बजरंग बिहारी तिवारी की पुस्तक ‘दलित साहित्य : एक अन्तर्यात्रा’ का 13 ॰09 ॰2015 को नई दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में लोकार्पण हुआ । बजरंग बिहारी तिवारी की यह किताब ‘नवारुण’ प्रकाशन की पहली पुस्तक है। इसके विमोचन में साहित्य की अलग –अलग विधाओं के लोग शामिल हुये, जिसमें जलेस के महसचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह , उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्लाह, दलित विमर्श के हीरालाल राजस्थानी, दलित स्त्री विमर्शकार हेमलता महीश्वर, दलित चिन्तक अनिता भारती, आलोचक आशुतोष कुमार, कथाकार और आलोचक संजीव कुमार, ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ के राष्ट्रीय संयोजक और ‘नवारुण’ प्रकाशन के संस्थापक संजय जोशी तथा वरिष्ठ चित्रकार व कथाकार अशोक भौमिक. कार्यक्रम का संचालन करते हुये रामनरेश राम ने इस पुस्तक की प्रकृति के विषय में संकेत किया कि यह पुस्तक तीन खण्डों में बंटी हुयी है – कविता, कहानी और आत्मकथन। यह दलित साहित्य के उद्भव विकास को लेकर दलित साहित्य की प्रस्थापनाओं से बहस करती हुयी, समर्थन करती हुयी उसमे कुछ जोड़ने के लिए प्रस्तावित करती है ।
उड़ीसा में हो रही संसाधनों की लूट पर लिखी किताब को कोई नहीं छापता – संजय जोशी
चूंकि ‘दलित साहित्य :एक अन्तर्यात्रा” नवारुण प्रकाशन की पहली पुस्तक है , इसलिए इसके संस्थापक संजय जोशी ने पुस्तक पर परिचर्चा होने से पहले ही अपने प्रकाशन की स्थापना के विषय में अपने विचार और आगे की कुछ योजनाओं को सबके साथ साझा किया । उनका कहना था कि ‘यदि नवारुण प्रकाशन दस साल तक काम करता है तो फिर गांधी शांति प्रतिष्ठान में पुस्तक के लोकार्पण की जरुरत नहीं पड़ेगी उन्होंने कहा कि कविता, कहानी उपन्यास तो सभी छाप रहे हैं परंतु उड़ीसा में हो रही संसाधनों की लूट पर लिखी किताब को कोई नहीं छापता। बच्चों के लिए अच्छी किताबें बहुत ही कम हैं, जो उनमें वैज्ञानिक चेतना को विकसित करें। उन्होंने आगे कहा कहा प्रकाशन का मैं मालिक नहीं हूँ और न ही बनने की इच्छा हैं। यह एक साझा प्रयास है जो आप सबके साझे सहयोग से ही सफल होगा । संजय जोशी ने कहा कि इस पुस्तक में जो कुछ भी सुंदर दिख रहा है उसका योगदान अशोक भौमिक को जाता है । इसके लिए मैं उन्हें शुक्रिया अदा करता हूँ । इस पुस्तक के डिजाइनर हरी कृष्ण का भी शुक्रिया अदा करता हूँ’।
बजरंग बिहारी तिवारी ने दलित साहित्य के लिए सेतु का काम किया है – हीरालाल राजस्थानी
पुस्तक पर बातचीत की शुरुआत करते हुए हीरालाल राजस्थानी ने कहा कि दलित साहित्य मे आलोचक बहुत ही कम हैं, बजरंग बिहारी तिवारी ने दलित साहित्य के लिए सेतु का काम किया है। यह काम जो बजरंग जी ने किया है हममें से किसी को करना चाहिए था । इन्होने दलित साहित्य के लिय उत्साह पैदा किया है । मैं इन्हें इस काम के लिए बधाई देना चाहता हूँ । साथ ही साथ नवारुण प्रकाशन के संजय जोशी जी को भी बधाई देना चाहता हूँ की उन्होने अपने प्रकाशन की शुरुआत दलित विमर्श से संबन्धित पुस्तक छापकर की । कमियाँ हर जगह होती है इस पुस्तक में भी कुछ रह गयी है । बजरंग जी से कुछ नाम छूट गए । क्यों छूट गए हैं इसको बजरंग जी की हो सकता है उन छूटे हुये नामों को लेकर आगे कोई योजना हो.’ उन्होने कहा कि दलित लेखन में हर तरफ से आवाज आ रही थी की दलित का लिखा ही दलित साहित्य होगा । यह सही भी है, परंतु जो गैर दलित लिख रहे हैं उनका भी स्वागत होना चाहिए । सभी तरफ से चीजें बदलनी चाहिए । गैर दलितों के लिखने से दलित साहित्य की स्वीकारोक्ति बढ़ेगी’ ।
यह किताब पूरे दलित समाज की यात्रा को दिखाती है – अनिता भारती
अनिता भारती का कहना था कि ‘इस बहुत ही खूबसूरत पुस्तक के लिए संजय जोशी जी को बधाई । बजरंग जी की पुस्तक पूरे दलित समाज की यात्रा को दिखाती है । यह दलित साहित्य के लिए इतिहास की किताब जैसी है । यदि मैं यह कहूँ कि यह पुस्तक दलित समाज के हर पहलू को छूते हुये चलती है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । लेखन के लिए अध्ययन से अधिक दृष्टि का महत्त्व होता है और बजरंग जी के पास वह दृष्टि है। बजरंग जी पर दलित- विमर्श पर काम करने के लिए तरह –तरह के सवाल उठाए गए लेकिन आज के समय मे इनके काम की महत्ता है. आलोचक जब किसी कविता को अपने दायरे मे लाता है तब वह उसे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश से जोड़ता है, बजरंग जी सूरजपाल चौहान और ओमप्रकाश बाल्मिकी की कविता को बहुत ही सही ढंग से कोट करते हैं । दलित साहित्य एक ऐसे समाज को रचना चाहता है जहां भेदभाव न हो, लोकतान्त्रिक मूल्य हो । बजरंग विहारी तिवारी जी दलित साहित्य को स्थापित करने वालों में ,उसका पक्ष रखने वाले हमारे साथी हैं। हम उन्हें अपना आलोचक मानते हैं। हीरालाल राजस्थानी की बात पर उन्होने कहा कि इतिहासकार और आलोचक मे फर्क होता है, इतिहास मे विवरण होता है और आलोचना मे एक दृष्टि काम करती है जिससे कुछ चीजें छूट ही जाती हैं ।‘
बजरंग बिहारी तिवारी जी हमारी दलित चेतना के पैरोकार है – प्रो हेमलता महीश्वर
प्रो हेमलता महीश्वर ने कहा कि ‘निश्चित ही बजरंग जी का यह काम महत्त्वपूर्ण है । दलित साहित्य जो स्वरूप ग्रहण किए हुये है वह किन पड़ावों को पार करता हुआ यहाँ तक पंहुचा है इसकी पड़ताल बजरंग जी ने की है । और यह यात्रा शुरू होती है बाबा साहब अंबेडकर से । उन्होने जब देखा हिन्दू धर्म मे हमारा सम्मान नहीं है तब बौद्ध धम्म की तरफ गए उसकी 22 प्रतिज्ञायेँ स्वीकार कीं । उन प्रतिज्ञाओं मे कोई जड़ता नहीं है । दलित विमर्श में दलित पैंथर आंदोलन का योगदान है। हेमलता जी ने स्वतन्त्रता के पहले और उसके बाद के अनेक आंकड़े बताए जिसमे दलितों का स्थान नगण्य था । यही कारण है की मराठी के नामदेव ढसाल, कांबले आदि चिंतक अपनी जगह तलाशते हुये आए’ । उनका कहना था कि ‘दलित विमर्श में तो कोई भी शामिल हो सकता है, लेकिन दलित चेतना में वही शामिल हो सकता है जो अंबेडकर की तरह ही उन 22 प्रतिज्ञाओं को मानता हो । बजरंग बिहारी तिवारी जी हमारी दलित चेतना के पैरोकार है । मैं बजरग जी ,नवारुण प्रकाशन के संजय जी को तथा आवरण चित्र के लिए सावी सावरकर जी को बधाई और धन्यवाद दोनों देती हूँ’ ।
ओमप्रकाश बाल्मिकी की कविता सूत्र है पूरे दलित आंदोलन को समझने के लिए – आशुतोष कुमार
युवा आलोचक आशुतोष कुमार ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ‘नवारुण प्रकाशन का शुरू होना आज के समय में बहुत प्रासंगिक है । नबारुण भट्टाचार्य की कविता ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’ आज हमारे कानों में गूंज रहा है’ । उनका कहना था कि ‘यह जो मृत्यु-उपत्यका जैसा दिखाई दे रहा है वह मेरे सपनों का देश नहीं हो सकता । लोग मारे जा रहे हैं, दलित मारे जा रहे हैं, आदिवासी मारे जा रहे है, घरों से बेघर किए जा रहे हैं, लेकिन यह राष्ट्रीय एजेंडा का सवाल नही बन पा रहा है उत्तर से लेकर सुदूर दक्षिण , पूर्वोतर, झारखंड सब जगह कानूनी हत्याएं हो रही हैं । आवाजों को दबाया जा रहा है। यह सिर्फ मीडिया पर एकाधिकार के चलते नहीं हो रहा है बल्कि शिक्षा, संस्कृति को भीतर से नष्ट करने की कोशिश हो रही है । इससे लड़ने के लिए जरूरी है कि बहस की जगहों को बचाया जाय । ऐसे माहौल मे बहस को कैसे तेज किया जाय यह उन लोंगों की ज़िम्मेदारी है जो अपने साधनों से लड़ रहे हैं । ओमप्रकाश बाल्मिकी की कविता सूत्र है पूरे दलित आंदोलन को समझने के लिए कि ‘चूहड़े या डोम की आत्मा ब्रह्म का अंश क्यों नहीं है’ । अब तक यह सवाल नहीं पूछा गया लेकिन नवारुण या शब्दारंभ का होना यह साबित करेगा कि यह सवाल भी पूछा जाएगा । बजरंग जी दस सालों से काम कर रहे हैं दलित साहित्य के अखिल परिदृश्य को हिन्दी के पाठकों तक पहुंचाया , भाषाएँ सीखी ,दलित साहित्य के स्रोतों तक गए । जहां तक सवाल है गैर दलित होने का तो दलित साहित्य के लिए यह जरूरी है कि भीतर की आलोचना के साथ बाहर से भी उसे देखा जाय । बजरंग जी गहराई से उन सारे सवालों को देख रहे है जो रचना प्रक्रिया के लिए जरूरी हैं । बजरंग जी गैर दलित होते हुये भी इससे जानबूझकर टकराते हैं । कोई उनकी आलोचना करे, सराहना करे लेकिन उनका नाम काटकर दलित विमर्श को नहीं देख सकता।‘
बजरंग के यहाँ चीजें बहुत विवरणात्मक ढंग से आई हैं और कहीं बहुत गहराई के साथ – संजीव कुमार
आलोचक संजीव कुमार ने कहा कि ‘आशुतोष ने बहुत महत्वपूर्ण बाते कही है, मैं संजय को बधाई देता हूँ । बजरंग को तो लगातार बोलना, लिखना है। लेकिन संजय ने जिस तरह सिनेमा के साथ किया उसी तरह नवारुण के साथ भी होगा। दलित लेखन पर बजरंग लगातार लिखते रहे हैं। कई सारी चीजें हैं जो पत्र-पत्रिकाओं में आई हैं पर तमाम चीजें हैं जिन्हें अभी मुकम्मल किताब रूप में आना है। फिर आपने देखा है कि बजरंग में कितना विस्तार और गहराई है। मैं विस्तार और गहराई को जानबूझ कर चुन रहा हूँ। क्योंकि बजरंग के यहाँ चीजें बहुत विवरणात्मक ढंग से आई हैं और कहीं बहुत गहराई के साथ। यद्यपि आशुतोष ने कहा कि यह लेखों का संकलन है लेकिन प्रबंधात्मक स्वरूप में। निबंधात्मक और प्रबंधात्मक प्रविधि का जो रहस्य होता है वह इस पुस्तक में है। दलित प्रश्न में अस्मिता नहीं बल्कि मुक्ति की कोशिश महत्त्वपूर्ण होती है, यही इनकी चिंता भी है। यही इनकी मार्क्सवादी समझ है। दलित रचनाशीलता के लिए शिल्प महत्त्वपूर्ण नहीं बल्कि कथ्य है, बजरंग यहाँ सरलीकरण करते हैं। शिल्प और कथ्य को अलग-अलग देखना ही सवाल का सरलीकरण है। इसी तरह जब दलित लेखक लिख रहे होते हैं कि ‘उनका कथ्य ही महत्त्वपूर्ण है’। यहाँ उनसे हम अभिजन सौंदर्य कि मांग नहीं करते, लेकिन जो बात कही जा रही है वह अपनी पूरी शक्ति के साथ आयी है कि नहीं कैसे पता चलेगा । कोई तो पैमाना होगा जिससे हम इसको कहानी या कविता कहें । इस बात को उन्होने कुछ उदाहरणों के साथ रखा । जैसे –खेत ठाकुर का ,बैल ठाकुर का ….. । यह सिर्फ कविता इसलिए नहीं है कि कवि कह रहा है बल्कि इसलिए भी है कि इसमे कविता के आवश्यक आस्वाद ,ध्वनि इसमे मौजूद है । यह एक ऐसा प्रसंग है जो बजरंग से छूटा है’ ।
पुस्तक बहुत ही महत्वपूर्ण और गवेषणात्मक- अब्दुल बिस्मिल्लाह
उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि यह पुस्तक बहुत ही महत्वपूर्ण और गवेषणात्मक है । इस किताब कि शुरुआत आदिकाल से हुयी है ,सरहपा से हुयी है । बजरंग विमर्श कि शुरुआत वहाँ से करते है फिर संत तक आते है’।
मैं मूलत कार्यकर्ता था लेकिन अब धीरे –धीरे लेखक बन गया हूँ – बजरंग बिहारी तिवारी
अध्यक्षीय वक्तव्य के पहले बजरंग जी ने इस पुस्तक के संदर्भ में अपनी बात संक्षेप में रखी । अपनी दलित विमर्श कि रचना प्रक्रिया के विषय में भी बताया है । बजरंग जी ने कहा कि ‘वे मूलत कार्यकर्ता था लेकिन धीरे –धीरे लेखक बन गया । अब भी कार्यकर्ता ही हूँ । जो चीजें इसमे छूट गयी है वे अगली योजनाओं का हिस्सा हैं’ ।
यह दलित साहित्य पर मुकम्मल किताब की दिशा में पहला ठोस कदम- मुरली मनोहर प्रसाद सिंह
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने कहा कि ‘यह दलित साहित्य पर मुकम्मल किताब की दिशा में पहला ठोस कदम है । मैं संजय जोशी को भी बधाई देता हूँ कि उन्होने पहली ही ऐसी पुस्तक छापी जिसकी बहुत जरूरत थी । यह पुस्तक 21 अध्यायों में विभक्त है जिसमे 4 वैचरिकी से संबन्धित है तथा शेष कविता कहानी ,आत्मकथा और दलित विमर्श से संबन्धित है । दलित विमर्श पर मुख्य धारा के साहित्य का दृष्टिकोण बहुत ही संकीर्ण है इसलिए इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्त्व है’ ।
कार्यक्रम मे आए हुये सभी लोगों और वक्ताओं का औपचारिक धन्यवाद अशोक भौमिक ने किया।