यूं शुरू हुई हैप्पी टू ब्लीड मुहीम

मुहीम की संयोजक निकिता आजाद बता रही हैं ‘ हैप्पी टू ब्लीड’ कैम्पेन के बारे में 


निकिता आजाद ने २० नवम्बर को सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुरोहित परयार गोपालकृष्णन  को पत्र लिखा. मंदिर के इस मुख्य पुरोहित ने इसके पहले कहा था कि, ‘यदि प्यूरिटी चेकिंग मशीन का आविष्कार हो जाये, जो यह देखे कि महिलाएं माहवारी के दिनों  में हैं या नहीं , तभी वह महिलाओं के मंदिर में जाने देने पर विचार करेगा.  पुजारी के इस सेक्सिस्ट रिमार्क के बाद निकिता आजाद ने अपने कुछ साथियों के साथ उसे एक पत्र लिखा, जो ‘यूथ की आवाज’ में ऑनलाइन प्रकाशित हुआ. इसके साथ ही निकिता और उसके साथियों ने सोशल मीडिया में ‘ हैप्पी  टू ब्लीड’ , कैम्पेन 21 नवम्बर से शुरू किया, जो जल्द ही वायरल हो गया. फिर क्या – जैसा कि इन दिनों चलन सा हो गया है उन्हें सोशल मीडिया के उग्र हिन्दूवादी, जो खुद को राष्ट्रवादी कहते हैं, समूह से गालियाँ मिलनी शुरू हुई . उन्हें वेश्या , ज्यादा पढी –लिखी , एंटी हिन्दू , राष्ट्रद्रोही आदि विशेषणों से नवाजा गया.

गर्ल्स कॉलेज पटियाला की छात्रा निकिता ने स्त्रीकाल से बातचीत करते हुए बताया कि ‘उनकी मुहीम किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है, महिलाओं के लिए प्राकृतिक ‘ माहवारी’ को सभी धर्मों में टैबू की तरह देखा जाता है.’ छात्र आन्दोलनों से जुडी निकिता कभी छात्र संगठन डी एस ओ से जुडी रही हैं . वे कहती हैं कि ‘ यह मुहीम किसी छात्र संगठन के बैनर तले नहीं है. यह एक समविचार छात्रों का समूह है. ‘हैप्पी टू ब्लीड’ कैपेंन और सबरीमाला के पुरोहित को पत्र निकिता और उनके साथी सुखजीत की संयुक्त पहल से स्वरूप में आये. निकिता कहती हैं, ‘ हम छात्राओं ने हाल ही में अपने कॉलेज के  सुपरिन्टेन्डेन्ट के खिलाफ मुहीम छेड़ी थी , जब उसपर छात्राओं के साथ छेड़ –छाड़ का आरोप लगा था.

निकिता कहती हैं , ‘ माहवारी को शर्म का विषय बनाना  पितृसत्ता का एक फॉर्म है , ऐसा नही है कि यही एक धूरि है पितृसत्ता की, बल्कि पितृसत्ता एक जटिल संरचना है– यह स्त्रियों को दोयम नागरिक बनाती है. महिलाओं और दलितों पर शुद्धता –अशुद्धता का निर्धारण कर वर्चस्वशाली सत्ता सम्पत्ति पर कब्जे के समीकरण बनाती रही है – सम्पत्ति के अधिकार से इसी तरह उन्हें वंचित किया गया है. मिल्कियत न देने की साजिशों की हद है कि एक समूह को पैरों से उत्पन्न बताया गया.’

निकिता आजाद

माहवारी का टैबू  स्त्री की गत्यात्मकता , निर्णय का उसके अधिकार , उसकी देह पर उसके अधिकार , आदि के साथ जाकर जुड़ता है . माहवारी शुरू होते ही लडकी के सेक्सुअल व्यवहार और उसके हर आचार – व्यवहार पर नियंत्रण शुरू हो जाता है , इसके कारण २३ प्रतिशत महिलायें स्कूल छोड़ देती हैं. ८८ % महिलाओं को कपड़ों का इस्तेमाल करना पड़ता है.’

अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए निकिता बताती हैं कि उनके पिता कृभको, लुधियाना में कार्यरत हैं, और माँ शिक्षिका हैं. ‘ हमारा घर लोकतांत्रिक रहा है. माहवारी शुरू होने के साथ घर में ख़ास समस्या नहीं हुई लेकिन समाज में चलन है कि माहवारी के दिनों में तुलसी के पेड़ को हाथ न लगाओ, खराब हो जाएगा , मंदिर  जाने से भी रोका जाता है . स्कूल के दिनों में याद है कि माहवारी के कारण हम दो लड़कियों को स्कूल में होने वाले हवन में जाने नहीं दिया गया था. घर में अपने सैनिटरी पैड छिपाना या इनके विज्ञापन आ रहे हों तो चैनल स्विच करने के लिए दौड़ना आदि तो आम बात है. ’

विषय के प्रति स्पष्टता के साथ निकिता कहती हैं कि ‘यह समस्या सामाजिक है, व्यवस्थागत भी है. इसे स्टेट के इंटरवेंशन से ही ख़त्म किया जा सकता है. एन जी ओ के स्तर पर,  कोर्पोरेट फंडेड एन जी ओ के स्तर पर यह संभव नहीं है. हम बाजार , कॉर्पोरेट के द्वारा स्त्रियों के शरीर को कमोडिफाय करने के खिलाफ हैं. बाजार अपना उत्पाद बेचना चाहता है. सैनिटरी नैपकीन के ‘ व्हिस्पर’ जैसे नाम पितृसत्ता के अनुरूप हैं.  अधिकांश महिलाओं के लिए स्टे फ्री , व्हिस्पर जैसे नैपकिन खरीदना मुमकीन नहीं है.’

‘जल्द ही हम अपने सात दिवसीय ‘ हैप्पी टू ब्लीड’ मुहीम की रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे और आगे के अपने कैम्पेन के उद्देश्य और लक्ष्य बताएँगे.  हम चाहते हैं कि महिला आयोग स्टैंड ले और राज्य की जिम्मेदारी सुनिश्चित कराये कि माहवारी के दिनों में महिलाओं के लिए मुफ्त और सब्सिडाइज्ड हेल्थ केयर उपलब्ध हो. हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि स्कूलों में किशोरी योजना सहित अन्य स्कीम सही तरीके से इम्प्लीमेंट हों.’ निकिता के अनुसार चूकि वे निजी स्कूल की छात्रा रही हैं इसलिए माहवारी के बारे में शरमाते हुए बताया भी गया अन्यथा सरकारी स्कूलों से तो चैप्टर ही गायब कर दिया जाता है.

चेंज डॉट ओ आर जी पर मुहीम के द्वारा स्वास्थय  मंत्री को लिखा गया पत्र. अपने हस्ताक्षर के लिए क्लिक करें :  HAPPY TO BLEED: An Initiative to break menstrual taboos and myths!

‘हैप्पी तो ब्लीड मुहीम के बाद अभी स्वास्थय मंत्री को एक पत्र भेजा जा रहा है इस मांग के साथ कि महिलाओं के स्वास्थ्य से सम्बंधित सभी स्कीम इप्लीमेंट हों , नए स्कीम चलाये जाएँ और पहले से जो हैं उनका रिव्यू हो. इसके लिए जनवरी से हम ग्राउंड कैम्पेन करने वाले हैं.’

निकिता अपने साथ आये सभी लोगों का आभार जताती हैं , जो इस लोकतांत्रिक मुहीम में उनके साथ आये.

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ISSN 2394-093X
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