अठारह साल का हुआ भारत रंग महोत्सव

 राजेश चन्द्र


( तीन सप्ताह तक चलने वाले भारतीय रंग महोत्सव का कल उदघाटन हुआ , राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय सोसाइटी के अध्यक्ष रतन थियाम के नाटक मैक्वेथ से. हमारी कोशिश होगी कि स्त्रीकाल के पाठकों को रंग महोत्सव के नाटकों  की समीक्षात्मक रिपोर्ट , समीक्षा आदि पढवाते रहें. शुरुआत समकालीन रंगमंच के संपादक राजेश चंद्र की रिपोर्ट से . नाट्य महोत्सव में स्त्री निदेशकों के नाटकों अथवा नाटकों के स्त्रीवादी पाठ के साथ रपट , समीक्षाएं आमंत्रित हैं .) 

मैक्वेथ का एक दृश्य

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा प्रति वर्ष आयोजित किये जाने वाले अन्तररार्ष्ट्रीय नाट्योत्सव “भारत रंग महोत्सव” के अठारहवें संस्करण की आज विधिवत शुरुआत हो गयी. ज्ञात हो कि यह महोत्सव इस वर्ष 01 फरवरी से 21 फरवरी के बीच आयोजित हो रहा है, जिसमें भारत के अलावा लगभग 10 अन्य देशों की 80 नाट्य-प्रस्तुतियां दिखायी जायेंगी. इन प्रस्तुतियों के अलावा विभिन्न विषयों पर केद्रित सेमिनार, गोष्ठी, थियेटर बाज़ार, रंगकला से सम्बंधित वस्तुओं की प्रदर्शनी, नुक्कड़ नाटक और लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों को भी समारोह का हिस्सा बनाया गया है.

कमानी सभागार, मंडी हाउस में 01 फरवरी की शाम के 6 बजे आयोजित भव्य उद्घाटन समारोह में सुप्रसिद्ध रंग एवं सिने अभिनेता नाना पाटेकर, अभिनेता अनुपम खेर, सुप्रसिद्ध रंग निर्देशक तथा रानावि सोसाइटी के अध्यक्ष रतन थियाम, नाट्य विद्यालय के निदेशक वामन केन्द्रे और भारत सरकार के संस्कृति सचिव एन.के. सिन्हा ने दीप जला कर समारोह का उद्घाटन किया और अपने विचार भी व्यक्त किये. आज के समारोह का मुख्य आकर्षण रहा शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक “मैकबेथ” का मणिपुरी में मंचन, जिसे रतन थियाम के निर्देशन में कोरस रेपर्टरी थियेटर, मणिपुर द्वारा प्रस्तुत किया गया.

मध्यकालीन स्कॉटलैंड के सामंती समाज के अंतर्विरोधों को सामने लाने के लिए ही शेक्सपियर ने “मैकबेथ” की रचना की है. इस नाटक में आरम्भ से लेकर अंत तक जीवन और मृत्यु का रोमांचक संघर्ष वर्णित है. भयानक अमानुषीय घात-प्रतिघातों से दर्शक द्रवित एवं उद्वेलित हो उठते हैं. इसमें जीवन के प्रति व्यंग्य भी प्रभूत मात्रा में मुखरित हुआ है.

शेक्सपियर ने अपनी असाधारण और रहस्यपूर्ण मनःस्थिति को संतुष्ट करने के लिए दो हत्यारों की अवतारणा की है और जैसा कि  साधारणतया उनकी सभी कृतियों में होता है, इन दोनों हत्यारों में विवेकपूर्ण स्पष्ट अंतर भी दर्शाया है. हत्यारा होते हुए भी एक के प्रति दर्शक की सहानुभूति उमड़ पड़ती है और दूसरे के प्रति घृणा का उद्रेक. प्रत्येक मनुष्य में जब दानवता जागृत होती है, उसकी मनुष्यता लुप्त हो जाती है, किन्तु जीवन में ऐसे भी स्थल आते हैं जहां परम क्रूर होते हुए भी वह अपनी मानवीय भावनाओं से संचालित होता है. मानव मन की गहराइयों का व्यंग्यपूर्ण अंकन “मैकबेथ” की विशेषता है.

रतन थियाम का “मैकबेथ” चरित्र-चित्रण की नवीनता, वस्त्र-भूषा तथा दृश्य-रचना के अभिनव प्रयोगों, मुद्राओं एवं अंग-संचालन के चमत्कारों, अद्भुत संगीत तथा अन्धकार और प्रकाश के जादुई उपयोग के कारण एक अति विशिष्ट प्रस्तुति का दर्ज़ा हासिल कर चुका है. अपनी इस प्रस्तुति में रतन थियाम ने मूल नाटक को यथासंभव बरक़रार रखने का प्रयास किया है, जहां मैकबेथ केवल एक व्यक्ति की कथा नहीं रह जाता, बल्कि वह एक ऐसी रुग्णता का रूपक बन जाता है, जिसने आज समूची दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है. उनके पात्र एक दूसरे से सीधे संबोधित होते हुए नहीं प्रतीत होते, बल्कि वे एक प्रतीक चरित्र की भांति व्यवहार करते हैं. निस्संदेह यह प्रस्तुति हर बार दर्शकों को एक सम्पूर्ण और चिरस्थायी रंग-अनुभव देने में समर्थ सिद्ध होती रही है. भारत रंग महोत्सव की इससे यादगार शुरुआत और क्या हो सकती थी?

इससे पहले उद्घाटन समारोह में अपने संबोधन में विद्यालय के निदेशक वामन केन्द्रे ने बताया कि विगत तीन वर्षों में इस महोत्सव का काफी विस्तार हुआ है और अब यह सही मायनों में एक विश्वस्तरीय महोत्सव का स्वरूप ले चुका है. इस वर्ष से यह महोत्सव भारत के चार अन्य प्रमुख शहरों- जम्मू, अहमदाबाद, भुवनेश्वर और तिरुअनंतपुरम में भी समानांतर रूप से आयोजित किया जा रहा है. उनके मुताबिक यह महोत्सव आज एशिया का सबसे बड़ा और विश्व का तीसरा सबसे बड़ा नाट्य महोत्सव बन चुका है, जो इस देश के नाट्य-प्रेमियों के लिए एक गर्व का विषय है. प्रोफ़ेसर केन्द्रे ने इस मौके पर यह भी बताया कि विद्यालय की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए सरकार शीघ्र ही इसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के तौर पर मान्यता देने जा रही है.

रंगकर्मियों और कला-प्रेमी दर्शकों के लिए इस समारोह में शामिल कुछ कार्यक्रम विशेष रूप से आकर्षण के केन्द्र होंगे जैसे- मास्टर क्लासेज़, लिविंग लीजेंड सीरीज और विश्व थियेटर फ़ोरम. मास्टर क्लासेज़ में जहां सर्वश्री सामिक बंदोपाध्याय, बालन नाम्बियार, चंद्रशेखर कम्बार और सुश्री जॉय माइकल रंगकला की बारीकियों पर रोशनी डालेंगी, वहीँ लिविंग लीजेंड सीरीज़ के अंतर्गत डॉ. कपिला वात्स्यायन, श्री अडूर गोपालाकृष्णन, श्रीमती सोनल मान सिंह, श्री इंदिरा पार्थसारथी, श्री जब्बार पटेल और श्री नाना पाटेकर अपने-अपने क्षेत्र से सम्बंधित अनुभव बांटेंगे.
समकालीन रंगमंच के संपदाक राजेश चन्द्र  थियेटर एक्टिविस्ट , कवि, नाट्य समीक्षक हैं . संपर्क : 9560124579

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