हाँ, मैं एक स्त्री हूँ

सुशील शर्मा 


हाँ, मैं एक स्त्री हूँ

हाँ मैं एक स्त्री हूँ
हाँ मैं एक स्त्री हूँ ,एक देह हूँ
क्या तुमने देखा है मुझे देह से अलग?
पिता को दिखाई देती है मेरी देह एक सामाजिक बोझ
जो उन्हें उठाना है अपना सर झुका कर
माँ को दिखाई देती है मेरी देह में अपना डर अपनी चिंता
भाई मेरी देह को जोड़ लेता हेै अपने अपमान से
रिश्ते मेरी देह में ढूंढते हैं अपना स्वार्थ
बाज़ार में मेरी देह को बेंचा जाता है सामानों के साथ

घर के बाहर मेरी देह को भोगा जाता है।
स्पर्श से ,आँखों से ,तानों और फब्तियों से
संतान ऊगती है मेरी देह में
पलती है मेरी देह से और छोड देती है मुझे
मेरी देह से इतर मेरा अस्तित्व
क्या कोई बता सकता है ?

क्या होती है स्त्रियां

घर की नींव में दफ़न सिसकियाँ और आहें हैं स्त्रियां
त्याग तपस्या और प्यार की पनाहें हैं स्त्रियां
हर घर में  मोड़ी और मरोड़ी जाती हैं स्त्रियां
परवरिश के नाटक में हथौड़े से तोड़ी जाती हैं स्त्रियां
एक धधकती संवेदना से संज्ञाहीन मशीनें बना दी जाती है स्त्रियां
सिलवटें, सिसकियाँ और जिस्म की तनी हुई कमानें है स्त्रियां
नदी-सी फूट पड़ती हैं तमाम पत्थरों के बीच स्त्रियां
बाहर कोमल अंदर सूरज सी तपती हैं स्त्रियां
हर नवरात्रों में देवी के नाम पर पूजी जाती हैं स्त्रियां
नवरात्री के बाद बुरी तरह से पीटी जाती हैं स्त्रियां
बहुत बुरी लगती हैं  जब अपना  हक़ मांगती हैं स्त्रियां
बकरे और मुर्गे के गोस्त की कीमतों पर बिकती हैं स्त्रियां
हर दिन सुबह मशीन सी चालू होती हैं स्त्रियां
दिन भर घर की धुरी पर धरती सी घूमती हैं स्त्रियां
कुलों के दीपक जला कर बुझ जाती हैं स्त्रियां
जन्म से पहले ही गटर में फेंक दी जाती हैं स्त्रियां
जानवर की तरह अनजान खूंटे से बांध दी जाती हैं स्त्रियां
‘बात न माने जाने पर ‘एसिड से जल दी जाती हैं स्त्रियां
‘माल ‘मलाई ‘पटाखा ”स्वादिष्ट ‘होती हैं स्त्रियां
मर्दों के लिए भुना ताजा गोस्त होती हैं स्त्रियां
लज्जा ,शील ,भय ,भावुकता से लदी होती हैं स्त्रियां
अनगिनत पीड़ा और दुखों की गठरी होती हैं स्त्रियां
संतानों के लिए अभेद्द सुरक्षा कवच होती हैं स्त्रियां
स्वयं के लिए रेत की ढहती दीवार होती है स्त्रियां



नारी तुम मुक्त हो।

नारी तुम मुक्त हो।
बिखरा हुआ अस्तित्व हो
सिमटा हुआ व्यक्तित्व हो
सर्वथा अव्यक्त हो
नारी तुम मुक्त हो
शब्द कोषों से छलित
देवी होकर भी दलित
शेष से संयुक्त हो
नारी तुम मुक्त हो
ईश्वर का संकल्प हो
प्रेम का तुम विकल्प हो
त्याग से संतृप्त हो
नारी तुम मुक्त हो

संपर्क : सुशील कुमार शर्मा व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. हैं।  शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) हैं। 
archanasharma891@gmail.com 

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