भारतीय महिलाओं के अधिकार: अतीत से वर्तमान तक की यात्रा 

  भारतीय महिलाओं के अधिकार: अतीत से वर्तमान तक की यात्रा     आकांक्षा  भदौरिया

शोध सार – भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों के ऐतिहासिक, सामाजिक व संवैधानिक विकास का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। प्राचीन वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा, धार्मिक अनुष्ठानों और समाज में समान अधिकार प्राप्त थे किंतु मध्यकाल में पितृसत्तात्मक व्यवस्था, बाल विवाह, सती प्रथा और पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों के कारण उनकी स्थिति में गंभीर गिरावट आई। आधुनिक काल में 19वीं शताब्दी के सामाजिक सुधार आंदोलनों जैसे राजा राममोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर द्वारा किए गए प्रयासों ने महिलाओं के अधिकारों की पुनः स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय संविधान ने महिलाओं को समानता, गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कई मौलिक अधिकार प्रदान किए जिनमें अनुच्छेद 14, 15, 16, 39 और 42 प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कानून व योजनाएं लागू की गईं जैसे – ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘महिला समाख्या योजना’, और ‘दहेज प्रतिषेध अधिनियम’। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महिलाओं के अधिकारों को लेकर मैक्सिको, नैरोबी और बीजिंग जैसे सम्मेलन आयोजित किए गए।

बीज शब्द – महिला अधिकार, लैंगिक समानता, संविधान और महिला, घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, बाल विवाह, बलात्कार कानून, महिला आयोग , सरकारी योजनाएँ और संयुक्त राष्ट्र महिला सम्मेलन।

मूल आलेख – महिलाओं के अधिकारों पर विचार करते हुए यह समझना जरूरी है कि प्रत्येक समाज और संस्कृति ने महिलाओं की भूमिका और उनके अधिकारों को अलग रूप में देखा है। महिलाओं के अधिकारों का इतिहास उनके शोषण और उत्थान की कहानियों से भरा पड़ा है। विभिन्न युगों में महिलाओं को अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना पड़ा जबकि समाज के कुछ हिस्सों ने महिलाओं को समानता और स्वतंत्रता प्रदान की है। यह आलेख महिलाओं के अधिकारों के ऐतिहासिक और संवैधानिक दृष्टिकोण को गहराई से समझने का प्रयास करेगा।

महिलाओं के अधिकारों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य –

वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा, धर्म, और समाज में समान अधिकार प्राप्त थे। उदाहरण के लिए, ऋग्वेद, उपनिषदों, और अन्य ग्रंथों में गार्गी, मैत्रेयी, घोषा, और अपाला जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है  जिन्होंने वेदाध्ययन, दर्शन, और तर्कशास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था और जाति आधारित भेदभाव में वृद्धि हुई। इससे शूद्र और महिलाओं को उच्च शिक्षा से वंचित कर दिया गया। उपनयन संस्कार जो शिक्षा की शुरुआत मानी जाती थी अब केवल उच्च वर्ण के लड़कों तक सीमित हो गया  धर्मशास्त्रों में महिलाओं के लिए शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी के अधिकारों में कमी आई। मनुस्मृति और अन्य ग्रंथों में महिलाओं को घर की देखभाल करने वाली और पुरुषों के अधीन रहने वाली माना गया जिससे उनकी सामाजिक स्थिति कमजोर हुई । बाल विवाह की प्रथा बढ़ी जिससे लड़कियों की शिक्षा और व्यक्तिगत विकास में रुकावट आई । विवाह की आयु में कमी ने भी उनकी स्वतंत्रता और शिक्षा के अवसरों को सीमित किया ।

गुरुकुलों में प्रवेश अब केवल उच्च जाति के लड़कों तक सीमित हो गया। सामान्य परिवारों की लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह गईं  क्योंकि उनके लिए कोई विशेष शिक्षा संस्थान नहीं थे । समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता बढ़ी जिससे महिलाओं को घर की देखभाल करने वाली और पुरुषों के अधीन रहने वाली माना गया। इससे उनकी सामाजिक स्थिति कमजोर हुई और उन्हें शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी के अवसर कम मिले । इन कारणों से महिलाओं की शिक्षा और समाज में उनकी भूमिका में गिरावट आई। हालांकि कुछ विदुषी महिलाएँ जैसे गार्गी और मैत्रेयी ने दार्शनिक चर्चाओं में भाग लिया लेकिन सामान्य महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसर सीमित हो गए।

बोद्ध काल मे महिलाओं की स्थति में कुछ सुधार देखने को मिलता है गौतम बुद्ध ने महिलाओं को संन्यास (भिक्षुणी संघ) में शामिल होने की अनुमति दी। यह उस समय की एक क्रांतिकारी घटना थी क्योंकि वैदिक काल में महिलाओं को आम तौर पर धार्मिक जीवन से बाहर रखा जाता था।  बुद्ध ने शुरुआत में महिलाओं को संघ में शामिल करने से मना किया था। लेकिन महाप्रजापति गौतमी (उनकी मौसी और पालन करने वाली माता) के आग्रह पर उन्होंने अनुमति दी। भिक्षुणियों के लिए पुरुषों की अपेक्षा अधिक नियम बनाए गए (प्रतीमोक्ष) जिससे यह स्पष्ट होता है कि समानता की भावना तो थी लेकिन पूर्ण समानता नहीं थी।

बौद्ध संघ में महिलाएं शिक्षित हो सकती थीं धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर सकती थीं और उपदेश दे सकती थीं। थेरिगाथा (भिक्षुणियों के उपदेश और अनुभवों की रचनाएँ) इस बात का प्रमाण हैं कि महिलाओं को बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।

अधिकतर समाज अभी भी पितृसत्तात्मक था। महिला का जीवन परिवार और विवाह तक सीमित माना जाता था। विधवाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ता था। लेकिन बौद्ध धर्म ने जाति-पांति और लिंग भेद को कम करने की कोशिश की।  वैशाली की अंबपाली एक गणिका (राजनर्तकी) थी जो बाद में बौद्ध भिक्षुणी बनीं। अंबपाली का बुद्ध के प्रति आकर्षण और उनका बौद्ध संघ में प्रवेश दर्शाता है कि बौद्ध धर्म ने समाज के हाशिए पर खड़ी महिलाओं को भी जगह दी।

मध्यकाल और महिलाओं के अधिकार –                                                                        

मध्यकाल में भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय हो गई थी। इस समय में दहेज प्रथा, बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं ने महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों को और सीमित किया। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत में आगमन के बाद महिलाओं की स्थिति और भी अधिक अव्यवस्थित हो गई थी। उनकी सामाजिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता छीन ली गई थी और वे महलों तक सीमित रह गईं।

इसके बावजूद कुछ क्षेत्रों में महिलाओं को सम्मान प्राप्त था। उदाहरण के तौर पर मुगल  साम्राज्य में महिलाओं को कला और संस्कृति में हिस्सा लेने का अवसर था। अकबर के दरबार में बहलुल लोदी और मीरज़ा शाहीन जैसी महिलाओं को विशेष सम्मान प्राप्त था।

आधुनिक काल में महिलाओं के अधिकार – 

आधुनिक काल में विशेषकर 18वीं और 19वीं शताबदी में महिलाओं के अधिकारों की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार आया। इंग्लैंड फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों में महिलाओं के अधिकारों के लिए आंदोलनों की शुरुआत हुई। अमेरिका में 1848 में ‘Seneca Falls Convention’ का आयोजन हुआ जिसमें महिलाओं के समान अधिकारों के लिए जोरदार मांग उठाई गई। ब्रिटेन में 1900 तक महिलाओं ने शिक्षा वोटिंग और संपत्ति अधिकारों की लड़ाई लड़ी। वहीं भारत में भी अंग्रेजों के शासन के दौरान महिलाओं के अधिकारों को लेकर विभिन्न सुधारात्मक प्रयास किए गए।

भारत में राजा राममोहन राय सामाज सुधारक महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रहे थे। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया जिससे 1829 में सती प्रथा पर रोक लगी। इसके अलावा दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी उनके प्रयास उल्लेखनीय रहे। 19वीं शताबदी में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार मिलने लगा और प्रमुख महिला नेताओं जैसे कि सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी और बेगम रोशनी ने महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

संविधान और महिलाओं के अधिकार- 

भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं के अधिकारों के लिए संविधान के माध्यम से कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई। भारतीय संविधान 1950 में लागू हुआ और यह सुनिश्चित किया गया कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त होंगे। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,39 और 42 महिलाओं के अधिकारों को प्राथमिकता देते हैं।

अनुच्छेद 14 – यह अनुच्छेद समानता का अधिकार देता है और इसे सुनिश्चित करता है कि भारत के सभी नागरिकों को समान संरक्षण प्राप्त होगा। इसमें महिला और पुरुष के बीच किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होगा।

अनुच्छेद 15 – इस अनुच्छेद के तहत धर्म जाति लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह महिलाओं को समान अधिकारों का हकदार बनाता है।

अनुच्छेद 16 – यह अनुच्छेद रोजगार में समान अवसर की बात करता है जिसमें महिलाओं को भी समान अवसर प्रदान किए जाते हैं।

अनुच्छेद 39 – इसमें विशेष रूप से यह कहा गया है कि महिलाओं को कामकाजी स्थल पर समान वेतन काम करने की स्वच्छ और सुरक्षित स्थिति और मातृत्व का अधिकार मिलेगा। 

अनुच्छेद 42 – इस अनुच्छेद में यह सुनिश्चित किया गया है कि महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कल्याण योजनाएँ बनाई जाएं ताकि उन्हें अच्छे स्वास्थ्य शिक्षा और विकास के अवसर प्राप्त हो सकें।

महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा हेतु आयोग और कानून –

भारत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए कई आयोगों और कानूनों की स्थापना की गई है। – 

राष्ट्रीय महिला आयोग (1992) – महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने और उनके कल्याण के लिए काम करता है। यह आयोग महिलाओं के खिलाफ हिंसा भेदभाव और शोषण के मामलों में काम करता है।

महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय – महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएँ संचालित करता है।

दहेज प्रथा निरोधक कानून (1961) – दहेज प्रथा के खिलाफ कड़े प्रावधान।

बाल विवाह निरोधक कानून (2006) – बाल विवाह को रोकने हेतु कानून।

भारत सरकार के कदम –

भारत सरकार ने महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने और उनके उत्थान के लिए कई योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की है। इनमें प्रमुख हैं:

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना – महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने और बालिकाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए।

स्वास्थ्य सुविधाएँ – महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के लिए विभिन्न स्वास्थ्य योजनाएँ लागू की गई हैं।

महिला सशक्तिकरण योजनाएँ – महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए कई योजनाएँ शुरू की गई हैं।

निष्कर्ष:

महिलाओं के अधिकारों पर आधारित यह लेख यह स्पष्ट करता है कि समय के साथ महिलाओं की स्थिति में बदलाव तो आया है लेकिन समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव रूढ़िवादी सोच और पितृसत्तात्मक मानसिकता ने महिलाओं को बराबरी के अधिकार से वंचित रखा है। वैदिक काल में महिलाओं को समान अधिकार मिलते थे लेकिन मध्यकाल में उनकी स्थिति में गिरावट आई। स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय संविधान ने महिलाओं को समान अधिकार देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से महिलाओं को समानता सुरक्षा और स्वतंत्रता के अधिकार मिले हैं। और इसके अलावा महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए कई कानूनी प्रावधानों और योजनाओं की शुरुआत की गई है जैसे दहेज निषेध अधिनियम घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी सरकारी योजनाएँ। इन प्रयासों से महिलाओं के जीवन में कुछ सुधार हुआ है लेकिन समाज में मानसिकता में बदलाव अभी भी जरूरी है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई सम्मेलनों और प्रयासों की आवश्यकता महसूस की गई है जैसे मैक्सिको नैरोबी और बीजिंग सम्मेलन। इन प्रयासों से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए वैश्विक मंच पर सहमति बनी है।

अंततः यह कहा जा सकता है कि महिला सशक्तिकरण के लिए केवल कानूनी प्रावधानों का ही नहीं बल्कि समाज की सोच और मानसिकता में बदलाव की भी आवश्यकता है। जब तक महिलाओं को समानता सम्मान और सुरक्षा नहीं मिलती तब तक हम सच्चे अर्थों में महिला सशक्तिकरण की ओर कदम नहीं बढ़ा सकते।

*सभी चित्र गूगल से साभार

    आकांक्षा  भदौरिया

संदर्भ ग्रंथ सूची 

1. प्राचीन भारत में नारी की स्थिति , गुप्ता गायत्री , श्री निवास पब्लिकेशन 2012 

2. प्राचीन भारतीय साहित्य में नारी, गजानन शर्मा, इलाहबाद रचना प्रकाशन 1971  

3.  प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति, खण्ड 2, त्रिपाठी लाल कृष्ण, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्क्रति और पुरातत्व विभाग 1992 

4. भारत का संविधान, जयनारायण पाण्डे, सेंटर लॉ एजेंसी इलाहबाद1985 

5.  भारतीय संविधान, एम. पी. राय, कालेज बुक डिपो जयपुर,1984 

6. भारत का संविधान – एक परिचय, डी. डी. बसु, प्रिंटिंग हाल आफ इंडिया, नई दिल्ली, आठवा संस्करण 2002 

7.  भारत का संविधान  – एक परिचय, ब्रज किशोर शर्मा, प्रिंटिंग हाल आफ इंडिया, नई दिल्ली, पाँचवॅा  संस्करण 2008 

सहायक वेबसाइट 

1 https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-2-11

2 https://www-legalserviceindia-com.translate.goog/legal/article-10080-constitutional-status-of-women-in-india-.html?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc

संपर्क सूत्र- आकांक्षा भदौरिया, एम.ए. अंग्रेजी, अंग्रेजी विभाग, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद (तेलंगाना) akanshabhadoriyaaa07@gmail.com

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ISSN 2394-093X
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