ज्यादा अश्लील हैं मर्दों के पहनावे : बुल टीशर्ट यानी अश्लील टीशर्ट!

स्वतंत्र मिश्र


स्वतंत्र मिश्र पेशे से पत्रकार हैं ,स्त्रीकाल के प्रिंट एडिशन के सम्पादन मंडल के सदस्य भी हैं . इनसे उनके मोबाइल न 9953404777 पर सम्पर्क किया जा सकता है.

( विचित्र बात है कि संसद से लेकर सड़क तक स्त्रियों के कपड़ों को कोसने का नैतिक कर्म हमारे  दैनंदिन में शामिल है. कल भी संसद इसका गवाह बनी. इस नैतिकता के  प्रवचन  -कर्ताओं को शायद ६ माह  की बच्ची से लेकर ८० साल की बूढ़ी  स्त्रियों पर बलात्कार नहीं दिखते -जिनमें कपड़ों का कोई रोल नहीं है.  हम  स्त्रियों के पहनावे पर बोलते हुए शायद पुरुषों की भाषा , उनके गानों की पसंद , उनके पहनावे को भूल जाते हैं।  मानो यह दुनिया पुरुषों की है , जिसमें सबको कायदे से रहना सीखना होगा , ख़ास कर स्त्रियों को।  स्वतंत्र मिश्र की यह रपट पुरुषों   की टी शर्ट पर पसरी अश्लीलता की पड़ताल कर रही है। )

‘युवा होने का मतलब उत्साह से भरा होना हो सकता है पर उत्साहित होने का मतलब यह तो कतई नहीं हो सकता है कि आप सड़क पर अश्लील स्लोगन लिए घूमते फिरेंगे। यह सब महिलाओं को अपमानित करने के लक्ष्य से गढ़े जा रहे हैं और इसका कारोबार भी फल- फूल  रहा है। औरतों के प्रति बढ़ रही हिंसा को देखते हुए इन प्रवृत्तियों पर लगाम लगाया जाना जरूरी है।’ – स्वाति नौडियाल, ड्रेस डिजाइनर
युवाओं के बीच हनी सिंह जैसे दर्जनों ऐसे गायकों या ऐसी फिल्मों को प्रामाणिकता तब और तेजी से मिलने लगती है जब उस अश्लीलता को टीशर्ट बनाने वाली कंपनियां बुल और पैंकी  टीशर्ट के नाम पर बाजार में धड़ल्ले से बेचने में यह कहकर जुट जाती हैं कि हम सबके चेहरों पर मुस्कान बिखेरना चाहते हैं

नोएडा के ग्रेट इंडिया पैलेसे के वाटर पार्क में  कुछ लड़के समूह में मौज करने पहुंचे थे। इसी में से एक ने दूसरे मित्र से बातचीत के क्रम में ताली पीटते हुए कहा -‘ओ तेरी के… प्रदीप तू यार भैंस की आंख…।’ मैं भी उसके पीछे-पीछे ही अपने परिवार के सदस्यों के साथ चल रहा था। वे सबके सब बिंदास थे। उनका बिंदासपन आकर्षित तो कर रहा था पर हंसी-ठिठोली के बीच वे बेलौस अंदाज में एक-दूसरे से कभी ‘अबे चू…’, ‘तेरी तो मां की…’  तो कभी अंग्रेजी का एक अल्फाज ‘फ…’ बार-बार कह रहे थे। उनमें से एक की टीशर्ट पर रोमन और देवनागरी में लिखा था ‘दिल्ली से हूं बेहन…’ तो एक की टीशर्ट पर लिखा था -‘मेरे पास माल है।’ उनमें से एक से पूछा कि ये ‘मां की आंख’ और ‘भैंस की आंख’ का मतलब क्या होता है, इसके जवाब में उसने कहा- ‘गाली का रिप्लेसमेंट है सरजी।’ ये सारे लड़के दिल्ली के रोहिणी और प्रीतमपुरा के निवासी थे और सभी के सभी खाते-पीते घरों से थे।

भाषा की दरकती इस दीवार के बारे में जब पड़ताल करनी शुरू की तो पता चला कि यह फिल्म, टेलीविजन और एफएम रेडियो चैनल के जरिए जरिए  बरसाती नदी की तरह अबाध बढ़ती चली जा रही है। इस बेलगाम भाषा को महानगरों में ‘बुल -पैंकी ’ या ‘सुपर बुल’ होने के लिए कम से कम युवा वर्गों में जरूरी माना जाने लगा है। एक पब्लीकेशन हाउस में काम करने वाले हिमांशु भट्ट ने इस मुद्दे पर बातचीत में कहा- ‘हम लड़के तो कुछ भी नहीं करते हैं। आपने एफएम पर रेडियो जॉकी को बोलते सुना है? कभी टेलीविजन पर चलने वाले विज्ञापन की द्विअर्थी भाषा सुनी हैै? कभी आपने रियल्टी शो मसलन बिग बॉस या कॉमेडी नाइट की भाषा सुनी हैै? अगर नहीं सुनी हो तो आप एक बार उनकी गली होकर आइए फिर आपको हम उनकी औलाद से भी                                                 कमजोर लगेंगे।’

‘ बुल टीशर्ट’ का कलैक्शन लेकर बाजार में उतरी दिल्ली की टीशर्ट कंपनी  ‘तपस्या’ ने दो दर्जन से भी ज्यादा स्लोग्न (नारों) वाले राउंडनैक (गोल गले) टीशर्ट बाजार में उतारे हैं। इस टीशर्ट की कीमत ४९९ रुपये है लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों और स्टोर पर यह ३९९ रुपये में उपलब्ध है। तपस्या कंपनी  के मालिक राजीव गुप्ता और इस  कंपनी की वेबसाइट का कहना है, ‘हम टीशर्ट का व्यापार करने नहीं विचारों का व्यापार करने

आए हैं। आप हमारी वंâपनी की टीशर्ट पर धार्मिक मसलन ‘ओम, भगवान गणेश या किसी धार्मिक संदेश को पाएंगे या फिर कुछ ऐसा जिसकी वजह से हर किसी के चेहरे पर मुस्कराहट तैर जाए।’ यह सच है कि तपस्या कंपनी की टीशर्ट पर्यावरण बचाने से लेकर शांति-सुकून  की बात तो करती है लेकिन दूसरी ओर वह सीधे-सीधे तो किसी टीशर्ट पर भाषा और चित्र, रोमन और देवनागरी के कॉकटेल के साथ अश्लील नारों से भरे टीशर्ट बाजार में बेच रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रसिद्ध कॉलेज कैम्पस  में नामकरण के लिए पहुंचे नितिन की टीशर्ट पर प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय रैगे गायक बॉब मारले का नाम तीन अलग-अलग रंगों के बॉक्स में अंग्रेजी में ‘बॉब मार …’ लिखा हुआ था। इस कंपनी  के वेबसाइट पर बुल  टीशर्ट के उदाहरण यहां उद्धृत किए जा रहे हैं – ‘बापू कमावे कैश ते पुत्तर करे एैश’, ‘यौन संबंध’, ‘अ मग अ डे कीप्स द डॉक्टर अवे (बीअर की बोतल का चित्र)’, ‘विच वे यू लाइक? ९६,६९’…आदि-इत्यादि।  ’, इस बारे में पूछा तो नितिन ने बताया, ‘आपको दो अर्थों या इस तरह के बुल -पैंकी  टीशर्ट देखनी हो तो बेवकूफ  डॉटकॉम पर थोड़ी देर के लिए जाओ।’ वेबकूफ डॉटकॉम को खंगाला तो पता चला कि अश्लील स्लोग्न वाले टीशर्ट की बाढ़ है। यहां तो दो अर्थ वाले नहीं, यहां तो सीधे-सीधे अर्थों वाले स्लोग्न टीशर्ट की भरमार है।

दिल्ली स्थित एक एक्सपोर्ट हाउस ‘अनंत इंटरनेशनल’ में डिजाइनर का काम करने वाली स्वाति नौडियाल के अनुसार ‘इन दिनों फिल्म, गाने और रेडियो पर युवा होने का मतलब बिंदास बताया जा रहा है। यह ठीक है कि युवा होने का मतलब उत्साह से भरा होना हो सकता है पर उत्साहित होने का मतलब यह तो कतई नहीं हो सकता है कि आप सड़क पर अश्लील स्लोगन लिए घूमते फिरेंगे। बेशर्मी की हद को पार कर जाने वाली युवाओं की भाषा और संवाद होंगे। यह सब महिलाओं को अपमानित करने के लक्ष्य से गढ़े जा रहे हैं और इसका कारोबार भी फल-पूâल रहा है। औरतों के प्रति बढ़ रही हिंसा को देखते हुए इन प्रवृत्तियों पर लगाम लगाया जाना जरूरी है।’

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ISSN 2394-093X
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