बहन के नाम राजनीतिक पत्र

संजीव चंदन


प्रिय बहन, 
मुझे याद है कि तुम कितनी खुश थी जब उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय के हॉस्टल में तुम्हें प्रवेश मिला था. 21वीं सदी के दूसरे दशक तक भी तुम्हारे खिलाफ कितना विपरीत माहौल था, कितने अकाट्य से दिखते तर्क थे तुम्हारे हॉस्टल में न जाने के. पिता और मां तुम्हारी सुरक्षा के तर्कों के साथ चिंतित थे और तुम्हारे भविष्य के खिलाफ चिंतित अभिभावक की सहज मुद्रा में चट्टान से खड़े थे. बड़ी मुश्किल से वे माने और तुम घर से पहली बार अपनी स्वतन्त्रता और अपने चुनावों के साथ बाहर निकल सकी. तुम्हारी आँखों में चमक देखकर मैं प्रसन्न था, तुम्हारे भीतर अचानक आत्मविश्वास की आभा दिखी , अब तुम कुछ निश्चित दायरे में ही सही लेकिन स्वतंत्र जीवन के प्रति आश्वस्त थी.

बहन, इसके पहले भी तुम कितनी खुश थी, जब सायकल पर चढ़ कर सहेलियों के साथ अपने स्कूल के लिए निकली थी. तुम्हारे किशोर होती आकांक्षाओं को सायकिल के पहिये के आकार के पर लग गये थे. बाहर का समाज इस दृश्य के लिए तैयार नहीं था- मिश्रित प्रतिक्रियाओं ने तुम्हारा स्वागत किया था बाहर- कुछ को लगा ‘घोर कलियुग’ आ गया है तो कुछ मन बनाने लगे थे तुम्हारी शिक्षा के अधिकार के प्रति सहज होने के लिए , कुछ प्रसन्न थे कि अब बेटियाँ गहरे आत्मविश्वास से भरकर स्कूलों में जा रही हैं. बड़ी मुश्किल डगर रही है तुम्हारी शिक्षा की. तुमने सावित्री बाई फुले के बारे में पढ़ा ही होगा. पहली बार तुम्हारे लिए पाठशाला खोलने में उन्हें कितनी कठिनाइयों का सामना करना पडा था- स्कूल के लिए जाते वक्त उन पर गोबर और कीचड फेके जाते थे- 1848 से 2015 तक समाज बहुत कुछ बदला है,  तो बहुत बदला भी नहीं है – यह तुमसे बेहतर कौन जानता होगा.

बहन, आजकल चिंता से भर गया हूँ और मुझे लगता है तुम भी चिंतित होगी.  बहुत कुछ बदल रहा है न बहन तुम्हारे आस –पास. मैं समझता हूँ कि तुम भी चिंतित हुई होगी नरेंद्र दाभोलकर , गोविंद पंसारे और एम.एम कलबुर्गी की हत्याओं की खबर से. मैं जानता हूँ कि तुम बहुत परेशान हुई होगी दादरी में मारे गये अख़लाक़ के बारे में जानकर कि कैसे पास –पड़ोस के लोग एक हिंसक भीड़ में बदल गए,  उसके खिलाफ- गोरक्षा के भावनात्मक आवेश से भरी भीड़ में. तुम तो चीटियों को भी मारने पर चिल्लाती रही हो न बहन ! विषाक्त होता माहौल तुम्हारे खिलाफ भी एक षडयंत्र सा है, क्योंकि सुरक्षा की चिंता से भरा समाज सबसे पहले अपनी स्त्रियों की स्वतंत्रता को ही ख़त्म करता है. तुम कितना डर गई होगी , जब देश के संस्कृति मंत्री ने अख़लाक़ की ह्त्या के दोषी भीड़ के चरित्र को प्रमाणित करने के लिए यह वक्तव्य दिया कि ‘ भीड़ ने उसके घर में मौजूद 17 साल की लडकी को कुछ नहीं किया.’ मैं समझता हूँ कि तुम्हारा रोम –रोम काँप गया होगा, तुम भयभीत हुई होगी, उस दिन से भी ज्यादा, जब दिल्ली और मुम्बई में सामूहिक बलात्कार की घटनाओं की खबर तुमने पढी होगी , टी वी पर देखा होगा.

बहन, बड़ी मुश्किल से मिली आजादी को खोने का डर समझा जा सकता है. अभी ही तो तुम हॉस्टल में आई थी और अभी ही तुम्हें देश का संस्कृति मंत्री ड्रेस कोड बता रहा है , ‘नाईट आउट’ का बेहूदा विमर्श कर रहा है. कितना अपमान जनक लगता होगा तुम्हें , जब कोई कैमरा तुम जैसी लड़कियों की इजाजत के बिना तुम्हारी तस्वीरें ले रहा होता है ताकि तुम लड़कियों को यह बताया जा सके कि कौन सा कपड़ा भारतीय संस्कृति के अनुरूप है और कौन सा खिलाफ.

बहन, तुम खूब समझती होगी कि वह कौन सी राजनीतिक जमात है , जो तुम्हारी स्वतंत्रता, तुम्हारे अस्तित्व के खिलाफ सामाजिक –सांस्कृतिक दर्शन को बढ़ावा देती है. अभी –अभी तो तुम हॉस्टल में रहने आई हो , और अभी ही तुम्हारी सुरक्षा के नाम पर कैम्पस में सी सी टी वी कैमरे लगाये जा रहे हैं. ये सी सी टी वी कैमरे नहीं ये वे दृश्य आँखें हैं , जो यह मानती हैं कि तुम स्वस्थ निर्णय नहीं ले सकती , इसलिए कि तुम लडकी हो, इसलिए कि उनकी किताबों में ‘त्रिया चरित्र’ के बकवास को दार्शनिक और मिथकीय आधार दिया गया है. तुम इस फर्क को तो समझती ही होगी कि कैसे दो सालों के भीतर ही विश्वविद्यालय कैम्पस में ‘ जेंडर संवेदित’ माहौल बनाने के प्रयास को लड़कियों के ऊपर पहरेदारी में बदल दिया जाता है. तुम खूब समझती हो कि लड़कियों को सुरक्षित वातावरण देने के लिए 2013 में यू जी सी के द्वारा विश्वविद्यालयों को जारी निर्देश 2015 में किन राजनीतिक समझदारियों से लड़कियों को सुरक्षित करने यानी पहरेदारी में रखने , या जेल जैसी व्यवस्था में घेर देने के निर्देश में तब्दील हो जाता है. तुम देख ही रही हो देश भर में तुम्हारी सहेलियां किस तरह इस निर्देश का विरोध कर रही हैं. तुम्हारे विश्वविद्यालय से ऐसे किसी विरोध की खबर नहीं आई है , यह थोड़ा चिंतित करता है.

बहन,  यह अराजनीतिक होने का समय नहीं है. यह समय है यह समझने का कि कौन सी जमातें तुन्हें फिर से उन्हीं घरों में कैद करना चाहती हैं , जहां से तुम निकलने के प्रयास में हो, अपना जीवन जीने के लिए तैयार हो रही हो. समाज में जब तर्क –विवेक का गला घोटा जाता है , माहौल में तनाव और अशांति का वातावरण बनता है तो उसका सबसे बड़ा असर महिलाओं पर ही होता है. तुम देख रही होगी कि ‘ नार्यस्तु यत्र पूज्यन्ते’ का जाप करने वाली जमात ही फिर से एक बार तुम्हारे खिलाफ उद्धत है.

बहन,  अभी जो कुछ हो रहा है , जो वातावरण बनाया जा रहा है , उसका सबसे बड़ा नुकसान तुम्हें ही उठाना होगा. अभी तुम्हारे लिए अपने राज्य में ही 35% आरक्षण की पहल हुई है , इस दिशा में की गई पहलों को अभी कुछ ही साल बीते हैं. तुम्हारे लिये नौकरियों में 50% के आरक्षण की पहल ने असर दिखाना शुरू ही किया है कि तुम्हारे खिलाफ एक राजनीतिक षड्यंत्र शुरू हो गया है. अभी तो 33% आरक्षण की लड़ाई बाकी है , लेकिन आरक्षण विरोधी वातावरण बनाने लगी है एक जमात. अभी न पढ पाने वाली लड़कियों की जमात पढ़कर आगे आने ही लगी है और आरक्षण के समतावादी सिद्धांत और व्यवस्था का लाभ लेने की स्थिति में पहुँच ही रही है कि आरक्षण के खिलास अलग –अलग सुर बनाये जाने लगे हैं. बहन तुम्हारा क्षद्म सामाजिक पोजीशन कुछ ऐसा है कि आरक्षण के खिलाफ तर्क तुम्हें आसानी से झांसे में ले लेते होंगे , लेकिन अपने लिए हो रहे आरक्षण प्रावधानों के फायदे के नजरिये से देखोगी तो तुम्हें आरक्षण के खिलाफ बनाये जा रहे माहौल के पीछे का षड्यंत्र भी दिखेगा. तुम देख सकोगी कि तुम्हारी स्वतंत्रता के खिलाफ लगी जमातें, तुम्हारे लिए ड्रेस कोड बनाती जमातें, तुम्हें विश्वविद्यालय कैम्पसों में भी कैदखाने में रहने को मजबूर करने वाली जमातें और आरक्षण विरोधी जमातें कैसे एक ही चेहरे वाली हैं , एक ही राजनीतिक स्कूल से प्रशिक्षित हैं.

बहन , एक वाकया बताऊँ अपने विद्यार्थी दिनों की. तब भी यह राजनीतिक सोच केंद्र की सत्ता में थी. तब एक विश्वविद्यालय में कुलपति ने लड़कियों की ‘ माहवारी’ के रिकार्ड रखने की शुरुआत की. होस्टलों में रहने वाली लड़कियों पर यह विचित्र सांस्कृतिक पहरेदारी थी, स्वाभाविक था हम सब ने , हमारी सहपाठी लड़कियों ने इसका विरोध किया.

बहन,  यह समय राजनीतिक पहल लेने का समय है. आराजनीतिक होने का दंश हम सब को पीढ़ी-दर –पीढी झेलना पडेगा. मताधिकार के प्रयोग तो करना ही करना लेकिन व्यापक प्रतिरोध के प्रति भी सचेत भाव से जरूर जुड़ना. हाँ, ख्याल रखना तुम्हारा एक वोट तुम्हारे खिलाफ ही षड्यंत्र कर रही राजनीतिक जमातों को और भी मजबूत कर सकता है. यह सुनिश्चित करना तुम्हारा काम है कि कोई अख़लाक़ या कोई इशरत जहां विषाक्त सामाजिक –सांस्कृतिक माहौल की शिकार न हो और आजादी की ओर बढे तुम्हारे कदम फिर से वापस लौटने को मजबूर न कर दिए जायें इसकी गारंटी भी तुम्हें खुद ही लेनी होगी !

तुम्हारा भाई 
संजीव 

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ISSN 2394-093X
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