मकबूल फ़िदा हुसेन ने अपनी कलाकृतियों में स्त्री को दर्शाते हुए न जाने कितने ही ऐसे चहरों को रंगा है, जिसकी दुनियाँ आज भी प्रशंसा और निंदा, दोनो ही करती है. कहीं स्त्री सौंदर्य को प्रदर्शित करती कोमल युवतियाँ, तो कहीं वाद-विवाद निर्माण करने वाली कलाकृतियाँ. उन्हीं चहरों में कभी कभी अपनी माँ के धुंधलाते चहरे को ढूंढते रहे, तो कभी स्त्री में प्रेयसी ढूंढते रहे. युवावस्था में एक गरीब लडकी जमुना के रेखा चित्र बनाते रहे, तो कहीं वृध्दावस्था में फिल्म स्टार माधुरी के चित्र बनाते रहे.
इसी बीच हुसेन ने मदर टेरेसा के भी कई चित्र बनाए और देश विदेशों में उन्हें प्रदर्शित किया . यह लेख उन्हीं चित्रों के सन्दर्भ में है. मदर टेरेसा कि बनी कलाकृतियों पर प्रकाश डालने से पहले हुसेन की आत्मकथा (रशदा सिद्दकी के द्वारा लिखित) के प्रारंभिक कुछ पन्नो का अध्ययन करने से हुसेन की बालावस्था एवं संर्घषमय जीवन का परिचय हमे प्राप्त होता है . रशदा सिद्दकी लिखती हैं कि 1915 में हुसेन का जन्म पंढरपूर महाराष्ट्र में हुआ था, जब वह एक साल के थे तब उनकी माता ज़ैनब का देहांत हुआ था. माँ ने नाम दिया मकबूल और सारे विश्व में एम.एफ. हुसेन के नाम से जाने जाते हैं.
एक दृश्य : माँ ज़ैनब पंढरपूर के एक मेले में सिर पर टोकरी उठाये जा रही है. टोकरी खाली नहीं है. उस में छः महीने का बच्चा मकबूल कपडे में लिपटा सोया हुआ है. सोए बच्चे को गोद में संभालना मुश्किल और फिर मेले की धक्कम धक्की. किसी एक जगह भीड कम देखकर टोकरी सिर से उतार कर ज़मीन पर रखती है. और कुछ देर वहीं खडी रहती हैं, और वहीं पर अपनी छोटे बहन का इंतज़ार करती रहती है.
मकबूल कि माँ की नज़र सिर्फ दो मिनट ही टोकरी से हटी होगी कि जैसे ही नीचे टोकरी पर वापस नज़र डालती है, तो बच्चा गायब. एक चीख मारी और चीख के साथ माँ की पुकार खामोश हो गई, आँसू सूख गए. हाथ पाँव की हरकत बंद. उसी खाली टोकरी के सामने खडी रह गई. दिन गुजरते चले, महीने साल ठहरे नहीं, और इस घटना के कुछ ही महीनों बाद माँ ज़ैनब अपने एक साल के नन्हें बालक मकबूल को छोडकर हमेशा- हमेशा के लिए इस दुनिया से चली गयी.
माँ ज़ैनब ने न कभी कोई तस्वीर खिचवाई थी न कोई आकृति हुसेन को याद था. यह कमी हुसेन ने अपनी सारी जिन्दगी महसूस की है. जब भी कोई मराठी साडी इधर -उधर पडी नजर आती तो उसकी हजारो तहों में वे माँ को ढूँढंने लगते. माँ की मोहब्बत, ममता के जिस्म के हर पोर से उबलता बेपनाह प्यार का लावा- शायद हुसेन कि यही अंदरुनी कराहती चिंगरी दर-बदर मारी-मारी फिर रही थी .
दृश्य दो: सन 1979 के करीब कलकत्ता की एक मध्यम रोशनी वाली गली में एक बुजुर्ग औरत सफेद साडी पहने बडी विनम्रता से पैदल जा रही है. पैरों मे रबर की चप्पल, बगल में छोटे मुठ की मामूली सी छतरी, गर्दन झुकी, साथ दो औरतें, दो की गोद में दूध पीते बच्चे, लेकिन औरतें माँ नही लगती. सब की साडियाँ सफेद. सिर ढके. पूरी आस्तीन का कमर तक ब्लाउज़ . बुजुर्ग औरत गली कूचों में रूक-रूक कर औरतों, बच्चों से नरम लेहाज में बंगला भाषा में बातचीत करती जारही हैं, जो उसकी मातृभाषा नहीं. हुसेन भी वहीं गलियों में, स्केच बुक बगल में दबाए गुज़र रहे थे. इस औरत को दूर से देखते हैं और आहिस्ता-आहिस्ता उसके पीछे चलना शुरु करते हैं. और इसी तरह कई महीनों चलते ही रहे.
कलकत्ता की तमाम गुमनाम बास्तियों को पहचाना- दुःखी औरतें, अनाथ बच्चे, बेघर बर्तन, थके और बीमार शरीरों को उठाए चारपाइयाँ और भी ऐसे कई दृश्य- जो हुसेन की कलात्मक दृष्टि से, रंगों के माध्यम से रूप प्राप्त कर हुसेन कि कलाकृतियाँ कहलाती हैं . दिसम्बर 1980 में कलकत्ता के चौरंगी सडक पर आलीशान टाटा सेंन्टर में एम.एफ. हुसेन की कला की नुमाइश होती है.
इस नुमाइश में लगे सभी चित्रों में बार-बार सिर्फ एक सफेद साडी, सियाह बैकग्राउन्ड पर दिखाई देती है. इन साडियों की सिलवटों में छुपे, ढँके, इधर, उधर, छोटे, छोटे यतीम बच्चो की झलक दिखाई देती है. सफेद साडी में कोई मनुष्य का शरीर नहीं, किसी माँ का चेहरा नहीं. साडी के बार्डर पर नीलें रंग की दो घरियाँ.
यह दुनिया की एक मशहूर देवी स्वरूप मदर टेरेसा थी, जिनकी पहचान चेहरा नहीं उनकी बेपनाह मोहब्बत है, उन बच्चों के लिए, जिन से माँ की मोहब्बत छीन ली गई हो. हुसेन ने सन 1988 में तैल रगों द्वारा एक ऐसा सुंदर चित्र रचा, जो आज राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में संग्रहित है. इस संयोजनात्मक चित्र में हुसेन ने एक ऐसे कुटुँब का चित्राँकन किया है, जो मूलतः गरीब एवं दुखीः परिवार दिखाई पडता है-कुटुँब के मूल बीमार व्यक्ति को मदर टेरेसा अपनी गोदी में सुलाए सहला रही हैं, मानो उसका आत्मविश्वास बढ़ा रही हों, व्यक्ति के गुप्ताँगों से खिसकता नीले रंग का कपडा, दर्द से ढका निःशक्त शरीर, अर्धांगिणी बाई और उसका बच्चा एक महिला की आँचल से लिपटे खेल रहा है.
भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाली यह कलाकृति मानव जाति को एक अनोखा संदेश प्रदान करती है. इसी से जुडा एक और संयोजन, जिस को हुसेन ने अक्रलिक रंगों से कनवास पर रचा है, जो बृहत आकार वाली कलाकृति “TRYPTICH” के नाम से प्रसिद्ध है .
एम.एफ. हुसेन के चित्रों में मदर टेरेसा कई बीमार शरीरों को अपने गोद में उठाई हुई दिखाई देती हैं, तो कहीं गली कूँचों मे रोते बिलबिलाते बच्चों को गोदी मे समेटे सहलाती दिखाई देती हैं .गरीब बस्ती की कुछ महिलाएँ घरों से कोसो दूर हाथ में घडे लिये जब पानी लाने के लिए, अपने छोटे-छोटे बच्चों को झोपडियों में छोड जाती, ठीक उसी समय मदर टेरेसा और उनके साथ कुछ और महिलाएं उस बस्ती में आतीं, और वे सब उन बच्चों के साथ खेलते और उनका मन बहलाते, तब तक, जबतक की महिलायें पानी लेके वापस न आ जाती. हुसेन के चित्रों में यह सभी दृश्य सरल एवं स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं. हुसेन ने अपनी कलाकृतियों में कुछ ऐसी माँओं को भी चित्रित किया है, जिन के शरीर से दूध सूखगया हो और वह अपने भूखे बच्चों को मदर टेरेसा की गोद में खेलता देख मुस्कुरा रही हों. एम.एफ.हुसेन ने इसी से संबंधित कुछ अन्य कलाकृतियों में दूध देनेवाली गाय का भी चित्राँकन किया है .
मदर टेरेसा मानवता एवं ममता के लिए एक सच्ची प्रतिबिंब थीं . हुसेन बार-बार इन रचनाओं में नवजागरण, चित्रकला और मूर्तिकला के तत्वों से उधार लेते हैं . और उस काम मे गिरजाघर स्थापत्य कला कि उठाई मेहराब, उदाहरण के रूप में, चित्रों में दिखाई देती है. हुसेन ने इन्दौर में बीते अपने जीवन के आराम्भिक शिक्षा काल के दो सहपाठी-चित्रकारों का अपनी कला में प्रभाव स्वीकर किया कि उन्होंने रेखाओं के सरलीकरण (Simplification of lines) में विष्णु चिंचालकर और रंग-संयोजन मे डी.जे. जोशी से काफी प्रभाव ग्रहण किया . बाद में पिकासो ने उन्हें गहरे तक प्रभावित किया. लेकिन उनके पास रंग-रेखाएँ अपने इसी आरम्भिक साहचर्य की रहीं. बोल्ड रेखीय स्ट्रोक और फ्लैट रंग तथा हुसेन की हस्ताक्षर शैली अनेक कलानुभवियों के मन में गरहाई से उतरे हैं.
ग्रंथसूची:
1. एम.एफ. हुसेन की कहानी अपनी ज़ुबानी (आत्मकथा): श्रीमति रशदा सिद्दिकी: 20.
2. समकालीन कला: ललित कला का प्रकाशन: संपादक, डॉ ज्योतिष जोशी: लेखक, प्रभु जोशी, अंक 38-39 जुलाई अक्टूबर-2009.
संपर्क : लेखक चित्रकार और कला -समीक्षक हैं . drshahedpasha@gmail.com