अमृता प्रीतम की पिंजर: पुरुष पात्र रशीद के अनैतिक से नैतिक बनने के प्रयास...
“ मैं अंदर कूद पड़ी, लेकिन ... जब आप तंदूर में रोटी डालते हैं और वह पूरी तरह भरा होता है तो जो रोटियां...
सिक्स पैक सीता
सिक्स पैक सीता
विप्लव रचयिता संघम (विरसम) के दो दिवसीय सम्मेलन में कई किताबों का लोकार्पण हुआ, जिसमें एक किताब के नाम ने अपनी ओर...
नारी अस्मिता के वृत की त्रिज्याएं , चुनौतियां एवं संभावनाएं
नारी अस्मिता के वृत की त्रिज्याएं , चुनौतियां एवं संभावनाएं
आज के इस लोकतांत्रिक माहौल में स्त्री अस्मिता का स्वर अभी भी अनुसना ही...
मेरे भीतर की स्त्री
मेरे भीतर की स्त्री
मेरे भीतर का संसार , हमारी अंदरूनी दुनियां का हाहाकार , सालों से दबायी आवाजों का हलाहल और अनकहे शब्दों का...
छाया कोरेगाँवकर की कविताएं
कविता- छाया कोरेगाँवकर
अनुवाद- हेमलता महिश्वर
‘वह’ मुक्त ‘वह’ मुख़्तार -
‘वह’ सावित्री सत्यवान की,
साक्षात यम का आह्वान करनेवाली;
‘वह’ सावित्री ज्योतिबा की,
स्त्रियों के अस्तित्व को
अस्मिता की...
नागरिकता, समता और अधिकार के संघर्ष अभी जारी हैं
आधुनिक भारत के निर्माण में आज़ादी से पहले और आजादी के बाद के तमाम जनांदोलनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इन आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी और ज्यादा महत्वपूर्ण है। साथ...
सरोगेसी (विनियमन) विधेयक का बहिष्कारी चरित्र
सरोगेट स्त्री के गर्भ में इस संवर्धित भ्रूण को स्थापित करना तो इस पूरी प्रक्रिया का सबसे अंतिम चरण होता है। अत: सरोगेसी के विनियमन से पहले तो सरकार को प्रजनन सहायक प्रौद्योगिकी विधेयक (असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी विधेयक) को पारित करवाना चाहिए था जो लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। इस विधेयक को कानून का रूप देना बहुत जरूरी है ताकि प्रजनन सहायक प्रौद्योगिकी से जुड़े अपराधों पर रोक लग सके।
ट्रोजन की औरतें’ एवं ‘स्त्री विलाप पर्व
‘द ट्रोजन विमेन’/ ‘ट्रोजन की औरतें’ नाटक यूरिपिडीज द्वारा 416 ईसापूर्व में लिखा गया था। यह नाटक यूनान की विजय तथा ट्रॉय की पराजय के कथ्य पर केन्द्रित है। किन्तु इसका मूल कथ्य विजय के पश्चात की घटनाओं से जुड़ा हुआ है। ‘ट्रोजन की औरतें’ युद्ध के पश्चात के उन्माद, पाशविकता, व्यभिचार, हिंसा पर आधारित है। यह नाटक मुख्य रूप से हैक्युबा के विलाप और उस बहाने महान यूनान की सभ्यता पर प्रश्न चिह्न लगाता है। ‘महाभारत’ के ‘स्त्री पर्व’ में विभिन्न प्रकार के ‘विलाप दृश्य’ रखे गए हैं। जैसे धृतराष्ट्र का विलाप, कौरववंश की युवतियों के सामूहिक विलाप। इसके अतिरिक्त विभिन्न अध्याय केवल विलाप की विभिन्न भंगिमाओं के निमित्त रचे गए हैं।
बीबीसी में जातिगत भेदभाव (आरोप)
"आप ही मीना हो?"
"हां, क्यों क्या हुआ?"
"नहीं कुछ नहीं, बस ऐसे ही."
"आपने इस तरह अचानक पूछा..? आप बताइए न किसी ने कुछ कहा क्या?"
"नहीं, नहीं कुछ ख़ास नहीं."
(थोड़ी देर बात कर उन्हें विश्वास में लेने के बाद)
"बताइए न मैं किसी को नहीं बताऊंगी."
"मुझसे किसी ने कहा था कि अब तो आपके लोग भी हमारे साथ बैठ कर काम करेंगे."
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यह सुन मैं थोड़ी देर शांत बैठ गई. मैंने उनसे जब पूछा कि आपको ये किसने कहा तो उन्होंने बताने से मना कर दिया.
बीबीसी में मेरी नौकरी करने के ऊपर की गई यह टिप्पणी किसने बताई, मैं उनका नाम जगजाहिर नहीं करना चाहती क्योंकि मैं नहीं चाहती मेरी वज़ह से किसी की नौकरी ख़तरे में पड़ जाए. लेकिन बताना चाहूंगी वो व्यक्ति दलित समुदाय से आते हैं और वे पत्रकार नहीं हैं. वो बीबीसी के दफ़्तर में एक साधारण कर्मी हैं.
लेखक संगठनों को समावेशी बनाने के सुझाव के साथ आगे आये लेखक: प्रलेस से...
पिछले कुछ दिनों से लेखिकाएं और लेखक प्रगतिशील लेखक संगठन की कार्यप्रणाली और उसमें ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक वर्चस्व पर सवाल उठ रहे...