स्त्रियों की वास्तविक मुक्ति

इंदिरा गांधी 


अनुवाद : कुइलिन काकोति


आज भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी की जयंती है. इस अवसर पर स्त्रीकाल के पाठकों के लिए उनका एक भाषण . यह भाषण आल इण्डिया वीमेंस कांफ्रेंस भवन के उदघाटन अवसर पर 26 मार्च 1980 को दिया गया था. 

लोगों के बीच इंदिरा गांधी



पिछले कई दशकों से आल इण्डिया वीमेन्स कांफ्रेंस भारतीय महिलाओं का संगठित आवाज बनी हुई है. मैं कभी किसी महिला संगठन की सदस्य नहीं बनी, लेकिन मेरी काफी दिलचस्पी उनकी गतिविधियों को जानने में रही है , और जब भी संभव हुआ है मैंने अपनी ओर से उनकी मदद की है .

मुझे खुशी है कि लम्बे समय के बाद आल इण्डिया वीमेन्स कांफ्रेंस का अपना घर है और उसका नामकरण हमारे समय की सबसे उल्लेखनीय महिला सरोजिनी नायडू के नाम पर किया गया है . सरोजिनी नायडू, जो अपने भीतर से तो कोमल स्त्री थीं,  लेकिन पुरुष प्रधान समाज में उन्होंने  अपनी उपस्थिति दर्ज कराई –लेखन और राजनीति दोनो में.

1980 में आगा खान पति-पत्नी के साथ इंदिरा गांधी

इस अवसर के महत्व को बढाने और इसे अधिक महत्वपूर्ण बनाने के लिए हमारे बीच हमने ‘हिज हायनेस आगा खान’ और ‘हर हायनेस बेगम आगा खान’ को आमंत्रित किया है. ये भारत के दोस्त हैं और इन्होने शिक्षा , स्वास्थ्य और अन्य कल्याणकारी परियोजनायें यहाँ शुरू की हैं या कई परियोजनाओं में मदद की है.

मैं अपने सामने कई प्रसिद्ध महिलाओं को देख रही हूँ, जिन्होंने समाज सेवा, शिक्षा, विज्ञान, प्रशासन, क़ानून आदि विभिन्न क्षेत्र, और हाँ , राजनीति में भी, अपने आपको प्रतिष्ठित किया है. ये लोग भी इस भवन के निर्माण कार्य को पूरा देखकर प्रसन्न हैं. मैं अक्सर कहती हूँ कि मैं स्त्रीवादी नहीं हूँ. फिर भी पीछे छूट गये लोगों, सुविधाविहीन लोगों , के प्रति अपनी चिंताओं में  से महिलाओं को कैसे नजरअंदाज कर सकती हूँ, जिनको इतिहास के प्रारंभ से ही शासित किया गया है और क़ानून एवं सामाजिक रीतियों में जिनके खिलाफ भेदभाव किया गया है. दुनिया की सारी भाषाओं की शब्दावली यह बताती है कि पुरुष-श्रेष्ठता की भावना कितना व्यापक और घातक है. और इस तथ्य से कुछ लोगों को छोड़कर, सब,  बिना किसी शंका के सहमत भी हैं. इस वक्त मैं ‘ वर्ल्ड एंड वीमेन’ नामक एक किताब पढ़ रही हूँ. इसमें मैंने पढ़ा कि यू एस ए के मिल्स कॉलेज के प्रेसिडेंट मि.लिंग व्हाईट ने पुल्लिंग सर्वनामों के बारे में क्या लिखा है. मैं उन्हें ही उधृत कर रही हूँ, ‘ औरत के रूप में बड़ी हो रही छोटी लडकियों में भाषा की आदत दूसरे लोगों ( महिलाओं सहित) की तुलना में ज्यादा गहरी होती है. यह बताता है कि व्यक्तिव मूलतः पौरुष भाव है और महिलायें मानव की उप-प्रजाति हैं.’ लेखक आगे कहते हैं कि ‘ अब समय आ गया है कि हम समझें कि ये मूर्खता पूर्ण स्टीरियोटाइप हमें कहाँ ले जा रहा है. ये स्टीरियोटाइप बताते हैं किपुरुष नेता है और स्त्री उसकी अनुगामी, पुरुष उत्पादक है और स्त्री उपभोक्ता, पुरुष शक्ति है और स्त्री कमजोरी- यही वह धारणा है, निर्मिति है, जो पुरुष को आक्रामक बनाती है और मानवता को उसका पीड़ित.’

युवा इंदिरा गांधी

इस तरह महिलाओं को बहिष्कृत करके पुरुष ने खुद को पूर्ण मुक्ति और विकास से खुद ही वंचित कर लिया है.
पश्चिमी देशों में महिलाओं की तथाकथित मुक्ति का मतलब पुरुषों के अनुकरण तक सीमित हो गया है. लेकिन मुझे लगता है कि यह एक गुलामी से निकलकर दूसरी गुलामी में फंसने जैसा है. मुक्त होने के लिए स्त्री को सबसे पहले वह होना पडेगा, जो वह है, यानी पुरुष की प्रतिद्वंद्विता में नहीं बल्कि अपनी खुद की क्षमता और अपने व्यक्तिव के परिप्रेक्ष्य में. हम महिलाओं को अधिक सचेत, अधिक सक्रिय और अधिक तत्पर देखना चाहते हैं , इसलिए नहीं कि वे  महिला हैं  , इसलिए कि वे आबादी का आधा हिस्सा हैं. उन्हें पसंद हो या न हो, लेकिन वे अपनी जिम्मेवारियों से भाग नहीं सकतीं और न ही उन्हें इसके लाभ से वंचित किया जा सकता है. भारतीय महिलायें पारम्परिक रूप से रूढ़िवादी हैं , लेकिन वे समन्वय के गुणों से सम्पन्न है – अनुकूलित करने के , आत्मसात करने के गुणों से सम्पन्न. यही उनको दुखों के सामना के लिए और कठिनाइयों से शांतिपूर्वक जूझने के लिए लचीला बनाते हैं, निरंतर परिवर्तित होने,  फिर भी अपरिवर्तित रहने की क्षमता देते हैं, यह भारत का अपना गुण भी है.

पिता के साथ इंदिरा गांधी

इस समय की सबसे बड़े मुद्दे हैं : पहला, आर्थिक और सामाजिक असामनता तथा समृद्ध और विकाशील देशों के बीच अन्याय तथा इन देशों के भीतर के अन्याय, दूसरा, क्या मानव – बुद्धि मृत्यु की होड़ को ख़त्म कर सकेगी,जिसमें वर्चस्व की कामना अनेक तरीकों से व्यक्त होती है – सबसे खतरनाक है, शस्त्रों की होड़  और तीसरा , हमारी अपनी धरती को इंसान की लालच और शोषण से बचाने की जरूरत. हम बहुत देर से प्रकृति के संतुलन और इसके संसाधनों पर अपनी निर्भरता के प्राचीन सत्य के प्रति सजग हो पाये हैं.

इस बड़ी चुनौती का सामना कोई एक सेक्शन अकेले नहीं कर सकता है, चाहे वह कितना ही विकसित क्यों न हो, ख़ासकर जब दूसरे या तो दूसरी दिशा में गतिशील हों या उदासीन हों. कोशिश सार्वभौम होनी चाहिए, सजग और ठोस, यह समझते हुए कि इसमें योगदान के लिए कोई छोटा नहीं है. यह सभी राष्ट्रीयताओं, सभी वर्गों, धर्मों, जाति और लिंग के संयुक्त प्रयास से संभव है.

पारिवारिक फोटोग्राफ में इंदिरा गांधी ( छोटी )

मारे पास व्यर्थ जाया करने के लिए समय नहीं है, इसमें शिक्षित करने की जबरदस्त जिम्मेवारी की जरूरत है. हम एक साथ बढना चाहते हैं, सबके साथ कदमताल से, लेकिन यदि पुरुष संकोच करते हैं, तो क्या महिलाओं को रास्ता नहीं दिखाना चाहिए?

आल इंडिया वीमेन कांफ्रेंस को, ख़ासकर इसकी प्रेसिडेंट श्रीमती लक्ष्मी रघुरमैय्या को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई देते हुए मैं इस भवन को राष्ट्र के नाम समर्पित करती हूँ.

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ISSN 2394-093X
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