वीणा वत्सल सिंह की कवितायें : रेहाना जब्बारी और अन्य

वीणा वत्सल सिंह

युवा कवयित्री वीणा वत्सल सिंह दो सालों तक दुमका में पढ़ाने के बाद आजकल लखनउ रहती हैं. संपर्क :veenavatsalsingh19libra@gmail.com>

रेहाना  जब्बारी
रेहाना
तुम मरना नहीं चाहती थी कभी
तभी तो अपने को रेप से बचाने के लिए
लड़ पड़ी थी तुम सात साल पहले
जब तुम उम्र के उठान पर मात्र उन्नीस वर्षों की थी
नहीं था उस दरिन्दे को जीने का हक़
एक स्त्री के नाते
तुम्हारे भावों को पी
सहमत हूँ मैं
तुम्हारे द्वारा की गई ह्त्या से
रेहाना ,
वहाँ के क़ानून के अनुसार
अपनी मौत निश्चित जान कर भी
तुमने काल – कोठरी के
उन सात वर्षों में
जगाये रखी जीवन की लौ ह्रदय में
तभी तो ,
कब्र के सडांध से आगे की जिन्दगी चुन
देह – दान कर गई तुम
अपनी जिन्दगी को बनाए रखने का
इससे खुबसूरत भाव कुछ और नहीं हो सकता
रेहाना ,
तूम बहुत खुबसूरत हो
इस देह से ऊपर
विश्व के हर कोने में ज़िंदा रहोगी
जब ,
कहीं भी
कोई स्त्री अपने अस्तित्व की
रक्षा की आवाज उठायेगी
तुम उस आवाज से झाँकोगी
रेहाना ,
जब कहीं भी
कोई भी
स्त्री अपने अस्मत की रक्षा के लिए हथियार उठायेगी
तुम उस हथियार की धार में चमकोगी
रेहाना ,
जब – जब इस दुनिया में
स्त्री रौंदी जाकर भी
जीने के लिए उठ खडी होगी
तुम उस जीवन में खिलखिला उठोगी
रेहाना ,
तुम मर नहीं सकती
तुम ‘कब्र की सडांध’
और ‘गमों के काले लिबास’ के लिए
बनी ही नहीं
तुम्हारे हर पल का संघर्ष
तुम्हे हवा में घुलाकर
हर स्त्री की साँसों में उतारेगा
तुम हर स्त्री के ह्रदय में धड़कती

ज़िंदा होकर
फिर फिर से लड़ोगे

अपने होने की
एक और लड़ाई

वह कुटिया वाली स्त्री 

मन के जिस हिस्से में
गंगा की धारा बहती है
उसी के सुरम्य तट पर
बनी कुटिया में
एक और स्त्री रहती है
जो आम स्त्री से बिलकुल अलग है
आईने में दिखते चेहरे से भी
वह एकदम अलग है
लोलुप दृष्टियों से स्वयं को बचाती छवि से
वह स्त्री अलग है
रोज के क्रिया – कलापों में संलग्न स्त्री से
वह कुटिया में रहने वाली स्त्री अलग है
वह कुटिया वाली स्त्री प्रेम जीती है
संसार को रंगना चाहती है अपने रंग में
पुरुष उसके लिए
कुंठा नहीं
मात्र प्रेम का अवलंब है
पुत्र ,पति ,पिता,भाई ,सखा
हर रूप में उसमें बसा
वह कुटिया वाली स्त्री
पुरुष के इस प्रेम से ही बनी है
वह धड़कती है हर आम स्त्री में
और उसका जीना
जीवन में समरसता घोल जाता है
हर बेचैनी
हर कडवाहट
हर तकलीफ के बाद भी

मलाला युसुफजई 

मुझे अचंभित करती है
तालीबानी समाज की वह
सत्रह साला लड़की
खेलने ,नाचने ,गाने की उम्र में
पढ़ने की लगन ओढ़
तालीबानी समाज की लड़कियों के बीच
जगाती है शिक्षा की लौ
वह सत्रह साला लड़की
बेख़ौफ़ वह
ऐसा सबकुछ बोलती और करती है
जिससे तालीबानी मिजाज आहत होता है
जबकि ,
दुनिया भर की लड़कियां
उस उम्र में
‘बार्बी ‘ से खेलती
और उस जैसी स्लीम दिखने की चाहत रखती हैं

वह लड़की
मलाला युसुफजई
इन सबसे परे
तालीबान की गोलियां खा
मौत को हराती है
झंझावात में दीपक जलाती
मलाला का संघर्ष
दुनिया के हर संघर्ष से कहीं अधिक बड़ा है
हर पुरस्कार से
विश्वव के सर्वोच्च सम्मान से भी
कही बहुत आगे है
मलाला युसुफजई
अपनी छोटी सी जिन्दगी में ही
मिथक बन जाना
शायद मलाला को ही कहते हैं

स्वर्णलता हँसती है 

स्वर्णलता हँसती है
खूब हँसती है
जब कोई उससे कहता है
उसके घर के पिछवाड़े
नीम के पेड़ के पास वाले
पीपल के पेड़ पर भूत रहता है
स्वर्णलता ,
बेख़ौफ़ ,बेरोक – टोक
रात – बिरात चली जाती है
उस पीपल के पेड़ के पास
और ,जोर से बोलती है –
‘पीपल के पेड़ के भूत बाबा ,आओ
मुझे तुम्हे देखना है ‘
किसी को आया न देख
स्वर्णलता ,खिलखिलाकर हँस देती है
एक दिन
अजब – गजब कुछ हो गया
स्वर्णलता अचानक चुप हो गई
हँसना भूल गई
लोग कहते ,स्वर्णलता
उस पीपल के पेड़ पर भूत रहता है
स्वर्णलता ,चुपचाप उन्हें सूनी आँखों से
घूरती रहती
ओझा – गुनी
डॉक्टर -वैद्य
सब कुछ हुआ
लेकिन ,स्वर्णलता का हँसना
वापस नहीं आया
हारकर ,माता – पिता ने
सुयोग्य वर ढूंढ
विवाह कर दिया स्वर्णलता का
शादी के बाद भी
स्वर्णलता ,बस मुस्कुराती
हँसती नहीं थी
ससुराल में भी उसके घर से कुछ दूरी पर
एक भूतों वाला पीपल का पेड़ था

सांझ होते
लोग – बाग़ उस पेड़ से होकर
जाने वाला रास्ता छोड़ देते
स्वर्णलता को भी सख्त मनाही थी
उस पीपल के पेड़ तक जाने की
लेकिन ,एक दिन फिर
अजब – गजब कुछ हो गया
पड़ोस के एक लडके ने
स्वर्णलता को भूत के साथ
बतियाते देख लिया
स्वर्णलता के मना करने पर भी
सबने उसे डायन-जोगिन कह
घर से निकाल दिया
कुछ महीनों बाद ,
पड़ोस के उसी लडके ने
स्वर्णलता को
किसी पीपल के पेड़ वाले भूत के साथ
विराने में घूमते देखा
सूखे हलक से
‘स्वर्णलता भूतनी हो गई
स्वर्णलता भूतनी हो गई ‘
कहकर वहाँ से भागा
स्वर्णलता ,
उस, किसी पीपल के पेड़ वाले भूत का हाथ पकड़
पड़ोस के उस लडके के हाल पर
खिलखिलाकर हँसती
कहीं चली गई
आज भी ,
लोगों को कभी – कभार
स्वर्णलता की हँसी की गूंज
और ,उस पीपल के पेड़ वाले भूत से बतियाने की
आवाजें
सुनाई देती हैं
लोग कहते हैं –
‘जब कभी पड़ोस का वह लड़का डरकर चीखता है
स्वर्णलता हँसती है
जब किसी घर में बेटी पैदा होती है
स्वर्णलता हँसती है ‘
स्वर्णलता की हँसने की आवाजें सुनना
लोग अपशगुन मानते हैं
लेकिन ,अपनी ही धुन में मगन
स्वर्णलता आज भी हँसती है
खूब हँसती है

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ISSN 2394-093X
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