जो जानती है हमारे विषय में वह सब
जो हम नहीं जान पाते कभी
जो हमें दे सकती है वह सब
जिसके आभाव में स्वयम वह
कलपती रही है ता-उम्र
जो सदा हमें छिपाने को तैयार
हम चाहें तो भी, न चाहे तो भी
जिसकी उंगलियाँ जानती हैं बुनना
जिसकी आँखें जानती है डूब जाना
जिसके स्वर में शैली और गुनगुनाहट हो
जो हमेशा चादरों की बात करे
पिता
उन्हें नहीं मालूम
उनकी किस उत्तेजना में बीज था
वे घबराते हैं
यह जानकार कि काबिलियत
उनके ही अस्तबल का घोड़ा है
संतति को लायक बनाने के लिए
सारी तैयारियां कर चुके हैं वे
और यह सोचकर ही
खुश हो लेते हैं कि उनके बच्चे
नहीं बंधना चाहते हैं उस रस्सी से
कि जिससे बंधते आये हैं वे
और उनके पूर्वज
विरासत में लेकिन
बच्चों के लिए
वे छोड़ जाते हैं
कई-कई मन रस्सियाँ
स्त्री
अपने स्तन
और योनि की वजह
जिसे सहना पड़े
लांछन बार-बार
पुरुष
असमंजस का शिकार
बार-बार
फिर भी निर्णय के सूत्र पर
उसका ही अधिकार
पुत्री
जिसे देख
पिता की आँखें सिकुड़ती रहें
भय और चिंता से
प्रेमिका
जो कहानियों के लिए जरूरी है
जो हंसकर उद्घाटित करती है कविता
जो हमेशा चाहती है कि कोई उसे हमेशा चाहे
जो देना चाहती है आकुलता को एक नया अर्थ
प्रेमिका सिर्फ स्त्री ही हो सकती है
नदी
जो बहना जानती हो
जो बहाना जानती हो
जो डूबना जानती हो
जो डुबाना जानती हो
जिसमें इतनी सहिष्णुता हो कि
कोई भी उसके किनार बैठ कर फारिग हो सके
कवि
जो सूर्य से ऊष्मा, ऊर्जा और प्रकाश के इतर भी कुछ पाता हो
जो चाहता हो कि पक्षी भी उड़े गगन में पंख हिलाए बिना
जो बिखरा पाता है खुद को अपने आस-पास
जो हमेशा पीना चाहता है गिलास की अंतिम बूँद
जो जानता है कि चाँद
दूज से पूर्णिमा तक और पूर्णिमा से अमावस का सफ़र
करता है नियमित
फिर भी हठ, आग्रह, आन्दोलन करे कि
चाँद की यात्रा
अनियमित की जाए
जो कविताएं लिखे ही नहीं
जिए भी
कवि और संपादक पुष्पेन्द्र फाल्गुन से संपर्क : pushpendrafalgoun@gmail.com