फ्रेंच लेखिका एनी अर्नो (साहित्य की नॉबेल विजेता ) के 15 कथन

एनी का तमाम लेखन आत्मकथात्मक और ‘सत्य की चीर-फाड़’ करने वाला है। माना जाता है कि अपने जीवन को ही वे छद्म-पात्र-रचना (Impersonating) के ज़रिए प्रस्तुत करती रही हैं। उनके लेखन में उनकी माँ का अल्ज़ाइमर और उनका अपना कैन्सर भी है। वे एक साहसी महिला रही हैं। उन्होंने एक शादीशुदा विदेशी राजनयिक से प्रेम-संबंध रखा और उस समय गर्भपात कराया जब फ़्रांस में यह क़ानूनन अवैध था। प्रस्तुत हैं अंग्रेज़ी से अनूदित उनके कुछ महत्त्वपूर्ण उद्धरण-

 

  • “मैं समय और मृत्यु से जूझने के लिए लिखती हूँ। समय मेरे लेखन में हमेशा एक अहम किरदार रहा है।”
  • “सामाजिक उन्नति निर्वासन का ही एक रूप है। आप एक पूरा-का-पूरा संसार पीछे छोड़ते हुए, एक तरह से अपने आप को अलविदा कहते हैं। यह कठिन है।”
  • “स्वनिर्णय और सामाजिक उन्नति बहुत कठिन है- किन्तु यह आज भी संभव है।”
  • “जब आप अपने मूल सामाजिक-वर्ग से भागने की कोशिश करते हैं। जैसी मैंने कोशिश की, वापसी की, अपनी पढ़ाई के साथ, आप अक्सर ख़ुद से पूछते हैं: मुझे क्या परेशान करने वाला है? आख़िर में मुझे क्या रोकेगा ?  जब मैंने देखा कि मैं गर्भ से हूँ तो यह अचानक मुझ पर तारी हो गया : यह मेरी देह होगी, यही मुझे रोकेगी। उस समय अविवाहित गर्भवती ग़रीबी का प्रतीक थी। यह गारण्टी थी कि कभी तुम्हें मुक्त नहीं किया जाएगा। यह सब ख़त्म हो गया था।”
  • “मैं बस आगे बढ़ती रही। और इस सरकार के प्रतिबन्ध से ख़ुद को (गर्भपात करवाने से) रुकने नहीं दिया।”
  • “सच कहूँ, तो जो कुछ मैंने देखा और सुना है, उसे खोने के बज़ाय मैं मर जाना पसन्द करूँगी।”
  • “मैं ऐसी लेखक नहीं जो केवल जज़्बात को ध्यान में रखती है और यह ‘द इयर्स’ की विषय-वस्तु भी नहीं है। प्रमुख बिन्दु है निजता के बारे में न बोलना। निजी को तस्वीरों के विवरणों से भी एकत्र किया जा सकता है। मैं एक तस्वीर पर (हरेक दशक के लिए) वस्त्रों, प्रकाश और स्थानों को विवरणों के साथ उस क्षण रख सकती हूँ। तस्वीरों के माध्यम से मैं अपने पिता और बच्चों की मृत्यु का स्पर्श कर सकती हूँ, बहुत मुख़्तसर, लेकिन प्रायः मैं जज़्बात के बारे में नहीं बोलती।”
  • “ये दुर्लभ था, लेकिन मैं एक अकेली बच्ची थी- मेरी बहन मेरे जन्म से पूर्व ही मर चुकी थी। और क्योंकि मेरी माँ एक मज़बूत शख़्सियत थीं और पढ़ने से उन्हें प्यार था, मैं आगे बढ़ी थी। हाँ, इसने मेरे और मेरे परिवार के मध्य एक दूरी पैदा कर दी। चालीस साल पहले यही दूरी मेरी पहली क़िताब का विषय थी।”
  • “’मी टू’ पर मेरी पूर्ण सहमति है। निश्चित रूप से उसमें कुछ अति(याँ) हैं, किन्तु ख़ास बात यह है कि स्त्रियाँ इस तरह के व्यवहार को और अधिक स्वीकार नहीं करेंगी। फ़्रांस में हम सिडक्शन के बारे में बहुत सुनते हैं, परन्तु यह सिडक्शन नहीं है, पुरुष-प्रभुता है। दुराचार केवल यौन मामलों में ही नहीं है, साहित्य समेत यह प्रत्येक जगह है। महिला लेखकों को टेलीविज़न- कार्यक्रमों में बहुत कम आगे किया जाता है, वहाँ प्रत्येक स्त्री पर तीन मर्द होते हैं। वहाँ पर एक यह भी ख़याल है कि महिला केवल उपन्यासकार है और मर्द लेखक।”
  • “चुनाव करना कठिन है। मैंने जर्मेन ग्रीअर की ‘दि फ़ीमेल यूनक्’  उस समय पढ़ी, जब पढ़ना महत्त्वपूर्ण होता है और उसने मेरे लिखने के ढंग को प्रभावित किया। सार्त्र की ‘ला नौज़ी’ सिमोन की ‘दि सेकेंड सेक्स’ और वर्जीनिया वुल्फ़, एक अद्भुत लेखक, को मैंने अपने बीसवें साल में खोजा, और जॉर्ज पेरेक्। तमाम क़िताबें हैं जिन्हें मैं पढ़ना चाहती थी फिर उनके जैसा ही लिखना भी। मेरे लिए, केवल कहानी और विषय-वस्तु ही नहीं, शिल्प भी मायने रखता है।
  • “मैंने लिखा है, लाखों लड़कियों और औरतों पर की गई बर्बरताओं की स्मृति को सुरक्षित करने के लिए।”
  • मेरे बचपन की आँखें कहाँ हैं? वे डरे-डरे नयन जो उसके पास तीस साल पहले थे। आँखें, जिन्होंने मुझे बनाया?”
  • दुःख को बरकरार नहीं रखा जा सकता है। उसे परिमार्जित कर हास्य में परिवर्तित कर देना चाहिए।
  • “अस्तित्त्व में होना बिना प्यास के ख़ुद को पीना है।”
  • “बूढ़ा होना फ़ीका हो जाना है, पारदर्शी बन जाना।”

 

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ISSN 2394-093X
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