लड़कियाँ सड़को पर आईं तो सौ सालों में बीएचयू को पहली महिला प्रॉक्टर (कुलानुशासक) मिली

सामाजिक परिवर्तन का परिणाम, एक सौ एक वर्ष का इतिहास टूटा

अनिल कुमार


सौ सालों में बीएचयू में नियुक्त पहली महिला कुलानुशासक रोयोना भले ही लड़कियों के शराब पीने के अधिकार और मनमुताबिक कपड़े (कथित तंग कपड़े) पहनने की स्वतंत्रता जैसी क्रांतिकारी बातें कर रही हैं लेकिन वहाँ पढने वाली लड़कियां अपनी इस सायंस फैकल्टी पर इसलिए विश्वास नहीं कर पा रहीं कि उनके मुताबिक़ ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से संचालित विश्वविद्यालय में कोई पदाधिकारी संकुचित दक्षिणपंथ से अलग हो ही नहीं सकता, महिला हो या पुरुष. हालांकि इस लेख में अनिल कुमार ब्राह्मणवादी पितृसत्ताक विश्वविद्यालय के माहौल में इस नियुक्ति को बदलते बयार की तरह देख रहे हैं, वे बता रहे हैं कि यहाँ लड़कियों की संख्या और अनुपात बढ़े हैं, बढ़ रहे हैं, आन्दोलन, कुलपति,मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की बेचैनी तथा महिला कुलानुशासक की नियुक्ति इसी बढ़त का परिणाम है. पढ़ें पूरा लेख और रपट.

क्रांतियाँ और जनसंघर्ष कभी बेकार नहीं जाते.बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू)की स्थापना 1916 में हुई थी.तब से लेकत आज तक वहाँ लड़कियों और महिलायों के साथ एडमिशन से लेकर विभिन्न पदों पर नियुक्तियों में भेद भाव होता रहा है. इसके लिए बहुत हद तक समाज की सोच को जिम्मेवार माना जा सकता है. लेकिन यह यूनिवर्सिटीयों की जिम्मेदारी है कि वह समाज को सकारात्मक दिशा में ले जाने के लिए नई सोच विकसित करे. लेकिन भारत के यूनिवर्सिटी इसमें असफल रहें हैं. यह सिर्फ बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी तक ही सिमित नहीं है. फिर भी हम कह सकतें हैं कि बीएचयू के मठाधीश समाज के अन्दर के परिवर्तन को न तो पहचान सके और न ही लड़कियों पर बर्बर लाठी चार्ज कर उसे रोक सकें.

नवनियुक्त कुलानुशासक रोयोना

भारत के यूनिवर्सिटी अपने ही समाज के अन्दर के बदलाव को नहीं पहचान सके.
समाज के अन्दर सकारात्मक बदलाव का नतीजा था बीएचयू में लड़कियों का एक बड़ा प्रतिरोध प्रदर्शन. भारतीय समाज में आज लड़कियों के प्रति सम्मान और बराबरी का भाव बढ़ा है. यही कारण है कि भारत में लैगिक अनुपात में सकारात्कम बदलाव आया हैं, अर्थात लड़कियों का प्रतिशत बढ़ा है. यह सोच सिर्फ यहीं तक सिमित न रह कर आगे भी जाता है – समाज के सकारात्मक सोच का ही परिणाम है कि पिछले दस सालो में बीएचयू में लड़कियों के संख्या में 131% की बढ़ोतरी हुई है. “द इंडियन एक्सप्रेस” में27.09.2017 को प्रकाशित सरह हफीज की रिपोर्ट के अनुसार लड़कियों के प्रतिरोध प्रदर्शन के लिए लड़कियों का बढ़ता हुआ यही प्रदर्शन जिम्मेवार है. उनके रिपोर्ट के अनुसार 2007-2008 में बीएचयू में7,754 लड़कियों और13,283 लड़को का एडमिशन हुआ जबकि2016 में17,950 लड़कियों और 23,665 लड़कों का एडमिशन हुआ. इस बीच पहले जो कॉलेज सिर्फ लड़को के लिए था उसे लडकियों के लिए भी खोलकर सह-शिक्षा में बदला गया तो दूसरी और कई नए कॉलेज भी खोला गया. अंततःलड़कियों की संख्या और प्रतिशत दोनों में वृद्धि हुई.

सरह हाफिज को बीएचयू रजिस्ट्रार ने बताया कि “… कई अभिभावकों ने अपनी लड़कियों को बीएचयू भेजा क्योंकि उन्हें लगता है कि यह लड़कियों के लिए सुरक्षित जगह है क्योकि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू)और दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) का माहौल ख़राब है … लेकिन इस घटना (लड़कियों पर लाठी चार्ज)के बाद अभिभावक बीएचयू में लड़कियों के एडमिशन कराने से कतारायेंगें.”

आज बीएचयू में ऐसी लडकियां भी पढ़ रही हैं जो अपने घर से पहली बार कॉलेज और यूनिवर्सिटी पढ़ने जा रही है, अगर उसका भाई कॉलेज या यूनिवर्सिटी का मुहन हीं भी देखा हो तब भी. बीएचयू में लड़कियों की संख्या और प्रतिशत में वृद्धि निश्चित रूप से समाज के सकारात्मक सोच का परिणाम है. बीएचयू का प्रशासन इसे नहीं समझ सका .भारतीय यूनिवर्सिटी समाज के बदलाव को पहचानने और उसके अनुसार अपने को ढालने में नाकाम रहें हैं – यही कारण है कि आज भी बीएचयू में शिक्षक और शिक्षकेत्तर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बलपूर्वक रोका गया है.

जब मैं 2014 में जेएनयू पढ़ने आया तब उसके बाद बीएचयू से पढ़े-लिखे लडके-लड़कियों से भी मिला. उन्होंने कहा कि बीएचयू में लड़कियों के साथ सामाजिक रूप से दुर्व्यवहार होता है.जिसमें उनको देखकर फब्तियां कसने से लेकर उनको देखकर अश्लील हरकते करने या इसके इशारे तक शामिल है.

21 सितम्बर 2017, को भी इसी तरह की एक घटना हुई. यूनिवर्सिटी कैंपस में तीन लड़कों ने एक लड़की को सेक्सुअली असॉल्ट किया. इस घटना के बाद लड़कियों ने अपनी सुरक्षा के लिए कुलपति जी. सी. त्यागी से बात करना चाही, उनकी मांग बहुत साधारण थी, सुरक्षा, जो किसी का भी हक़ है. लेकिन उन्होंने बात करने इंकार कर दिया. बाद में वो लड़कियों के हॉस्टल जातें हैं और कहतें हैं “तुमलोगों को इतना हंगामा करने की क्या जरुरत थी? … तुम लोग यूनिवर्सिटी को बदनाम कर रहे हो?” इसके बाद, यूनिवर्सिटी के इशारे पर 23 अक्टूबर 2017 को अपनी सुरक्षा की मांग और सेक्सुअल हरासमेंट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे लड़कियों पर पुलिस ने बर्बरता पूर्वक लाठीचार्ज किया. इस बर्बर कार्यवाही के बाद अपने एक इंटरव्यू में कुलपति जी. सी. त्यागी कहतें हैं कि “अगर मैं हर एक लड़की की सुनता रहूँ तो यूनिवर्सिटी चलाना मुश्किल हो जाएगा.” इससे भी शर्मनाक यह हुआ कि कुलपति जी. सी. त्यागी को सजा देने के बदले 1000 स्टूडेंट्स पर FIR दायर कर दिया गया और कुछ पुलिस वालो को सस्पेंड कर दिया गया. यह सब हुआ प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में उनकी मौजूदगी में. यह अकारण नहीं हो सकता कि केन्द्रीय यूनिवर्सिटी के बावजूद केन्द्रीय शिक्षा मंत्री ने इसपर कोई बयान नहीं दिया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट मंगवाई, जबकि बीएचयू एक केन्द्रीय यूनिवर्सिटी है और प्राथमिक रूप में यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं था.

इसी बीच बृहस्पतिवार 28 अक्तूबर 2017 को निवर्तमान प्रॉक्टर (कुलानुशासक) ओ. एन. सिंह ने लड़कियों पर लाठीचार्ज की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इनके स्थान पर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी ने रोयोना सिंह (Royona Singh), प्रोफेसर, एनाटोमी विभाग (Anatomy Department), मेडिकल साइंस को प्रॉक्टर बनाया है.उ नका जन्म यूरोप में हुआ है और उनका नाम फ्रांस के एक शहर रोयोना(Royona) के नाम पर है. यहाँ उन्होंने अपना बचपन गुजारा है.
रोयोना सिंह प्रॉक्टर बनने से पहले यूनिवर्सिटी के महिला शिकायत प्रकोष्ट के प्रमुख का पद संभल रही थी, साथ ही वे एनाटोमी विभाग के विभागाध्यक्ष भी हैं. इससे पहले वे डिप्टी-प्रॉक्टर (उप-कुलानुशासक) रह चुकी हैं उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स (28.09.17) को बताया कि “मैं स्टूडेंट्स के साथ संवाद स्थापित करुँगी, प्रत्येक शिकायत को उचित तरीके से देखा और निवारण किया जाएगा. मैं प्रत्येक हॉस्टल को विजिट करके उसके समस्या को जानने का प्रयास करुँगी.”

उन्होंने आगे टाइम्स ऑफ़ इंडिया (29.09.17) को बताया कि “मैं यूरोप में जन्मी हूँ. मैं यूरोप और कनाडा की यात्रा करती रहती हूँ. लड़कियों के पहनावे पर प्रतिबन्ध लगाना उसी तरह से होगा जैसे मैं अपने ही ऊपर इसे थोप रही हूँ. आप सुबह छः बजे से अपना काम शुरू करती हैं, औरसाढ़े दस बजे ख़त्म करती हैं, और अगर आप अभी भी अपने मन का पहनावा नहीं पहन सकते हैं जो आपको सुविधानाजक लगे तब यह इस क्षेत्र के लिए शर्म की बात है. मुझे अजीब लगता है जब लडके इसके लिए ‘तंग कपडे’ शब्द का इस्तेमाल करतें हैं. अगर लड़कियाँ अपने पहनावे में सुविधाजनक महसूस कर रही हैं तो इसमें किसी को क्या दिक्कत है.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि यूनिवर्सिटी ने न तो कभी पहले किसी प्रकार कोई प्रतिबन्ध लगाया था और न भविष्य में कोई प्रतिबन्ध लगाने की योजना है. “जहाँ तक ड्रिंकिंग (शराब पीने) का सवाल है, यहाँ जो भी लड़कियाँ हैं सभी 18 वर्ष से ऊपर की हैं, हमें उनपर ऐसी कोई चीज क्यों थोपना चाहिए?” उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से कहा.
उन्होंने शाकाहार-मांसाहार विवाद पर कहा कि “जहाँ तक मुझे अपने मेडिकल हॉस्टल की जानकारी है,अगर लड़कियों का बहुमत चाहे तो, वहाँ सिर्फ शाकाहारी भोजन दिया जाता है. लेकिन दूसरो के लिए अभी भी विशेष दिन मांसाहार भोजन दिया जाता है.

नये प्रॉक्टर रोयोना सिंह ने वार्डन और सुरक्षा अधिकारी के इस बयान पर खेद जताया जिसमें उन्होंने पीडिता और उसके मित्रो को कहा था कि उन्हें छः बजे के बाद हॉस्टल के बाहर नहीं जाना चाहिए था. रोयोना ने कहा कि “लड़कियाँ किसी भी समय कहीं भी घूम सकती हैं. अभी तक मैं शिकायत समिति के पमुख होने के नाते, मैंने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए, महिलाओं का सम्मान सुनिश्चित किया है. हम सुरक्षा बल और वार्डन को इन विषयो पर संवेदनशील(sensitise) करेंगें.

रोयोना ने यह भी जोड़ा कि वे छेड़खानी, आवारागर्दी, और आपत्तिजनक प्रदर्शन को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएंगी. इसके लिए “सीसीटीवी के लिए खंभे गाड़े जा रहें हैं, साथ ही बड़े कार और ट्राली सभी रास्तो से नहीं जा सकेंगें. बैरिकेटिंग का काम पूरा हो गया है जिससे मोटरसाइकिल तेज नहीं चलाया जा सकेगा. अच्छी लाइटिंग के लिए पेड़ो की छटाई का काम चल रहा है.”
“जहाँ तक महिलायों के मुद्दों का सवाल है, मैं ज्यादा संवेदनशील होउंगी. और महिलायें अपनी समस्यायों को साझा करने में ज्यादा सहज महसूस करेंगी.”

नये प्रॉक्टर ने जो हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बयान दिया है उसके अनुसार कम से कम अभी के लिए तो यह कहा ही जा सकता है कि बीएचयू में बदलाव के साफ़ संकेत देखे जा सकतें हैं. और अब यह संस्थानिक बदलाव की ओर संकेत करतें हैं.बीएचयू में जिस समाज के बच्चे पढ़ने आतें हैं उस समाज में तो सकारात्मक बदलाव आ रहें हैं लेकिन बीएचयू में उसी अनुपात में संस्थागत बदलाव नहीं देखे जा रहें हैं. भारतीय यूनिवर्सिटी अपने ही समाज के बदलाव को देखने-समझने और उसके उसके अनुसार अपने को ढालने में असफल रही है. इसके लिए अपने ही समान मनोविचार वालो की नियुक्ति ज्यादा जिमेदार रही है, जिसके कारण यह अपनी ही संरचना और विचार को दुहराते रहता है. लेकिन जैसे ही इसका वास्ता वास्तविक समाज और अपने संरचना (स्ट्रक्चर) केबाहर वालो से पढ़ता है यह दरकने लगता है. पिछले दस साल में लड़कियों ने नामांकन में 131 प्रतिशत की वृद्धि समाज के इसी परिवर्तन को दर्शाता है. समाज की सोच यहाँ तक गई कि लड़कियाँ सड़क पर उतर गई. रोयोना सिंह के बयान भी इसी परिवर्तन को उधृत करता है.

बीएचयू के एक सौ एक साल के इतिहास में लड़कियों ने जो विद्रोह किया है उसका तत्काल से लेकर दूरगामी सकारात्मक संस्थानिक परिणाम होंगें. इसके दूरगामी परिणाम तो भविष्य के गर्भ में छुपा है लेकिन वर्तमान में हम कह सकतें हैं कि बीएचयू में लड़कियों का विद्रोह भारतीय समाज में हो रहे बदलाव को परिलक्षित करता है. यह समाज बदलाव ही है कि, जनसामान्य ने लड़कियों का ही समर्थन किया है, बनारस, लखनऊ से लेकर दिल्ली तक इनके समर्थन में रैलियां निकाली गई हैं.

लेखक समाजशास्त्र के प्राध्यापक और अध्येता हैं.


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