भावना की गजलें

भावना कुमारी

युवा कवयित्री भावना कुमारी की एक गजल की किताब और एक कविता -पुस्तक प्रकाशित है .   संपर्क : bhavna.201120@gmail.com


चुप -चुप  सी है  आज चहकने वाली वह
चिड़ियों -सी  हर वक़्त फुदकने वाली  वह
दिल  में  रखकर  दर्द  का बहता इक दरिया
कहती है कुछ बात सिसकने वाली  वह
पानी  को छूने अब क्यों डरती है
शोलों को हाथों से लपकने वाली वह
आँखों को नीचे करके ही चलती है
भीतर  से हर वक़्त दहकने वाली  वह
हथकड़ियों  के साँचों में क्यों ढल बैठी
चूड़ी जैसी रोज़ खनकने  वाली वह


युद्धरत इस दौड़ में वह सारथी -सी  हो  गयी
छोड़ दी जब मन का सुनना कीमती सी हो गयी
दर्द कुछ ऐसे बढ़ा है बढ़ गयी बेचैनियाँ
तब ग़ज़ल पूरी हुई  औ बंदगी -सी  हो गयी
जबसे नारी -अस्मिता के पक्ष में बातें हुई
औरत अपने घर की भी अब आदमी -सी हो गयी
हो गया अहसास जैसे उसको मेरे प्यार का
साँझ भी ढलने से पहले सुरमयी -सी  हो गयी
इस तरह से एक मूरत मन में आ रहने लगी
झिलमिलाये दीप मन में आरती -सी  हो गयी




नदी में  कपड़े सुखा रही हूँ
हवा को कितना चिढ़ा रही  हूँ
किसी के इज्ज़त पे आ पड़ी है
तो सच  पे पर्दा गिरा रही हूँ
जो पारदर्शी हुआ है जीवन
तो खुद को दर्पण बना रही  हूँ
लिखा है खुशबू पे नाम किसका

बहस का मुद्दा बना रही  हूँ
सफ़र में अक्सर मैं ग़मज़दा -सी
ग़मो की फ़ितरत बता रही  हूँ


माँ को देखा तो इबादत हो  गई
इस तरह अपनी हिफाज़त हो  गई
शांत था चौपाल का मंज़र मगर
जाने कैसे ये बग़ावत हो गयी
बुत बनी बैठी है अपनी दामिनी
आबरू पर भी सियासत हो गयी
चैन मिलता ही नहीं क्योँ रात भर
दिल पे अब किसकी हुकूमत हो गयी
ज़िंदगी की धूप में चलते हुए
धूप को सहने की आदत हो गयी


खिज़ा के साये से डर गए हैं
तभी ये  पत्ते बिखर गये हैं
किसी ने दिल से पुकारा है यूँ
वो चलते चलते  ठहर गए हैं
संजोये बैठे हैं जिन पलों को
वो लम्हे कब के गुजर गए हैं
असर किसी का नहीं है अब तो
वो करके ऐसा असर गए हैं
उदास आँखों में उतरी पारियां
तो इनके मोती संवर गए हैं

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ISSN 2394-093X
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