आरती रानी की कवितायेँ
कैसे?
10-12 ईटें
एक साथ उठाते
तुम
क्या थकते नहीं हो?
क्या तुम्हें नहीं लगती
धूप
बारिश
तपती धरती
पराई ?
क्या नहीं आता गुस्सा तुम्हें
इन सब पर
क्या तुम्हारा पसीना
सुख गया है
या तुम आदी हो गये
क्या तुम्हारे फटे पैर
दर्द नहीं करते ?
नहीं निकलती उनसे चीख?
फिर तुम कैसे
मुस्कुरा लेते हो
हर परिस्थिति में?
रेड-लाईट
चिथड़े ख्वाब
और
मैली देह के साथ
सूखे स्तनों से
दूध पिलाती तुम
खींच लेती हो
अपनी ओर निगाहें
दौड पड़ती है
उनमें चिंगारी
कौधने लगता है दिमाग
सुर्ख तन के साथ
और
तभी
ओवर हो जाती है
रेड-लाईट
सुरक्षित बच जाती हो तुम
अनगिनत
बलात्कार के बावजूद
पूजा प्रजापति की कविता
वो नीचजात
बहुत जरुरी था उसका टूट जाना
बरसों से बंधी झूठी आस का खत्म हो जाना
जीवन पर से उसका विश्वास उठ जाना
वो जात ही बहुत बुरी है
उसके साथ यही सलूक होना चाहिए
एक बार नहीं दो बार नहीं
जीवनभर गलती जो करती रही वो नीचजात
इतनी बड़ी गलती की सजा इससे कम भला क्यों हो
ऐसी सजा दुनिया का कोई भी कानून नहीं दे पाता
ऐसी जात को जन्मते ही मार दिया जाना चाहिए
ताकि फिर वह अंधविश्वास न कर सकें
किसी जल्लाद को भगवान मान फिर न पूज सकें
फिर कभी समर्पित न कर सकें वो अपना अस्तित्व
कभी न बंध सकें वो नीच मेरे साथ रिश्ते में
आखिर उसकी औकात ही क्या जो बराबरी करती है
अबतक उसकी जिंदगी सही सेवा में बीतती रही है
उसकी अस्मिता को यूँ ही रौंदा जाना चाहिए
यूँ ही तार तार कर दिया जाना चाहिए उसका आँचल
क्योंकि वह स्त्री है और मैं पुरुष
कैसे सह सकता हूँ उसका ऊंचा अस्तित्व
कैसे देख सकता हूँ उसे इठलाते
उस समाज में जहाँ सिर्फ मेरी सत्ता है…..