दिशोम गुरु को नेमरा में यूं मिली अंतिम विदाई! नेमरा से लौटकर

नेमराः मंगलवार,5 अगस्त, उमस भरी मौसम थी और गर्मी भी आम दिनों से ज्यादा थी । शिबू सोरेन के गांव के चारों ओर पहाड़ियां हरियाली से चमक रही थी । सड़कों पर काफिला आ रहा था । बड़े-ब़ड़े लोगों की बड़ी-बड़ी गाड़ियों के ब्रेक लगते ही आवाज गूंजती थी लेकिन दिशोम गुरु के अंतिम दर्शन करने के लिए मिलों पैदल चलने वाले चुपचाप आगे बढ़ रहे थे । नेमरा…उनके गांव का माहौल गमगीन था । हर घर से लकड़ी जा रही थी । चूल्हे जले नहीं थे । शिबू सोरेन के बिना नेमरा की शून्यता महसूस की जा सकती थी । गुरुजी का पार्थिव शरीर तंग सड़कों से उनके जन्मस्थली पर पहुंचा हर आंखें नम हो गईं । कल्पना सोरेन, रुपी सोरेन और परिवार की महिलाएं फफक पड़ीं । बाबा नहीं रहे। जहां शिबू का जन्म हुआ वहां से पार्थिव शरीर हेमंत-बसंत और परिवार के दूसरे सदस्यों के कंधे पर बाहर निकला तो बाहर खड़ी भारी भीड़ बरबस नारे लगाने लगी.. वीर शिबू अमर रहे । 

घर से अंतिम क्रिया के लिए तय स्थान की दूरी करीब दो किलोमीटर थी। 150 मीटर की सड़क के बाद खेत हैं । धान के खेत । पानी लबालब भरा था । मेड़ पर किसी तरह से प्लाईवूड बिछा कर रास्ता बनाया गया था । सबको इसी रास्ते से पहाड़ के नीचे बहती हुई छोटी सी नदी के किनारे जाना था जहां नेमरा की परंपरा थी । ढाई बजे चुके थे । अब मौसम बदल रहा था। चारों ओर की पहाड़ियों से बादल अचानक घिरने लगे। हवा में ठंडक हुई । नेमरा ..वीर शिबू सोरेन अमर रहे की आवाज से गूंज रहा था । हेमंत सोरेन आगे-आगे चल रहे थे । अर्थी को रास्ता दिखा रहे थे । लोगों को संभल कर चलने की नसीहत दे रहे थे। कीचड़ था, फिसलन थी। कंधा देने के लिए होड़ लगी थी। नेमरा के पुराने-नए लोग शांति से गुरुजी को जल-जंगल-जमीन को वापस सौंपने के लिए चले जा रहे थे ।

शिबू के साथी, शिबू के शिष्य और शिबू के लोगों के जेहन में इस बात का सुकून था कि दिशोम गुरु का आशीर्वाद झारखंड राज्य के तौर पर उनके साथ हमेशा रहेगा । चिता की लकड़ियां रखी जा चुकी थी । पार्थिव शरीर को रिवाज के मुताबिक रास्ते में एक जगह रखा गया। जल-जंगल और जमीन में विलिन होने से पहले शिबू ने अपनी जमीन को आखिरी बार छुआ। चंद मिनटों बाद फिर यात्रा शुरु हुई । हेमंत आगे-आगे चल रहे थे। जैसे ही चिता के पास पार्थिव शरीर पहुंचा बारिश होने लगी । घनघोर बारिश । कुछ लोग अस्थाई टेंट में बारिश रुकने का इंतजार करने लगे तो और हजारों की संख्या में ग्रामीण और कार्यकर्ता भीगते रहे। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, सुदेश महतो छोटी जी जगह में दबे से रहे । सबको इंतजार था बारिश रुके ।

बारिश रुकी, हेमंत सोरेन ने धोती पहनी । धोती पहनने से पहले छोटी सी नदी में स्नान किया। नदी के पानी के साथ हेमंत के आंसू भी बहने लगे । उन्होंने खुद को धीरज बंधाया । सिर से पिता का साया उठा….उस पिता का जिसे सब दिशोम गुरु कहते थे…. शायद हेमंत के जेहन में इन्हीं सवालों का बोझ था…कैसे संभलेगा के शिबू के बिना उनकी विरासत….उनका झारखंड । सरना रिति रिवाज के मुताबिक सखुआ की टहनियां लाई गईं। चिता के पास रखी गई । इसी बीच सलामी देने के लिए पुलिस बैंड ने कार्रवाई शुरु की । हवा में फायरिंग की आवाज बादलों और पहाड़ों से टकराती हुई ऐलान कर रही थी दिशोम गुरु अनंत यात्रा पर निकल रहे हैं । हेमंत ने मुखाग्नि दी। बारिश रुक चुकी थी । चिता की लपटों में तेज तो थी लेकिन बारिश से भीगे जिस्मों को गरमाहट दे रही थी । मानों शिबू अपने बच्चों को गीले होने से बचा रहे हों । हेमंत खड़े रहे । आंसू छिपाने की नाकाम कोशिश के बीच।

धीरे-धीरे नेमरा के लोग आगे आए। दिशोम गुरु को आखिरी जोहार कहा । चंदन की लकड़ी चढ़ाई । हेमंत खड़े रहे । अंधेरा होने लगा । तभी तेजस्वी यादव के आने की खबर मिली । खेत खलिहान होते हुए बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव हेमंत के पास पहुंचे। दिलासा दिया । सांत्वना दी । गुरुजी को अंतिम जोहार कहा । काफी देर तक बैठे रहे । खराब बारिश की वजह से राहुल गांधी के आने में देर हो रही थी । मल्लिकार्जुन खड़गे भी साथ थे। अंधेरा हो चुका । जंगल में चिता की लपटें रोशनी दिखा रही थी ।

नेमरा में राहुल गांधी पहुंचे तो पहले परिवार के लोगों से मुलाकात की । रुपी सोरेन से मिले । कल्पना सोरेन और घर में मौजूद दूसरे सदस्यों से मुलाकात की । कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बताया गया कि वे इतनी दूर पैदल नहीें चल पाएंगें , वे परिवार के सदस्यों के साथ ही बैठे रहे । राहुल गांधी पैदल ही किचड़ और फिसलन भरे रास्ते में आगे निकले । हेमंत के पास पहुंचे । गले लगाया । गुरुजी की चिता पर अंतिम जोहार कहा । फिर हेमंत सोरेन से बात-चीत शुरु की । पूछने लगे आगे क्या होगा.. किस तरह का रिवाज है । 12 दिनों तक इसी तरह से रहेंगे ? हेमंत धीरे-धीरे समझाते रहे । राहुल ने हेमंत से उनके बेटे के बारे में पूछा तो बेटा आगे आए…राहुल के पांव छूए । पढ़ाई-लिखाई की बात की । राहुल गांधी ने दिल्ली आने का न्योता दिया । देर हो रही थी । रात के आठ बज चुके थे । सड़क के रास्ते से वापस जाना था। राहुल गांधी ने हेमंत सोरेन को अलविदा कहा और फिर पैदल निकल गए । अब हेमंत और उनके करीबी दिशोम गुरु की चिता की शांत होते हुए देख रहे थे। दिशोम गुरु इस दुनिया में नहीं है …उनका झारखंड हमेशा रहेगा ।

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