एदुआर्दो गालेआनो / अनुवादक : पी. कुमार मंगलम
अनुवादक का नोट
“Mujeres” (Women-औरतें) 2015 में आई थी। यहाँ गालेआनो की अलग-अलग किताबों और उनकी लेखनी के वो हिस्से शामिल किए गए जो औरतों की कहानी सुनाते हैं। उन औरतों की, जो इतिहास में जानी गईं और ज्यादातर उनकी भी जिनका प्रचलित इतिहास में जिक्र नहीं आता। इन्हें जो चीज जोड़ती है वह यह है कि इन सब ने अपने समय और स्थिति में अपने लिए निर्धारित भूमिकाओं को कई तरह से नामंजूर किया।
भविष्य की जुबानियाँ
एक बार हुआ यह कि पेरू में जादू-करतब दिखाने वाली एक औरत ने मुझे लाल गुलाबों से ढँक दिया और इसके बाद मेरा भाग्य पढ़ते हुए कहा:
“एक महीने के भीतर-भीतर तुम्हें एक बड़ा ईनाम मिलेगा” मुझे हँसी आ गई. मुझे हँसी उस अनजान औरत के अगाध स्नेह पर आई जो मुझे फूल और सफलता की दुआएँ भेंट कर रही थी. मुझे हँसी ईनाम या सम्मान शब्द से आई जिसमें पता नहीं क्या तो मजाकिया-सा है. हंसी उसी वक़्त मोहल्ले के एक पुराने दोस्त की याद होकर भी आई. वह निहायत ही रूखा लेकिन खरी-खरी बोलने वाला इंसान था. अपनी छोटी सी उंगली हवा में उठा, सजा सुनाने के अंदाज़ में कहा करता था :”आज नहीं तो कल, लेखकों को रूखा-सूखा खाकर ही ज़िंदा रहना है”. उसकी यही बात याद कर मुझे हंसी आई. और वह जादूगरनी मेरी हँसी पर हँस दी थी.एक महीने बाद, ठीक एक महीने बाद मोंतेवीदियो में मुझे एक टेलीग्राम मिला. टेलीग्राम यह बता रहा था कि चिले में मुझे एक बड़ा ईनाम दिया गया था. उस ईनाम का नाम खोसे कार्रास्को पुरस्कार था.
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टेलीविजन
मुझे यह स्पेनी टेलीविजन दुनिया की नामचीन हस्तियों में शुमार रोसा मारिया मातेओ ने बताया था. किसी एकदम से नामालूम से गाँव की एक औरत ने उन्हें एक ख़त लिखकर एक सवाल का सच-सच जवाब बताने की गुजारिश की थी. “जब मैं आपको देख रही होती हूँ, तब क्या आप भी मुझे देखती हैं?”
रोसा मारिया ने मुझे यह बताया. और यह भी कि उन्हें नहीं सूझा कि इस सवाल का जवाब क्या होना चाहिए.
उन दो आवाजों के नाम
वे साथ बड़ी हुई थी. गिटार और विओलेता पार्रा.
जब एक बुलाती, दूसरी चली आती थी. गिटार और वह एक साथ हँसतीं, रोतीं. सवाल पूछतीं, हैरान होतीं और विश्वास करतीं थी. गिटार के सीने में एक छेद था. उसके भी. आज ही के एक दिन की तरह 1967 में गिटार ने बुलाया, लेकिन वियोलेता नहीं आई. उसके बाद वह कभी नहीं आई.
वह नहीं भूलती
वह कौन है जो अफ्रीका के जंगलों के सारे छोटे रास्ते जानती पहचानती है? कौन है वह जो हाथीदांत के शिकारियों तथा दुश्मन जंगली जानवरों की खतरनाक जद से बचना जानती है? कौन अपने तथा दूसरों के छोड़े गए निशानों को पहचानती है? कौन अपनी सभी संगिनियों तथा साथियों की यादें बचा कर रखती है?
कौन है जो वे सारे सन्देश-संकेत छोड़ती है जिसे हम इंसान न तो सुन और न ही बूझ सकते हैं? वही संकेत जो बीस किलोमीटर से भी अधिक की दूरी से सचेत करना, मदद देना, घुड़की देना या दुआ-सलाम करना जानते हैं?
वो वह है. सबसे बुजुर्ग हथिनी. सबसे बूढी, सबसे अक्लमंद. वह जो झुण्ड के सबसे आगे चला करती है.
लेखक के बारे में
एदुआर्दो गालेआनो (3 सितंबर, 1940-13 अप्रैल, 2015, उरुग्वे) अभी के सबसे पढ़े जाने वाले लातीनी अमरीकी लेखकों में शुमार किये जाते हैं। साप्ताहिक समाजवादी अखबार एल सोल (सूर्य) के लिये कार्टून बनाने से शुरु हुआ उनका लेखन अपने देश के समाजवादी युवा संगठन से गहरे जुड़ाव के साथ-साथ चला। राजनीतिक संगठन से इतर भी कायम संवाद से विविध जनसरोकारों को उजागर करना उनके लेखन की खास विशेषता रही है। यह 1971 में आई उनकी किताब लास बेनास आबिएर्तास दे अमेरिका लातिना (लातीनी अमरीका की खुली धमनियां) से सबसे पहली बार जाहिर हुआ। यह किताब कोलंबस के वंशजों की ‘नई दुनिया’ में चले दमन, लूट और विनाश का बेबाक खुलासा है। साथ ही,18 वीं सदी की शुरुआत में यहां बने ‘आज़ाद’ देशों में भी जारी रहे इस सिलसिले का दस्तावेज़ भी। खुशहाली के सपने का पीछा करते-करते क्रुरतम तानाशाहीयों के चपेट में आया तब का लातीनी अमरीका ‘लास बेनास..’ में खुद को देख रहा था। यह अकारण नहीं है कि 1973 में उरुग्वे और 1976 में अर्जेंटीना में काबिज हुई सैन्य तानाशाहीयों ने इसे प्रतिबंधित करने के साथ-साथ गालेआनो को ‘खतरनाक’ लोगों की फेहरिस्त में रखा था। लेखन और व्यापक जनसरोकारों के संवाद के अपने अनुभव को साझा करते गालेआनो इस बात पर जोर देते हैं कि “लिखना यूं ही नहीं होता बल्कि इसने कईयों को बहुत गहरे प्रभावित किया है”।
अनुवादक का परिचय : पी. कुमार. मंगलम जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय से लातिनी अमरीकी साहित्य में रिसर्च कर रहे हैं . आजकल फ्रांस में हैं.
क्रमशः