नई धारा इस पूरी घटना के प्रति बेहद अगंभीर और गैर-जिम्मेदार रही। कैम्पस में स्त्री और पुरुष लेखकों के साथ रहने के लिए अनुकूल और भयमुक्त वातावरण का अभाव दिखा। चयन समिति के सदस्यों का व्यवहार गैर-जिम्मेदार था। अफवाहों के सृजन के लिए नई धारा से संबद्ध लोग भी जिम्मेदार बताए जा रहे हैं।
पटना, 19 सितंबर 2025। साहित्य अकादमी के सचिव के खिलाफ एक महिला कर्मी के आवेदन पर आदेश करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अकादमी में लगे उत्पीड़न के आरोप को स्वतंत्र इकाई द्वारा जांच का निर्देश दिया एवं पीड़ित महिला की बर्खास्तगी को अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव द्वारा बदले की कार्रवाई माना क्योंकि उसने सचिव के खिलाफ उत्पीड़न का आरोप लगाया था। के श्रीनिवास राव अभी भी सचिव बने हुए हैं।
और बिहार में एक बड़ा आयोजन करने जा रहे संस्कृति मंत्रालय के साथ मिलकर। इसके पहले बिहार के राजभाषा विभाग द्वारा उन्हें सम्मानित भी किया गया था।
इसी बीच स्त्रीकाल की पहल पर गठित नागरिक जांच समिति ने पटना की संस्था ‘नई धारा’ के राइटर्स रेज़िडेंसी प्रोग्राम ( तीन महीने का एक कैम्पस में प्रवास ) में हुए कथित यौन उत्पीड़न प्रकरण पर अपनी अंतरिम रिपोर्ट जारी की है। इस समिति की अध्यक्ष एडवोकेट अल्का वर्मा हैं। इसके सदस्य हैं वरिष्ठ पत्रकार एवं स्त्रीकाल की डिजिटल संपादक मनोरमा, वरिष्ठ पत्रकार हेमंत कुमार, सोशल एक्टिविस्ट, स्त्रीवादी संस्कृति कर्मी दिव्या गौतम। आमंत्रित सदस्य स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन
रिपोर्ट में आयोजक संस्था नई धारा के रवैये, निर्णायक मंडल की भूमिका, सोशल मीडिया पर पीड़िता के खिलाफ दुष्प्रचार और साहित्यिक संगठनों की चुप्पी को गंभीर माना गया है। समिति ने कहा कि यह मामला केवल व्यक्तिगत आरोप का नहीं, बल्कि साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं की संरचनात्मक जवाबदेही और पारदर्शिता का सवाल है।
_ घटनाक्रम की पृष्ठभूमि
25 जून 2025 को सोशल मीडिया पर एक महिला लेखक ने आरोप लगाया कि पटना में आयोजित नई धारा की रेज़िडेंसी प्रोग्राम ( तीन महीने का एक कैम्पस में प्रवास ) के दौरान वरिष्ठ लेखक कृष्ण कल्पित ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया। दो दिन बाद कृष्ण कल्पित ने आरोपों से इनकार करते हुए सोशल मीडिया पर आवाज़ उठाने वालों को लीगल नोटिस भेज दिया। इसके बाद साहित्यिक जगत में तीखी बहस छिड़ी। जनवादी लेखक संघ ने 27 जून को बयान जारी कर घटना की निंदा की और आयोजक संस्था को जिम्मेदार ठहराया। प्रगतिशील लेखक संघ, राजस्थान ने 28 जून को आरोपी लेखक को संगठन से निष्कासित कर दिया। वहीं कई बड़े लेखक और संस्थाएँ लंबे समय तक चुप रहीं। _
निर्णायक मंडल की भूमिका
नई धारा की रेज़िडेंसी के निर्णायक मंडल में तीन लोग शामिल थे। समिति ने उनसे भी लिखित जवाब मांगे, परंतु ममता कालिया ने बिल्कुल चुप्पी साधी, जी एन देवी ने पहले गोपनीयता की गारंटी चाही फिर जवाब नहीं दिया, प्रियदर्शन ने अपना बयान फेसबुक पर दे दिया था। रिपोर्ट में दर्ज है कि निर्णायकों ने अपनी जिम्मेदारी को सीमित कर केवल चयन प्रक्रिया तक मान लिया और रेज़िडेंसी के दौरान सुरक्षा या जवाबदेही की जिम्मेदारी आयोजक संस्था पर डाल दी।
_ साहित्यकारों की राय समिति को कुछ वरिष्ठ साहित्यकारों की प्रतिक्रियाएँ भी मिलीं। • विकास नारायण राय ने सवालों के जवाब में कहा कि “निर्णायक मंडल केवल प्रतिभागियों के चयन तक सीमित नहीं रह सकता। साहित्यिक आयोजनों में निर्णायकों को भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। नई धारा का रवैया टालमटोल वाला रहा है और इससे संस्था की साख को नुकसान हुआ है।” उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि साहित्य जगत में “क्विड प्रो क्वो की प्रवृत्ति” भी साफ़ दिखाई देती है — यानी साहित्यकार परस्पर लाभ या अवसर के एवज में चुप्पी, समर्थन या समझौते करते रहते हैं। • कुछ अन्य लेखकों, अनिल पुष्कर, नवनीत पांडेय ने भी समिति को जवाब दिया कि इस घटना ने साहित्यिक संस्थाओं के भीतर पितृसत्तात्मक रवैये और स्त्रियों की सुरक्षा के प्रति असंवेदनशीलता को उजागर कर दिया है। कुछ ने साहित्य जगत से जुड़े सत्तधीशों द्वारा ख़ौफ़नाक स्टाकिंग की घटनाओं की जानकारी होने की बात भी कही। • वहीं कई चर्चित साहित्यकारों ने समिति के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया। _
समिति की प्रमुख फ़ाइंडिंग्स
रिपोर्ट में दर्ज अवलोकन इस प्रकार हैं:
- नई धारा की भूमिका: संस्था ने घटना के बाद अस्पष्ट और बिना हस्ताक्षर वाले बयान दिए।
- जूरी की जिम्मेदारी: निर्णायकों ने जवाबदेही से दूरी बनाई, जबकि प्रतिभागियों की सुरक्षा भी उनकी साझा जिम्मेदारी होनी चाहिए थी।
- सोशल मीडिया हमले: पीड़िता पर अफवाहें और चरित्रहनन के प्रयास हुए, जिसे समिति ने “दूसरे स्तर का उत्पीड़न” कहा।
- संगठनों की असंगत प्रतिक्रिया: कुछ संगठनों ने तुरंत कार्रवाई की, जबकि अधिकांश बड़े साहित्यिक समूह चुप रहे।
- गंभीर असंवेदनशीलता: घटना ने दिखाया कि साहित्यिक आयोजनों में जेंडर और जाति आधारित संवेदनशीलता गहराई से अनुपस्थित है।
__
समिति की सिफ़ारिशें
समिति ने निम्न सिफ़ारिशें कीं:
1. जिन संगठनों/संस्थाओं में 10 से ज्यादा महिलाएं कार्यरत या सदस्य हैं, उन्हें यौन अथवा जाति उत्पीड़न के खिलाफ एक जांच समिति होनी चाहिए, जिसकी अनिवार्य अध्यक्ष महिला हो, और सदस्यों में कम से कम आधे संस्था एवं संगठन से बाहर की महिला एवं पुरुष हों।
2. सरकार द्वारा आर्थिक मदद प्राप्त या टैक्स के छूट की सुविधा प्राप्त संस्थाओं और संगठनों के लिए सरकार जाति और जेंडर विभेद की रोकथाम की प्रक्रिया सुनिश्चित करे।
3. विविध संगठनों द्वारा एक सार्वजनिक नियामक समिति भी गठित की जा सकती है।
4. लेखक या संस्कृति के अन्य संगठनों को जिम्मेवार और समावेशी होने की पहल करनी चाहिए।
_ समिति के बयान समिति की चेयरपर्सन अलका वर्मा ने कहा, “हमारा जनादेश है कि पीड़िता की गवाही दर्ज करते हुए साहित्यिक संस्थाओं में संरचनात्मक सुधार की दिशा में ठोस सुझाव दिए जाएँ, जरूरत पड़ने पर अदालतों से निर्देश लेकर एक नियामक व्यवस्था बनवाई जाए। समिति की सदस्य मनोरमा ने कहा, “ यह घटना साहित्यिक दुनिया की असंवेदनशीलता का सबूत भी है।” _
निष्कर्ष
समिति ने स्पष्ट किया कि यह मामला केवल एक लेखक और संस्था तक सीमित नहीं है। यह पूरे साहित्यिक परिदृश्य में स्त्रियों की भागीदारी, गरिमा और सुरक्षा का प्रश्न है।
नागरिक समिति के सामने आए तथ्य विस्तार से
अफवाह
इस घटना के सामने आने के बाद से ही पीड़िता को लेकर कई अफवाहें पटना के साहित्यिक समाज में फैलने लगीं। अब इन अफवाहों और गप्पों का स्वरूप भयावह होता गया। इन अफवाहों में पीड़िता अब आरोपी बन गई है।(अफवाहों की चर्चा पटना के एक साहित्यकार ने की; नाम न उल्लेख करने की शर्त पर। शुरुआत पीड़िता का किसी लेखक/संस्कृति कर्मी डॉक्टर के घर पर शराब पीने की घटना या अफवाह से हुई। बाद में उस घटना की तस्वीर जारी की गई। उस तस्वीर में आरोपी कवि नहीं दिख रहे। कहा गया कि तस्वीर उन्होंने ही ली थी और इसे उन्होंने ही जारी किया। उस तस्वीर में पीड़िता के अलावा पटना के चर्चित साहित्यकार भी दिखे।
सेक्सिस्ट टिप्पणियां
समिति के सदस्यों ने देखा कि नई धारा द्वारा राइटर्स रेजीडेंसी कार्यक्रम के तहत पटना में रहने वाले साहित्यकारों—आरोपी और पीड़िता—का नाम और फोटो जैसे ही सोशल मीडिया में जारी हुआ, कई साहित्यकारों ने उस पर सेक्सिस्ट टिप्पणियां लिखनी शुरू कर दी। इनमें आरोपी कवि के साथी भी शामिल थे।
प्रतिरोध का अभाव
इस घटना पर लेखक संगठनों का व्यवहार बेहद आश्चर्यजनक था। सोशल मीडिया में हंगामे का असर था कि घटना के प्रकाश में आने के बाद कुछ लेखक संगठनों ने अपनी प्रतिक्रियाएं जारी की और आरोपी कवि कृष्ण कल्पित के बहिष्कार का संकल्प लिया। संस्था नई धारा की जिम्मेदारी पर प्रस्ताव पास किया।
इन लेखक संगठनों में जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ और जन संस्कृति मंच आदि शामिल थे। पीयूसीएल (पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) ने भी बयान जारी किया। प्रगतिशील लेखक संघ ने उन्हें अपने संगठन से बाहर निकालने का प्रस्ताव जारी किया।
सवाल उठे कि कृष्ण कल्पित इसके पूर्व एक चर्चित लेखिका पर सेक्सिस्ट टिप्पणियां कर चुके थे। फिर भी प्रलेस ने उन्हें अपने यहां सदस्य और पदाधिकारी बनाए रखा। प्रलेस ने राष्ट्रीय स्तर पर कोई बयान जारी नहीं किया और इस समिति के सामने उनका कोई बयान प्रस्तुत नहीं हुआ। कुछ लेखक संगठनों के सदस्य पटना में पीड़िता के साथ सार्वजनिक रूप से थे, लेकिन उनमें से किसी ने पीड़िता के पक्ष में बड़ा प्रदर्शन नहीं किया।
साहित्य जगत में ऐसा कोई प्रदर्शन 2010 में नया ज्ञानोदय साक्षात्कार प्रकरण में हुआ था। इसके बाद लेखकों का एक साझा फिर से बन गया। बहिष्कृत साहित्यकार बहिष्कार करने वाले एक लेखक संगठन पर काबिज हो गए।
पीड़िता और आरोपी का पक्ष
पीड़िता ने अपना पक्ष सामने रखते हुए मुख्यतः आरोपी कवि से माफी और शहर छोड़ने की मांग की। आरोपी ने माफी नहीं मांगी, लेकिन शहर छोड़ दिया। संस्था नई धारा का रुख इस पूरी घटना के प्रति असंवेदनशील दिखाई दिया। निर्णायक मंडल भी गंभीर नहीं था। आरोपी कवि इस पूरे घटनाक्रम में सोशल मीडिया में बेखौफ और बुली करते नजर आए।
साहित्य की सत्ता
साहित्य जगत और संस्कृति के क्षेत्र में यौन और जाति उत्पीड़न की घटनाएं होती हैं। यह क्षेत्र यश और यश से हासिल आर्थिक, सामाजिक हैसियत के आपसी बंटवारे का क्षेत्र है। इसीलिए यहां होने वाली ऐसी घटनाएं क्षणिक चर्चाओं का कारण भर बनती हैं।
साहित्य में क्विड-प्रो-क्वो की घटनाएं भी होती हैं, साथ ही असहज करने वाले उत्पीड़न और स्टाकिंग भी। संस्थाओं और उनके प्रमुखों के साथ सहज संबंध रखने की होड़ होती है। साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में सवर्ण हिन्दू पुरुषों का कब्जा है।
संस्था/चयन समिति की असंवेदनशीलता
नई धारा इस पूरी घटना के प्रति बेहद अगंभीर और गैर-जिम्मेदार रही। कैम्पस में स्त्री और पुरुष लेखकों के साथ रहने के लिए अनुकूल और भयमुक्त वातावरण का अभाव दिखा। चयन समिति के सदस्यों का व्यवहार गैर-जिम्मेदार था। एक सदस्य को आरोपी लेखक ने सार्वजनिक तौर पर अपने चयन में उनकी भूमिका रेखांकित करने का प्रयास किया। एक सदस्य ने अपने डिटेल जवाब में यह स्पष्ट नहीं किया कि उन्होंने आरोपी कवि के महिला विरोधी पूर्व आचरण को संस्था के सामने क्यों नहीं रखा। अफवाहों के सृजन के लिए नई धारा से संबद्ध लोग भी जिम्मेदार बताए जा रहे हैं।
संस्तुति
- जिन संगठनों/संस्थाओं में 10 से ज्यादा महिलाएं कार्यरत या सदस्य हैं, उन्हें यौन अथवा जाति उत्पीड़न के खिलाफ एक जांच समिति होनी चाहिए, जिसकी अनिवार्य अध्यक्ष महिला हो, और सदस्यों में कम से कम आधे संस्था एवं संगठन से बाहर की महिला एवं पुरुष हों।
- सरकार द्वारा आर्थिक मदद प्राप्त या टैक्स के छूट की सुविधा प्राप्त संस्थाओं और संगठनों के लिए सरकार जाति और जेंडर विभेद की रोकथाम की प्रक्रिया सुनिश्चित करे।
- विविध संगठनों द्वारा एक सार्वजनिक नियामक समिति भी गठित की जा सकती है।4 . किसी भी का निस्तारण या तो आंतरिक समिति के जरिये हो या लोकल कंप्लेंट कमिटी के जरिये।
5 . लेखक या संस्कृति के अन्य संगठनों को जिम्मेवार और समावेशी होने की पहल करनी चाहिए।