज द्वारा 416 ईसापूर्व में लिखा गया था। यह नाटक यूनान की विजय तथा ट्रॉय की पराजय के कथ्य पर केन्द्रित है। किन्तु इसका मूल कथ्य विजय के पश्चात की घटनाओं से जुड़ा हुआ है। ‘ट्रोजन की औरतें’ युद्ध के पश्चात के उन्माद, पाशविकता, व्यभिचार, हिंसा पर आधारित है। यह नाटक मुख्य रूप से हैक्युबा के विलाप और उस बहाने महान यूनान की सभ्यता पर प्रश्न चिह्न लगाता है। ‘महाभारत’ के ‘स्त्री पर्व’ में विभिन्न प्रकार के ‘विलाप दृश्य’ रखे गए हैं। जैसे धृतराष्ट्र का विलाप, कौरववंश की युवतियों के सामूहिक विलाप। इसके अतिरिक्त विभिन्न अध्याय केवल विलाप की विभिन्न भंगिमाओं के निमित्त रचे गए हैं।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की पत्रकारिता और स्त्री-मुक्ति के प्रश्न
यह कहना कतई गलत न होगा कि उन्नीसवीं सदी के हिन्दी समाज का लोकवृत्त भारतेन्दु के इर्द गिर्द ही गढ़ा जा रहा था। उस युग में सामाजिक, साहित्यिक और राजनीतिक बदलावों का वाहन बनने वाली कई महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना भारतेन्दु ने की थी। उनके युग के सभी महत्त्वपूर्ण रचनाकार और पत्रकार हरिश्चंद्र मंडल में शामिल थे। रामविलास शर्मा ने भारतेन्दु युग नामक अपनी पुस्तक में लिखा है
गिरह
स्साला सतीश पांडे को अब भी भाव मिलता है पार्टी में! मैंने तो उसी के कारण ही पार्टी को छोड़ा। धारा 370 का विरोध पांडे नहीं कोई दलित करे तो इसका मतलब बनता है। राजनीति भी बड़ी कमीनी हो गयी है। हम लाल झंडा ढोते रहते हैं और यह जानते हुए कि आजकल लाल और भगवा में बहुत अधिक फर्क नहीं रह गया है। कम से कम जाति के सवाल पर।