युवा कवयित्री संजू शब्दिता जीवाजी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में शोधरत हैं. संपर्क : sanjushabdita@gmail.com
1
वो मेरी रूह मसल देता है
साँस भी लूँ तो दखल देता है
इससे पहले कि मैं कुछ कह पाऊँ
खुद के अल्फ़ाज़ बदल देता है
राज़ की बात उसे मत कहना
वो सरेआम उगल देता है
मैं तो देती हूँ दुवायें उसको
एक वो है कि अज़ल देता है
उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है
2
हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी
गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी
बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी
कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें
कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी
नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे
ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी
मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर
अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी
3
चाँद तारे ख़्वाब में आते नहीं
हम भी छत पे रात में जाते नही
वो ज़माना था कि बातें थी गुज़र
आज हम भी वैसे बतियाते नहीं
वो पुरानी धुन अभी तक याद है
पर हुआ है यूँ कि अब गाते नहीं
ढूंढते हैं मिल भी जाता है मगर
चाहिए जो बस वही पाते नहीं
जाने क्या मंज़र दिखाया आपने
अब नज़ारे कोई बहलाते नहीं
4
मुझे बेजान सा पुतला बनाना चाहता है
किसी शोकेस में रखकर सजाना चाहता है
मेरे जज्बात सब उसको खिलौने जान पड़ते
जिन्हें वो खुद की चाभी से चलाना चाहता है
कुतर डाले मेरे जब हौंसलों के पंख उसने
बुलंदी आसमां की अब दिखाना चाहता है
मेरे किरदार में सख्ती नहीं उसको गंवारा
बिना हड्डी का कर मुझको पचाना चाहता है
दिवारें चार मेरी हो गईं हैं कब्रगाहें
मुझे जिन्दा ही वो मुर्दा बनाना चाहता है
5
सिर्फ कानों सुना नहीं जाता
लब से सब कुछ कहा नहीं जाता
दर्द कि इन्तहां हुई यारों
मुझसे अब यूँ सहा नहीं जाता
चुन के मारो सभी दरिन्दों को
माफ इनको किया नहीं जाता
है भला क्या तेरी परेशानी
बावफ़ा जो हुआ नहीं जाता
कैसे वादा निभाऊ जीने का
तेरे बिन अब जिया नहीं जाता
6
हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे
गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे
यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे
कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे
दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे
तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे
चल दिये हैं सफ़र में अकेले ही हम
साथ अपने ग़मों को बुलाते रहे
रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रहे
7
इंसानियत का पता मांगता है
नादान है वो ये क्या मांगता है
वो बेअदब है या मैं बेअसर हूँ
मुझसे वो मेरी अना मांगता है
हद हो गई है हिक़ारत की अब वो
रब से दुआ में फ़ना मांगता है
बरकत ख़ुदाया मेरे घर भी कर दे
बच्चा खिलौना नया मांगता है
किस्मत में मेरे नहीं था वो लेकिन
दिल है कि फिर भी दुआ मांगता है
8
दिल में इक दर्द है जो ज़िन्दगी सी लगती है
जाने क्यों फिर ये कभी दिल्लगी सी लगती है
जाओ छेड़ो न अभी गम में हमें रहने दो
गम का एहसास हमें बन्दगी सी लगती है
हम भी बदनाम हुए थे कभी इस दुनिया में
अब तो हर बज़्म ही रुसवा हुई सी लगती है
ऐसे लोगों से बचाना हमें तू या मौला
जिनसे मिलते ही हमें बेकली सी लगती है
उसकी बातों में करिश्मा है कोई क़ुदरत का
जब भी सुनते हैं उसे बेखुदी सी लगती है
सच की आदत जो पड़ी है हमारी बचपन से
बोल दें हम तो उन्हें खलबली सी लगती है