ज्ञानोदय, कथादेश, कथन, कथाक्रम, अक्षरपर्व आदि पत्रिकाओं में कवितायें , कहानियां प्रकाशित
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इस पंद्रह अगस्त को……
इस पंद्रह अगस्त को
वह स्वतंत्र होना चाहती है .
उसके वक्त पर, अपनों के पहरे से.
उसके पहनावे पर, सगों के फतवे से.
उसके आने-जाने पर, सम्बन्धियों की चौकीदारी से.
उसके शरीर पर, करीबी लोगों की जमींदारी से.
उसके उठने-बैठने पर, घरेलू नुक्ताचीनी से.
उसके मातृत्व पर, पारिवारिक गुंडागर्दी से.
उसके मन पर, कुलीन संस्कारजन्य मनाही से.
वह स्वतंत्र होना चाहती है .
पहरे, फतवे, चौकीदारी, जमींदारी, नुक्ताचीनी, गुंडागर्दी और मनाही से.
घबराइये मत, डरिये मत, चौंकिए मत !
हाँ, इस बार पंद्रह अगस्त को
वह वाकई स्वतंत्र होना चाहती है!
सशक्त नारी……
अब वह समझ चुकी है
अपनी क्षमता
तुम न समझना चाहो
यह ‘परेशानी’ तुम्हारी है.
वह जान चुकी है
अपनी शक्ति
तुम जान कर अनजान बनो
यह ‘दिक्क्त’ तुम्हारी है.
वह पा कर रहेगी
उसका समुचित सम्मान
तुम न देना चाहो
यह ‘उलझन’ तुम्हारी है.
वह हो कर रहेगी
जल्द ही सशक्त
तुम अहम ग्रस्त रहो
यह ‘समस्या’ तुम्हारी है.
समय रहते अपनी
परेशानियों, दिककतों, उलझनों, समस्याओं
से ऊपर उठो
वह सशक्त नारी है !
आत्मविश्वासी छंद
अब हम
न रखेंगी
अपने होंठ बंद !
बुहार देंगी
हर छोटी-बड़ी
बदसलूकियों की गंद !
बदलेगा पौरुष
सुन, आधी आबादी के
आत्मविश्वासी छंद !