शुभम श्री की पुरस्कृत और अन्य कविताएं : स्त्रीकाल व्हाट्सअप ग्रूप की टिप्पणियाँ

शुभम श्री की ‘पोएट्री मैनेजमेण्ट’ कविता को इस वर्ष का  भारत भूषण अग्रवाल सम्मान देने की घोषणा हुई है.  कहानीकार और कवि उदय प्रकाश इस बार इस सम्मान के निर्णायक थे.  इस कविता को सम्मान दिये जाने पर सोशल मीडिया में काफी आपत्तियां दिखीं . मैंने स्त्रीकाल व्हाट्स अप ग्रूप में सदस्यों की राय माँगी, अपनी ओपन कमेंट्री के साथ कि  मुझे यह कविता अच्छी लगी. ग्रूप की साथी और कवयित्री आरती मिश्रा ने बताया कि इसी दौरान शुभम की एक और कविता बहस के केंद्र में है. उन्होंने
“मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन फेंकने से इनकार कर दिया है” कविता ग्रूप में पोस्ट की. प्रस्तुत है स्त्रीकाल व्हाट्स अप ग्रूप की टिप्पणियाँ और दोनो कविताएं. 
संपादक

पुरस्कृत कविता अच्छी लगी. नयी शैली, नये बिम्ब कविता के पारम्परिक मानदंडों से अलग हैं इसलिए हल्ला हो रहा है. फिर सवाल यह भी है कि कविता क्या है यह कौन तय करेगा? पिछले 1000 साल या ज्यादा समय में कविता ने कितने रूप बदल लिए ऐसे में यह सवाल बेमानी है कि यह कविता है या नहीं. रही बात हाय तौबा की तो वह हर मौके पर मचती है. उदय जी को और शुभम श्री दोनों को बधाई.
पूजा सिंह ( साहित्यिक -सांस्कृतिक पत्रकार)
ये तो सिरे से ही गलत है कि ये कविता नहीं है. उस पर से दोनों कविताएं असर कारक हैं. बेहद प्रभावी.
मजकूर आलम ( लेखक)
मुख्य जो कविता है वह अपनी शैली और प्रयोग में नई तरह की मुद्रा निर्माण करती है. जिस तरह पत्रकारिता में सूचनाओं व अहवाल की पद्धति होती है ऐसी पद्धति से कथन के बिखराव के साथ, कहन के एक दूसरे को काटते फैले हुए टुकड़ों के साथ समाज और जीवन के कितने सारे कोनों से भाषा पैटर्न्स आई है इस रचना में. कुल मिलाकर आज के विवरिंग समय और मूल्यबोध के प्रति भाषा की ये पैटर्न्स कटाक्ष भरे सेटायर में तब्दील हो जाती है. कथन और सामग्री के बिखराव की पद्धति के कारण यह कविता बहस में फंस गई होगी.
फारूक शाह ( कवि/ आलोचक ) 

पुरस्कृत कविता : 

पोएट्री मैनेजमेण्ट

कविता लिखना बोगस काम है !
अरे फ़ालतू है !
एकदम
बेधन्धा का धन्धा !
पार्ट टाइम !
साला कुछ जुगाड़ लगता एमबीए-सेमबीए टाइप
मज्जा आ जाता गुरु !
माने इधर कविता लिखी उधर सेंसेक्स गिरा
कवि ढिमकाना जी ने लिखी पूँजीवाद विरोधी कविता
सेंसेक्स लुढ़का
चैनल पर चर्चा
यह अमेरिकी साम्राज्यवाद के गिरने का नमूना है
क्या अमेरिका कर पाएगा वेनेजुएला से प्रेरित हो रहे कवियों पर काबू?
वित्त मन्त्री का बयान
छोटे निवेशक भरोसा रखें
आरबीआई फटाक रेपो रेट बढ़ा देगी
मीडिया में हलचल
समकालीन कविता पर संग्रह छप रहा है
आपको क्या लगता है आम आदमी कैसे सामना करेगा इस संग्रह का ?
अपने जवाब हमें एसएमएस करें
अबे, सीपीओ (चीफ़ पोएट्री ऑफ़िसर) की तो शान पट्टी हो जाएगी !
हर प्रोग्राम में ऐड आएगा
रिलायंस डिजिटल पोएट्री
लाइफ  बनाए पोएटिक
टाटा कविता
हर शब्द सिर्फ़ आपके लिए
लोग ड्राइँग रूम में कविता टाँगेंगे
अरे वाह बहुत शानदार है
किसी साहित्य अकादमी वाले की लगती है
नहीं जी, इम्पोर्टेड है
असली तो करोड़ों डॉलर की थी
हमने डुप्लीकेट ले ली
बच्चे निबन्ध लिखेंगे
मैं बड़ी होकर एमबीए करना चाहती हूँ
एलआईसी पोएट्री इंश्योरेंस
आपका सपना हमारा भी है
डीयू पोएट्री ऑनर्स, आसमान पर कटऑफ़
पैट (पोएट्री एप्टीट्यूड टैस्ट)
की परीक्षाओं में फिर लड़ियाँ अव्वल
पैट आरक्षण में धाँधली के ख़िलाफ़ विद्यार्थियों ने फूँका वीसी का पुतला
देश में आठ नए भारतीय काव्य संस्थानों पर मुहर
तीन साल की उम्र में तीन हज़ार कविताएँ याद
भारत का नन्हा अजूबा
ईरान के रुख  से चिन्तित अमेरिका
फ़ारसी कविता की परम्परा से किया परास्त
ये है ऑल इण्डिया रेडियो
अब आप सुनें सीमा आनन्द से हिन्दी में समाचार
नमस्कार
आज प्रधानमन्त्री तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय काव्य सम्मेलन के लिए रवाना हो गए
इसमें देश के सभी कविता गुटों के प्रतिनिधि शामिल हैं
विदेश मन्त्री ने स्पष्ट किया है कि भारत किसी क़ीमत पर काव्य नीति नहीं बदलेगा
भारत पाकिस्तान काव्य वार्ता आज फिर विफल हो गई
पाकिस्तान का कहना है कि इक़बाल, मण्टो और फैज से भारत अपना दावा वापस ले
चीन ने आज फिर नए काव्यालंकारों का परीक्षण किया
सूत्रों का कहना है कि यह अलंकार फिलहाल दुनिया के सबसे शक्तिशाली
काव्य संकलन पैदा करेंगे
भारत के प्रमुख काव्य निर्माता आशिक  आवारा जी का आज तड़के निधन हो गया
उनकी असमय मृत्यु पर राष्ट्रपति ने शोक ज़ाहिर किया है
उत्तर प्रदेश में फिर दलित कवियों पर हमला
उधर खेलों में भारत ने लगातार तीसरी बार
कविता अंत्याक्षरी का स्वर्ण पदक जीत लिया है
भारत ने सीधे सेटों में ‍‍६-५, ६-४, ७-२ से यह मैच जीता
समाचार समाप्त हुए
आ गया आज का हिन्दू, हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, प्रभात खबर
युवाओं पर चढ़ा पोएट हेयरस्टाइल का बुखार
कवियित्रियों से सीखें हृस्व दीर्घ के राज़
३० वर्षीय एमपीए युवक के लिए घरेलू, कान्वेण्ट एजुकेटेड, संस्कारी वधू चाहिए
२५ वर्षीय एमपीए गोरी, स्लिम, लम्बी कन्या के लिए योग्य वर सम्पर्क करें
गुरु मज़ा आ रहा है
सुनाते रहो
अपन तो हीरो हो जाएँगे
जहाँ निकलेंगे वहीं ऑटोग्राफ़
जुल्म हो जाएगा गुरु
चुप बे
थर्ड डिविज़न एम० ए०
एमबीए की फ़ीस कौन देगा?
प्रूफ  कर बैठ के
खाली पीली बकवास करता है !

बहस में दूसरी कविता

“मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन फेंकने से इनकार कर दिया है”

ये कोई नई बात नहीं
लंबी परंपरा है
मासिक चक्र से घृणा करने की
‘अपवित्रता’ की इस लक्ष्मण रेखा में
कैद है आधी आबादी
अक्सर
रहस्य-सा खड़ा करते हुए सेनिटरी नैपकिन के विज्ञापन
दुविधा में डाल देते हैं संस्कारों को…
झेंपती हुई टेढ़ी मुस्कराहटों के साथ खरीदा बेचा जाता है इन्हें
और इस्तेमाल के बाद
संसार की सबसे घृणित वस्तु बन जाती हैं
सेनिटरी नैपकिन ही नहीं, उनकी समानधर्माएँ भी
पुराने कपड़ों के टुकड़े
आँचल का कोर
दुपट्टे का टुकड़ा
रास्ते में पड़े हों तो
मुस्करा उठते हैं लड़के
झेंप जाती हैं लड़कियाँ
हमारी इन बहिष्कृत दोस्तों को
घर का कूड़ेदान भी नसीब नहीं
अभिशप्त हैं वे सबकी नजरों से दूर
निर्वासित होने को
अगर कभी आ जाती हैं सामने
तो ऐसे घूरा जाता है
जिसकी तीव्रता नापने का यंत्र अब तक नहीं बना…
इनका कसूर शायद ये है
कि सोख लेती हैं चुपचाप
एक नष्ट हो चुके गर्भ बीज को
या फिर ये कि
मासिक धर्म की स्तुति में
पूर्वजों ने श्लोक नहीं बनाए
वीर्य की प्रशस्ति की तरह
मुझे पता है ये बेहद कमजोर कविता है
मासिक चक्र से गुजरती औरत की तरह
पर क्या करूँ
मुझे समझ नहीं आता कि
वीर्य को धारण करनेवाले अंतर्वस्त्र
क्यों शान से अलगनी पर जगह पाते हैं
धुलते ही ‘पवित्र’ हो जाते हैं
और किसी गुमनाम कोने में
फेंक दिए जाते हैं
उस खून से सने कपड़े
जो बेहद पीड़ा, तनाव और कष्ट के साथ
किसी योनि से बाहर आया है
मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन
फेंकने से कर दिया है इनकार
बौद्धिक बहस चल रही है
कि अखबार में अच्छी तरह लपेटा जाए उन्हें
ढँका जाए ताकि दिखे नहीं जरा भी उनकी सूरत
करीने से डाला जाए कूड़ेदान में
न कि छोड़ दिया जाए
‘जहाँ तहाँ’ अनावृत …
पता नहीं क्यों
मुझे सुनाई नहीं दे रहा
उस सफाई कर्मचारी का इनकार
गूँज रहे हैं कानों में वीर्य की स्तुति में लिखे श्लोक….

इस कविता के कंटेंट को यदि कचरा उठाने वाले के नजरिये से देखा जायेगा तो
गलत लगेगी, लेकिन यदि धर्माचार्यों के  मासिक चक्र के अपवित्र  घोषणा और
सामाजिक मान्यताओं की जिल्लातो के मद्देनजर रखकर देखा जाय तो कविता काफी
सच  कहती है.
आरती मिश्रा ( कवयित्री)
शुभम श्री की दोनों ही
कविताएँ एक नया कोण हैं. अपनी गद्यात्मकता में भी ख़ासा पैनापन है.
व्यंजना कथ्य का नया आसमान दिखाती है. मेरे विचार में मार्मिक, कटु सत्य का
उद्घाटन करने वाली कविताएँ हैं दोनों.
हेमलता माहिश्वर ( कवयित्री/ आलोचक)
कई
बार कविता एक विभ्रम की तरह होती है..नजरिये और पुनर्पाठ में यह एक नए
उद्दबोध के साथ पुनर्स्थापित करने का प्रयास करती है…कविता की रूहानी रूह
अलग-अलग होती है पर थोड़े बहुत ही सही हरेक कविता में यह एक तत्व के रूप
में मौजूद अवश्य रहता है..आज जो प्रत्यक्ष  दिखने वाला संसार है न दरअसल वह
आभासी यथार्थ का संसार है . यहाँ आदर्शों , आदर्शवाक्यों  , घोषणापत्रों
,सजावटों , पच्चीकारियों , नकाबों , बहुरूपों , विभ्रमों, व्यंग्यों, और
कपट अलग-अलग रूप में व्यक्त होता है… जब आप कविता पढ़ रहे होते है तो साथ
साथ इन मानकों पर हम कविता को तौल भी रहे होते है…
शुभम श्री जी
की कविता को विवाद को देखकर मैंने कई मानकों पर खलने का प्रयास किया. कविता
की आंत्रगता उलझे अर्थों के साथ अलग हो रही थी..कई स्थानों पर कविता का
मूल तत्व हमें छीज रहा था..और हम सहज नहीं थे इसके मूल को पकड़ने
में…कविता का हर स्टेन्जा पिछले के साथ पूरी तरह से अटैच्ड नहीं था . यह
एक तरह से विडाउट कैरेक्टर Nincompoop की तरह विभ्रम लगा. हा शुभम श्री की
दूसरी कविता कथ्य और तथ्य दोनों में ध्यान खींचती है…एक पाठकीय मिज़ाज
वालों के लिए और स्त्री विमर्श को काफी स्पेस देती है वशर्ते इसे घृणादिक
मानकर न पढ़ा जाये…यह मुकम्मल कविता है.
राकेश पाठक ( कवि)
मुझे
अच्छी लगी दोनों ही कवितायें. क्या चाँद ,तारों और प्रेम का पालागन ही
कवितायेँ होती है .कविता केशब्द सहजता से सम्प्रेषित हो और सार आपको झिझोड़
दे ,सही अर्थो में वही सच्ची कविता है .
प्रवेश सोनी ( लेखिका/ चित्रकार)

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