हाल ही में महिलाओं के साथ हुई कुछ बेहद दुखद हिंसात्मक घटनाएँ टीवी चैनलों व अखबारों की सुर्खियां बनी.पहली घटना में राजधानी दिल्ली के बुराड़ी इलाके में एक 34 वर्षीय युवक ने एकतरफा प्यार के चलते एक 21 वर्षीय लड़की की हत्या कर दी.लड़की स्कूल टीचर थी, जब वह अपने स्कूल से घर जा रही थी तो युवक ने टूटी केंची से छब्बीस बार वार कर उसकी हत्या कर दी.दूसरी घटना गुडगाँव के मेट्रो स्टेशन पर घटी, जिसमें एकतरफा प्यार में पागल एक युवक ने महिला के इंकार करने पर सरेआम तीस बार चाकू से वार कर उसकी हत्या कर दी.तीसरी घटना में राजस्थान के अलवर जिले में एक बेहद क्रूर तरीके से महिला की हत्या का मामला सामने आया.युवक ने अपनी पत्नी के चरित्र पर शक के कारण मिट्टी का तेल डालकर जिंदा जला दिया और फिर चाकू से उसके अंगो के टुकड़े कर शहर के अलग-अलग हिस्सों में फेंक दिए.एक अन्य घटना में बिहार के मुजफ्फपुर जिले में एक महिला इंजीनियर को जिंदा जलाने का सनसनीखेज मामला सामने आया.
महिलाओं पर इस तरह बेहद क्रूरता के साथ हमले होने की यह कोई पहली घटना नहीं है.रोज़ाना टीवी चैनलों व अखबारों में महिलाओं पर हमले होने की खबरें सुर्खियाँ बनती रहती हैं.जैसे‘युवक ने बदला लेने के लिए महिला पर तेज़ाब डाला,लड़के ने बीच सड़क पर लड़की को चाकू मारा,दहेज़ के लालच में दुल्हन को ज़िंदा जलाया,घर में घुसकर महिला से सामूहिक दुष्कर्म’ इत्यादि. हर रोज़ महिलाओं को छेड़छाड़,पिटाई, अपमान, बलात्कार,यौन शोषण जैसी हिंसात्मक घटनाओं का सामना करना पड़ता है.हालात यह हैं कि महिलाएं सिर्फ सड़कों व सार्वजनिक स्थानों पर ही असुरक्षित नहीं हैं बल्कि घर में भी उनके जीवनसाथी या उसके परिवार के सदस्य ही उनकी हत्या कर देते हैं. ज्यादातर घटनाओं के बारें में तो पता ही नहीं चलता है क्योंकि शोषित व प्रताड़ित महिलाएं किसी को इसके बारें में बताने से घबरातीहैं. उन्हें डर लगता है कि कहीं ये पितृसत्तात्मक समाज उनको ही दोषी न ठहरा दे.
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महिलाओं के प्रति इस प्रकार की हिंसात्मक घटनाओं को देख कर प्रश्न उठता है कि आखिर कोई पुरुष महिला को चोट क्यों पहुँचाना चाहता है?,एक पुरुष सरेआम महिला केप्रति इतना हिंसात्मक क्यों हो जाता है?और केवल महिला के इंकार करने पर पुरुष हमलावर क्यों हो जाता है? आदि.आमतौर पर कोई भी पुरुष महिला को चोट पहुंचाने के लिए अनेक बहाने बना सकता है. जैसे ‘वह शराब के नशे में था, वह गुस्से में अपना आपा खो बैठा या फिर वह महिला इसी लायक है’इत्यादि.परंतु वास्तविकता यह है कि पुरुष हिंसा का रास्ता केवल इसलिए अपनाता है क्योंकि वह केवल इस माध्यम से वह सब प्राप्त कर सकता है जिन्हें वह एक पुरुष होने के कारण अपना हक़ समझता हैं. इस घातक मानसिकता का ही परिणाम हैं कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़, बलात्कार, दहेज़मृत्यु, हत्या तथा यौन उत्पीडन जैसे हिंसात्मकअपराधों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है.
ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत में महिलाओं को अपराधों व हिंसा के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने तथा आर्थिक, सामाजिक दशाओं में सुधार हेतु ढेर सारे कानूनों का संरक्षण हासिल है. जिनमें अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट-रूपण प्रतिषेध अधिनियम 1986, सती निषेध अधिनियम 1987,गर्भाधारण पूर्व लिंग-चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994,कार्यस्थल पर महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005,राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 2006, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़िन (निवारण, प्रतिषेध) अधिनियम 2013 प्रमुख हैं. लेकिन त्रासदी है कि इन क़ानूनों के बावजूद भी महिलाओं पर हिंसा और अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहा है. देश में घरेलू हिंसा, बलात्कार, दहेज मृत्यु, अपहरण,औनर किलिंग जैसी घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं.
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दरअसल विडंबना यह है कि समाज में स्वतंत्रता और आधुनिकता के विस्तार के साथ-साथ महिलाओं के प्रति संकीर्णता का भाव भी बढ़ा है.प्राचीन सामाज में ही नहीं बल्कि आधुनिक समाज की दृष्टि में भी महिलाएं केवल औरत है जिसको थोपी व गढ़ी-बुनी गई तथाकथित नैतिकता की परिधि से बाहर नहीं आना चाहिए.दी यूएन डिक्लेरेशन ऑन दी एलिमिनेशन ऑफ वोइलेंस अगेन्स्ट वुमेन के अनुसार ‘महिलाओं के प्रति हिंसा पुरुषों और महिलाओं के बीच ऐतिहासिक शक्ति की असमानता का प्रकटीकरण है.’ और यह भी कि “महिलाओं के प्रति हिंसा एक महत्वपूर्ण सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कमतर स्थिति में धकेल दी जाती हैं.’
आज भी बहुत-सी संस्कृतियों में महिलाओं को पुरुषों से कम दर्ज़ा दिया जाता है दरअसल महिलाओं के साथ भेदभाव करने का रवैया, समाज में कूट-कूटकर भरा है.उनके खिलाफ की जानेवाली हर किस्म की हिंसा एक ऐसी समस्या बन गई है, जो मिटने का नाम नहीं ले रही है.संयुक्त राष्ट्र के भूतपूर्व सेक्रेटरी-जनरल, कोफ़ी अन्नान ने कहा था ‘दुनिया के कोने-कोने में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जा रही है.हर समाज और हर संस्कृतिकी महिलाएं इस जुल्म की शिकार हो रही हैं.वे चाहे किसी भी जाति, राष्ट्र, समाज या तबके की क्यों न हों, या उनका जन्म चाहे जहाँ भी हुआ हो, वे हिंसा से अछूती नहीं हैं.’वहीं महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाली संस्था एमनेस्टीइंटर्नेशनल के अनुसार ‘महिलाओं औरलड़कियोंके खिलाफ की जाने वाली हिंसा, आज मानवअधिकारों का उल्लंघन करने वाली सबसे बड़ी समस्या है.’
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समाज में पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रयोग किए जाने वाले शब्दों पर गौर करें तो पुरुष के लिए निडर, मज़बूत, मर्द ताकतवर, तगड़ा, सत्ताधारी, कठोर ह्रदय, मूँछों वालाऔर महिलाओं के लिए कोमल, बेचारी, अबला, घर बिगाडू, कमज़ोर, बदचलन, झगडालू आदि शब्द प्रयोग किये जाते हैं. इनमें से कुछ शब्द तो महिला-पुरुष में प्राकृतिक अंतर का प्रतीक हैं लेकिन ज्यादातर शब्द प्राकृतिक कम सामाजिक ज्यादा हैं यानि पितृसत्तात्मक समाज ने इन शब्दों तथा इसके पीछे की अवधारणा को गढ़ा है जबकि असलियत में यह शब्द केवल महिलाओं को कमज़ोर दिखाने के लिएही प्रयोग किए जाते हैं क्योंकि केवल पुरुष ही नहीं बल्कि एक महिला भी ताकतवर, मजबूत और निडर होती है और एक पुरुष भी घर बिगाड़ू, बदचलन और झगड़ालू हो सकता है.
महिलाओं के प्रति इस प्रकार की हिंसात्मक घटनाएँ पुरुषों की ‘मर्दानगी’को लेकर दोहरा रवैया दिखा रही हैं. एक तरफ अगर लड़की उनका प्रस्ताव ठुकरा दे तो उनकी मर्दानगी को ठेस पहुँच जाती हैं और फिर पुरुष बदला लेने के लिए सरेआम महिला पर हमला कर देता है. दूसरी ओर कुछ पुरुष अपनी आँखों के सामने किसी महिला की बेरहमी से हत्या होते हुए देख कर आगे निकल जाते हैं. प्रश्न उठता है कि किसी लड़की द्वारा ठुकरा दिए जाने परपुरुष की मर्दानगी को तो ठेस पहुँच जाती है लेकिन हैरानी की बात यह है कि किसी की हत्या होते समय पर ‘मर्दानगी’ कम नहीं होती है?
अगर कोई व्यक्ति सामान्य तरीकों का प्रयोग करके अपने जीवन को नियंत्रित करने का प्रयत्न करता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन अगर कोई व्यक्ति दूसरों के जीवन पर हिंसा के प्रयोग से नियंत्रण करने की कोशिश करे तो यह ठीक नहीं है. दूसरा कोई भी पुरुष मर्द होने से पहले इंसान है और अगर किसी के साथ हिंसा होते देख कर भी अगर हम आगे बढ़ जाते हैं तो इंसानियत कहीं पीछे छूट जाती है.एक महिला के शब्दों में,‘आज हालात यह हैं कि घर, समाज में महिलाओं के लिए डर ही उनकी एक ऐसी सखी है, जो हरपल उनके साथ रहती है और हिंसा एक ऐसा खतरनाक अजनबी है जो किसी भी वक्त, किसी भी मोड़, सड़क या आम जगह पर उन्हें धर-दबोच सकता है.’
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कई देशों में नियम हैं कि यदि मुसीबत की स्थिति में आप किसी की मदद नहीं करते हैं तो आपके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है. लेकिन भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है इसलिए भी लोग जहमत नहीं उठाना चाहते हैं. लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या समाज में इंसानियत को याद दिलाने के लिए भी कोई कानून बनाने की जरूरत है?25 नवंबर 1999 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा मिटाओं’ नाम से अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने की घोषणा की ताकि लोगों में महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा हो, क्योंकि हिंसा का प्रभाव केवल एक महिला पर ही नहीं बल्कि अगर एक महिला को चोट पहुँचती है तो वह उसके बच्चों, परिवार तथा पूरे समाज को प्रभावित करती है.
संदर्भ व सहायक सामग्री
1. दिल्ली में युवक ने दिनदहाड़े चाकू से बार-बार गोदा, सीसीटीवी में कैद हुई घटना.
2. गुड़गांव मेट्रो स्टेशन पर युवक ने दिनदहाड़े महिला को चाकू से गोद डाला.
3. चरित्र के संदेह में हैवान बना पति, बकरे की तरह काट डाले पत्नी के अंग.
4. बिहार में महिला इंजीनियर को कुर्सी से बांधकर ज़िंदा जलाया.
लेखक जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से स्नातकोत्तर हैं और हरियाणा के जिला मेवात में रहते । आजकल शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत है। लेखन में रुचि रखते है और सामाजिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. संपर्क ; 9891022472, 7073777713