हमारे समय के सर्वाधिक लोकप्रिय क्रांतिकारी नायक फिदेल कास्त्रो का निधन पूरी मानवता के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है. उन्हें क्यूबा में समाजवादी क्रांति का जनक माना जाता है. बीसवीं शताब्दी का इतिहास जब मेहनतकश आवाम के नज़रिए से लिखा जाएगा तो उसमें सबसे ऊपर के पायदान में फिदेल का नाम होगा. जब पूरी दुनिया में अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने सबसे बर्बर स्वरुप में दिखाई दे रहा था, उस समय भी इस बर्बरता को चुनौती देने का काम फिदेल के नेतृत्व में क्यूबा जैसे छोटे से देश की तरफ से हो रहा था. फिदेल ने समाजवाद का एक ऐसा विकल्प पूरी दुनिया के सामने रखा, जहाँ नस्ल, लैंगिक व वर्गीय आधार पर होने वाले शोषण के बरखिलाफ राजसत्ता पूरी इमानदारी के साथ खड़ी हुई. आधुनिक स्वास्थ्य सेवांए, शिक्षा के क्षेत्र में क्यूबा ने जो उपलब्धियां हासिल कीं वह दुनिया के सबसे विकसित पूंजीवादी देशों में भी मेहनतकश अवाम को मयस्सर नहीं थीं.
पूरी दुनिया में लैटिन अमेरिका का छोटा सा देश क्यूबा फिदेल कास्त्रो की अगुवाई में साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ता रहा है. हालांकि क्यूबा में भी साम्राज्यवादी संक्रमण की समस्याएँ पूरी तरह से हल नहीं हो पायी हैं. फिदेल कास्त्रो ने न केवल साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखी बल्कि समाजवादी देशो की मदद के लिए हर संभव प्रयास किये. दक्षिण अफ्रीका के अंगोला, इथियोपिया, निकारागुआ, वेनेजुएला सहित अन्य देशो में मदद के लिए सेना भेजना, आर्थिक दान, डॉक्टरो की टीम भेजना आदि के माध्यम से लगातार इन देशों के जनांदोलनों को अपना समर्थन दिया.
फिदेल एलोजेंद्रो कास्त्रो रूज का जन्म 13 अगस्त 1926 में हुआ था. हवाना विश्वविद्यालय से उन्होंने कानून में डिग्री प्राप्त की और इसी समय राजनीति में सक्रिय हुए. फिदेल ने इसी दौरान एक रईस परिवार की लड़की मीरटा डायज ब्लार्ट से शादी कर ली. शादी के बाद ऐसा सोचा गया कि अब फिदेल पूरी तरह से ऐशो आराम का जीवन व्यतीत करेंगे लेकिन शादी के बाद से ही वह पूरी तरह से सशस्त्र क्रांति का हिस्सा बन चुके थे. फिदेल कास्त्रो यह अच्छी तरह से समझ चुके थे कि क्यूबा में बिना हथियार के क्रांति संभव नहीं है. उनमें गजब का साहस और आत्मविश्वास था. उनका कहना था कि “क्रांति कोई गुलाबों का बिस्तर नहीं होती, यह भूत और भविष्य के बीच संघर्ष है.” क्यूबा में बतिस्ता सरकार पर असफल हमले के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा परन्तु राजनीतिक दबाव के चलते बतिस्ता सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ा. इसी दौरान उन्होंने मीरटा डायज ब्लार्ट को तलाक दे दिया और डालिया सोटो डेल वाल्वे से शादी की. 1955 में जेल से छुटने के बाद वो मेक्सिको चले गए, जहाँ उनकी मुलाकात एर्नेस्तो चे ग्वेरा से हुई. चे ग्वेरा गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के समर्थक थे. मेक्सिको में ही क्यूबा के तख्ता पलट की योजनाये बनी. फिदेल कास्त्रो को देश के अंदर जबरदस्त जनसमर्थन प्राप्त था, जिसके चलते उनका आत्मविश्वास बढ़ता ही रहा. उनका मानना था कि अगर नैतिक शक्ति क्रांति में है तो भौतिक शक्ति जनता में है. जनता के समर्थन के आधार पर ही उन्होंने कहा था कि “मैंने 82 लोगो के साथ क्रांति की शुरुआत की. मैं यही काम 10 या 15 लोगो के साथ फिर कर सकता हूँ, वो भी पूरे भरोसे के साथ, अगर आपको खुद में भरोसा है और एक पुख्ता योजना है, तो यह बिलकुल मायने नहीं रखता की आप कितने छोटे है.” फिदेल ने मात्र 32 वर्ष की उम्र में फुल्गेंकियों बतिस्ता की तानाशाह सरकार का तख्ता पलट चे ग्वेरा और अन्य साथियों के साथ मिलकर किया और 1959 से 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री और फिर 2008 तक राष्ट्रपति रहे.
फिदेल कास्त्रो अमेरिकी साम्राज्यवादी नीतियों के घोर विरोधी रहे थे. जिसके चलते अमेरिका ने क्यूबा में तमाम आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये थे. लेकिन फिदेल इन सबके बाद भी इन नीतियों के सामने नहीं झुके और उनके लगातार आरम्भिक समाजवादी प्रयोगों ने जनता को सदियों की दासता से मुक्ति दिलायी और लोगो का जीवन स्तर कई गुना ऊपर उठा दिया. बेहद गरीबी और कठोर अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करते हुए भी क्यूबा में शिक्षा और स्वास्थ्य को सभी के लिए मुफ्त उपलब्ध करा दिया गया. क्यूबा में अमेरिकी सम्पति और कारोबार का भी राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. कृषि में भी शानदार प्रयोग किये गए. 1980 में क्यूबा में एक ‘पेट प्रोजेक्ट’ शुरू किया गया. यह प्रोजेक्ट अदभुत रूप से सफल रहा जिसमें ‘उब्रे ब्लैका’ नस्ल की गाय एक दिन में 110 लीटर दूध देने लगी. यह रिकार्ड गिनीज बुक में भी दर्ज हुआ. 1962 में विश्व दो स्पष्टः दो भागो में बंट चुका था. अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध चल रहा था. फिदेल कास्त्रो अमेरिका के लिए एक बड़ी चुनौती थे, उन्होंने अमेरिकी हमले के खिलाफ रूस की तरफ से क्यूबा में मिसाइल तैनात कर सबको सकते में डाल दिया था. सीआईए ने फिदेल कास्त्रो को मारने के लगभग 638 प्रयास किये थे ,जिसे ‘368 वेस टू कील कास्त्रो’ नामक डॉक्यूमेंट्री में भी दिखाया गया था. अपने अडिग निर्णयों के कारण ही उन पर तानाशाह होने के आरोप भी लगते रहे हैं. फिदेल कास्त्रो के शासनकाल में ही क्यूबा एकल पार्टी समाजवादी राज्य बना. अपने पूरे कार्यकाल के दौरान इस क्रांति दूत ने लाल झंडा हमेशा ऊँचा रखा.
फिदेल कास्त्रो ने एक और रिकार्ड भाषण दे कर बनाया था. 29 सितम्बर 1960 में उन्होंने यूएन में 4 घंटे 29 मिनट का भाषण दिया था. इसके अलावा 1986 में हवाना में उनका 7 घंटे 10 मिनट का सबसे लम्बा भाषण कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में दिया गया था. ऐसा कहा जाता था कि फिदेल का भाषण सुनने के लिए लोग चटाई और टिफिन लेकर जाते थे.
फिदेल कास्त्रो की सार्वजनिक छवि सैनिको वाली रही है, वह हमेशा ही वर्दी में नजर आते थे. एकाध बार और बाद के वर्षों में वो कभी-कभी सूट में भी नजर आने लगे थे. उन्हें उनके उपनाम ‘एल काबल्लो’ से भी पुकारा जाता था, जिसका अर्थ ‘हार्स’ यानि घोडा था. हर्बर्ट मैथ्यूज द्वारा न्यूयार्क टाइम्स के लिए फिदेल का इंटरव्यू और सैनिक वर्दी में सिगार, बिगड़ी हुई दाढ़ी और टोपी वाली फोटो छापी गई थी. फिदेल कास्त्रो की यह रोमंटिक फोटो ही उनकी आकर्षक पहचान भी बनी.
फिदेल कास्त्रो समाजवाद का सपना लिए क्रांति की राह पर आगे बढ़े और उसे लागू करने का सफल प्रयास किया. उनकी इस लड़ाई से पूरी दुनिया के समाजवादी आन्दोलन प्रेरित होते रहे हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते रहे है. फिदेल कास्त्रो के चले जाने के बाद जो निराशा और दुःख का बादल फट पड़ा है, उसे आगे की उमीदों और समाजवाद के सपने में खुद की भूमिका की सक्रियता से हटाना होगा. कामरेड फिदेल कास्त्रो को लाल सलाम…………..!