विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताएं,
एक किताब भी प्रकाशित-
‘मैं एक देह हूँ फिर देहरी ‘ संपर्क : pndpinki2@gmail.com .
पोथी पढ़ने से जिनगी नही समझी जाती बबुनी
सरौता पे बादल नही कटता बबुनी
न पानी में फसल जमता है
मिट्टी बड़ी जरूरी है
भठ्ठी पर सपना जला कर खाना पकाने वाली
चाची सब जानती हैं
कौनो रस्ता सरग नरक नही जाता
सिनोहरा में भर के बन्द रहता है लड़की सब का मन
ऊपर से रीती नीति का डोरी से कसा हुआ
हसिया से रेत दी जाय गर्दन
जो सीवान तक घूम आये औरत
वही हसिया से खेत काटती
मुँह छुपाये
कितने जमीदारो के सामने उघाड़ दी जाती
मुँह तब भी ढकी रहे
लड़कियों के पालने में उप्पर घुमे वाला रंगीन छतरी नही लगाते
जमीन के कोने लकड़ी का लोला रखते है
ये रंग और भूख वही से चूस लेती हैं
हम आवाज के कसोरी में
दर्द का लेप बनाते हैं
छुटका को लोरी गाते हम सुलाते भर नही
रोते हैं भीतरे भीतर
हमरा रोने का टाइम नही रे
बल्कि हमरा तो टाईम ही नही
बक्सा में तहे में रखा है शादी का चुनर
पति के साथ गाँठ बंधा
पियरा गए समय की तारीख बन्धी है
औरत लोग
बक्सा सरियाती कम
चावल हल्दी से बतियाती है
बक्सा के अँधेरे में मुड़ी गाड़ के रोती रहती है
आकाश पताल कुछ नै होता बबुनी
धर्म कर्म व्रत उपवास
चक्कू की धार पर मिर्ची लहसुन नही
इच्छायें कुतरी जाती हैं
चौकी से चौखट तक की गोल गोल यात्रा
दुनियाँ गोल है न बबुनी ????
कोई पुरानी चोट पर मरहम लगा दो रे
एक झूला था
झूले में लटका पीढ़ा था
पीढ़े पर बैठी गुड़िया थी
जो आसमान से ड़रती थी
जो आँखें मूंदे रहती थी
तुम पिंग बढ़ाते थे जब जब
वो तुमसे लिपटी रहती थी
वो कहाँ गई ?
पूछो बरगद से पीपल से
पूछो आँगन की मिट्टी से
पूछो सखियों की कट्टी से
भैया से चाहो तो पूछो
अम्मा से पूछो पापा से
वो गई कहाँ ?
चाहो तो आँगन से पूछो
रूठे छाजन से पूछो
गूंगे पायल से भी पूछो
चूल्हे चौके से पूछो न
जो आग दहकती है उसमें
झुलसी उस चिड़िया से पूछो
वो कहाँ गई ?
दरवाजे की चौखट देखो
नन्हे निशान जो उभरे हैं
उस भूरी बिल्ली से पूछो
जो गुमसुम बैठी है छत पर
अलँगी पर उसकी चुनर है
वो राधा बनती थी अक्सर
फोटो के कान्हां से पूछो
वो कहाँ गई
एक झूला था
एक चूल्हा था
एक आँगन था
कुछ छमछम थी
एक गुड़िया थी
खो दी तुमनें
कोई रूठे
कोई छूटे
हम भूल उन्हें क्यों जाते हैं
क्यों वापस खोज नही लाते
क्यों मान मनौवल भूल गए
एक जंगल था
एक पीपल था
एक गुड़िया जो कबसे नही मिली…
ढूंढो उसको…
तुम चोटी करना भूलोगी
तुम रिबन चूड़ी भूलोगे
तुम काजल बिंदी भूलोगे
तुम भूलोगे लंहगा घाघर
तुम नदियां सागर भूलोगे
ये आधी दुनियाँ मुठ्ठी में
चुप चाप लिए खो जाएँगी….