अनामिका की कहानियाँ अन्याय के धरातल को तोड़ती हैं

अनामिका अनु उन कुछ मात्र चुनिंदा कहानीकारों में से एक हैं जो अपने कथ्य को बुनती तो कल्पना की डोरी पर हैं पर उनकी पकड़ यथार्थ पर पर होती है। बक़ौल कहानीकार अनामिका अनु अपने कहानी संग्रह ‘येनपक कथा और अन्य कहानियाँ’ की भूमिका में लिखती हैं -” मेरे लिए कहानी लिखना दृश्यों को बुनना है और उन्हें सलीके से जोड़ना।” इसमें कोई शक नहीं कि वह अपनी कल्पना के रेशमी धागों से इस संसार रूपी मशीन से सत्य, असत्य, ईमानदारी, ठगी, स्मृतियों, दंश, पीड़ा, अपमान, अभाव के कोमल कठोर भावों से कहानी की पूरी चादर बुन देती हैं। पुस्तक समर्पण में कहानीकार कहती हैं—एक लड़की के लिए जो मेरे लेखकीय जीवन का ‘आ’ है। ‘अना का आ’ दरअसल पूरे कहानी संग्रह का सार है। प्रत्येक कहानी में एक अल्हड़ लड़की छिपी है जो अपने रंग-रूप-वेश बदलकर कभी माँ तो कभी प्रेयसी तो कभी लेखिका और कभी-कभी तो किसी तालाब में विलीन होती सुनहरे बाल वाली लड़की बन जाती है।

पहले ही कहानी संग्रह से अपनी छाप छोड़ने वाली कहानीकार अनामिका अनु का कहानी संग्रह ‘येनपक कथा और अन्य कहानियाँ’ अपने में कुल अठारह कहानियाँ, 188 पेज को समेटे है। कहानियों की यह किताब मंजुल प्रकाशन से आई है।

अनामिका अनु की अधिकतर कहानियाँ मन के किसी कोने में स्मृति के तलघर में पड़ी किसी अनछुई जल तरंग की तरह हृदय तल को तरंगित करती हैं। लगता है जैसे किसी की आँखों के कोर से चू पड़े आँसू को मोती की लड़ियाँ बना कहानी का रूप दिया है। ‘हवाई चप्पल’ कहानी की नायिका को अपने प्रेमी से हीरे का हार नहीं हवाई चप्पल चाहिए। वह साधारण होकर जीवन के रस लेना चाहती है। एक और बात, यह कहानी औरतों की स्टीरियो टाइप बनी उस छवि को तोड़ती है जिसमें कहा जाता है कि औरत ‘गोल्ड डिगर’ है और वह संपन्न आदमी से प्रेम करती है तो दूसरी ओर वह बाज़ारवादी संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ प्रेम के जनवादी रूप को भी स्थापित करती है। ‘दृगा लिखती हैं’ में दृगा कितनी कोशिश करे पर वह एक असफल माँ है, पत्नी है। उसके हिस्से में हौसला अफजाई बिल्कुल नहीं है, पीठ थपथपाना तो बहुत दूर की बात है। ऐसे में टकाचोर, मकड़ी, कौवा, छिपकली, गिलहरी से वह लिखने और जीने का हौसला और हिम्मत पाती है। भारतीय स्त्रियों की यही दशा है वह कभी एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व के रूप में मानी नहीं गईं और यदि उसमें शारीरिक बीमारी हो तो दुनिया की निगाह में उसका जीना बेकार है। परंतु ‘चितकबरी’ कहानी की नायिका अपने शरीर मे सफेद दाग आने से चिंतित है और जिंदगी से मायूस है। पर यहाँ कहानीकार सफेद दाग ग्रसित नायिका के साथ खड़े होकर उसे अपने शरीर मे आए सफेद दाग को न छिपाने की अपनी यथास्थिति से विद्रोह कर मजबूती से खड़ा करती है। ‘आमौर और चमौली’, ‘मछली का स्वाद’, कहानियाँ परिवार और समाज में बेटों के बरक्स बेटियों के लिए बरती गई उपेक्षा व अन्याय की दास्तान है जिसमें पूरे परिवार के साथ बेटे-बेटियों को एक समान जन्म देने वाली एक माँ भी इस ब्राह्मणवादी पितृसत्ता की वाहक बन अपनी बेटी के प्रति कठोर रुख अपनाती है और उसके स्वाभाविक अधिकार भोजन, शिक्षा, स्नेह, सुरक्षा व सम्पत्ति से वंचित कर देती है। दोनों ही कहानियाँ बेहद मार्मिक हैं। ‘स्वीटी की अम्मा’ अलग तरह की माँ है जो अपनी संतान के अंतर्धार्मिक विवाह के खिलाफ न होकर पति की शर्त बेटी या पति में से एक चुनने व अपने पति के बेटी के प्रति कठोर व रूखे व्यवहार के ख़िलाफ़ जाकर अपनी बेटी के घर चली जाती है। ‘काली कमीज और काला कुर्ता’ भारतीय व्यवस्था में जाति और धर्म की मोटी दीवार न तोड़ पाने के कारण रेचल और बेंजामिन के अपूर्ण प्रेम की विवशता से जन्मी कहानी है। दोनों में कभी इतना सामर्थ्य नहीं हुआ कि वो अपनी जन्मजात पहचान को मिटाकर एक हो सकें, परंतु स्मृतियों में एक-दूसरे के साथ होते हैं। 

दाम्पत्य प्रेम की दो कहानियाँ बेहद मार्मिक बन पड़ी हैं—‘अम्फान अमलतास और आत्मा’ तथा ‘मृत पिता की चिठ्ठी’। इसमें ‘अम्फान’ उड़ीसा में आए एक चक्रवाती तूफान का नाम है, जिसका प्रयोग कहानीकार ने अपनी कहानी में अनूठे रूप में किया है। प्रभा के जीवन में अम्फान रूपी चक्रवात आता है; उसके पति की अचानक मृत्यु के रूप में जो उसके जीवन को एकदम तहस-नहस कर जाता है परन्तु स्मृति से कभी गए नहीं पति प्रसून चक्रवर्ती किसी अमलतास की तरह उसकी आत्मा में प्रवेश कर जाते हैं और वह दुखदाई स्मृति सुखदाई हो जाती है। इसी प्रकार ‘मृत पिता की चिट्ठी’ एक मृत पिता के ग्लानि भरे उदगार हैं कि वह भयंकर गरीबी के चलते जीवित रहते हुए अपनी पत्नी व बच्चों की इच्छाएँ, आवश्यकताएँ और आशाएँ पूरी नहीं कर पाए।

‘ग्रीन वीलो’ और ‘फेसबुक और पाप’ दोनों कहानी आज के व्यक्तिवादी स्वार्थी चरित्र पर हैं। समाज में तेजी से बढ़ रहे ऐसे व्यक्तिवादी लोगों का नज़रिया मानवतावादी न होकर उपभोगतावादी होता है। पचहतर साल का आलोचक प्रोफेसर सर्वेश उपाध्याय का महिलाओं के फेसबुकिया इनबॉक्स में घुसकर उनसे इश्क लड़ाने व अशोभनीय बातें करना, व उसकी इन बातों का चैट का सार्वजनिक होना, कोई नई बात नहीं है, यह तो आज के समय की हकीकत है। आज भी कई नामधारी प्रोफेसर इसी तरह अपनी उच्चवर्गीय जाति से प्राप्त सुविधा, सत्ता व पावर का दुरुपयोग करते हुए मिल जाएँगे। आज के समय की त्रासदी है—रिश्तों से विश्वास व भरोसे का विखंडन। मालविका यही सूरज से पाती है। रिश्तों में धोखा और छल इंसान को मानसिक रूप से एकदम तोड़ देता है, लेकिन यहाँ नायिका मालविका टूटकर बिखरने की जगह परिस्थितियों के सामने अपने बिखरे मनोभावों से लड़ते हुए खड़ी हो जाती है। एक सशक्त बौद्धिक स्त्री को भी भावनात्मक स्पर्श व प्रेम की जरूरत होती है, ‘तकिए में धूप’ ऐसी ही कहानी है। कहानी संग्रह की मूल कहानी जिसके नाम पर पूरा कथा संग्रह है—‘येनपक कथा-बूढ़ा छाते वाला’, आज के समाज के सीधे सरल ताने-बाने के समानांतर बनावटी व दिखावेपन से होड़ लेने की संस्कृति की पोल को एक कुशल लोककथा बूढ़े छातेवाले के माध्यम से दिखाया है।

कुल मिलाकर कहा जाए तो अनामिका अनु की कहानी कल्पना के समुद्र में गोते लगाती है। वहाँ कोप्पे के फूल, जलकुंभी ढूँढ़ती हैं। उनको समेटकर वह ऐसी दुनिया में प्रवेश करती हैं जहाँ रिश्तों में मानवीय कमजोरियों के साथ टूटन, धोखा, छलावा, अन्याय, उपेक्षा तो है लेकिन उसके खिलाफ एक पुलही की जोरदार विद्रोही धुन भी है। जहाँ स्त्री की आवाज़ कहीं सहमी है तो कहीं मुखर तो कहीं तनकर खड़ी चुनौती देती हुई। संग्रह की सम्पूर्ण कहानियाँ स्त्री के सवालों को विभिन्न कोणों से उठाती हैं—फिर चाहे वह भावनात्मक सम्बन्ध हो या देह शोषण का प्रश्न। 

अनामिका अनु की कहानियाँ अन्याय के धरातल को तोड़ने की पुरजोर कोशिश करती हैं। ये निरी वैयक्तिक कहानियाँ नहीं हैं, इनके सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक संदर्भ हैं इसलिए ये कहानियाँ लक्षित हैं। इसी कहानी संग्रह की तर्क के आधार पर—‘कला समर्थवान हो जाती है। वह तर्ज के बरक्स अलक्षित न होकर लक्षित हो जाती है।’ यह कहानी संग्रह भी सशक्त तर्क की तरह जन लक्षित रहेगा।

Related Articles

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles