महिला संगठनों, आंदोलनों ने महिला आरक्षण बिल को ज़िंदा रखा है : वृंदा कारत: पांचवी क़िस्त

महिला आरक्षण को लेकर संसद के दोनो सदनों में कई बार प्रस्ताव
लाये गये. 1996 से 2016 तक, 20 सालों में महिला आरक्षण बिल पास होना संभव
नहीं हो पाया है. एक बार तो यह राज्यसभा में पास भी हो गया, लेकिन लोकसभा
में नहीं हो सका. सदन के पटल पर बिल की प्रतियां फाड़ी गई, इस या उस प्रकार
से बिल रोका गया. संसद के दोनो सदनों में इस बिल को लेकर हुई बहसों को हम
स्त्रीकाल के पाठकों के लिए क्रमशः प्रकाशित करेंगे. पहली क़िस्त  में
संयुक्त  मोर्चा सरकार  के  द्वारा  1996 में   पहली बार प्रस्तुत  विधेयक
के  दौरान  हुई  बहस . पहली ही  बहस  से  संसद  में  विधेयक  की
प्रतियां  छीने  जाने  , फाड़े  जाने  की  शुरुआत  हो  गई थी . इसके  तुरत
बाद  1997 में  शरद  यादव  ने  ‘कोटा  विद  इन  कोटा’  की   सबसे  खराब
पैरवी  की . उन्होंने  कहा  कि ‘ क्या  आपको  लगता  है  कि ये  पर -कटी ,
बाल -कटी  महिलायें  हमारी  महिलाओं  की  बात  कर  सकेंगी ! ‘ हालांकि
पहली   ही  बार  उमा भारती  ने  इस  स्टैंड  की  बेहतरीन  पैरवी  की  थी.
अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद पूजा सिंह और श्रीप्रकाश ने किया है. 

संपादक

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सौंवी वर्षगांठ ( 8 मार्च 2010)

 जयंती नटराजन:  महोदय, मैं संविधान (संशोधन) विधेयक का समर्थन करती हूं. महोदय,  मैं इस देश की सभी महिलाओं की तरफ से अपनी बात शुरू करना चाहूंगी, जो इस संसद में न्याय के लिए, आरक्षण के लिए, इस देश के विकास के लिए उठने वाली बराबर की आवाज के लिए 62 से अधिक वर्षों के लिए इंतज़ार कर रही हैं, मैं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और पूरे यूपीए को इस ऐतिहासिक कानून को मतदान के लिए लाने के लिए धन्यवाद देना चाहूंगी – जिसे भारतीय जनता को देने का साहस या राजनीतिक इच्छाशक्ति 62 वर्षों में किसी अन्‍य पार्टी में नहीं हुई. महोदय, जो दो मिनट मुझे दिये गये हैं उनमें मैं बताना चाहूंगी कि यह राजीव गांधी के उस सपने का ही एक तार्किक विस्तार है,  जिसके द्वारा स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित थी. जिसके परिणाम स्‍वरूप आज देश के हर गांव में स्थानीय सरकारी निकायों में 10-12 लाख से अधिक महिलाएं मौजूद हैं. 50 लाख से अधिक महिलाओं ने उन सीटों के लिए चुनाव लड़ा है; और गांवों में एक बड़ी संख्या में महिलाएं अब राजनीतिक सत्ता के फल का स्‍वाद ले रही हैं. साथ ही, महोदय, उस समय ऐसे लोग भी थे जो महिलाओं के आरक्षण और उनके द्वारा राजनीतिक अवसरों में साझेदारी के विरोध में खड़े थे. लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह हमारे घोषणा पत्र में किये गये वादे को पूरा करने में कभी पीछे नहीं रहे. यह हमारा सत्‍यनिष्‍ठ एवं विधिसम्‍मत वादा था. हालांकि कल भी,  पूरे समय, सदन के भीतर और बाहर, सहकर्मियों ने इस सरकार की प्रतिबद्धता पर संदेह किया और हमारे खिलाफ संगदिल होकर आरोप लगाए. हम सही साबित हुए. हमने इस देश की महिलाओं से किया गया अपना वादा पूरा किया है. महोदय, यह यूपीए का वादा है कि महिलाओं को न्याय मिलेगा और महिलाओं को इस देश के विकास और राजनीतिक अवसरों और राजनीतिक निर्णय लेने में हिस्‍सेदारी मिलेगी. महोदय, मैं यह कहना चाहूंगी. श्री जेटली ने पहले ही यह बात कह दी है. एक गलत अफवाह फैलाई  जा रही है. यहाँ तक कि जो लोग बिल का तीखा विरोध कर रहे हैं, वे दलितों के लिए आरक्षण के बारे में बात जारी रखे हुए हैं. मैं उन्हें विधेयक को पढ़ने की सलाह दूंगी. संविधान (संशोधन) विधेयक में दलित महिलाओं के लिए आरक्षण है और आदिवासियों के लिए भी है. और यह आरक्षण भारत के संविधान द्वारा अधिकृत कर दिया गया है. मैं यह भी कहना चाहूंगी कि मेरी पार्टी पहली पार्टी है जिसने पार्टी ढांचे के सभी स्तरों पर महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की है. इस तरह, हम पूरी तरह से लैंगिक समानता के लिए प्रतिबद्ध हैं. महोदय, मैं यह भी कहना चाहूंगी कि यह हमारे प्रधानमंत्री ही हैं, जिन्‍होंने कानून के इस हिस्‍से को प्रस्‍तुत किया था. और 50 फीसदी करने के लिए स्थानीय निकाय स्तर पर आरक्षण की 33 प्रतिशत उठाया, और अब स्थानीय सरकार के स्तर पर, कोटा को 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 फीसदी तक कर दिया गया है. इस तरह, महोदय,  हमने इस देश की महिलाओं के लिए अपनी प्रतिबद्धता और जनादेश को पूरा किया है. महोदय, मैं सिर्फ दो बातें रखते हुए समाप्त करना चाहूंगी.

जयंती नटराजन (जारी) : लोग समानता के बारे में बात करते हैं. लेकिन उसमान लोगों  के बीच कोई समानता नहीं हो सकती है. जेंडर समानता जिसके बारे में संविधान में उल्लेख किया गया है, जमीनी स्‍तर पर पूरी तरह से अर्थहीन है. महोदय, भारतीय महिलाओं ने आजादी के लिए महात्मा गांधी आह्वान पर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी है. भारतीय महिलाएं जेल गईं; भारतीय महिलाओं ने घर को भी संभाले रखा; और फिर भी, महोदय, आजादी के बाद, हालांकि संविधान समानता की गारंटी देता है, भारतीय महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के कई अन्य मानकों में काफी पीछे हैं. जिस तरह से स्थानीय सरकार के स्तर पर मार्गदर्शकों ने राह दिखाई है, जहां स्‍थानीय सरकार में चुनी गईं महिलाओं ने स्वच्छता, शिक्षा, बाल स्वास्थ्य और हर बुनियादी मुद्दों में जबरदस्त रुचि दिखाई है, इस देश के विकास के लिए उस पर ध्यान देने की जरूरत है. इसलिए, महोदय, जब संवैधानिक संशोधन को अधिनियमित किया जाता है और भारतीय महिलाओं को निर्णय लेने में बराबर का स्थान मिलता है, तो संसद में हमारी महिलाओं की चिंताओं को पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाएगा और, मैं यह भी कहूंगी कि जो दृश्‍य हमने  आज क्या देखा है, जिसके लिए हम सभी आपसे स्‍पष्‍ट रूप से माफी माँगते हैं कि फिर कभी ऐसा नहीं होगा और क्‍योंकि सभी समुदाय की महिलाओं का मामला है, हमारा लोकतंत्र जेंडर समानता के पथ पर, विकास के रास्ते पर और सच्चे सामाजिक न्याय की राह पर, अच्‍छी तरह स्थापित किया जाएगा. महोदय, महिलाएं हर समुदाय में सबसे अधिक वंचित हैं और अंतत: सबसे निचले स्‍तर को न्‍याय मिलेगा. धन्‍यवाद, महोदय.

 वृंदा  कारत : महोदय, इससे पहले कि मैं बात रखूं, मेरे सहयोगी सिर्फ एक बात रखना चाहते हैं।

 सीताराम येचुरी: सर, वह मेरी पार्टी की तरफ से कुछ ठोस कहना चाह रही हैं, लेकिन, मैं अपनी पार्टी सीपीआई (एम) की ओर से सिर्फ एक टिप्पणी करना चाहता हूं.

सभापति: आप यहाँ सूचीबद्ध नहीं हैं.

सीताराम येचुरी: महोदय, आपकी अनुमति से मैं उनके समय का दो मिनट लूंगा.

सभापति: ठीक है.

सीताराम येचुरी (पश्चिम बंगाल): महोदय, सीपीआई (एम) की ओर से, हम बहुत सम्मानित महसूस कर रहे हैं कि हम अपने देश में इस विधेयक को कानून बना कर एक इतिहास बनाने में इस सम्मानित सदन का हिस्सा रहे हैं. महोदय, मैं यह बात कहने के लिए खड़ा हुआ हूं कि यह केवल महिलाओं की मांगों को स्वीकार करना नहीं है, बल्‍कि हम इस जिम्मेदारी को देकर हम देश के प्रति अपने सामाजिक कर्तव्‍य को भी पूरा कर रहे हैं और हम एक बेहतर भारत बनाने के लिए अपने देश में मौजूद छिपी हुई व्‍यापक क्षमता को उभारने जा रहे हैं, जो अब तक दबी हुई है. इसी भावना के साथ, महोदय, इस  तथ्य के बावजूद कि सत्तारूढ़ गठबंधन को इस सदन में दो तिहाई बहुमत नहीं है, हम सब एक साथ मिलकर इस कानून को अधिनियमित करने और हमारे देश में एक इतिहास रचने के लिए इसका समर्थन कर रहे हैं.

वृंदा कारत  (पश्चिम बंगाल): महोदय, गहरी संतुष्टि की भावना के साथ, मैं अपनी पार्टी और महिला संगठनों का, जिनके साथ मैं पिछले कई दशकों से इस संवैधानिक संशोधन के समर्थन में काम कर रही हूं, निर्बाध  और स्पष्ट समर्थन देती हूं. यह संशोधन बहुत ही ऐतिहासिक कानून है जो निश्चित रूप से भारतीय राजनीति का चेहरा बदलने जा रहा है. और, मुझे विश्वास है, यह परिवर्तन बेहतर के लिए है. यह एक ऐसा परिवर्तन है जो न केवल भारत में महिलाओं के साथ राजनीतिक दायरे में लंबे समय से हो रहे भेदभाव को संबोधित करेगा, बल्‍कि महोदय, मुझे विश्‍वास है कि है कि यह नई राह दिखाने वाला भी होगा, क्योंकि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गहरा करने जा रहा है. यह एक ऐसा कानून है जो यह सुनिश्चित करता है कि समावेशीकरण का नारा बयानबाजी से गारंटी – विधायी और संवैधानिक गारंटी – में बदले, और वह यहीं इस कानून का महत्व निहित है. महोदय, 13 वर्ष या उससे अधिक समय से, इस देश की महिलाएं ऐसे एक कानून के लिए लड़ रही हैं. और हमने इस कानून के खिलाफ सबसे अपमानजनक तर्क सुना है. हम समझते हैं कि जहां भी सामाजिक सुधार के नई राह खोलने वाले उपाय सामने आये हैं, वहाँ इसका विरोध भी हुआ है. मैं आज गर्व के साथ बाबा साहेब आंबेडकर के शब्दों को याद करना चाहूंगी, जब लोकसभा में हिंदू सुधार विधेयक पर इस तरह की एक लंबी बहस हुई थी, उसका ऐसा ही कड़ा विरोध हुआ था. उन्होंने कहा भी था कि कोई भी देश महिलाओं को पीछे छोड़ कर आगे नहीं बढ़ सकता है. और, इसलिए, महोदय, आज मुझे विश्वास है, यह हमारे पुरुष सुधारकों की एक स्मृति है, हालांकि जहां डॉ आंबेडकर का संबंध है मैं पुरुष कहना पसंद नहीं करूंगी.

 

पहली क़िस्त के लिए क्लिक करें: 
महिला आरक्षण को लेकर संसद में बहस :पहली   क़िस्त

दूसरी क़िस्त के लिए क्लिक करें: 
महिला आरक्षण को लेकर संसद में बहस: दूसरी क़िस्त 

तीसरी क़िस्त के लिए क्लिक करें: 
महिला आरक्षण को लेकर संसद में बहस :तीसरी   क़िस्त


चौथी क़िस्त के लिए क्लिक करे :
 वह इतिहास, जो बन न सका : राज्यसभा में महिला आरक्षण

वृंदा कारत  (जारी): लेकिन जहाँ तक जेंडर का संबंध है,  यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि भारत में यह पुरुष बनाम महिला, और महिला बनाम पुरुष नहीं रहा है. लेकिन हमारे देश में कुछ सबसे बड़े समाज सुधारक पुरुष रहे हैं, और हम मानते हैं कि यह भूमिका लोकतांत्रिक पुरुष, लोकतांत्रिक विचारधारा वाले पुरुष के कारण बनी रह सकती है, और इसलिए मेरा मानना ​​है कि आज इस सदन में मौजूद सभी पुरुषों, देश के सभी पुरुषों जिन्‍होंने विधेयक का समर्थन किया है मैं बधाई देती हूं जोकि आज बिल्‍कुल उपयुक्‍त है. मैं गंभीर हूँ क्योंकि मैं कहना चाहती हूं कि यह महिलाएं बनाम पुरुष वाला कोई संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं है. महोदय, दो, तीन अन्‍य  बातें हैं जिनको मैं यहां रखना चाहूंगी, और जो मुझे बहुत जरूरी लगती हैं. मैं सोचती हूं कि हमारी राजनीति में पिछले दो दशकों में भारतीय राजनीति में सबसे ऐतिहासिक अनुभवों में से एक पंचायतों में जमीनी स्‍तर पर महिलाओं द्वारा निभायी गई भूमिका है. आज हम देखते हैं कि हिन्दुस्तान की पंचायतों में जो सबसे गरीब औरतें हैं, उन गरीब औरतों को जब यह मौका मिला तो इस मौके का फायदा उठाकर उन्होंने  गाँव के लिए, पंचायत के लिए, जिला के लिए और ब्लॉक लेवल पर किस रूप में काम किया. उन्होंने  यह अपने उत्थान के लिए नहीं किया बल्कि पूरे गाँव के उत्थान लिए किया. यह एक रिकार्ड है। लोग कहते हैं कि इसमें प्रॉक्सी पॉलिटिक्स दिखाई देती है. मुझे  पता है, मैं सुनती हूँ कि लोग कहते हैं कि सारे हिन्दुस्तान की पंचायत में एक नया phenomenon, प्रधान पति पैदा हो गया है. आज मैं चुनौती देती हूँ, अगर प्रधान पति होते हैं तो प्रधान पति का जो .  जी?

 सीताराम येचुरी: पति-प्रधान…

 वृंदा कारत: अब पति प्रधान हो या प्रधान पति हो..(व्यवधान).. क्यों कि प्रधान तो महिला ही होती है. उसका पति तो केवल माला लगा कर पंचायतों में जाकर काम करता है. यह  मैं सही कह रही हूँ. इसीलिए मैं यह कहती हूँ कि आज हम सब लोगों  को यह समझाना है कि प्रॉक्सी पॉलिटिक्स भी पुरुष प्रधान मानसिकता का एक reflection है. औरत काम करना चाहती है, लेकिन जब उसका पति वहाँ खड़ा हो जाता है और बी.डी.ओ. खड़ा होकर उसका हस्ताक्षर घर में ही करवा कर कहता है कि तुम्हें आने की जरूरत नहीं है तो उसके खिलाफ औरतें खड़ी होती हैं. इसीलिए मैं कहती हूँ कि आज हम उन लाखों  औरतों को सलाम करते हैं, क्योंकि अगर उन्होंने इस प्रकार का सही काम पंचायतों में नहीं किया होता तो आज हम लोगों  को यह हिम्मत नहीं होती कि हम इस विधेयक को पास करते. इसलिए पंचायत की औरतों की भी इसमें एक जबर्दस्त भूमिका है, जिसे हमें स्वीकार करना चाहिए. सर, मैं एक और बात कहना चाहती हूँ. मैं इसकी पॉलिटिक्स में नहीं जाना चाहती हूँ कि किसको श्रेय मिलना चाहिए इत्यादि, लेकिन मैं यह जरूर कहना चाहती हूँ और जयन्ती जी को यह सुन कर शायद अच्छा लगेगा कि 1988 में जब महिलाओं के लिए National Prospective Plan बना था तो उस समय ruling party की तरफ से एक सुझाव आया कि हम एक-तिहाई nomination के रू प में पंचायतों में देना चाहते हैं. सर, उस समय National Prospective Plan की debate में महिला संगठनों ने कहा कि हम किसी भी संस्था में backdoor से नहीं जाना चाहते हैं  और ये वे महिला संगठन थे, जिन्होंने कहा कि हम नामांकन नहीं चाहते, हम चुनाव चाहते हैं. तो, जब आज हम विभिन्न व्यक्तियों और हस्तियों के योगदान की बात करते हैं,  तो कृपया मत भूलिए कि आज अगर बिल जीवित है, तो वह महिला संगठनों, महिलाओं के आंदोलनों की वजह से है , जिसने राजनीतिक पार्टियों को इसे भूलने नहीं दिया, और यही हैं वे जिनको आज हमें सलाम करना है. मैं इसे रिकॉर्ड में दर्ज करना चाहती हूं, और मुझे आशा है, अगर प्रधानमंत्री आज बोलेंगे, यह तो बहुत अच्छा होगा अगर वह भी उन महिला संगठनों और आंदोलनों को सलाम करें,  जिन्होंने विधेयक को जिंदा रखना सुनिश्चित किया. महोदय, मैं दो, तीन और मुद्दों,  मुझे  इस बात को सुन कर बहुत दु:ख होता है जब यह कहा जाता है कि यह बिल केवल एक वर्ग की महिलाओं के लिए है. अगर हम अनुभव को देखते हैं तो हकीकत यह है कि जब हम आज भी बिहार और उत्तर प्रदेश के अंदर महिलाओं की संख्या को देखते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि राजनीति में ओ.बी.सी. की बेटी होना कोई disadvantage नहीं है.

वृंदा कारत (क्रमागत) : आज बिहार के अंदर 24 महिलाओं में से 60% से अधिक पिछड़ी जातियों
से हैं। उत्तर प्रदेश के अंदर 423 MLA हैं ..

 सतीश चन्द्र मिश्र : 403 हैं.

 वृंदा कारत : सॉरी, बिहार में 243 हैं, जिनमें से अगर आप संख्या को देखें, क्यों कि यह जो मिथ क्रियट हो रहा है कि SC, ST और OBC को नहीं मिलेगा, मैं कहना चाहती हूं कि यू0पी0 में 23 महिलाओं में से over 65% SC, ST, OBC और हमारी माइनॉरिटी की बहनें हैं. अगर हम बिहार में देखते हैं तो 243 सीटों में से केवल 24 महिलाएं हैं, जिनमें से वहां भी 70.8% या तो OBC, SC या हमारी मुस्लिम  महिलाएं हैं. इसलिए यह कहना कि केवल जनरल कॉस्ट की महिलाएं, जो बहुत सम्पन्न वर्ग  से आती हैं, उन्हीं का यहां फायदा होता है, यह बात बिल्कुल गलत है. आंकड़े यह दिखाते हैं कि जहां महिला रिजर्वेशन  होता है, वहां निश्चित रूप से ये जो हमारी बहनें हैं, उनको और मौका मिलेगा, वे और आगे आएंगी. मैं मानती हूं कि मंडल कमीशन के बाद हिन्दुस्तान की पॉलिटिक्स में एक बुनियादी परिवर्तन हुआ जिनकी अपर कास्ट मोनोप्लीज़ थी, OBCs की सेल्फ मोबलाइजेशन से वह टूटा. यह एक सकारात्मक चीज थी, लेकिन उसमें OBC महिलाओं को वह हिस्सा नहीं मिला. आज हम यह गारंटी के साथ कहते हैं कि अगर आरक्षण होगा, महिला सीट अगर आप आकर्षित  करेंगे तो जो पार्टियां कास्ट के आधार पर सीट देंगी, उसमें फर्क होगा – जाति का फर्क नहीं होने वाला है, कास्ट का फर्क होगा, भाई की बजाए बहन आएगी, लेकिन कोई परिवर्तन होगा, कास्ट कम्प्लेक्शन में कुछ परिवर्तन होकर कोई कन्वर्जन होगा कांसि्टटयूशन गेरंटी आफ इक्वेलिटी का, यह होने वाला नहीं है, यह हकीकत है. मैं यह मानती हूं आज कि हिन्दुस्तान की जनवादी प्रणाली में सबसे बड़ी कमजोरी है कि हमारे माइनॉरिटीज़ की, हमारी संख्या बहुत कम है, हम मानते हैं. यह हमारे लिए, हरेक के लिए यह शर्म की बात है. क्यों हमारी माइनॉरिटीज़ इतनी कम हैं? क्यों  आबादी के मुताबिक उनकी संख्या पार्लियामेंट में, स्टेट असैम्बलीज़ में नहीं हैं ? निश्चित रूप पर यह हमारी कमजोरी है, कहीं न कहीं हमारे जनवाद में यह एक कमजोरी है. इस कमजोरी को हम कैसे दूर करें ? अगर कोई सोचे कि इस कमजोरी को दूर करने के लिए महिला बिल एक जादू की छड़ी है, जिसे घुमाकर हिन्दुस्तान की जनवादी प्रणाली में जितनी भी कमजोरियां हैं, सब खत्म हो जाएंगी, यह होने वाला नहीं है. लेकिन मैं अपने अनुभव से जानती हूं कि जहां महिला आरक्षण है, लोकल लेवल पर, हमारी माइनॉरिटी कम्युनिटी की बहनों को मौका मिला. सर, आप हैदराबाद को ही लीजिए. हैदराबाद में कॉरपोरेशन में 150 सीट्स हैं,
वहां 50 सीट्स आकर्षित  हैं महिलाओं के लिए. उन 50 सीटों में 10 सीटों पर हमारी मुस्लिम  बहनें चुनाव लड़कर जीतकर आई हैं. क्यों  जीतकर आई हैं? क्यों कि वे सीटें महिलाआकर्षित सीटें थी. इसलिए, महिला रिजर्वेशन का फायदा उठाकर हमारी बहनें खड़ी हो सकती हैं, जीत सकती हैं और आज मैं यह उम्मीद जताती हूं कि महिला आरक्षण के बाद निश्चित रूप से जो हमारी गरीब महिलाएं हैं, पिछड़ी हैं, माइनॉरिटीज़ हैं, SC हैं, ST हैं, निश्चित रूप से उनको इसका फायदा मिलेगा और मैं पोलिटिकल पार्टियों से भी यह अपील करना चाहूंगी कि इस आरक्षण का फायदा उठाकर उन महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करना अनिवार्य है, मैं यह भी कहना चाहती हूं. सर, रोटेशन के बारे में लोगों  ने कहा कि यह रोटेशन क्या है, यह रोटेशन बिल्कुल गलत है, लेकिन हम यह पूछना चाहते हैं कि एक कांसि्टच्युएंसी में जहां ढ़ाई या तीन लाख वोटर हैं, वहां क्या एक ही प्रतिनिधि है, जो जिंदगी भर, जब तक जीएगा, वहीं प्रतिनिधित्व करेगा. क्या वहां और कोई नहीं है, और कोई काबिल नहीं है? यह बिल्कुल गलत समझा है. हम लोगों की पार्टी में, हम लोगों  ने कोशिश की कि हम कम से कम दो टर्म, राज्य सभा में तो दो टर्म हमने लागू कर लिया, लेकिन लोक सभा में भी जो चुने हुए प्रतिनिधि हैं, हमारा यह प्रयास है कि कम से कम दो या तीन टर्म के बाद कोई और साथी आए और करे. चूंकि हम यह नहीं मान सकते, मोनार्की के खिलाफ है .लेकिन इनडायरेक्ट मोनार्की है कि भइया, हम एक बार जीते तो हम कभी नहीं इससे हट सकते और अगर हटेंगे तो लोग कहेंगे कि इनस्टेबि्लटी होगी.That is the stability of democracy that you have more and more people who can take the responsibility. मैं बता रही हूं, मैंने “प्रयास” शब्द का इस्तेमाल किया है और इसीलिए मैं कहती हूं कि यह अनिवार्य है और यह बात सही है, जो अरुण जेटली जी ने कही कि
आरक्षण के समस्‍तरीय प्रसार के बारे में कहना चाहती हूं. हम एकाधिकार को बढ़ाना नहीं चाहते कि केवल एक निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण हो और केवल एक निर्वाचन क्षेत्र की महिलाएं विकास कर सकें. हम महिला नेताओं के समस्‍तरीय विकास की ताकत चाहते हैं, जैसाकि सिर्फ पंचायतों में हुआ है जहां योग्यता की वजह से – कृपया जो मेरिट की बात करते हैं वे ध्‍यान दें – हम 33 फीसदी अधिक हैं। कई पंचायतों में,  हम 40 प्रतिशत हैं. मैं आपको बहुत ज्यादा डराना नहीं चाहती. मेरा पूरी उम्‍मीद है कि विधानसभाओं और संसद में भी बहुत जल्द ही महिलाएं, अपने काम, क्षमता और बलिदान के कारण, 33 प्रतिशत को पार कर जाएंगी और 40 प्रतिशत या 50 प्रतिशत तक पहुंच जाएंगी. यह एक वादा है.

सभापति: कृपया घड़ी पर नजर रखें.

वृंदा करात:
मैं घड़ी पर नजर रख रही हूँ. I am keeping an eye on the watch. मैं चेयर को भी address कर रही हूं और मैं बाकी सदस्यों  को भी address कर रही हूं.SHRI SITARAM YECHURY: Should we keep a watch on the time or on the numbers, Sir?


वृंदा कारत : सभापति जी, मैं इस बारे में एक बात और कहना चाहती हूं कि लोग पूछते हैं कि बिल के बाद क्या होगा, क्या पूरी पोलिटिक्स बदल जाएगी, क्या करप्शन खत्म हो जाएगा, क्या सब कुछ हो जाएगा? हम कहते हैं कि औरत कोई super woman नहीं है कि वह पार्लियामेंट में आएगी और पूरी दुनिया और देश को बदल देगी, हालांकि उसमें ताकत है बदलने के लिए। मैं यह कहना चाहती हूं कि

 वृंदा करात: महिलाओं से ऐसा व्‍यवहार नहीं करें जैसे कि वे राजनीति में भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाली सुपरवुमन हों. मुझे नहीं लगता कि 33 प्रतिशत को फिक्‍स करके हमें यह साबित करना जरूरी है कि वे वहाँ तक नहीं पहुँचना चाहती हैं. हालांकि, मुझे विश्वास है कि चुनावी राजनीति में उनका प्रवेश निश्चित रूप से अधिक संवेदनशील राजनीति की तरफ ले जाऐगा और हमें विश्वास है कि ये हमारे प्रयास ही होंगे कि मुख्‍य राजनीतिक एजेंडे, तथाकथित बड़े मुद्दे और हल्‍के मुद्दे …

सभापति: कृपया समाप्त करें.



वृंदा करात: महोदय, यही समस्या है. कठिनाइयां क्या हैं? मुख्‍य राजनीतिक मुद्दे क्या हैं? महिलाओं के खिलाफ हिंसा क्‍या एक मुख्‍य राजनीतिक मुद्दा नहीं है? कन्या भ्रूण हत्या क्‍या एक मुख्‍य राजनीतिक मुद्दा नहीं है? फिर भी, जब इन पर विचार-विमर्श होता है,  तो इनको मुख्‍य  राजनीतिक एजेंडा नहीं माना जाता है. कई लोगों ने पूछा: केवल एक तिहाई ही क्यों है? यह एक दहलीज है. यह एक आवश्‍यक मात्रा है जो नीति को प्रभावित करेगी, इसलिए मेरा मानना ​​है कि यह बदल जाएगा. अन्त में, महोदय, …

सभापति: नहीं, श्रीमती करात, आपका समय समाप्‍त हो चुका है.

 वृंदा करात: जी, हां महोदय, बस आप इतना समायोजन करते हैं तो थोड़ी कृपा और एक और बात. मुझे विश्वास है, यह सब संस्कृति को बदलने जा रहा है क्योंकि आज महिलाएं, चाहे हम इसे स्वीकार करें या नहीं, अधिकतर आधुनिक समाजों में, अभी भी एक सांस्कृतिक प्रिज्‍म में फंसी हुई हैं. एक समान रूप से स्वतंत्र नागरिक होने के लिए हमें हर दिन लड़ना होगा…. हमारे देश में, परंपरा के नाम पर, संस्कृति के नाम पर, रूढियों को थोपा जाता है और मुझे विश्वास है, जब इतनी सारी महिलाएं सार्वजनिक जीवन में हैं, महिलाओं को कैद करने वाली रूढ़ियां और संस्कृतियां, वे सलाखें, भी टूटेंगी.

सभापति: धन्यवाद।

 वृंदा करात: इसलिए, मैं एक बार फिर से सदन को बधाई देती हूं और मैं अपनी निराशा जाहिर करती हूं कि कल फ्लोर मैनेजमेंट कल बहुत खराब था.

सभापति: कृपया समाप्त करें.

 वृंदा करात: आपने हर व्‍यक्‍ति को विश्वास में नहीं लिया था. मुझे विश्वास है,  महोदय, कि जब …

सभापति: कृपया समाप्त करें. मुझे लगता है कि मैं आपको अब और अधिक समय की अनुमति नहीं दे सकता हूँ.

 वृंदा करात: मुझे यह भी उम्मीद है कि लोकसभा में भी इसे पारित करने में कोई देर नहीं होगी. यह न करें कि नाम के वास्‍ते राज्‍य सभा में कर लिया भइया, लेकिन लोकसभा में क्‍या दिया?


सभापति: कृपया समय पर ध्‍यान दें.


वृंदा करात: कृपया ऐसा नहीं करें. हम इस विधेयक को इस सत्र में ही लोकसभा में पारित देखना चाहते हैं. धन्यवाद.

क्रमशः

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles