असहिष्णुता/ क्रूरता के खिलाफ एक आयोजन

पुष्पा विवेक 


दलित लेखक संघ के तत्वाधान में  एक  विचार गोष्ठी का आयोजन 15 नवम्बर 2015 एफ- 19 कनॉट पैलेस दिल्ली में सम्पन्न हुआ . वक्ताओं ने ‘ आरक्षण:  दलित- पिछड़ों की भागीदारी’ और ‘बढ़ती असहिष्णुता का ज़िम्मेदार कौन’ , दो  अलग -अलग विषयों पर अपने विचार रखे .  मुख्य अतिथि के तौर पर अशोक वाजपेयी ने कहा कि ‘हम अभी तक साम्प्रदायिकता को बहुत सीमित करके आंक रहे थे। इसमें उपेक्षितों की बात भी शामिल होनी बहुत ज़रूरी है। तभी सामाजिक विषमताएं ख़त्म की जा सकती हैं।’ उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिकता को धर्म से आगे जाति तक के विस्तार में देखा जाना चाहिए.  मुख्य अतिथि एवम  दलित और स्त्रीवादी चिंतक विमल थोरात ने अपने वकतव्य  में कहा कि ‘  दलितों के प्रति समाज में जो रवैया है, उसे असहिष्णुता की  बजाय क्रूरता कहा जाना चाहिए।’आरक्षण का मुद्दा हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है क्योंकि इसपर छेड -छाड के खतरे बने हुए हैं.’ सञ्चालन के दौरान हीरालाल राजस्थानी ने कहा कि ‘ हम लेखकों को अपनी-अपनी विचारधाराओं में रह कर इस बढ़ती हुए असहिष्णुता पर मिलकर चोट करनी होगी। क्योंकि आखिरकार हमारा ध्येय  तो मानवता का हित ही है।’ कार्यक्रम के अध्यक्ष रहे कर्मशील भारती ने अपने अध्यक्षीय वक्त्व में कहा कि ‘ यह समय जागने का है और परिवर्तन के अनुकूल भी है। क्योंकि अनेक लेखक संगठन एक साथ हुए हैं। इस ऊर्जा को सहेजकर आगे बढ़ना चाहिए।’

विशिष्ठ अतिथि के तौर पर के. पी. चौधरी ने कहा, ‘  हम व्यक्तिगत तौर पर संवेदनहीन हो गए हैं यदि सामाजिक व्यवस्था में सुधार लाना है तो हमें अपने निजी लालचों को दरकिनार करना होगा। वरिष्ठ आलोचक मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने कहा कि ‘ यह सही है कि दलित उत्पीड़न, हत्याएं आम बात होती जा रही हैं तथा आरोप- प्रत्यारोप के ज़रिये भी शोषण बढ़ा है।. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण लागू कराये जाने की कठिनाइयों का इतिहास भी सामने रखा.

अन्य वक्ताओं में डॉ.सुधीर सागर ने कहा, ‘ यदि आरक्षण होने के बावजूद भी दलितों की हत्याएं हो रही है तो आरक्षण और भी लाज़मी हो जाता है।’  डॉ. रतनलाल ने अनेक क्षेत्रों का हवाला देते हुए कहा कि ‘ अभी कई क्षेत्रों में आरक्षण लागू ही नहीं है और जब तक सामाजिक विषमताएं बनी रहेंगी तब तक आरक्षण की प्रसांगिगता बनी रहेगी।’ संजीव कुमार ने कहा ‘ हमें अपनी सामूहिक शक्तियों को पहचानकर अमानवीय ताकतों को सबक सीखना होगा। क्योंकि धार्मिक परिवेश में पाप की परिभाषाएं बदल जाती हैं।’ संजीव चन्दन ने आरक्षण के कारण  ओ बी सी और दलितों के बीच बने मध्यम वर्ग और उसकी सकारात्मक भूमिका को चिह्नित किया. और क्रीमी लेयर की बात को बकवास बताया, तब तक जब तक भागीदारी का अनुपात पूरा न हो .  अनीता भारती ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘ दलित उत्पीड़न भारतीय व्यवस्था की नियति बनती जा रही है जिसे हम सबको मिलकर रोकना है।’  उमराव सिंह जाटव ने कहा कि ‘ दलितों को अपने में गुणनातमक बदलाव लाने होंगे।’  मामचंद रिवाड़िया, सूरजपाल चौहान आदि ने भी अपने – अपने विचार प्रकट किये। अरविन्द शेष, बलविन्द्र बलि, बजरंग बिहारी तिवारी,राम सिंह दिनकर, कामता प्रसाद मोर्य, कुलीना कुमारी व चन्द्रकान्ता सिवाल सहित अनेक लेखक , शोधार्थी  और अन्य लोग  भी मौजूद थे। मंच सञ्चालन हीरालाल राजस्थानी ने किया व धन्यवाद ज्ञापन पुष्पा विवेक ने किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here