बहन का प्रेमी: पांच कविताएं

पवन करण


पवन करण हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि है, ग्वालियर में रहते हैं. इनसे इनके ई मेल आई डी pawankaran64@rediffmail.com पर संम्पर्क किया जा सकता है.

( अब प्रेम का सप्ताह शुरू  हो गया है -वसंत भी दस्तक दिया ही चाहता है . पिछले दिनों प्रेम को दक्षिणपंथी राजनीति का शिकार बनाया जाने लगा है . इस  सप्ताह को लेकर चरमपंथी संगठनों का सलाना विरोध फिर से अपने चरम पर है . स्त्रीकाल ने प्रेम के इस सप्ताह को प्रेम की स्त्रीवादी कविताओं , रचनाओं , आलेखों को समर्पित किया है . आज पवन करण की कविता से शुरुआत करते हैं , आप भी करें सहयोग . ) 


एक
एक तय जगह पर मैं उसे अक्सर
खडे़ हुए देखता हूं उसकी निगाह बार-बार
मेरे घर पर जा टिकती है ?

वह मुझे देखकर वहां से हट जाए
यह सोचकर मैं उसे टकटकी लगाए
देर तक रहता हूं घूरता लेकिन मेरी
इस जिद का उस पर कोई असर नही होता

मेरी तरकश के तीरों को बखूबी झेलते हुए
आगे बढ़े यह उसका रोज का सिलसिला है

मैं छुपकर उसे कई दफे वहां से
अपनी बहन की तरफ उंगलियों की भाषा में
शब्द उछालते हुए देखता हूं
वह वहां खड़े होकर रोजाना
मेरी बहन के घर से बाहर झांकने और उससे
आंखें मिलना का करता है इन्तजार

मजा तो तब आता है जब मेरी बहन उससे
रूठ जाती है और वह दिन-दिन भर
उसके दिखाई देने की प्रतीक्षा में
वहां खड़े़-खड़े़ गुजार देता है

तब दिन-दिन भर मेरा घर
रात के आकाश की तरह
उसकी आॅखों में अटका रहता है

 दो
वह जल्दी-जल्दी एक सकरी गली में घुसता है
जो बहन के काॅलेज के रास्ते में खुलती है जाकर

गली के मुहाने पर उसे खडे़ हुए देखकर
घर से काॅलेज के लिए निकली बहन भी
छोडकर अपना रास्ता गली में घुस जाती है

फिर वह पूरी गली मजे ले-लेकर
मेरी बहन और उसके प्रेमी को
आपस में शिकवे-शिकायत करते
रूठते मनाते एक दूसरे को
चिट्ठियां  लेते-देते देखती है

गली का एक-एक घर उन्हें
लैला मजनू की तर्ज पर पहचानता है
और गली ही नही घर से काॅलेज के लिए
निकली सड़क भी मेरी बहन को
आते देखकर फुसफुसाने लगती है

देख वह गली के मुहाने पर खड़ा हो गया आकर
और अब देखना वह आएगी और उसे
गली पर खड़ा देख सीधे गली में घुस जाएगी

कई दफे तो वह यह कहते हुए
यार हम भी इतने बुरे नही
मेरी बहन को छेड़ भी देती है
लेकिन एक पकी हुई प्रेमिका की तरह
मेरी बहन पर किसी की बात का
केाई खास असर नही होता

 तीन

मोहल्ले-भर को यह बात पता है
उसके पास मेरी बहन का फोटो है
काॅलेज के परिचय-पत्र से खींचकर निकाला गया
मासूम चेहरे वाला एक श्वेत -श्याम  फोटो

जिसे वह अपने मित्रों को अपनी जेब से निकालकर
खेल में जीती हुई किसी ट्राॅफी की तरह दिखाता है
किसी खिलाड़ी की तरह जब वह सबके बीच
चूमता है उसे उस समय
उसके चेहरे की अकड़ देखते ही बनती है

फिर अपने मित्रों के बीच भी वह अकेला ही है
जिसके पास अपनी प्रेमिका का फोटो है
उसके मित्र उसे कई दफे तंग करने की नीयत से
उससे उस फोटो को छीनने की करते है कोशिश

लेकिन वह हर बार उसे मित्रों के हाथों में जाने से
बचा लेता है भले ही इसके बदले में उसे
अपने मित्रों को पड़ता हो कुछ खिलाना -पिलाना

मैं उससे भिड़ना चाहूं तो मेरी बहन के उससे
फंसे होने का इससे बड़ा सबूत
मेरे लिए और क्या हो सकता है
कि उसकी जेब में हमेशा मेरी बहन का फोटो रहता है

 चार 

अपने हर पत्र में बहन उससे अनुरोध करती है
पढ़ने के बाद मेरा पत्र फाड़कर फेंक देना

वह भी अपने हर खत में उसे भरोसा दिलाता है
पढ़ने के बाद मैंने तुम्हारे पत्र को
फाड़कर फेंक  दिया लेकिन न तो बहन ही
उसकी बात पर भरोसा करती है
और न ही वह उसके पत्रों को फेंकता है फाड़कर

सिर्फ उसके लिए घरती पर उतरी होने का
भरोसा दिलाती बहन और बस बहन के लिए
जीने का वादा करते उसके प्रेमी को
पत्रों के मामले में एक-दूसरे पर कतई विश्वास  नही

बहन के मन में यह आशंका हमेशा रेंगती रहती है
कहीं वह उसके पत्रों को अखबार की तरह सबकी
आंखों के सामने न बिछा दे

और बहन के प्रेमी को भी यह डर डसता ही रहता है
घर के कहने पर अपने कहीं किसी रोज
वह भूलकर प्रेम-व्रेम उस पर ही पलट जाए तब
तब ये पत्र ही होगे जो उस वक्त
उसे बचाने ढाल की तरह आएंगे उसके काम

पांच 
बहन की किताबों-कांपियों में कई दफे
रंगे हाथ पकड़ा गया प्रेमी का नाम
प्रेमी और उसकी मुलाकातें शिकायतों की शक्ल में
घर के कानों तक पहुंची

घर में पिता के हाथों बुरी तरह पिटी बहन
और मेरे हाथों सड़क पर खुलेआम पिटा प्रेमी
दस-दस रोज बहन को घर ने खुद से बाहर
नही निकलने दिया दो-दो तीन-तीन रोज
बहन के हाथों ने खाना छुआ तक नही

कई दफे नौबत बहन की पढ़ाई-लिखाई
रोक देने तक आ पहुंची
मोहल्ला छोड़कर चले जाने पर भी घर ने
गम्भीरता से किया विचार

बहन और उसके प्रेमी के बीच छाई हुई चुप्पी देखकर
कई दफे लगा जैसे उनके बीच नही रहा कुछ
लेकिन वह लगातार प्रेमी की सोच में
अनार की तरह फूटती रही
और वह भी निरंतर उसके भीतर सुलगता रहा

धीरे-धीरे प्रेम करती बहन और उसका प्रेमी
घर और मेरी दिनचर्या में होता गया शामिल
और मेरे भीतर का भाई
गलकर घर के फर्श पर टपकता रहा

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ISSN 2394-093X
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