शोधार्थी,
इतिहास विभाग, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज,
बी.एच.यू. वाराणसी. संपर्क : vikashasaeem@gmail.com
11 अगस्त 2017 को मैं अपने रिसर्च पेपर के लिए फील्ड वर्क पर चित्रकूट जिले के बरगढ़, मानिकपुर के आस-पास भ्रमण पर था, तभी ये दो घटनायें मेरे सामने हुई. पहली घटना इस प्रकार है.
यह 11 अगस्त को चित्रकूट जिले के बरगढ़ में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के पास फिरोज के सब्जी की दुकान के पास की घटना है. 11 अगस्त शुक्रवार को एक खबर पूरे क्षेत्र में बड़ी तेजी से उड़ी कि रात में फिरोज की पत्नी के बाल किसी ने काट लिए हैं, यह खबर सोशल मीडिया में भी काफी तीव्र गति से फैली. इसकी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट इस तरह से मिली.
श्री बुद्धराज मौर्य जिन्हें आसपास के लोग बुधराम कहते हैं. यहाँ के जागरूक नागरिक एवं बुंदेलखंड के इस मऊ-मानिकपुर पठारी क्षेत्र के एक प्रगतिशील किसान हैं. अपनी सब्जी (नेनुआ) लेकर सुबह लगभग 11 बजे फिरोज की दुकान के पास पहुंचे और चूँकि उस समय तक यह खबर आग की तरह फ़ैल चुकी थी, तब ऐसे में स्वाभाविक था कि इस पर कुछ चर्चा हो और घर-परिवार के हालात पर कुछ बातचीत हो. प्रस्तुत है उस बातचीत का ज्यों का त्यों विवरण-
बुधराम- और भाई सलाम !
फिरोज- नमो बुद्धाय ! बुधराम भाई. अउर बतावा.
बुधराम- आपन हाल-चाल बतावा. सब ठीक है न.
फिरोज- जसरा अस्पताल से बस अबहिंये चले आवत लाग हन.
बुधराम- फ़िलहाल तबियत तो ठीक है न.
फिरोज- हाँ, अबे (अभी) तो सही है. जल्दी ठीक होइ जयी.
बुधराम-(मजाक में) यार तू त… मुसलमान अह… तोहरे बीबी के साथै ई कइसे होइगा?
फिरोज- हम त अपने बिटिया का अस्पताल मा भरती कराये रहेन. ओकर तबियत कुछ ख़राब रही है. बीबी त ठीक है. ओका कहाँ कुछौ भा है.
बुधराम- सुने हन अउर चारों तरफ हल्लौ मचा है कि तुहरे बीबी के चोटी कट गइ है रात मा.
फिरोज- का बुधराम भाई. अच्छा मजाक है इया. अइसा है, हम आहेन मुसलमान. चोटी काटै वाले के सारे के घुटकी (गर्दन) न काट लेब?
इस घटना के बाद से ही लगभग पांच महिलाएं मारे डर और भय के बेहोस हो गयीं हैं. दो तो अपने छतों से नीचे भी गिर गयीं. इस मामले पर अभिलाष का कहना है कि ‘यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि अभी तक किसी भी पढ़े-लिखे, जागरूक और बुद्धिमान घर में चोटी कटने-काटने की कोई घटना नहीं हुई है. और न ही ऐसी कोई घटना समाज व धर्म के ठेकेदारों यथा ब्राम्हण और ठाकुर परिवार में घटित हुई है.’ अभिलाष एक जागरूक परिवार से आते हैं. एवं इन्होने सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ से एग्रीकल्चर की मास्टर डिग्री हासिल किया है.
दूसरी घटना और दिलचस्प है. इस समय इस क्षेत्र के डभौरा, मानिकपुर, रानीपुर, सकरौंहा, अइलहा, चुरेह कशेरुआ आदि गाँवों में यह अफवाह फैली हुई है कि ‘कुछ विदेशी औरतों को अन्त्योदय कार्ड धारकों के यहाँ भेजा जायेगा. वे लोग इनकी देखभाल और जैसे भी चाहें रखें.’ राशन और मिट्टी का तेल लेने तक भी लोग राशन की सरकारी दूकानों में नहीं जा रहे हैं. क्योंकि यह खबर पूरे क्षेत्र में फैली है कि कोटेदार गल्ला देने के साथ ही इन कार्डधारकों का फार्म भी औरतों के लिए भरवा रहा है. इसके पीछे का सच जानने की कोशिश में अफवाह फ़ैलाने वालों में से ही एक शख्स मानिकपुर तहसील के पास इत्तफाक से मिल गए.
ये क्षेत्र के बहुत सम्मानित व्यक्तियों में से एक हैं. इनके बड़े भाई ब्लाक प्रमुख भी रह चुके हैं. फिलहाल इनका दावा है कि इस प्रकार के काम जिन्होंने किये हैं, उनके इरादे ये अच्छी तरह से जानते हैं. इस अफवाह के पीछे की हकीकत इन्हें मालूम है. इन साहब से किसी ने कहा कि ‘का भैया इया सच आय कि गाँव मा औरत बंट रही हैं?’ इन्होने कहा कि पता नहीं बंट रही हैं कि नहीं पर बढ़ जरुर रही हैं.
इन दिनों उनके घर में चार सालियाँ (दो इनकी और दो भाइयों की) आई हुई हैं. इस खबर से कई लोग जो बाहर थे. अपने गाँव आ गए. इधर आस-पास के गाँव के लोग भी जिनकी रिश्तेदारी इने गाँव में है, अपनी रिश्तेदारियों में जा-जाकर इस बात की तस्दीक कर आये. और किसानी के इस सर्वाधिक माकूल मौसम में अपना अमूल्य समय और पैसे भी बरबाद कर के आये. अगर एक व्यक्ति कम से कम 200/- रूपये भी खर्च किया होगा तो कम से कम पचास लोग तो आये ही होंगे. ऐसे में कम से कम 10,000/- रुपये बरबाद हुए.
आपको बता दें कि यह इलाका बुंदेलखंड का सर्वाधिक सूखा ग्रस्त क्षेत्र है. पठारी जमीन होने के कारण प्राकृतिक रूप से भी पानी की बहुत कमी है. बीते मार्च महीने से ही पानी के टैंकरों द्वारा पीने के लिए पानी की सप्लाई हो रही थी. ऐसे में इतना समय और पैसा बरबाद करने का मतलब क्या होगा? आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है. इस क्षेत्र में शिक्षा की कमी अत्यधिक कमी है. आज भी कोलों (कोल, आदिवासी समुदाय) और अन्य जातियों यथा यादव, मौर्य आदि जातियों के लोगों में बिरले ही इंटर पास लड़के मिलेंगे. लड़कियों की स्थिति तो और भी ख़राब है. ठाकुरों और ब्राम्हणों की लड़कियां भी बमुश्किल ही इंटर पास मिलती हैं. साथ ही यह इलाका जंगल, पहाड़ और दस्यु बहुल भी है. अब इस तरह की अफवाहों के पीछे क्या मकसद हो सकता है? इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है.
स्त्रीकाल का प्रिंट और ऑनलाइन प्रकाशन एक नॉन प्रॉफिट प्रक्रम है. यह ‘द मार्जिनलाइज्ड’ नामक सामाजिक संस्था (सोशायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड) द्वारा संचालित है. ‘द मार्जिनलाइज्ड’ मूलतः समाज के हाशिये के लिए समर्पित शोध और ट्रेनिंग का कार्य करती है.
आपका आर्थिक सहयोग स्त्रीकाल (प्रिंट, ऑनलाइन और यू ट्यूब) के सुचारू रूप से संचालन में मददगार होगा.
लिंक पर जाकर सहयोग करें : डोनेशन/ सदस्यता
‘द मार्जिनलाइज्ड’ के प्रकशन विभाग द्वारा प्रकाशित किताबें ऑनलाइन खरीदें : फ्लिपकार्ट पर भी सारी किताबें उपलब्ध हैं. ई बुक : दलित स्त्रीवाद
संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com