प्रेमा झा की कविताएँ

प्रेमा झा

प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ  और कविताएँ प्रकाशित. फिलवक्त अपने एक उपन्यास को लेकर शोधरत . संपर्क : ईमेल – prema23284@gmail.com

मेरा प्रेमी पाकिस्तानी है
अक्सर सीमा पार भाग जाया करती थी
ये उन दिनों की बात है जब
जोगबनी और बिराटनगर के बीच
कांटें घेर दिए गए थे
मैं महज पाँच बरस की थी
मुझे अकेले भागने में और/
कांटें पार करने में बड़ा मज़ा आता था
बॉर्डर का इतिहास मेरी ज़िन्दगी में
तब से जुड़ा है/
मैं क्रॉस-बॉर्डर खेलती कभी अपने पांव
कीचड़ में फंसाती/
धूल झाड़ती/
कभी बॉर्डर पर बंधे कांटें से खुद को ज़ख़्मी कर लेती थी/
जख्मी होना मेरी आदतों में शुमार रहा है तब से
मुझे याद है वो दिन
जब मैं सीमा पार के लड़कों के साथ छुपकर खेला करती थी/
फिर एक वक़्त आया है कि-
एक लड़का जो सीमा-पार का है
मुझसे मुहब्बत की बातें करने लगा है/
अब मैं अमृतसर के बाघा बॉर्डर पर सैल्यूट डांस में शरीक हुई/
बॉर्डर मेरी ज़िन्दगी में दुबारा आ गया है!
वो देश जहां का प्रेमी है मेरा
मेरे देश के साथ उसके रिश्ते विवादास्पद है
मेरा देश और उसका देश अक्सर
हिदायतें और एहतियात की बातें करता है
मेरा प्रेम मशहूर हो गया है इन दिनों
ये बॉर्डर और उसकी सीमाएं
हमारे प्यार के बीच कहीं नहीं हैं/
शुक्र है!
खैर मुबारका मेरा रिश्ता!!
मेरा एक सुंदर सपना है
हमारा घर हो
बॉर्डर पार का
जिसके दरवाज़े मेरे देश में खुलें
हम एक-दूसरे के देश को
अपना घर मानने लगे हैं
हाँ, मेरा प्रेमी पाकिस्तानी है!
देशवासियों, हमारे लिए मंगलकामना करना
मैंने बॉर्डर पार प्रेम कर लिया है

गुनाह-ए-कबीर


फिर तुम्हें उसका ख्याल रखना होगा
उसकी हरेक बात और ज़रुरत में
पूछना होगा कि कल रात उसने कितनी
रोटियाँ बे-चबायी छोड़ दी थी
और/
उठकर पानी पीने लगी
तुम्हें उसे बतलाना होगा कि ये दिन बहुत दिन नहीं रहेंगे
फिर हम अपने एक सुंदर घर में रहने लगेंगे
दिन लौट आएँगे/
अच्छे दिन/
एक दिन/
इन सब बातों की बाबत उसकी डायरी का एक पन्ना
जो वो हर वक़्त अपने सिरहाने रखती है
उसे भी तुम्हें पढ़ना होगा
जिसमें वो अपने कई सपनों की लिस्ट बनाती है
तुम्हें उसकी फटी ओढ़नी का जो सितारा
टूट गया है/
उसे भी संभालना होगा
तनिक देर के लिए नहीं
बहुत देर के मद्देनज़र
एक सुई और धागे की मजबूती में
उसका कहना है कि-
वो ज़िन्दगी की किताब को पन्ने-दर-पन्ने
खोलती है हर रोज़
और/
हर रोज़ ख़त्म कर देती है
इसलिए अब कोई भी बात उसे ज्यादा प्रभावी नहीं लगती

लोगों के बात का जो चाबुक है
उसे हर रोज़
जब भी वो सड़क से गुजरती है
मारता रहता है/
तुम्हें उससे कहना होगा कि
वो ये मार अब नहीं खाएगी
क्योंकि तुमने  उसकी हिफ़ाजत में
अब एक मज़बूत दीवार खड़ी कर दी है
जिनके ऊपर एक एलिगेंट छत होगी
वहाँ एक अड़गनी झूलेगी
फिर तुम दोनों उसपर ग़म सुखो दोगे
और
खुशियाँ टांगकर रखोगे

तुम्हें उसको और भी कई बातें बतानी होगी
मसलन तुम जो उसके इतने करीब हो तो
कोई हवा भी उसे नहीं छू सकती
मगर इन सब बातों के लिए
तुम्हारा उससे प्रेम करना जरूरी होगा
तुम्हें अब यह लग सकता है कि
अच्छा है प्रेम करना छोड़ दिया जाए/

तुम अब कभी-कभी सोचने लगे हो
ज़िन्दगी को चुपचाप
पतली गली से निकलने दिया जाए/
चोर निगाहों से उसे देखकर
तुम्हें अब अपनी रोटी का ख्याल आता है
जिसकी पहले ही तुम चौथाई कर चुके हो
बचे हिस्से के साथ उसे बांटना
तुम्हारी भूख इसकी इजाज़त नहीं देगी/
तुम भूख नाम के इस राक्षस से
पहले भी वाकिफ रहे हो/
अब जो भी हो जाए
तुम भूख से फ़्लर्ट नहीं करोगे
अच्छा है प्रेम करना
आगे डैश रहने देना ………
क्योंकि भूख मारना गुनाहे-कबीर है.

सिगरेट

कहानी लम्बी है
सिगरेट सुलगाती हूँ और कहने लगती हूँ
एक छल्ले धुएँ में
कहानी अपना जाल बुनने लगती है/
शुरू होती है
और /
एक-एक वाकया, हादसा और दिन दस्तक देता है
मेरी कागज़ी अदालत में
हरेक बात सच कहूँगी आज
जज़्ब हर अनुभूति, तथ्य, कर्म और नाटक
शामिल होंगे इस धुएँ में
धुएं का गुबार बढ़ता जाता है
और /
उस रात को बुलाता है जब मेरे पास कोई छत नहीं थी
मैं गुबार इतनी हो गई
और /
फैलती चली गई
एक शहर, दूसरे शहर
एक गली, दूसरी गलियाँ
ये सड़क इस अदालती कार्रवाई में
गवाह बनेंगी आज
और जज भी, जिसे फैसला सुनाना है/
मेरी सिगरेट आधी जल चुकी है और
दूसरी मैंने निकालकर बाहर रख ली है/
कहानी में सिगरेट का रोल बहुत अहम है
जब कोई नहीं होता है
ये गुबार मेरा साथ निभाते
और एक ख्याली आकाश बनाकर
मुझे ढांढस बंधाते रहते हैं /
कहानी बढ़ने लगती है
ऐसा लग रहा है मानों
मैं “रेमी” में हूँ अभी
और /
हर वो हादसा, वाकया और दिन
खुलते, बंद होते जा रहे
एक दृश्य में चलने लगे हैं
इस तरह मैं
टूटती, बिखरती, संवरती और फिर चलने लगती हूँ/
ऐसा लगता है जैसे धुआँ ही हो गई हूँ /
इन सब दृश्यों में
खुद को देखती हुई
वह नायिका बन जाती हूँ
जो फिल्म की कहानी में
शुरू से अंत तक गाती-नाचती रहती है /
कभी-कभी इस नायिका का चरित्र
इतना प्रौढ हो जाता कि-
धुआँ सिमटकर ओस बन जाता
मैंने दूसरी सिगरेट जला ली
अब मैं खुद को आइने में देख रही हूँ
और /
हँसने लगी हूँ बिना किसी आवाज़ के
क्योंकि जो शोर मेरे भीतर था-
वह काफी था
अब मुझे किसी लिपि की ज़रुरत नहीं थी/
मैं धुएँ में खुद से बात कर सकती हूँ/
लिख लेती हूँ
एक पूरी कविता
जिसमें होता है
धुएँ के आकाश तले
चलती नवजात ख़ामोशी
जो हमेशा मौन गृह में हँसता रहता है
और /

तब कोई लिपि, कोई भाषा
इतनी प्रभावी और सशक्त नहीं हो पाती कि
कोई उसे सुन ले!
ऐसे वक़्त में
सिगरेट बहुत काम आती है
जिसके पास होता है
हमेशा एक आकाश!

एक लड़की 


एक अकेला टापू
बस्ती की एक लड़की
नीचे खंडहर में
टनेल से गुजरती हुई
हाथ में लालटेन लिए
क्या ढूंढ रही है?
इतनी सुनसान और स्याह सड़क पर
एक तिनका ढूँढने की अकुलाहट
या तो लड़की भोगती है
या देखती है चुप सड़क

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ISSN 2394-093X
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