अमृता प्रीतम की पिंजर: पुरुष पात्र रशीद के अनैतिक से नैतिक बनने के प्रयास...
“ मैं अंदर कूद पड़ी, लेकिन ... जब आप तंदूर में रोटी डालते हैं और वह पूरी तरह भरा होता है तो जो रोटियां...
सिक्स पैक सीता
सिक्स पैक सीता
विप्लव रचयिता संघम (विरसम) के दो दिवसीय सम्मेलन में कई किताबों का लोकार्पण हुआ, जिसमें एक किताब के नाम ने अपनी ओर...
नारी अस्मिता के वृत की त्रिज्याएं , चुनौतियां एवं संभावनाएं
नारी अस्मिता के वृत की त्रिज्याएं , चुनौतियां एवं संभावनाएं
आज के इस लोकतांत्रिक माहौल में स्त्री अस्मिता का स्वर अभी भी अनुसना ही...
मेरे भीतर की स्त्री
मेरे भीतर की स्त्री
मेरे भीतर का संसार , हमारी अंदरूनी दुनियां का हाहाकार , सालों से दबायी आवाजों का हलाहल और अनकहे शब्दों का...
राहुल की यात्रा क्या राजनीति का स्त्रीकरण कर रही है?
संजीव चंदन
महात्मा गांधी ने भारत में पहली बार राजनीति का स्त्रीकरण किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गांधी के 2015 में भारत लौटने से पहले भी स्त्रियां थीं, लेकिन उनकी संख्या बेहद नगण्य थी और उनमें से ज्यादातर उच्च वर्ग की महिलायें थीं। ऐसा भी नहीं था कि उच्च वर्ग की इन महिलाओं कोई योगदान नहीं किया अपने बाद की पीढ़ी के लिए राजनीतिक स्पेस तैयार करने में। वे बेहद प्रतिभा सम्पन्न महिलाएं थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के पक्ष में प्रयास किये और महिलाओं का मताधिकार पाने में इन्होने सफलता पायी थी। मताधिकार और चुनाव लड़ने का अधिकार।
राजनीति में महिलाओं के लिए व्यापक स्पेस, माहौल बनाने में महात्मा गांधी के राजनीतिक सिद्धांत ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। गांधी जब भारत में सक्रिय नहीं हुए थे तभी रवींद्रनाथ टैगोर का उपन्यास 1916 में आया था ‘घरे/ बाइयरे’।
उपन्यास की नायिका बिमला घर के चौखटे से बाहर आकर स्वदेशी आंदोलन में हिस्सा लेती है। बंगाली महिलाओं ने उपनिवेश विरोधी सशस्त्र आंदोलनों में हिस्सा लिया था, लेकिन बिमला ने अहिंसक प्रतिरोध का रास्ता चुना। राजनीति का अहिंसक वातावरण महिलाओं के अनुकूल होता है। गांधी ने अहिंसा, सत्याग्रह को राजनीतिक मूल्य बनाकर राजनीति को घरेलू महिलाओं के लिए भी अनुकूल किया। जिसके बाद सामान्य घरों से भी महिलाएं राजनीति में भागीदार हुईं। घर के चौखटे से बाहर निकलीं। इसे राजनीति के स्त्रीकरण की तरह देखा गया।
लगभग सौ साल बाद फिर से महिलाएं, युवा, बुजुर्ग, हर समूह से राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हैं। यह उस वक्त हो रहा है जब लोकसभा में आज अधिकतम 14 % महिलाएं हैं।। यह उस वक्त हो रहा है जब लोकसभा में आज अधिकतम 14 % महिलाएं हैं। कई राज्यों की विधानसभाओं में वह प्रतिशत और भी कम है। यह ऐसे समय में भी हो रहा है जब राजनीति को घिनौना, हिंसक, भ्रष्ट रूप में देखा जा रहा है। इसलिए, महिलाओं के लिए भारत जोड़ो यात्रा में चलने वाले ज्यादातर पुरुषों के साथ शामिल होना महत्वपूर्ण है, हालांकि 30 प्रतिशत महिलाएं इस यात्रा में शामिल बतायी जाती हैं।
राहुल गांधी के बारे में जो ख़बरें यात्रा से आ रही हैं या जो तस्वीरें बाहर आ रही हैं, उनका असर भारतीय राजनीति पर व्यापक होने वाला है। बशर्ते राहुल एक राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ इस दिशा में काम करते हैं। फिलहाल तो इन तस्वीरों से राजनीतिक स्पेस और भाषा के स्त्रीकरण की दूसरी परिघटना घट रही है भारतीय राजनीति में...
छाया कोरेगाँवकर की कविताएं
कविता- छाया कोरेगाँवकर
अनुवाद- हेमलता महिश्वर
‘वह’ मुक्त ‘वह’ मुख़्तार -
‘वह’ सावित्री सत्यवान की,
साक्षात यम का आह्वान करनेवाली;
‘वह’ सावित्री ज्योतिबा की,
स्त्रियों के अस्तित्व को
अस्मिता की...
भारतीय स्त्री अधिकार : एक ऐतिहासिक यात्रा
सुमुत्तिका, सुमुत्तिका, साधुमुत्तिकाम्हि मुसलस्स|
अहिरिको में छ्त्तकं वा पि, उक्खलिका मे देड्डुभं वा ति|| थेरी सुमंगलमाता
अहो! मैं मुक्त नारी हूँ! मेरी मुक्ति कितनी धन्य है!पहले...
हिन्दी नवजागरण और स्त्री प्रश्न
सुरेश कुमार
वास्तव में देखा जाए तो बीसवीं सदी का दूसरा और तीसरा दशक अस्मितावादी सरगर्मी से भरा रहा है। इस दशक में जहां हिन्दी लेखकों...
नागरिकता, समता और अधिकार के संघर्ष अभी जारी हैं
आधुनिक भारत के निर्माण में आज़ादी से पहले और आजादी के बाद के तमाम जनांदोलनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इन आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी और ज्यादा महत्वपूर्ण है। साथ...
फ्रेंच लेखिका एनी अर्नो (साहित्य की नॉबेल विजेता ) के 15 कथन
अस्तित्त्व में होना बिना प्यास के ख़ुद को पीना है।, बूढ़ा होना फ़ीका हो जाना है, पारदर्शी बन जाना।