कंडोम- राष्ट्रवाद, जे एन यू और गार्गी का मस्तक

संजीव चंदन


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महिलाओं की सदस्यता नहीं लेता है, स्पष्ट है कि उनके राष्ट्रवाद में महिलाओं की जगह नहीं है- हालांकि उनकी अनुसंगी शाखा ‘दुर्गा वाहिनी’ जरूर है, जिसकी सदस्याएं महिलायें होती हैं. ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ की वंदना के साथ राष्ट्र की परिकल्पना खडा करने वाले संघ का राष्ट्र यद्यपि मां है, लेकिन स्त्रियाँ उस मां की दोयम दर्जे की संतान हैं-पिता-पुत्र –पति –भाई से संरक्षित.

गूगल से साभार

आखिर संघ की शाखाओं से स्त्रियाँ गायब क्यों हैं ? संघ का सरसंचालक स्त्री –रहित ‘ब्रह्मचारी’ पुरुष ही क्यों बनाया जाता है?  संघ का प्रचारक विवाह नहीं करता और ब्रह्मचारी रहता है . हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक बने तो शादीशुदा होकर भी पत्नी यशोदाबेन से अलग हो गये. तो क्या संघ स्त्रियों की यौनिकता से डरता है या संघ ‘नमस्ते सदा वत्सले भारतभूमे’ गाते हुए भी ‘अपौरुषेयता’ में विश्वास करता है?

सवाल है कि संघ और संघ के हिन्दू राष्ट्रवाद के पुरोधाओं की चिंता में आखिर स्त्री की यौनिकता इस कदर खौफ बन कर क्यों शामिल है कि वे गाहे –बगाहे अपना ‘कंडोम- चिन्तन’ प्रकट करते रहते हैं. राजस्थान के विधायक ज्ञानदेव आहूजा के द्वारा जे एन यू में प्रतिदिन 3000 कंडोमों की खपत वाला बयान कोई आकस्मिक बयान नहीं है , इसके पीछे संघ की ट्रेंनिंग और समझ काम करती है – जिसमें स्त्रियों , दलितों , अल्पसंख्यकों के लिए जगह नहीं होती , होती है तो दोयम दर्जे की . संघ का राष्ट्रवाद ऊंची जातियों के पुरुष ( हाई कास्ट हिन्दू मेल ) के हितों के लिए साकार होता है .  संघ, हिंदुत्व के विचार और हिन्दू राष्ट्रवाद के विचार में न सिर्फ स्त्री की यौनिकता से डर निहित है बल्कि स्त्री की यौनिकता पर कठोर नियंत्रण का भाव भी अन्तर्निहित है.

संघ के स्वयंसेवक

ज्ञानदेव आहूजा कोई अकेले व्यक्ति नहीं हैं , जो कंडोमों की गणना कर रहे हैं. हाई कास्ट हिन्दू मेल के लिए समर्पित संघी राष्ट्रवाद के हर वीर बाँकुरे इसी गिनती में लगे हैं. उनकी टीम सोशल मीडिया पर, व्हाट्स अप पर जे एन यू के बजट , वहां खपत होने वाली हड्डियों और कंडोमों की गिनती जन –जन तक पहुंचाने में लगी है . इससे एक ओर तो उनकी फंतासियाँ संस्तुष्ट होती हैं , दूसरा जे एन यू जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रति जन –आक्रोश पनपता है . इसका दूरगामी असर स्त्रियों की शिक्षा पर भी पड़ता है . और यह असर डालना ही इनका एजेंडा है , पढी –लिखी स्त्रियाँ इन्हें और इनके राष्ट्रवाद को खटकती हैं .

जिस पुनरुत्थान के मुहीम में वे लगे हैं , उससे प्रेरणा लेकर वे दो कदम आगे जाकर पढी –लिखी लड़कियों के प्रति आक्रामक हैं . इनकी याज्ञवल्कीय परम्परा गार्गियों के ‘मस्तक फटने’ या काट दिये जाने की धमकी से आगे जाकर उन्हें बलात्कार से ठीक करने की धमकी तक विस्तार पा गई है. कविता कृष्णन , अपराजिता राजा आदि के लिए उनके राष्ट्रवादी बोल ( स्त्री एक्टिविस्ट के लिए गाली –गलौच ) तो स्त्रियों के खिलाफ इनकी मर्दवादी कुंठा से प्रेरित हैं ही , ये पूरे जे एन यू सहित उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ रही स्त्रियों को बर्दाश्त नहीं कर सकते, इसलिए इनका संघ प्रेरित हिंदुत्ववादी –राष्ट्रवादी-ब्रह्चारी मस्तिष्क जे एन यू जैसी संस्थाओं में कंडोम गिनने में व्यस्त है .

विधायक ज्ञानदेव एक नर्तकी पर रुपये लुटाते हुए

ज्ञानदेव जैसे कुंठित मर्दवादी राष्ट्रवादियों के बयान सिर्फ उपहास से उड़ा दिए जाने लायक नहीं हैं , ये चिंताजनक इसलिए हैं कि इनका षड्यंत्रकारी दिमाग एक तो ऊंची शिक्षा हासिल कर रही स्त्रियों के खिलाफ जनमानस बनाता है, उन्हें सेक्स के लिए उपलब्ध रहने वाली स्त्रियों के बिम्ब में ढालकर , दूसरा स्त्रियों को सिर्फ पुरुषों की वासना के लिए पैसिव वस्तु में ढाल देता है. ब्रह्मचारी ‘संघ’ के सेक्स चिन्तन और अनैतिक रिश्तों को लेकर खुद इनके स्वयंसेवक हेमेन्द्रनाथ पांडे की किताब ‘ द एंड ऑफ़ अ ड्रीम : ऐन इनसाइड व्यू ऑफ़ द आर एस एस’ में विषद विवरण है कि कैसे न सिर्फ स्त्रियों से बल्कि किशोर स्वयंसेवकों से इनके प्रचारकों ,स्वयंसेवकों के अनैतिक रिश्ते होते रहे हैं.

अभी बड़ी मुश्किल से स्त्रियों का साक्षरता दर बढ़ा है, जबकि उच्च शिक्षा तक उनका ड्रापआउट रेट काफी ऊंचा है, उच्च शिक्षा तक काफी कम लडकियां पहुँच पाती हैं. इस तरह के बयान और माहौल उनके लिए और भी कठिन स्थितियां पैदा करेंगी, क्योंकि स्त्रियों की शिक्षा के लिए पहले से ही असहमत समाज के भीतर एक भयबोध पैदा हो रहा है और स्त्रियों के लिए घर के दरवाजे और मजबूत हो जायेंगे , माता –पिता उन्हें उच्च शिक्षा में भेजने से डरेंगे. ‘ भारत माता’ के लिए दूसरों की जान लेने के लिए उतारू इन राष्ट्रवादियों का एजेंडा भी यही है.

जे एन यू में लडकियां

आज आजादी के बाद जब संविधान के प्रभावी होने से स्त्रियों सहित वंचित तबकों के लोग शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, तो लोकतांत्रिक स्पेस में बढ़त हुई है,  स्त्रियाँ और वंचित तबके के लोग अपनी उपस्थिति से वर्चस्वशाली ब्राह्मणवादी हिंदुत्व के भीतर बेचैनी पैदा कर रहे हैं . इसका एक प्रमाण है संघ के मुखपत्र ‘ ऑर्गनाइजर’ में इस बात पर प्रकट की गई चिंता कि जे एन यू में ‘ महिला अधिकार’ जैसे विषय पढ़ाएं जा रहे हैं. आखिर यह जमात महिला अधिकारों से डरती क्यों है , उनके हक़ मांगने से डरती क्यों है ?

वर्चस्वशाली ब्राह्मणवादी हिंदुत्व और उसके राष्ट्रवाद की दिक्कत यही है कि वे इस या उस भाषा में स्त्रियों सहित वैसे वंचित समूहों को धमकाना चाहता है, जो लोकतांत्रिक संस्थानों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करा रहे हैं. स्त्रियों के लिए इनके पास सबसे उपयुक्त हथियार है  ‘बलात्कार की धमकी’. जे एन यू में कंडोमों की खपत के आंकड़े के साथ वे मेसेज दे रहे हैं कि उच्च शिक्षा में जाने वाली स्त्रियाँ या तो बिगड़ जायेंगी या बलात्कार की शिकार होंगी . ज्ञानदेव की पूरी भाषा गौर की जाने लायक है . वह कह रहा है, ‘3000 कंडोमों की रोज खपत बताते हैं कि जे एन यू में हमारी माताएं और बहनें सुरक्षित नहीं हैं .’ यह प्रक्ररांतर से बलात्कार का भय पैदा ही करना है.  दरअसल इन ब्रह्मचारी हिन्दूवादी संघी राष्ट्रवादियों की कल्पना में स्त्रियाँ सेक्स की वस्तु भर हैं, उनकी अपनी कोई एजेंसी नहीं होती, इसीलिए शायद उनकी राष्ट्रवादी कल्पना में कंडोमों की गिणती शामिल है.
सांस्कृतिक राष्ट्रवादी सरकार संरक्षित यह राष्ट्रवाद उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही लड़कियों को इसलिए भयभीत करना चाहता क्योंकि वे सक्रियता से जनता के हित में सक्रिय हैं और अपनी अधिकारों के लिए ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को भी चुनौती दे रही हैं. स्त्रियों की सक्रियता से याज्ञवल्क्य का आक्रोश ज्ञानदेव तक विस्तार पाकर आज की गार्गियों को बलात्कार , यौन उत्पीडन का भय देना चाह रहा है , ताकि स्त्रियाँ उच्च शिक्षण संस्थान तक पहुंचे ही नहीं.

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