जारी अपील
( आरक्षण के समर्थन में इस प्रदर्शन के प्रसंग से भागीदारी के फर्क पर कार्यक्रम के बाद फॉरवर्ड प्रेस के संपादक प्रमोद रंजन ने बातचीत में कहा कि भागीदारी के असर का एक फर्क अपील में आये महापुरुषों के नाम में भी दिखता है. रजनी तिलक के होने से और हस्तक्षेप से आज जारी अपील में सावित्री बाई फुले का नाम जुड़ सका अन्यथा पहली ड्राफ्टिंग में महात्मा फुले और डा.आम्बेडकर का ही नाम रखा गया था. )
पिछले कुछ वर्षों से समाज के विभिन्न समूहों में सरकारी नौकरियों में सुविधिाओं और भागीदारी को लेकर एक आकर्षण विकसित हुआ है। इसके फलस्वरूप समय–समय पर विभिन्न जाति समुदायों ने अपने आंदोलन विकसित किये हैं। कभी बिहार और उत्तर प्रदेश में कुछेक सवर्ण और द्विज जातियां तो कभी पश्चिमी राज्यों के जाट–गुर्जर इस तरह की मांग उठाते रहे हैं। फिलहाल पाटीदारों का आंदोलन चर्चा में है और इसे लेकर समाज में अनेक तरह के विचार विकसित हो रहे हैं।
जैसा कि सब जानते हैं कि पाटीदार गुजरात की किसान जाति है, जो सामाजिक श्रेणी में तो शायद अद्विज है, लेकिन उनकी आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक स्थिति ऐसी है, जिसे पिछडा वर्ग में नहीं रखा जा सकता। वहां के कॉरपोरेट सेक्टर में उनकी अच्छी–खासी उपस्थिति है। हीरा और होटल उद्येाग पर उनका प्रभावशाली अधिकार है। पाटीदारों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यह है कि वे स्वतंत्र भारत में लगातार दलितों और पिछडों के आरक्षण का विरोध करते रहे हैं। अब जाकर उनके तरूण नेता हार्दिक पटेल को खुद को ओबीसी सूची में शामिल करने और पाटीदारों को आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं।
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपने समुदाय के लिए विभिन्न प्रकार की सहूलियतें मांगने का हक सभी को है। लेकिन पाटीदार समुदाय के नेता हार्दिक पटेल जिस भाषा और तर्क के साथ आरक्षण की मांग कर रहे हैं, उसकी धूर्तता पर दलित–पिछडा–अल्पसंख्यक समाज के लोगों को कडी नजर रखनी चाहिए। उनका जोर अपने समुदाय को आरक्षण के दायरे में लाने से ज्यादा आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था को निर्मूल करने तथा हिंसक हिंदूवादी–सामंतवादी मूल्यों का प्रसार करने में हैं। इस पूरे मामले पर एक विहंगम दृष्टि डालें।
पाटीदारों का कहना है कि उन्हें आरक्षण के दायरे में ओबीसी के लिए निर्धारित 27 फीसदी के अंतर्गत ही लाया जाए। वे चाहते तो अपने समुदाय के लिए अलग से विशेष आरक्षण की मांग कर आरक्षण की मौजूदा 50 फीसदी की सीलिंग को बढाने के लिए दबाव बना सकते थे। ऐसा कर वे बहुजन समुदाय की इस पुरानी मांग के साथ सहयोगी की भूमिका में आ सकते थे। लेकिन इसकी जगह वे दलित–पिछडे समुदायों के प्रतिभाशाली युवाओं के सामान्य वर्ग की सीटों पर चुने का जाने का विरोध कर रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि वे देश की 85 फीसदी शूद्र– अतिशूद्र– अद्विज आबादी (स्वयं पाटीदार भी जिसका हिस्सा हैं) को 50 फीसदी आरक्षण के बाडे ही रखे जाने की वकालत कर रहे हैं।
इस आंदोलन के बहाने न सिर्फ खुले तौर पर आरक्षण को आर्थिक आधार पर लागू करने को लेकर बहस चलाने की कोशिश की जा रही है बल्कि बहुजन (दलित–ओबीसी व अल्पसंख्यक) एकता को भी खंडित करने की कोशिश की जा रही है। आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल और उनसे जुडी हिंदूत्ववादी शक्तियों के निम्नांकित मुख्य उद्देश्य प्रतीत होते हैं :
ओबीसी आरक्षण को आर्थिक आधार पर लागू करवाना
मूल ओबीसी में शामिल जातियों को एक–दूसरे विरूद्ध खडा करना
पाटीदार आरक्षण के नाम पर संपन्न जाटों और मराठाओं के द्वारा की जा रही आरक्षण की मांग को बढावा देना
अनूसूचित जाति–जनजाति को मिल रहे आरक्षण में भी क्रिमी लेयर को लागू करवाना
बहुजन तबकों में अल्पसंख्यक, विशेषकर मुसलमानों के लिए विद्वेष को बढाना
इन कारणों से हम दलित–पिछडे और अल्पसंख्यक समुदाय के समाजिक कायकर्ता अपने राजनेता और आम जनता से अपील करते हैं कि :
अनुसूचित जाति–जनजाति की बढी हुई आबादी के अनुपात में आरक्षण का प्रतिशत बढाने के लिए सरकार पर दवाब बनाएं ।
जाति जनगणना के आंकडे शीघ्र जारी कर ओबीसी को भी आबादी के अनुसार आरक्षण देने की मांग तेज करें।
पाटीदार आंदोलन के बहाने सामाजिक न्याय की समतामूलक अवधारणा को नष्ट करने को कोशिश करने वाली ताकतों पर कडी नजर रखें
ऐसे किसी भी संगठन, राजनीतिक दल अथवा विचार को समर्थन न दें जो आरक्षण के मूल सिद्धतों पर कुठाराघात करता हो
दलित–ओबीसी और अल्पसंख्यक एकता को बनाए रखें तथा समाज विरोधी शक्तियों का मुकबला करने के लिए महात्मा जोतिबा फूले, सावित्री बाई फूले– डॉ. बाबा साहब आम्बेडर द्वारा बताये गये रास्ते का अनुसरण करें।
संपर्क : 08826669024 (रजनी तिलक)
रिपोर्ट : अरुण कुमार प्रियम