आए बड़े पढ़े-लिखे इंसाफ़ज़ादे व अन्य कविताएं (कवयित्री: वीना)

वीना
पत्रकार, जनचौक, डॉक्युमेंट्री फिल्म-निर्माता. संपर्क: veenavoice@gmail.com

वो देखो तड़ीपार सबको धमका रहा है
चुप… अब वो देश का गृहमंत्री है

लो जी, ब्लैकमेलर, जेलयाफ़्ता ढोंगी पत्रकार
देश को ईमानदारी-देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहा है
चुप मूर्ख…
वो प्रधानमंत्री की वफ़ादार टीम में है

घोर कलियुग..! लड़की छेडू लफ़ंगा
सुप्रीम कोर्ट का मुखिया बना बैठा है
राजनीति के कच्चों
अपनी ना समझ ज़बान बंद रखो
लड़की छेड़ना नज़र अंदाज़ करो
राफ़ेल का हिसाब माँगकर
मोदी को मज़ा चखाएगा
जानते नहीं
चार बागी जजों में से एक ये भी था

धत तेरी की देखो
कैसे धड़ल्ले से संसद के भीतर,
लालकिले पर चढ़कर,
आम सभाओं में, स्कूलों-कॉलेजों, संस्थाओं में
विदेशों में
झूठ की रेलम-पेल किये जाता है
खामोश! देश के प्रधानमंत्री पर सवाल उठाते हो
अर्बन नक्सल, देशद्रोही का ठप्पा लगाकर 
जेल में सड़वा देगा

अरे! भारत में लोकतंन्त्र है
ये सब जनता के नौकर है
इनकी इतनी मजाल

ओफ्फो! क्या मुसीबत है
पढ़े-लिखे मूर्खों को कुछ समझ नहीं आता
अच्छा है किताबों पर टैक्स लगा दिया
अरे जलाही देना चाहिए 
तर्क की फ़िज़ूल कुश्ती 
सिखाने वाली 
इन कागज़ की मंथराओं को

जान की सलामती चाहते हो 
तो मुँह पे ऊँगली रखकर निकल  लो तुम्हारे जैसों का ऐसा-वैसा हो जाता है
पता है ना कैसा… कैसा…!
आए बड़े…पढ़े-लिखे, इंसाफ़ज़ादे… !!

चेतना का तूफ़ान आने से पहले

70 सालों से 
अम्बानी-अडानी, टाटा-बिडलाओं ने
धीरज रख-रखकर
पकाई है ये फसल
जिसे काटने के लिए
बेरहमी में कुशल घोषित
कटाई चाकर लॉन्च करना ज़रूरी था

ताकि
चेतना का तूफ़ान आने से पहले
जल्दी-जल्दी
तिजोरियां भर ली जाएं

सो, माक़ूल
कटाई चाकरों को
ख़ास सुविधाएँ मुहैया हैं –
महँगी मशरूम खाकर गाल लाल करने की
शानदार सूट पहन इतराने की
विदेशों में मौज उड़ाने की
प्राइवेट जेट से खेतों में लैंड करने की
इंसानी लहू पीने की
जवाब तलब करने वाली ज़ुबान-ज़िस्म
हलाल करने की

और…बतौर सुरक्षा कवच
सेना, न्यायालयों, रीडर हितख़बरचियों, 
ख़ाकी वर्दियों, सूट-बूटबाबुओं, मशीनों
संचार तकनीकों स…बको 
लाइन हाज़िर कर दिया गया है

और हाँ…एहतियात के लिए
सत्ता की सेवा में
दुम हिलाता ब्राह्मणवाद,
पंडाचोटियों, इनकी पोथियों की
ब-हैसियत दरबान नियुक्ति 
कर दी गई है

ताकि
हर ख़लल का गला रेतकर
देश की जीवित अमूल्य संपदा 
तिजोरियों में सड़ाई जा सके और…इंसान को खरपतवार घोषित कर
(मज़दूर-किसान, आदिवासी-मुसलमान, शूद्र-पिछड़ों)
उखाड़ फेंका जा सके

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ISSN 2394-093X
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