बहुजन भारत के शौर्य-मेधा का प्रतीक बनी हिमा दास

स्त्रीकाल डेस्क 


फ़िनलैंड के टैम्पेयर शहर में 18 साल की हिमा दास ने 12 जुलाई को इतिहास रचते हुए आईएएएफ़ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में पहला स्थान प्राप्त किया. हिमा विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप की ट्रैक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय हैं. किसान परिवार से आने वाली हिमा असम के नौगांव ज़िले की रहने वाली हैं. पिता-माता उनकी कोचिंग का खर्च उठाने की स्थिति में भी नहीं थे. कोच निपुण दास ने उन्हें ट्रेंड किया.

हिमा दास पीटी उषा के साथ

हिमा दास की इस शानदार उपलब्धि की दावेदारी को लेकर हालांकि सोशल मीडिया में बहस छिड़ गयी है. आरक्षण विरोधी और कथित मेरिट के दावेदार हिमा को अपना बता रहे हैं, ब्राह्मण परिवार से बता रहे हैं वहीं कथित मेरिट को अवसर की समानता से जोड़ने वाले आरक्षण समर्थक उसे बहुजन समाज की नायिका बताते हुए मेरिट के मिथ के खिलाफ लिख रहे हैं.

सोशल मीडिया में बहुजन विचारक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं: 

क हायपोथिसिस पर विचार करें.
अमेरिका में जब रंगभेद चरम पर था, शासन-प्रशासन, शिक्षा, बिजनेस वगैरह क्षेत्रों में ब्लैक्स को आगे आने से रोका जा रहा था, तो अश्वेत लोगों ने दो क्षेत्रों में खुद को झोंक दिया.
कला-संगीत और खेल.
इन दो क्षेत्रों में अमेरिका में अश्वेत लोगों ने वह कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी वहां के श्वेत नहीं कर सकते थे. वहां एक से एक प्रतिभाएं अश्वेतों के बीच से निकलकर आईं और सारी दुनिया पर छा गईं.
अब वहां का सिस्टम अश्वेतों के प्रति पहले से उदार है और एक ब्लैक बराक ओबामा को वहां के श्वेतों ने ह्वाइट हाउस भेजा.
दो सवाल है –
1. क्या भारत में भी यही दोहराया जा रहा है? हिमा दास, दीपा कर्मकार, उमेश यादव, कुलदीप यादव, पा. रंजीत, नागराज मंजुले….लिस्ट लंबी हो रही है.
2. क्या भारत में मुसलमान संगीत, फिल्म और खेल में बेहतर कर रहे हैं, तो इससे मेरी हायपोथिसिस की पुष्टि होती है?

हालांकि इस बीच विकी बायोग्राफी नामक साईट में हिमा दास की जाति बंगाली ब्राह्मण बतायी जा रही है. इसपर तीखी प्रतिक्रया देते हुए आलोक रंजन अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं ‘ब्राह्मणो से नीच और घटिया मानसिकता का इंसान पूरी दुनिया में कोई नही हो सकता, ये देखिये कैसे ब्राह्मण चाल चलते हैं.’

इस बीच एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने हिमा दास के ठीक से अंग्रेजी न बोल पाने पर एक ट्वीट कर दिया , जिसकी चौतरफा निंदा शुरू हुई. बहुजन विचारक और नेता मनीषा बांगर ने इसके खिलाफ एक के बाद एक तंज कसते हुए पोस्ट लिखे. एक पोस्ट में उन्होंने लिखा ‘Mallya और Nirav इतनी रफ्तार से English बोले की 100 करोड़/ मिनिट की स्पीड से भारत को लूट के फ़रार हो गये.’ 

फेडरेशन की चौतरफा निंदा के बाद उसने अपने बयान पर क्षमा मांग ली: 13 जुलाई को ट्वीट कर फेडरेशन ने लिखा : ‘सभी भारतवासियों से क्षमा अगर हमारी एक TWEET से आप आहत हुए है!असल उद्देश्य यह दर्शाना था कि हमारी धाविका किसी भी कठनाई से नहीं घबराती, मैदान के अंदर या बाहर! छोटे से गाँव से आने के बावजूद, विदेश में अंग्रेजी पत्रकार से बेझिझक बात की! एक बार फिर उनसे क्षमा जो नाराज हैं,  जय हिन्द!’

संजय बौद्ध ने लिखा, ‘ये तस्वीर देख के महापुरुषों का एक कथन ध्यान आ गया की – “अछूतो को अगर फटे हुए बांस उठाने का भी अधिकार होता तो शायद ये देश कभी गुलाम नहीं होता…!”


Reservation Is Our Right For Equality नामक फेसबुक पेज से लेकर कई और पेज पर यह लिखा गया: 
दलित समाज की धानुक  जाति में पैदा हुई हिमा दास ने जीता 400 मीटर दौड़ में जीता गोल्ड मैडल। किया भारत का नाम किया रौशन 
हिमा दास, असम के छोटे से गांव की 18 साल की मासूम सी लड़की जिसने आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर देश का गौरव बढाया है ।
इस इवेंट में देश को पहली बार गोल्ड मेडल हासिल हुआ है। हिमा ने महिला, पुरुष, जूनियर, सीनियर सभी वर्गों में पहली बार वर्ल्ड ट्रैक इवेन्ट में गोल्ड जीता है वो भी 51.46 सेकेण्ड के रिकॉर्ड समय में। 
जो काम अब तक कोई भारतीय नहीं कर पाया वो हिमा ने किया है। 
बहुजन समाज की शेरनी हिमा असम के नगाँव जिले के धींग के पास कंधूलिमरी गाँव से हैं। उसके पिता रोंजीत दास और मां जोमालि चावल की खेती करते हैं। बेहद गरीब परिवार से आने वाली हिमा 6 बहन-भाइयों में सबसे बड़ी है। तमाम मुश्किलों को हराते हुए हिमा ने ये क़ामयाबी हासिल की है।


शाबाश हिमा! तुमने हर आम लड़की के सपने को हिम्मत दी है ।
अब कुछ और लडकियां जिनके सपने आखों में ही मार दिये जाते हैं ऐसे सपने साकार करने के लिए आगे आयेंगी।
?बधाई हिमा ढेरो बधाई?
आरक्षण विरोधियों, ये है बहुजनों की मेरिट।तुम हमारी मेरिट से डरते हो 
जय भीम जय संविधान

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