कारिन बुवेए की एक कवितायें
1. शाम की प्रार्थना:
कोई पल इस तरह का नहीं होता,
जैसा कि शाम के अंतिम कुछ मौन घंटे.
कोई भी दुःख अब और नहीं जलता,
कोई भी हिस्सा नहीं होता और छिछला.
अभी अपने हाथों से पकड़ लो समय
उस दिन को जो बीत चुका है.
यकीनन मुझे पता है: तुम उसे सर्वोत्तम में दोगे बदल
जिसे मैंने या तो बस रखा हुआ है या तोड़ दिया है.
दर्द सोचती हूँ मैं, दर्द ही खरीदती हूँ मैं,
मगर तुम सारे घाव भर देते हो और हर लेते हो हर पीड़ा.
मेरे दिन ऐसे बदल देते हो तुम
जैसे की कंकड़ को बदल दिया गया हो बहुमूल्य पत्थर में.
तुम आह्लादित कर सकते हो, तुम कर सकते हो वहन,
मैं तो बस सबकुछ छोड़ सकती हूँ तुमपर.
मुझे ले लो शरण में, राह दिखाओ मुझे, मिले सान्निध्य तुम्हारा!
ले चलो फिर, जो लगता है ठीक तुम्हें, उस प्रयोजन की ओर!
2. छोटी सी बात
क्या आप एक और कदम नहीं चल सकते,
उठा नहीं सकते क्या अपना मस्तक एकबार,
कराहते हों जब आप थके हारे निराशाजनक धुंधलेपन में —
तब हो संतुष्ट, आभार मानिए सामान्य सी, छोटी चीज़ों का,
जो है धीरज देने वालीं व बाल-सुलभ.
आपके पास जेब में है एक सेब,
घर पर परियों की कहानियों की है एक क़िताब —
छोटी छोटी तुच्छ चीज़ें, जो रहीं तिरस्कृत
जीवन के उन्मुक्त, जीवंत समय में,
उन्होंने ही थामे रखा मृत्यु की सी नीरवता के अन्धकार में.
3. सर्वोत्तम
हमारे पास जो सर्वोत्तम है,
उसे दिया नहीं जा सकता,
उसे कहा नहीं जा सकता,
और न ही उसे लिखा जा सकता है.
कारिन बुवेए |
आपके मन की सर्वोत्तम बात
अपवित्र नहीं की जा सकती.
वह चमकती है गहरे वहां भीतर
आपके लिए और केवल ईश्वर के लिए.
यह हमारी समृद्धता का ताज है
कि जिस तक कोई और नहीं पहुँच सकता.
यह हमारी विपन्नता का दर्द है
कि जो किसी और को नहीं मिल सकता.
एल्सा ग्रावे की एक कवितायें
1. मैं मौन हूँ
मैं मौन हूँ
उस मीन का जो तैरती है
गहरे में समुद्री फूलों के मार्ग पर
समुद्री शैवाल कुञ्जों के बीच से.
मैं चुप्पी हूँ अंडे की
जिसमें बढ़ता है पक्षी
नीले कवच के तहत
और रक्त के घूमते जालक्रम में.
मैं वह मौन हूँ
जो मूक फूल महसूसते हैं
जब पेड़ गाते हैं अपने तूफानों का गीत,
मैं वो हूँ जो है स्थित
पृथ्वी के श्वेत हृदय में.
मैं नहीं हूँ भावशून्यता, न ही क्षयता
और कठोरता,
मैं पत्थर का मौन हूँ
वह कठोर पत्थर
मेरी भयानक चीख है.
2. आँसू
मेरे आँसू
नहीं बुझाते कोई आग,
और मेरी आग
नहीं सुखाती कोई आँसू.
कभी नहीं सूखते मेरे आँसू,
वे बहते हैं,
वे बहते ही जाते हैं,
नहरों, नदियों और महासागरों तक,
और तब भी होते हैं
बेहतर नहीं.
फिर भी मैं एक साथ रो सकती हूँ एक विशाल सागर!
लाल आँखें
पीले पड़ गए गाल
रात और दिन आँसुओं से –
क्या दे रहे हैं संकेत कि
दुनिया का सारा पानी
सकल बारिश आकाश की
है सबके विरुद्ध जिस लिए इंसान अक्सर रोता है और रोता जाता है?
एलसा ग्रावे |
3. सागर इतना गहरा है
सागर इतना गहरा है
पर्याप्त गहरा कि उससे सब कर सकते हैं प्यार,
वे सभी जो करते हैं प्यार डूबते सूरज से,
ओझल होती हुई नाव से
और उस स्वप्न से जो डूब गया
गहरे दिन के प्रकाश में
सागर इतना बड़ा है
पर्याप्त बड़ा कि उससे सब कर सकते हैं प्यार,
वे सभी जो करते हैं प्यार दूरस्थ, अजनबी सागर से
एक गरजते तूफ़ान से
और उस श्वेत पंछी से जो उड़ गया था
मगर वापस लौटा रक्ताभ पंखों के साथ,
सागर इतना बड़ा है
इतना बड़ा
कि दो लोग जो प्यार करते हों
एक ही सागर से
भूल सकते हैं एक दूसरे को.
4. रात के साथ अकेले
अब क्यूँ नहीं बोलते हैं घर
गाती नहीं सड़कें अब?
कुछ है नहीं अब कहने के लिए
गाने के लिए?
रात के दमघोंटू मौन कदम,
एक कंपकंपी है बनी हुई.
मूक मुड़ती है यंत्रणा झेलती, कुचली सड़क
आसपास हर कोने से
मैं जा रही हूँ एक पीड़ादायक
और दिन भर की थकी हारी सड़क से,
जब मैं जाना बंद करूंगी,
खोलूंगी मैं एक सख़्त द्वार
एक मौन आवास में
वहाँ रहूंगी मैं
रात के साथ अकेले
अनुपमा पाठक |
5. हृदय और मस्तिष्क
हृदय और मस्तिष्क
वे इतने करीब रहते हैं संग,
सामान्य तौर पर एक ही किराये के मकान में.
कभी कभी घरों में
जहाँ हो उद्यान
और ग्रीष्म गृह एवं हरित गृह
और कलात्मक जालीयुक्त फाटक.
वे इतने करीब रहते हैं संग,
निकटतम पड़ोसी हैं वे.
लेकिन ऊँचा है उनके बीच का फाटक
और झाड़ियाँ है बिन कटी हुईं
और कांटेदार –
और पड़ोसियों में नहीं है कोई मेल-जोल,
उनका एक दूसरे के साथ तो बिलकुल नहीं.
कभी कभी – पतझड़ में
हृदय के उद्यान से गिरते हैं पत्ते
मस्तिष्क की सोच में
कई लाली लिए हुए पत्ते
और सुनहरे
गिरते हैं और फंस जाते हैं नागफनी की झाड़ियों में
जब आता है तूफ़ान
तब उठा ली जाती है पड़ोसी के घर की छत !