पूनम शुक्ला की कवितायें

पूनम शुक्ला


पूनम शुक्ला कवितायें , कहानियाँ और गजल लिखती हैं . हिन्दी की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . गुडगाँव में रहती हैं . पूनम से उनके ई मेल आई डी : poonamashukla60@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है

1.  इच्छा -1

मौन भी एक हथियार है मेरे पास
पर उसका इस्तेमाल करते-करते
थक चुकी हूँ मैं
अब चीखना चाहती हूँ बहुत जोर से
ताकि गूँज उठे पूरा ब्रह्मांड ।

2.   इच्छा- 2

कहाँ सुनी गईं
हमारी धीमी आवाज़ें
कभी रिरियाना
कभी मौन
याचना,प्रार्थना
सिसकना, रोना
अब जोर से बोलना चाहती हूँ
खूब जोर से हँसना चाहती हूँ
पर पहले चीखूँगी
इस निढ़ाल पड़े शरीर
और मस्तिष्क को
इस स्नायु तंत्र को
मौन ने जकड़
कर दिया है संवेदनहीन
स्पंदित तो हो पहले
ऊर्जा का स्रोत
आओ मिलकर चीखें ।

3.   इच्छा – 3

जब भी आते हो घर में
झल्ला ही पड़ते हो
पता नहीं कहाँ से
कुछ न कुछ
दिख ही जाता है तुम्हें
तुम्हारा चीखना
पुश्तैनी हथियार है
या पुरुषत्व की धार
पर अब चाहती हूँ
तुम्हारा मौन
अब मैं चीखना चाहती हूँ ।

४ . जीवन एक युद्ध है

नजर आता है
हर तरफ
एक युद्ध
अंदर बाहर
घर में गली में
दुकानों में,माल्स में
अस्पतालों,दफ़्तरों ,बैंकों की
लंबी कतारों में
अपने उनके सबके विचारों में
खुद के विचारों में

इस शरीर के भीतर भी
युद्ध ही है
लड़ती हैं सैकड़ों कोशिकाएँ
आक्रमण,संक्रमण के खिलाफ

हर दिन लोहा लेती है
एक स्त्री
विभिन्न विचारों
विभिन्न अनिच्छित कार्यों
विभिन्न जुल्मों के खिलाफ
पर लोहा लेते हुए
कम हो जाता है
उसके रुधिर में
लोहे का स्तर

एक स्त्री
नव सृजन को
दे देती है
अपनी मजबूत हड्डियों का
एक अंश
फिर थोड़ी कमजोर हुई
हड्डियों के सहारे
अपने शरीर का बोझ उठाते
चलती रहती है
सुबह से रात तक
साथ छोड़ने लगती हैं हड्डियाँ
कहीं पोली ,
कहीं आकृति बदलने लगती हैं हड्डियाँ
औरत फिर लड़ती है
अपनी ही हड्डियों के खिलाफ

कैल्शियम और आयरन की
गोलियाँ गटकती हुई
बखूबी जानती है
आज की औरत
जीवन एक युद्ध है ।

५. . सुनने में

मैं सुनती हूँ
ये सभी बोलते हैं
और मैं बस सुनती हूँ ।

एक बार मेरे शिक्षक नें
कहा था मुझसे
तुम बहुत ध्यान से सुनती हो
तुम एक अच्छी श्रोता हो

तब से सुनने की
आदत ही डाल ली है
लगता है कि शायद
ये एक बहुत बड़ी कला है
एक अच्छे श्रोता से
अच्छा ,भला और क्या है

पर हरदम बोलने वाले
ये नहीं जानते
कि सुनना भी
एक कला है
वे बस बोलते है
बस बोलते ही जाते हैं
और मैं सुनती हूँ
मैं एक-एक शब्द सुनती हूँ
इनकी तेज आवाजें
इनकी सिरफिरी बातें
इनके खून का उबाल
जबान का तीखापन
हँसी भी आती है
कि ये कितना बोलते हैं

पर इसी सुनने में
मैं पा जाती हूँ
सुलझी हुई गुत्थियाँ
एक नया रास्ता
कँटीले रास्तों पर
चलने का नायाब तरीका
इस गुत्थमगुत्थ रहस्यमयी
जीवन का रहस्य
और ये ………
बस बोलते हैं ।

स्केच / सुनीना

६. . नया मिश्रण

भरा हुआ था
कल से ही भीतर
कुछ खौलता सा
आज फिर एक और चिन्गारी
और चिल्ला उठी वो
पर तभी एक आवाज़

चुप बोलना नहीं
ऊँची आवाज़ में
नहीं तो …….

उफनते दूध को
किसी तरह
समेट लिया उसने
वरना गिरता
फैलता,जलता
दुर्गंध ही फैलाता

पर उसकी आँखों में
उमड़ आया सैलाब
जोर की एक हिचकी और

चुप ……..
रोना नहीं…..
मेरे सामने नौटंकी नहीं

रोक लिया उसने
उफनते सैलाब को भी
खारा सैलाब
उफनता दूध
दोनों को समेट लिया है
उसने भीतर
उसे भी नहीं पता
क्या होगा
इस नए मिश्रण का
नया परिणाम ।

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ISSN 2394-093X
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